शनिवार, 19 जनवरी 2013

तोलस्तोय (जीवनी)

 

मेरे द्वारा अनूदित महान रूसी लेखक लियो तोलस्तोय की हेनरी त्रायत जीवनी ’तोलस्तोय’ का पहला अध्याय आप रचना समय में पढ़ चुके हैं. प्रस्तुत है उसका दूसरा अध्याय.   



                               तोलस्तोय

लेखक - हेनरी त्रायत
अनुवाद- रूपसिंह चंदेल
लियो तोलस्तोय परिवार के साथ
                                       अध्याय - दो

बचपन


गंभीर नन्हा लियो अपनी मां को याद करने का जितना ही प्रयास करता, वह उतना ही उसकी स्मृतियों से निकल भागतीं. वह उन लोगों से प्रश्न पूछकर उनकी पहचान निर्धारित करने का प्रयास करता जो उन्हें जानते थे, लेकिन उसके प्रयत्न व्यर्थ होते. वे उसे बताते वह अच्छी, सौम्य, ईमानदार, गर्वीली, बुद्धिमान, और श्रेष्ठ कहानी कहने वाली थीं, लेकिन वह उन विशेषताओं की कल्पना किसी चेहरे में नहीं कर सका और उसके मन में रहस्य और गहरा जाता, क्योंकि घर में उसकी मां का एक भी चित्र उपलब्ध नहीं था. काले कागज के कट आउट का केवल एक छायाचित्र था, जिसमें वह दस या बारह वर्ष की उम्र की दिख रही थीं. उनका ललाट और ढोढ़ी गोल थे और उनकी गर्दन की गुद्दी (कंधरा)  पर बालों पर दुपट्टा पड़ा हुआ था. जिन्दगीभर तोलस्तोय कुंठित करने वाले उस तस्वीर को मन में बैठाए रहे. वह बड़े हो गए, लेकिन उनकी मां छोटी बालिका ही बनी रहीं. अपने लिए प्रेम के अभाव की अनुभूति होने पर अंततः वह उनके विषय में पौराणिक गाथा की भांति सोचते, संकट के समय उनका आश्रय ग्रहण करते और उन पर अलौकिक सहायता के लिए निर्भर हो जाते. अपनी मृत्यु से कुछ वर्ष पहले उन्होंने लिखा था, ...‘‘मैं बाग में टहलता हूं और अपनी मां के विषय में सोचता रहता हूं. मैं उन्हें याद नहीं कर पाता. लेकिन मेरे लिए वह पवित्र आदर्श के रूप में सदैव मेरे साथ हाती हैं. मैंने उनके विषय में एक भी अपमानजनक टिप्पणी कभी नहीं सुनी.’’ और ‘‘पूरे दिन उदास और खिन्न अनुभव करता रहा. शाम के समय मन में स्नेहपूर्ण लाड़-दुलार की चाहत उत्पन्न हुई. मैंने कल्पना की कि मैं एक छोटा बच्चा बन गया हूं. अपनी मां के बहुत निकट हो गया हूं और मैंने वैसा ही चाहा जैसा कि जब मैं बच्चा था, मां स्नेह और सहानुभूति से मुझे छाती से चिपका लेती थीं और रोने पर प्रेम से सांत्वना देती थीं. हां, हां, मेरी मां, जिससे मैं कभी बातचीत करने में समर्थ नहीं हो पाया था क्योंकि जब वह मरीं, मैं नहीं जानता था कि बात कैसे की जाती थी. वह मेरे प्रेम की उच्चतम प्रतीक हैं--तटस्थ नहीं, दिव्य प्रेम, बल्कि भावप्रवण, ऐहिक प्रेम, मातृ-सुलभ....मां, मुझे संभालो, मुझ बच्चे को! ....यह सब पागलपन है, लेकिन यह सब सच है.’’

यद्यपि लियो तोलस्तोय अपनी मां का स्मरण नहीं कर सके, तथापि उन्हें वह सब याद था अथवा उन्होंने उन सब घटनाओं के विषय में सोचा था, जो उनकी मृत्यु से पूर्व घटित हुई थीं. ‘‘मैं चैतरफा घिरा हुआ हूं. मैं अपनी बाहें फैलाना चाहता हूं, लेकिन वैसा नहीं कर सकता.’’ उन्होंने संस्मरणों में लिखा, ‘‘मैं चीखा और चिल्लाया और मुझे अपनी चीख से घृणा हुई, लेकिन मैं अपने को रोक नहीं सका. लोग मुझ पर झुके हुए थे, मुझे याद नहीं वे कौन लोग थे... और सब कुछ नीम अंधेरे में छुपा हुआ था. वे दो हैं...मेरी चीख ने उन्हें प्रभावित किया. वे चिन्तित थे, लेकिन उन्होंने मुझे छोड़ा नही जैसा कि मैं उनसे चाहता था और मेरी चीख अधिक ऊंची हो जाती थी.’’  उनकी स्मृति में दूसरी घटना अधिक स्पष्ट थी. वह अप्रिय गंध से घिरे लकड़ी के एक टब में बैठे हुए थे. एक नौकरानी चोकर से उनका बदन मल रही थी. ‘‘पहली बार’’ उन्होंने उस घटना के विषय में लिखा, ‘‘मैं सचेत हुआ और छाती से बाहर निकली हुई अपनी पसलियों, गहरे-चिकने लकड़ी के टब, अपनी नर्स की घूमती बाहों, गर्म, भाप छोड़ते विलोड़ित पानी और उसकी छपछप की आवाजों और अपने नन्हें हाथों को टब की परिधि में घुमाने से प्राप्त अनुभूति से मैं सर्वाधिक  प्रसन्न हुआ था. यह सोचना आश्चर्यजनक और भयावह है कि जन्म के दिन से तीन वर्ष का होने तक, घुटनों के बल रेंगना प्रारंभ करने और चलने और बोलना प्रारंभ करने तक मेरी उपचर्या की गई थी तथापि अपने दिमाग को झकझोरने पर मुझे इन दो प्रभावों के अतिरिक्त कुछ भी स्मरण नहीं है...पांच साल का बच्चा हाने से मैं एक कदम दूर था. भ्रूण से नवजात शिशु आदिगर्त (नर्क) है और अनस्तित्व से भ्रूण एक नर्क नहीं, बल्कि अकल्पनीय है.’’

