tag:blogger.com,1999:blog-6672229774459200184.post2154375243032902806..comments2023-06-25T08:21:30.443-07:00Comments on रचना समय: आलेखरूपसिंह चन्देलhttp://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-6672229774459200184.post-55744893240767590062011-03-11T00:11:07.509-08:002011-03-11T00:11:07.509-08:00आदरणीय देवी नांगरानी जी, आपने बिल्कुल सही कहा है। ...आदरणीय देवी नांगरानी जी, आपने बिल्कुल सही कहा है। आप इस पीड़ा को बहुत भीतर तक महसूस कर सकती हैं क्योंकि प्रवास में आप भी रही हैं।सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6672229774459200184.post-78037251824571583342011-03-08T07:49:21.878-08:002011-03-08T07:49:21.878-08:00मैं श्री रूपसिंह चंदैल जी मेरे इन विचारों को रचनास...मैं श्री रूपसिंह चंदैल जी मेरे इन विचारों को रचनासमय पर पोस्ट करने के लिये धन्यवाद देती हूँ और साथ में यह भी कहना चाहूंगी कि हम कभी अपनी मर्ज़ी से, तो कभी परिस्थितियों के एवज़ जहां कहीं भी बन जाते है, उसका ये कतहि मतलब नहीं होता कि हम हिंदुस्तानी नहीं है.और हिंदुस्तानी होने के नाते हिंदी हमारी भाषा है, हमारी विरासत है. उसे हम कैसे प्रवासी कहें, जो हमारी धमनियों में रवां हो रही है, जिसमें हम सोचते हैं, अपने आप को अभीव्यक्त करते हैँ.Devi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6672229774459200184.post-74130291626155213742011-03-08T06:35:51.467-08:002011-03-08T06:35:51.467-08:00Roop Singh ji,
Sadar Namastay,
thank you very ...Roop Singh ji,<br /> <br />Sadar Namastay,<br /> <br />thank you very much for the article. I will soon get back to you.<br />Very important topic indeed.<br /> <br />Kind regards<br /> <br />ShamsAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6672229774459200184.post-11845217572733628382011-03-08T06:33:42.383-08:002011-03-08T06:33:42.383-08:00देवी नांगरानी ने अपने आलेख " हिंदी साहित्य
ब...देवी नांगरानी ने अपने आलेख " हिंदी साहित्य <br />बनाम प्रवासी हिंदी साहित्य " में सच्ची - सच्ची बातें <br />कही हैं . मैं उनके विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ .<br />व्यक्ति प्रवासी होता है , भाषा प्रवासी नहीं होती है . आज <br />कल भारत में छपने वाली अधिकाँश पत्रिकाओं में विदेशों <br />में लिखे जा रहे हिंदी साहित्य के साथ " प्रवासी " शब्द <br />धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है . हिंदी कविता , हिंदी <br />ग़ज़ल , हिंदी दोहा , हिंदी लेख , हिंदी आलोचना और <br />हिंदी कहानी को जबरन क्रमश: प्रवासी हिंदी कविता , प्रवासी<br />हिंदी ग़ज़ल , प्रवासी हिंदी दोहा , प्रवासी हिंदी लेख , प्रवासी <br />हिंदी आलोचना और प्रवासी हिंदी कहानी बनाया जा रहा है <br />विदेशों में रहता कोई हिंदी साहित्यकार अपने साहित्य के <br />साथ " प्रवासी " शब्द के उपयोग को पसंद नहीं करता है , फिर <br />इसको उपयोग करने की तुक क्या है ? मैं विद्वान लेखकों <br />से अपील करता हूँ कि हिंदी साहित्य ( भले ही वह विदेशों <br />में रचा जा रहा है ) को हिंदी साहित्य ही रहने दें . उसको <br />प्रवासी कह - लिख कर उसका अनादर नहीं करें . जो लोग <br />विदेशों में लिखे जा रहे हिंदी साहित्य को प्रवासी हिंदी <br />साहित्य कहते हैं उनसे मेरा यह प्रश्न है कि रवींद्र कालिया <br />या रूप सिंह चंदेल ने अपने अधिकाँश साहित्य का सृजन <br />अलाहबाद और दिल्ली के प्रवासकाल में किया है उनका <br /> रचित साहित्य प्रवासी हिंदी साहित्य क्यों नहीं ?<br /> प्राण शर्मा <br /> यू . के.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6672229774459200184.post-33422398520283576012011-03-08T05:05:45.612-08:002011-03-08T05:05:45.612-08:00आदरणीय गुरुदेव प्राण शर्मा जी ने अपनी रचना के माध्...आदरणीय गुरुदेव प्राण शर्मा जी ने अपनी रचना के माध्यम से प्रवासी शब्द से आहत जिस भाव को व्यक्त किया था उसी भाव को देवी नागरानी दीदी ने अपने शब्द दिए हैं...ऐसे रचनाकार को जो किसी कारण से अपने वतन से दूर रह रहा है प्रवासी कहना सरासर गलत है...उनका अपमान है...हमें इस शब्द को अपने शब्द कोष से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ेगा...<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6672229774459200184.post-44261314763583403222011-03-08T02:00:02.903-08:002011-03-08T02:00:02.903-08:00भाई चन्देल, देवी नांगरानी जी का यह आलेख विचारणीय ह...भाई चन्देल, देवी नांगरानी जी का यह आलेख विचारणीय है और सच पूछो, तो तुम्हारी मेरी राय को ही बल देने वाला आलेख है। परन्तु इस विषय में हमसे अधिक उन हिंदी लेखकों कवियों को अधिक सोचना है जो किसी कारणवश हिंदुस्तान से बाहर रहकर हिंदी में लेखन कर रहे हैं। हिंदुस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो प्रवासी हिंदी लेखकों-कवियों को खुश करने के लिए हिंदुस्तान में 'प्रवासी साहित्य' पर आयोजन करते घूमते हैं, पत्रिकाओं के विशेष अंक छापते रहते हैं। इसके पीछे ऐसे लोगों का मकसद क्या होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। और प्रवास में रह रहे कुछ लेखक उनकी इस मंशा को भलीभांति जानते-समझते हुए भी चर्चा में रहने के लिए ऐसे आयोजनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं… उन्हें लगता है कि चलो यूँ ही सही, उनके लिखे की चर्चा तो हो ही रही है… उदाहरणों की कमी नहीं है… सबको मालूम है।<br />और हाँ, ब्लॉग पर जो भी मैटर दो, उसमें भाषागत कम से कम अशुद्धियाँ हों, इस तरफ़ ध्यान दो। देवी नांगरानी के आलेख में बहुत सी भाषागत अशुद्धियाँ हैं जो चुभती हैं। अंतरर्जाल पर हिंदी का शुद्ध-स्वच्छ स्वरूप कायम रखना भी हमारा दायित्व है।सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com