गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

हिदी कविता का दुख












अनिल जनविजय की कविता
हिन्दी कविता का दुख

अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते
और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते
ऎसा क्यों है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी
अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी

क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं
क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं
परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे

क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं
क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर राठी
हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी
पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी
कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी











-- अनिल जनविजय
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1 टिप्पणी:

सुभाष नीरव ने कहा…

"रचना समय" में अनिल जनविजय की छोटी-सी कविता में बहुत बड़ा व्यंग्य छिपा हुआ है। अच्छा लगा इसे पढ़कर।