फिर भी, धीरे-धीरे उसके इर्द-गिर्द घूमने वाली छायाएं आकार ग्रहण करने लगीं. वह चेहरों से नामों को जोड़ सकते थे. पांच वर्ष की आयु में वह अपनी बहनों मार्या और दून्या, एक छोटी (नन्ही लड़की) जिसे परिवार ने गोद लिया था के साथ ऊपरी मंजिल में रहते थे. जब वह वयस्क होने लगे उन्हें अपने बड़े भाइयों के साथ निचली मंजिल में जाकर रहने का निर्णय किया गया और उन्हें नर्स के बजाय जर्मन ट्यूटर फ्योदोर इवानोविच रोसेल के हवाले कर दिया गया. इस परिवर्तन के विषय में सोचकर भयभीत हो वह आंसू बहाते. आण्ट ट्वायनेट उन्हें डेनिम के उनके नए कपड़े पहनाकर पट्टियां बांधकर सजाकर उन्हें शांत करने का प्रयत्न करती थीं. जब वह उन्हें सजाकर तैयार कर लेतीं उन्हें चूमतीं. ‘‘मुझे याद है’’ उन्होंने लिखा, ‘‘वह कुछ-कुछ छोटी, गठीली, भूरे बालों, दयालु, सहृदय और करुणामय भावों वाली थीं....मैंने समझा था कि वह वैसा ही अनुभव करती थीं जैसा कि मैं करता था. यह दुखद, बहुत ही दुखद, लेकिन वैसा था.’’ वह उन्हें सीढ़ियों से नीचे ले जातीं. जब वह पीछे झुके नकनकाते हुए प्रकट होते उनके भाई उन्हें रोनेवाला खरगोश कहते थे. लेकिन उनके अपमान को वह अनसुना कर देते थे. उनके लिए सब कुछ विस्मरणीय था, लेकिन बड़े चश्मे के पीछे पीली आंखों, टेढ़ी नाक और फुंदने वाली टोपी, फूलों के नमूने की सिलाई वाला ड्रेसिंग गाउन, जिसे वह गहरे नीले ओवर कोट से बदल लेते थे, पहने फ्योदोर इवानोविच रोसेल के मेज पर आने से पहले ही उनका आतंक उन्हें घेर लेता था.  

यह खौफनाक दिखनेवाला व्यक्ति जल्दी ही एक भले स्वभाव और कोमलहृदय व्यक्ति के रूप में प्रकट हुआ. रशियन बोलते समय उनका जर्मन उच्चारण अत्यंत हास्यास्पद होता था. कभी-कभी वह अपना संयम खो देते, चीखते और अपने शिष्यों को डंडे अथवा छड़ियों से पीटते थे. लेकिन उनकी झल्लाहट रोने की अपेक्षा हंसी अधिक उत्पन्न करती थी. उन्हें बच्चों को सभी विषय पढ़ाने होते थे, लेकिन वह उन्हें विशेषरूप से ‘‘गोएथ की भाषा’’ पढ़ाते थे. ‘‘वाल्तेयर की भाषा’’ की उनकी प्रशिक्षिका उनकी आण्ट ट्वायनेट थीं. पांच वर्ष की आयु में लियो रशियन वर्णमाला की ही भांति फ्रेंच वर्णमाला जान गए थे और बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि प्रायः वह सीधे फ्रेंच में ही सोचने लगे थे.

लेकिन कुछ समय के लिए आमोद-प्रमोद के लिए उनके भाइयों के साथ उन्हें भेज दिया जाता था, जो चिढ़ाने के बाद उन्हें अपनी टोली में शामिल कर लेते थे. वह द्मित्री की मुस्कराहट, काली बड़ी आंखें और विचित्र तरंग को प्यार करते थे. निकोलस का वह आदर करते थे, जो उनसे पांच वर्ष बड़ा था, लेकिन सेर्गेई जो उनसे एक वर्ष बड़ा, खूबसूरत, बेमिलनसार और निराला था, का वह समादर करते थे. वह हर समय गाता रहता, पेंसिल कलर से मुर्गों के आश्चर्यजनक चित्र बनाता रहता और गुप्तरूप से मुर्गी के बच्चे पालता था. ‘‘मैंने उसकी नकल की, उसे प्यार किया, और उस जैसा बनना चाहा.’’ तोलस्तोय ने लिखा. लेकिन सेर्गेई निकोलस के सामने पीला पड़ गया जब उसने एक नया खेल खोज निकाला. निकोलस में ऐसी जीवंत कल्पनाशक्ति थी कि वह कल्पनापूर्ण अथवा विचित्र कहानियां घण्टों सुना सकता था जिन्हें वह यूं ही बना लेता था. उन्हें वह शैतान की सींगों और मूंछों से चित्रांकित कर संवारता था. एक दिन उसने भाइयों को कहा कि वह एक रहस्य जानता है और जब उस रहस्य से पर्दा उठेगा धरती से समस्त बीमारियां समाप्त हो जाएंगी, प्रत्येक हृदय में प्रेम खिल उठेगा और सभी मनुष्य अंततः प्रसन्न होकर एण्ट ब्रदर्श(Ant Brothers) (तोलस्तोय ने अपने संस्मणों में टिप्पणी की कि निकोलस का अर्थ था ‘‘मोरेवियन बन्धु (मोरेवियन 15वीं शताब्दी काल की जाति विशेष-अनु.) ‘‘जो एक धार्मिक पंथ का नाम था जो बोहेमिया में सोलहवीं शताब्दी में विकसित हुआ था. बच्चे के मस्किष्क में इस कारण भ्रम उत्पन्न हुआ कि चींटी के लिए रूसी शब्द मुरावेय (Muravey) था जव ध्वनिविज्ञान के अनुसार ‘‘मोरेवियन’’के समरूप था.) बन जाएंगे.

बच्चे एक साथ शाल ढकी कुर्सी के नीचे बैठे इस चमत्कारपूर्ण रहस्योद्घाटन का जब इंतजार कर रहे थे उन्हें अंधेरे में छुपे एक गंभीर रहस्य का आभास हुआ. खासकर नन्हे लियो ने कबाइली गर्मी और गंध में अपनी सांस रोक ली, अपने दिल की धड़कन सुनी और ‘‘ब्रदरहुड ऑफ ऐंट’’ के विषय में सोचकर रोने लगे. वह अत्यंत प्रेमपूर्वक सभी उस मुख्य रहस्य को जानने के इच्छुक थे जिसके कारण सभी मनुष्य स्वस्थ हो जाएंगे और कभी झगड़ा नहीं करेंगे, लेकिन निकोलस ने कहा कि वह रहस्य एक हरी छड़ी में तराशा गया था और हरी छड़ी को पुराने ज़काज के जंगल के एक बड़े खड्ड में दबाया गया था. ‘‘मैंने विश्वास कर लिया.’’ उन्होंने बाद में लिखा, ‘‘कि एक हरी छड़ी थी जिस पर शब्द उकेरे गए थे कि वे मनुष्यों के हृदय से बुराइयों को नष्ट कर देंगे और उनके लिए सब कुछ अच्छा हो जाएगा और मैं आज भी विश्वास करता हूं कि कोई ऐसा सत्य है, कि वह मनुष्यों में प्रकट होगा और उस वायदे को पूरा करेगा.’’ और यह स्मरण करते हुए कि हरी छड़ी संभवतः कहां छुपायी गयी थी, उन्होंने आगे लिखा था, ‘‘चूंकि मेरा शरीर कहीं तो दफनाया जाएगा ही, मैंने पड़ताल की कि यह वही स्थान होगा, जो निकोलस की स्मृति में था.’’

एक और अवसर पर निकोलस ने अपने भाइयों से वायदा किया कि वह उन्हें फैन फरोन पर्वत पर ले जाएगा. लेकिन उस अभियान में जो भी सम्मिलित होना चाहता था उसके लिए उसने शर्तें रखी कि उसे पहले कमरे के एक कोने में खड़ा होना आवश्यक था और, ‘‘और सफेद भालू के विषय में नहीं सोचना था’’ फिर उसे तिड़के फर्श के तख्तों पर एक छोर से दूसरे छोर तक बिना पगध्वनि  किए चलना था और तीसरी शर्त थी कि ‘‘मरा, जिन्दा अथवा भुना हुआ’’ खरगोश नहीं देखना था. पूरे वर्ष उसने वहां क्या सीखा शपथपूर्वक वह कभी नहीं बताएगा. यदि कोई उन सभी परीक्षाओं को उत्तीर्ण कर लेगा... और दूसरी, और....बाद में निर्धारित होने वाली और अधिक कठिन...पर्वत शिखर पर उसकी कामना सिद्ध हो जाएगी. निकोलस ने उन सभी से कहा कि वे सभी भविष्य के लिए कामना करें.  सेर्गेई घोड़ों और मुर्गियों की मूर्तियां गढ़ना सीखना चाहता था, द्मित्री चित्रकारों की भांति प्राकृत आकार की वस्तु का चित्र बनाना चाहता था. लियो क्या चयन करे, नहीं जानता था और उसने कहा कि वह लघु चित्र बनना पसंद करेगा. उस विमोहित घर के परिसर में संरक्षक के रूप में दो देवियां थीं. पहली, मां के स्थान पर तात्याना अलेक्जेंद्रोएव्ना एर्गोल्स्काया, और आण्ट ट्वायनेट, जिन्होंने यास्नाया पोल्याना के उन बच्चों का इस प्रकार पालन-पोषण किया था मानो वे उनके अपने थे. लियो तोलस्तोय ने लिखा, ‘‘बचपन से मुझ पर उनका प्रमुख प्रभाव था जिसने मुझमें प्रेम के आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति के लिए प्रेरित किया. मैं देख और समझ सका कि प्रेम के प्रति वह कितना प्रसन्न थीं. दूसरे उन्होंने मुझे एकांत और शांत जीवन का महत्व समझने...इस जीवन की मुख्य विशेषता- भौतिक चिन्ताओं की अनुपस्थिति, दूसरे लोगों के साथ प्रिय संबन्ध...और जल्दबाजी अथवा किसी प्रकार समय व्यतीत करने के भाव की अनुपस्थिति की शिक्षा दी. आण्ट ट्वायनेट के कमरे में किशमिश और बिस्कुट और खजूर और टाफियों से भरे जार कतार में रखे हुए थे. नन्हें लियो को उसके अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किए जाने के महत्वपूर्ण अवसर की अपेक्षा कोई भी दावत आकर्षित नहीं करती थी. ड्राइंगरूम के सोफे पर उनके बगल में लेटना उसे पसंद था.

ट्वायनेट की अपेक्षा निकोलस इलिच तोलस्तोय अपने बच्चों के कम निकट थे, लेकिन सबसे छोटे बेटे के लिए उनकी चुस्ती, योग्यता और अच्छी मनोदशा आदर्श उपस्थित करते थे. जब वह चुस्त पतलून पर ओवरकोट पहनकर कस्बे के लिए प्रस्थान करते, अथवा अपने जिन्दादिल शिकारी कुत्तों के साथ शिकार के लिए जाते या अर्द्धनिमीलित आंखों सहित सिर पर कोई उलझन लिए धीरे और मग्नतापूर्वक पाइप का धुंआ अंदर खींच रहे होते तब कितना सुन्दर दिखते थे! कभी-कभी वह बच्चों के कमरे में आते, अपने स्थिर हाथों से तेजी से कोई रेखाकृति बनाते, फ्योदोर इवानोविच रोसेल से जर्मन के तीन या चार शब्दों का आदान-प्रदान करते, उसके ‘‘फेयरवेल, फ्री एलीमेण्ट....’’ अथवा ‘‘नेपोलियन’’ गाने का निर्देश देते, उसकी बंबार्डपूर्ण गायन की आलोचना करते, हास्यपूर्ण एक कहानी सुनाते, और उन सभी को आनंददायक स्थिति में छोड़कर तेजी से घूमते और ओझल हो जाते थे.

क्क्षा में ट्यूटर के साथ सुबह का समय शांतिपूर्वक बीत जाता था और उसके बाद वे खेलने के लिए बाहर चले जाते थे. मैदान इतना बड़ा था कि बच्चे हर दिन एक नया छोर खोज लेते थे. गर्म मौसम के दौरान वे वोरोन्का में चिंगर मछली पकड़ते थे. कंटीली झाड़ियों से होकर एक दूसरे का पीछा करते हुए अपनी त्वचा पर खरोंच लगाते, घोड़ों के अस्तबल और कुत्ताघर देखने जाते, मशरूम और ब्लैकबेरी खोजते, और भूरे और शर्मीले कृषिदासों के बच्चों के साथ गपशप करते और जाड़े में दल स्केटिगं करता और एक-दूसरे पर बर्फ फेंकता. जैसे ही घर के अंदर आते वे स्नान करते, कपड़े बदलते और ड्राइंगरूम में पहुंचते, जहां दादी, आण्ट अलेक्जेंद्रा, आण्ट ट्वायनेट, नन्हीं पाशेन्का और फ्योदोर इवानोविच रोसेल पापा के स्टडी से बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे होते जिससे वे डिनर के लिए जा सकें. अंततः दृढ़, ओजस्वी, ‘‘अपनी लाल ग्रीवा और मुलायम फ्लैट हीलों वाले जूतों और बच्चों की भांति उल्लासपूर्वक आंखें चमकाते हुए’’ वह प्रकट होते. जब वह दादी का हाथ चूम रहे होते, गहरे लाल रंग से पेंट किया हुआ डबुलडोर झूलता हुआ खुलता और दरवाजे पर गृह प्रबंधक फोका देमिदिच प्रकट होता, जो एक समय स्व. प्रिंस वोल्कोन्स्की के आर्केस्ट्रा का दूसरा वायोलिन वादक था. नेवी ब्लू ओवरकोट पहने अपने माथे को सिकोड़कर वह सीधे-सादे स्वर में डिनर सर्व किए जाने की घोषणा करते. सभी खड़े हो जाते. पापा अपनी बांह दादी को पकड़ाते और आण्टियां, बच्चे, मित्र और ट्यूटर उनके पीछे एक साथ चल पड़ते. परिवार डायनिंग रूम में दाखिल होता, जहां एक नौकर अपनी छाती के पास एक प्लेट पकड़े हर कुर्सी के पीछे खड़ा होता था. जब अतिथि उपस्थित होते उनके अपने नौकर उनके पीछे खड़े होते और उन्हें प्रारंभ से अंत तक भोजन परोसते थे. मेज पर स्थानीय जुलाहों द्वारा तैयार किया गया मोटा लिनेन कपड़ा बिछाया गया होता और उस पर पानी भरी सुराहियां, क्वास (बीयर) भरे जग, पुराने चांदी के चम्मच, लकड़ी के हत्थे वाले चाकू , कांटे और सादे गिलास रखे होते थे. रसोई से सूप सर्व किया जाता और नौकर उसके साथ एक-एक करके पिरोश्की देते जाते. पहला ग्रास मुंह में रखते ही भोजन करनेवालों के बीच जीवंत वार्तालाप प्रारंभ हो जाता था. भोजन करते, पीते और लतीफे सुनाते हुए पापा के गाल चमक रहे होते थे. हर लतीफे पर बच्चों की हंसी फूट पड़ती थी. प्रारंभ से ही उनके दिमाग एक ही बात पर स्थिर होते -- दही...चीनी...तले हुए फल, दुग्ध पुडिगं ((दूध के बने पकवान), तले हुए मालपुआ, क्रीम चीज, और खट्टी क्रीम. जब तब लियो प्रिंस वोल्कोंस्की के आर्केस्ट्रा के पूर्व बांसुरी वादक बूढ़े टिखों पर नजरें डाल लेता. दादी की कुर्सी के पीछे खड़ा अपनी छाती से प्लेट चिपकाकर पकड़े पीला और निस्तेज लिविड दत्तचित होकर मालिकों के विचार-विनिमय समझने का प्रयास कर रहा होता था जिससे कभी-कभी उसके चिकने होठ खुलकर फैल जाते थे और उसकी आंखें विस्मय-विस्फारित हो जाती थीं.

भोजन जब समाप्त हो जाता, टिखों मालिक का पहले से ही जला हुआ पाइप ले आता और देकर चुपचाप चला जाता. लेकिन जल्दी ही वह पैरण्टल स्टडी के एक कोने में शीशे में प्रकट होता. लालच में पड़कर कुछ गुलाब के आकार की चमड़े की थैली से, जिसे निकोलस इलिच ने अपने डेस्क पर छोड़ा हुआ होता, चुटकी भर तंबाकू चोरी करता.

वह सौ बार डांट-फटकार खाने के योग्य था, लेकिन उसका उदार मालिक उसे चोरी करते हुए देखकर केवल मुस्करा दिया करता था. कृतज्ञतापूर्वक अत्युत्सुकता से लियो अपने पिता का सफेद हाथ तेजी से थाम लेता, जिसके मांसल हथेली में एक गुलाबी दाग था, और उसे चूम लेता.

दोपहर बाद जब मौसम सुहावना होता, आण्टियां और ट्यूटर के साथ घोड़ा गाड़ी में यास्नाया पोल्याना से दो मील दूर वे गुमंड गांव की ओर घूमने जाते थे. चमड़े के एप्रेन और ऊंची कमानियों की छतरी वाली लंबी पीली घोड़ा गाड़ी जकार के जंगल के रास्ते एक ही लीक पर हिचकोले खाती हुई जाती थी. बच्चे चीखते और गाते और घोड़े अपने कान फड़फड़ाते. सड़क के अंत में ग्वालिन मैत्र्योना, काली ब्रेड, खट्टी क्रीम और कच्चे दूध के साथ उनका इंतजार कर रही होती थी.

जाड़े की शामों का भी उनके लिए आकर्षण था. बर्फ और सन्नाटे में एकाकी पूरा परिवार कांपता हुआ अपने को मुख्य घर में बंद कर लेता था. समय धीमी गति से आनंदपूर्वक व्यतीत होता. संतोष के साथ ठिठुरते हुए लियो स्वयं से कहता कि संसार में उस घर से अच्छा कोई अन्य घर नहीं जिसमें वह जन्मा था बावजूद इसके कि वहां सुख के साधन पुराने थे. केवल कुछ भोजन की मेजें, एक या दो बाजूवाली कुर्सियां थीं. बाकी फर्नीचर मुझिकों ने काटकर एक साथ एकत्र किया हुआ था. विलास की वस्तु के रूप में शीशों और पेण्टिंग्स के चारों ओर सुनहरे फ्रेम जड़े हुए थे. यहां तक कि बच्चों के जूते गांव के मोची द्वारा तैयार किए गए थे.

बिस्तर पर जाने से पहले वे अपने बड़ों को शुभरात्रि कहते और उनके हाथ चूमते थे. झालर वाली काली टोपी पहने हुए दादी ‘‘यात्रा के अपने मूल्यवान आभूषण’’ छोटी मेज पर रखती थीं. उनके बगल में तूला के बंदूक बनाने वाले की पत्नी दीवान पर बैठी होती थी जिसे उन्होंने मित्र के रूप में स्वीकार किया था और जिसने अपनी जैकट के ऊपर कारतूसों की बेल्ट पहनी हुई थी. बंदूक बनाने वाले की पत्नी ऊन कातती रहती थी और लगातार अपनी टेकरी से दीवार पर चोट करती रहती थी, जिसमें अंततः उसने एक छेद कर दिया था. एक आण्ट ऊंचे स्वर में पढ़तीं और दूसरी बुनाई करतीं अथवा सिलाई. दांतों के बीच पाइप दबाए पापा ताश के पत्तों को अन्यमनस्क भाव से निर्निमेष देखते और घूमकर कुर्सी पर बैठ जाते. उस समय उनका ह्विपेट कुत्ता मिल्का आंखें झपकाता और जंभाई लेता.
बड़े जब बच्चों को चले जाने का आदेश देते, कम से कम उनमें से एक के लिए मनोरंजन समाप्त नहीं हुआ होता. परिवार में यह परंपरा थी कि क्रमशः एक बच्चा दादी पेलेग्या निकोलाएव्ना के साथ रात बिताता था. जिस दिन लियो को दादी के साथ रात बितानी होती उनके कमरे में प्रवेश करते ही वह आनंदातिरेक में डूब जाता. दादी नाइट ड्रेस और टोपी में होती थीं. वह उनके मांसल और गोरे हाथों को देखता जब वह अपने हाथ धो रही होतीं. उसके मनोरंजन के लिए वह अपनी झुर्रियोंदार उंगलियों के बीच साबुन के बुलबुले उठातीं. एक बूढ़ा व्यक्ति खिड़की के आले पर बैठा होता.  उसका नाम लियो स्तेपानोविच था, जिसे प्रिंस वोल्कोन्स्की ने बहुत पहले एक कथाकार के रूप में अपने लिए खरीदा था. वह अंधा था, इसीलिए उसे हर हाइनेस के प्रसाधन कक्ष में बैठने की अनुमति प्राप्त थी. मालिक के खाने से बचे कुछ टुकड़ो से भरा एक कटोरा उसके लिए लाया जाता था. जब पेलेग्या निकोलाएव्ना हाथ-मुंह धोकर अपने पलंग पर चढ़ जातीं, लियो अपने पलंग पर चढ़ जाता और एक नौकर मोमबत्ती बुझा देता. केवल पूजाघर में मूर्ति के सामने रतजगे की बत्ती जलती रहती. अंधा व्यक्ति धीरे-धीरे मंद स्वर में अपनी कहानी कहना प्रारंभ कर देता, ‘‘एक बार एक बहुत शक्तिशाली राजा था, जिसके एक पुत्र था......’’

लियो सोचता कि उस अंधे व्यक्ति ने जो कुछ सुनाया क्या उसे दादी ने सुना? क्या वह सो गयीं? कभी-कभी अपने लबादे से ढका कथाकार श्रद्धापूर्वक पूछता, ‘‘आप मुझे आगे बढ़ने के लिए निर्देश देंगी?’’ बड़े पलंग से तड़ाक से अधिनायकीय आवाज गूंजती, ‘‘हां, आगे बढ़ें....’’ और वह रूसी लोककथा के साथ शेहराज़ेद की लोककथा मिलाते हुए अपनी कहानी कहना शुरू कर देता. नीरस बड़बड़ाहट से शांत लियो  आंखें मूंद लेता और उसे सपने में फीतावाली टोपी और रिबनों से सजी हुई एक प्राचीन रानी का चेहरा दिखाई देता.

सुबह के समय दादी अपना रौबदाब खोए बिना अपनी उंगलियों के बीच और अधिक साबुन के बुलबुले पैदा करतीं. कभी-कभी वह बच्चों को पहाड़ी बादामों के पास एकत्र करतीं. वह प्रसिद्ध पीली टमटम में चढ़तीं और दो नौकर-- पेत्र्यूशा और मत्यूशा.... डंडे संभालते और उन्हें लेकर सड़क पर आगे बढ़ते. जंगल में वे शाखाओं को श्रद्धापूर्वक अपनी मालकिन के लिए झुकाते जो अत्यधिक पके हुए बादामों को अपने बैग में ठूंसकर भर लेतीं. उनके पोते आपस में तकरार करते हुए उनके चारों ओर दौड़ते रहते थे. ‘‘मुझे दादी की याद है’’ बाद में तोलस्तोय ने लिखा, ‘‘पादप (पिंघल) वृक्षों का समूह, उनकी पत्तियों की तीक्ष्ण गंध, नौकर, पीली टमटम, सूर्य, और वे सब संयुक्त रूप से एक दीप्ति प्रभाव में परिवर्तित हो जाते थे.’’ वास्तविकता में, पेलेग्या निकोलाएव्ना एक संकुचित विचारों वाली महिला थीं, जो अपने सेवकों के प्रति सनकी, निरंकुश और कठोर थीं, लेकिन अपने बेटे और पौत्रों के प्रति कृपालु और ढुलमुल व्यवहार करती थीं.

अलेक्जांद्रा इलिनिच्ना, निकोलस इलिच तोलस्तोय की बहन, जो आण्ट एलिन कहलाती थीं, बिल्कुल एक भिन्न समस्या थीं. जब वह बहुत युवा थीं काउण्ट ऑस्तेन-शेकेन के साथ उनका विवाह हुआ था और अपने विवाह के कुछ समय पश्चात ही वह अभिविक्षिप्त हो गया था और उसने उन्हें जान से मारने का प्रयत्न किया था. पहली बार उसने उन्हें पिस्टल से गोली मारकर घायल किया, और दूसरी बार  जब वह स्वास्थ्य लाभ कर रही थीं वह उनके कमरे में गया और छुरे से उनकी जीभ काटने का प्रयत्न किया था. जब उन्मादी को पागलखाने में बंदकर दिया गया, उसकी पत्नी, जो गर्भवती थीं, ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया था. उनके रिश्तेदार भयभीत थे कि वह उस दुखकारी समाचार को बर्दाश्त नहीं कर सकेगी और बच्चा जीवित बताकर पेशेन्का नामकी बच्ची को, जिसे तोलस्तोय के रसोइये की पत्नी ने उसी दौरान जन्म दिया था, लाकर उन्हें दे दिया था. वास्तविक मां उन बड़े लोगों के निर्णय का स्वप्न में भी विरोध नहीं कर सकती थी और इसप्रकार पेशेन्का की परिवरिश मालिक के घर अपने जन्म की गोपनीपता के विषय में लंबे समय तक न जानते हुए हुई थी. अभागी एलिन उस छल-कपट को जानने के बाद अपने को बर्बाद कर लेती, लेकिन उसने किसी को भी दोष देना उचित नहीं समझा और पेशेन्का को पहले की भांति ही प्यार करती रही और पूजा-प्रार्थना में सांत्वना पाती रही. अपना पति और अपना सब खो देने के बाद वह अपने भाई के घर आकर रहने लगी थी. स्वेच्छया वह आराम और सेवा नहीं लेती थी, धर्मनिष्ठापूर्वक सभी उपवासों का पालन करती, गरीबों में अपना धन बांटती, संतो के जीवन के विषय को छाड़कर कुछ और नहीं पढ़ती थी, और अपना समय तीर्थयात्रियों, अनाड़ियों, साधु-साध्वियों और अर्द्धविक्षिप्त पवित्र-पुरुषों से वार्तालाप करके व्यतीत करती जो तीर्थयात्रा के लिए स्टेशन जाते हुए उसके घर पर विश्राम के लिए रुकते थे. कहा जाता था कि अपनी युवावस्था में वह बहुत सुन्दर और नखरेबाज थीं, कि बाल-नृत्य के दौरान उसकी नीली आंखों ने बहुत से युवकों के सिरों को घुमाया था, कि वह हार्प बजाती थीं और फ्रेंच कविताएं गा सकती थीं. काले कपड़ों में सजी उन्हें देखकर कोई इन सब बातों पर कैसे विश्वास करता जिन्होंने अपने शरीर और आत्मा को ईश्वर को समर्पित कर दिया था. नन्हा लियो अपनी आण्ट एलिन के जागने पर एक विशेष अम्लीय गंध अनुभव करता, जिसके विषय में उसने सोचा कि, ‘‘वह उस वृद्ध महिला द्वारा अपने प्रसाधन के प्रति उदासीनता’’ के परिणाम स्वरूप थी.

घर की नौकरानी पुस्कोव्या इसाएव्ना द्वारा छोड़ी गयी गंध एक मधुर राल-सी होती थी. उसके कार्यों में एक था बच्चों के वस्तिकर्म की व्यवस्था करना जो उसे सौंपा गया था, उनके चैम्बरपॉट अपने कमरे में एकत्र करना और उनमें दूर से पूर्वाभिमुख हो लोंजेज जलाना. लोंजेज, जिसे वह ‘‘अखाकोव आसव’’ कहती, के विषय में बताती कि उसे लियो के दादा लाये थे जब वह तुर्कों से ‘‘घोड़े, पैदल और अन्य दूसरे प्रकार से’’ युद्ध करने गये थे. वह उन दादा को भलीप्रकार जानती थी. बहुत पहले उन्होंने तिखों से उसके विवाह की अनुमति नहीं दी थी, जो बांसुरीवादक कृषि-दास था. वह मां को अपनी बाहों में पकड़ती थी. उसकी व्यक्तिगत अनुमति के बिना आल्मारी, संदूक, तहखाने या स्टोररूम में कुछ भी छेड़ा नहीं जा सकता था...जब निकोलस इलिच तोलस्तोय की प्रिंसेज मार्या के साथ सगाई हुई प्रिसेंज पुस्कोव्या इसाएव्ना को बदले में अपनी सेवा से मुक्त करना चाहती थीं. जब उसने अपनी मुक्ति के कागजात देखे, प्रस्कोव्या इसाएव्ना क्रुद्ध हो उठी और आंखों में आंसू भरकर चीखती हुई बोली, ‘‘मालकिन, मैं अनुमान करती हूं कि आप मुझे पसंद नहीं करतीं, क्योंकि आप मुझे अपने से दूर कर रही हैं.’’ और इस प्रकार वह एक नौकरानी के रूप में घर में बनी रही थी.

दूसरे नौकरों में नाटी, और सांवली त्वचावाली बच्चों की नौकरानी तात्याना फिलीपोव्ना थी, बूढ़ी आया अनुश्का, जिसके मुंह के बीच केवल एक दांत था, घोड़ों की लीद की प्रचुर गंध से घिरा हुआ कोच मैन निकोलस फिलीपिच, आकिम का सहायक, एक अहानिकर अनाड़ी था जो ईश्वर को, ‘‘मेरा डाक्टर, मेरा औषधि बिक्रेता’’ संबोधित करता था. कुल मिलाकर, कोई तीस व्यक्ति थे जिनमें से अधिकांश के पास कोई सुनिश्चित कार्य नहीं था और वे रसोई और हाल के मध्य मटरगश्ती करते, अपने को स्टोव से गर्माते, समोवर के चारों ओर गपशप करते, और अप्रयुक्त कमरों में खर्राटे भरते थे.  इन स्थायी कर्मचारियों के अतिरिक्त, कुछ अतिथि थे जो आते कुछ दिनों के लिए थे लेकिन पुनः वापस जाना भूल जाते थे. गरीब संबन्धी और उनके नौकर, अनाथ और आश्रितों का कोमल हृदय से स्वागत होता था. रूसी, फ्रेंच और जर्मन ट्यूटर, जो तेजी से बदलते रहते थे.....अर्थात एक विशाल जनसमुदाय मालिक की उदारता में धूम खाता, उनकी मेज पर भोजन करता और उनके गुणगान करता था.

अवकाश के समीप आते ही आगन्तुकों की संख्या दोगुनी हो जाती थी. क्रिसमस और नववर्ष के अवसरों पर पड़ोसी, नौकर और किसान सुन्दर वस्त्र पहनते और ग्रिगोरी की अगुआई में  वायलिन बजाते हुए बड़े घर में एकत्र होते थे. सदैव वही स्वांग होते थे. भालू और उसका प्रशिक्षक, दस्यु और तुर्क, महिलाओं के कपड़ों में मुझिक और मुझिकों के कपड़ों में महिलाएं. वे एक कमरे से दूसरे में जाते, मालिक के समक्ष झुकते और छोटे उपहार प्राप्त करते थे. दोनों आण्ट बच्चों को कपड़े पहनाकर सजातीं थीं, जो सुन्दर वस्त्रों की संदूक के पास आपस में झगड़ते कि कौन--रत्न जड़ित बेल्ट और कौन सुनहरी कढ़ाई वाली सूती जैकेट पहनेगा. अपने सिर पर साफा बांधकर जली काग से चेहरे पर काली मूंछे बना नन्हा लियो शीशे में टकटकी लगाकर देखता हुआ प्रशंसा से स्तंभित होता और कल्पना करता कि वह एक ऐसे हीरो को देख रहा था जिसके वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन दादी को सुलाने के लिए अंधा कहानीकार किया करता था. लेकिन जब उसका मेकअप धो दिया जाता उसे खीज होती क्योंकि तब उसकी आकारहीन नाक, मोटे होंठ और भूरी आंखों वाला पुराना बच्चोंवाला चेहरा दिखाई देता. पापा कहते, ‘‘एक बड़ा, मोटा लड़का, ‘‘पाटापफ’’ (Patapouf)  जैसा.

जब छुट्टियां बीत जातीं बड़ी मात्रा में अतिथि आकस्मिकरूप से घर में ही ठहरे रह जाते थे. बाहरी रिहाइश को जोड़कर बत्तीस (तोलस्तोय ने अपने संस्मरणों में 42 कमरे लिखे थे जबकि थे बत्तीस)     
कमरों वाले उस विशाल भवन में एकान्तता असंभव थी. हर व्यक्ति आनंद और दूसरों की मूसीबतों में उलझा हुआ था. यहां तक कि कोई केवल अपने कार्यों के विषय में सोचना चाहता, लेकिन दूसरों के चेहरे और दूसरों की समस्याएं गलियारे के हर मोड़, ड्राइंगरूम, अस्तबल और गांव से आप पर टूट पड़तीं थीं. 
     
एक दिन घर के नौकर प्रस्कोवा इसाएव्ना ने लियो को डांटा और उनके अनजाने मैली हुई नाक नेपकिन से रगड़कर साफ की. गुस्से से संकुचित वह छुपने के लिए बाल्कनी की ओर दौड़ गए थे. ‘‘किस अधिकार से उस नौकर ने मुझसे, मुझ अपने मालिक से, बेतकल्लुफी से बात करने का साहस किया था और गीली नेपकिन से मेरे चेहरे में चोट किया था, मानो मैं कोई छोटा मुझिक था.’’ उन्होंने सोचा था. लेकिन जब अपने बूढ़े घोड़े रैवेन को चलाने के लिए कोड़े बरसाते हुए उन्हें साईस ने यह कहकर उनकी भर्सना की, ‘‘आह! मेरे छोटे मालिक, आपके अंदर तनिक भी दया नहीं है’’ तब उन्हें कुछ भी प्रत्युत्तर नहीं सूझा था. लज्जारुण होकर लियो ने घोड़े की पीठ सहलाई थी और ‘‘जानवर की नाक को चूमा और अपने दुर्व्यवहार के लिए उससे क्षमा मांगी थी.’’  कभी-कभी बड़ों के मघ्य होने वाली वार्तालाप उन्हें परेशान कर देती थी. मुलाकात के लिए यास्नाया पोल्याना आए पड़ोसी गांव के तेक्याशेव ने लियो तोल्सतोय की उपस्थिति में कहा कि किस प्रकार उन्होंने अपने रसोइये को पचीस वर्षों के लिए इसलिए फौज में भेज दिया था क्योंकि उसने अपने भेजे में यह बैठा लिया था कि चालीसा के दौरान उसे मीट खाना था. कुछ समय पश्चात जाड़े की एक शाम जब परिवार दो मोमबत्तियों की रोशनी में ड्राइंग रूम में चाय पी रहा था, उसी तेक्याशेव ने यह घोषणा की थी. वह लंबे डग भरता हुआ कमरे में घुसा और कोहनियों के बल जमीन पर गिर पड़ा था. हाथ में पकड़ा उसका लंबा पाइप फर्श से टकराया था और चिन्गारी ऊपर उठी थी. उस आकस्मिक प्रकाश में लियो ने उसका चिन्ताग्रस्त चेहरा देखा था. साष्टांग दंडवत की स्थिति में ही तेक्याशेव ने निकोलस इलिच तोलस्तोय को समझाया  कि वह अपनी ज़ारज पुत्री दुन्येच्का को उनके द्वारा पालन-पोषण करने के लिए लाया है. यह छोटा-सा दृश्य उन दोनों व्यक्तियों के मध्य पूर्व निश्चित अनुबन्ध का एक भाग था. तेक्याशेव पक्का कुंआरा था. उसके पास बहुत अधिक दौलत थी जिसका इस्तेमाल कैसे किया जाए वह जानता था और उसके दो ज़ारज बच्चे थे. उन दोनों को वह अपनी संपत्ति का कुछ भाग वसीयत करना चाहता था, लेकिन नियमानुसार उसकी बहनों को वह सब उत्तराधिकार मेंं प्राप्त होना था. परेशानी में घिरने पर उसने निकोलस इलिच तोलस्तोय के नाम एक जागीर का फर्जी विनमय अनुबन्ध हस्ताक्षर करने का विचार किया. उसकी मृत्यु के उपरांत तोलस्तोय अनाथों से प्राप्त तीन सौ हजार रूबल लौटाकर उस कार्यवाई को वैधता प्रदान कर देंगे. रेहन के रूप में पारस्परिक विश्वास की दृष्टि से कागजातों पर तत्काल हस्ताक्षर किए गए और भावनाशून्य आंखोंवाली और पिनपिनाती दुन्येच्का अपनी मंदबुद्धि क्षीणकाय झुर्रियोंयुक्त बूढ़ी आया युप्राक्स्या के साथ घर में रहने लगी थी. 

‘‘निष्कपट, निंश्चित हृदय, प्रेम और विश्वास की आकांक्षा वाला बचपनक्या मैं इसे पुनः पा सकूंगा?’’ लियो तोलस्तोय ने लिखा, ‘‘उससे बेहतर कौन-सा समय हो सकता है कि जब दो उच्चतम सद्गुण-निष्कपट आनंद और असीमित प्रेमी आकांक्षा केवल जीवन का प्रमुख उद्देश्य हों.’’ जब वह छोटे थे उन्हें यकीन था कि उनके और शेष विश्व के मध्य प्रेम की निरंतर धारा प्रवहमान थी बावजूद इसके कि बड़े कभी-कभी उन्हें निराश करते थे. कंबल के नीचे सिकुड़े हुए पूजाघर में मूर्ति के पास जलती मद्धम रोशनी में वह सोचते नैनी को प्रेम करता हूं नैनी मुझे प्रेम करती है और वह मित्या (द्मित्री) को प्रेम करती है. मैं मित्र्या को प्रेम करता हूं, मित्या मुझे प्रेम करता है और वह नैनी को प्रेम करता है, और नैनी आण्ट ट्वायनेटए मुझे और पापा को प्रेम करती है और सभी प्रेम करते हैं और सभी प्रसन्न हैं.  लेकिन यदि सभी प्रसन्न थे तो कोई इस वास्तविकता को कैसे उद्घाटित करे कि क्राइस्ट सूली पर चढ़ाने से मरे थे, जैसा कि आण्ट ट्वायनेट कहती थीं.

“आण्टी, उन्होंने उन्हें क्यों यंत्रणा दी थी?
वे पापी लोग थे.

लेकिन वह अच्छे...बहुत अच्छे थे!...वे उन्हें क्यों पीटते थे? आण्टी, क्या उससे उन्हें चोट पहुंचती थी...?

केवल क्राइस्ट अकेले दयनीय नहीं थे. उसने क्या सुना नहीं कि भद्र फ्योदोर इवानोविच रोसेल ने अपने कुत्ते को केवल इस कारण मार देना चाहा क्योंकि उसका पंजा कुचला गया था! लियो इस अन्यायपूर्ण प्राणदंड के विचार को बरदाश्त नहीं कर सका. पुनः उसके आंसू फूट पड़े. उसके भाइयों ने उसे ल्योवा रयोवा  लियो रोनेवाला बच्चा कहना प्रारंभ कर दिया था. उसकी मां, जो ऎसे दृढ़ चरित्रबल की आग्रही थी, निश्चित ही अपने इस बेटे से भयभीत होंगी जो अपनी भावनाओं पर थोड़ा नियंत्रण कर पाने में सक्षम नहीं था. वास्तविकता यह थी कि वह दूसरों की अपेक्षा सब कुछ अधिक भावुकतापूर्ण ढंग से अनुभव करता था. अपने बचपन में उन्होंने लिखा, कठों, सुमों, और गाड़ियों, बटेर की भेदक और गोल घेरे में घूमने वाली आवाजें, कीड़ों की भनभनाहट की आनंदकर आवाजें, और  पादप गुच्छों और घोड़ों के घास-भूसे की नमीयुक्त गंध, और पीले खेतों की सीमा पर डूबते ज्वलित सूर्य की हजारों भिन्न छायाएं और रंग, औ जंगल की नीली लीक और परमोत्कर्ष आभा वाले सफेद बादल, हवा में तैरते अथवा ठूंठी पर सफेद जाले....मैंने यह सब देखा, इन्हें सुना, और इन्हें अनुभव किया. और इस प्रकार वह खुली आंखों, फैले हुए नथुनों, और चौकन्ने कानों से चींटी से पौधों, पौधों से घोड़ों और घोड़ों से मनुष्यों के प्रति बराबर उत्साह से प्रेरित हुए. यह स्वतंत्रता और प्रफुल्लता निश्चय ही जीवन में कभी समाप्त नहीं हुई. तथापि घर के बड़े पहले ही यह कह रहे थे कि यास्नाया पोल्याना में बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाना असंभव था.  बड़ा बेटा निकोलस चौदह और सबसे छोटा लियो आठ वर्ष के थे. उनका मानना था कि भद्र फ्योदोर इवानोविच रोसेल की शिक्षा उन ज्ञानपिपासु बच्चों के किशोर मस्तिष्क के लिए पर्याप्त नहीं थी. उन्हें असल प्रोफेसरों की आवश्यकता थी जो गंभीरता पूर्वक पढ़ने के लिए उन पर दबाव बना सकें. उदास और उत्सुक लियो से पिता ने १८३६ के अंतिम दिनों मे कहा कि शीघ्र ही उन सभी को मास्को के लिए प्रस्थान करना होगा.
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