रविवार, 15 अप्रैल 2012

संस्मरण



यास्नाया पोल्याना से लेव निकोलाएविच का प्रस्थान
डी.पी. मकोवित्स्की (1866-1921)
(दुसान पेत्रोविच मकोवित्स्की: एक स्लोवाक फिजीशियन , जो 1904 से 1910 तक तोल्स्तोय के निजी डाक्टर रहे थे.)


अनुवाद - रूपसिंह चन्देल


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1881 के प्रारंभ में और पुनः 1896 में लेव निकोलाएविच अपने परिवार और सामाजिक जीवन से संबन्ध विच्छेद करना चाहते थे . 1909 में भी ऐसा ही था, जब मैं यास्नाया पोल्याना में रहता था . 1909 में वह विदेश जाना चाहते थे, और अनेक बार उन्होंने सीमा पार करने के विषय में मुझसे पूछा था . उसी प्रकार नाविकों और कामगारों , जो विदेश भाग गये थे और बाद में रूस लौट आए थे , से भी उन्होंने दरियाफ्त किया था कि किस प्रकार बिना पासपोर्ट के कोई अपना देश छोड़ सकता है . 1909 में जब मैं स्लोवाकिया में अपने घर गया तब उन्होंने मुझसे सीमा पर इस विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए कहा था .
1910 की गर्मियों में, सितम्बर के दूसरे पखवाड़े में और फिर अक्टूबर के प्रारंभ में एक दिन घुड़सवारी के दौरान उन्होंने घर छोड़ने का अपना संकल्प मुझे बताया. 10 अक्टूबर के आसपास उन्होंने मुझे कहा कि वह इल्या वसील्येविच को अपने साथ ले जाना चाहते हैं . उसके बजाय मैंने स्वयं उनके साथ जाने का प्रस्ताव किया. हमारे प्रस्थान से छः दिन पहले और पुनः उससे तीन दिन पहले, उन्होंने अगली सुबह प्रस्थान का निर्णय किया, लेकिन देर शाम उन्होंने अपना निर्णय बदल दिया था. उनका निर्णय गुप्तरूप से बहुत सुबह प्रस्थान करने और कोचेटी में, अपनी बेटी तात्याना ल्वोव्ना के यहां जाने का था.
28 अक्टूबर को सुबह तीन बजे लेव निकोलाएविच हाथ में मोमबत्ती थामे बेडरूम स्लिपर्स और ड्रेसिंग गाउन में मेरे कमरे में आये और मुझे जगाया. उनके चेहरे पर वेदना और अशांति स्पष्ट थी. उन्होंने दृढ़ स्वर में कहाः
‘‘मैंने जाने का निर्णय कर लिया है. आप मेरे साथ जाना चाहते हैं? मैं ऊपर जा रहा हूं. मुझसे आकर मिलो, लेकिन साधवान रहना, सोफिया अन्द्रेएव्ना जागने न पायें. हम अपने साथ अधिक कुछ नहीं ले जायेंगे, केवल अत्यावश्यक चीजें ही लेंगे.’’
इतना कहकर वह ऊपर चले गये.
मैंने अपना सामान पैक किया और लेव निकोलाएविच से जा मिला, जो पूरी तरह तैयार हाथ में मोमबत्ती पकड़े मुझे अपने कमरे के दरवाजे के पास मिले .
‘‘मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था ’’ उन्होंने कहा . उनके स्वर से मैं कह सकता हूं कि उन्हें मेरी आवश्यकता थी और मेरे विलंब से वह दुखी थे .... मैं लपकर उनकी स्टडी में उनका सामान बांधने के लिए गया . वह तुरंत अंदर आए . उस रात उन्होंने आराम नहीं किया था . वह बहुत अधिक उत्तेजित थे . मैंने उनकी नब्ज देखी . गिना - सौ थी . यदि कुछ घटित हो जाए तब क्या हो ?
लेव निकोलाएविच पूरी तरह तैयार थे और उन्होंने सोफिया अन्द्रेएव्ना के नाम एक पत्र लिखा .
पता चला कि बहुत-सी ऐसी चीजें थीं जिन्हें उन्हें बड़े बैग में ले जाना था . एक चीज वह ले जाना चाहते थे , लेकिन सोफिया अन्द्रेएव्ना के जाग जाने के भय से उन्हें उसे छोड़ना पड़ा था . लेव निकोलाएविच के बेडरूम और सोफिया अन्द्रेएव्ना के बेडरूम के बीच तीन दरवाजे थे, जिन्हें सोफिया अन्द्रेएव्ना सदैव रात में इसलिए खुला रखती थीं कि आवश्यता पड़ने पर लेव निकोलाएविच द्वारा बुलाया जाना वह सुन सकें . उन्होंने बिना किसी आवाज के उन तीनों दरवाजों को बंद कर दिया और बैग ले लिया .
लेव निकोलाएविच बहुत उत्तेजित और व्याकुल थे . वह बहुत-सी चीजें , जिनकी उन्हें आवश्यता थी खोज रहे थे , जैसे नाटबुक्स , फाउण्टेनपेन , और.... (मूल प्रति में छूटा हुआ ) , पी.पी.निकोलाएव द्वारा लिखित पुस्तक , ‘कन्सेप्शन ऑफ गॉड’ . उन दिनों वह उसे पढ़ रहे थे . तुरंत वह नीचे उतरे , घर से बाहर निकल गए और तेज गति से कोचवान के घर की ओर बढ़े जो उनके घर से कुछ ही दूरी पर था . वह उसे जगाकर और घोड़े जोतकर तैयार रहने के लिए कहने गए थे . अभी पांच नहीं बजे थे . सुबह का अंधेरा इतना गहरा था कि लेव निकोलाएविच सेब के बाग में रास्ता भटक गये और अपनी हैट खो बैठे . पॉकेट टार्च की सहायता से वह देर तक उसे खोजते रहे लेकिन वह उन्हें नहीं मिली . नंगे सिर वह कोचवान के घर तक गए , जहां उन्होंने एद्रियन पाव्लोविच को जगाया .
जब सब कुछ पैक कर लिया गया , हमने पाया कि हमारे पास बहुत अधिक सामान था . एक बड़ा बैग , एक बड़ा बण्डल , एक नी-रग, एक बॉस्केट , एक कोट.... सभी सामान ढोकर हम अस्तबल तक ले गए जहां से हम बिना परेशानी विदा हो सकते थे बजाय घर से विदा होने के जहां साफिया अन्द्रेएव्ना के द्वारा जान लिए जाने की संभावना थी .


(RoomAstopovo(where Tolstoy died)


मौसम में आर्द्रता थी और धरती कीचड़भरी थी . कठिनाई से हम अपना सामान ढो सके . अस्तबल की ओर आधा रास्ता तय करने के बाद पॉकेट टार्च थामे तोल्स्तोय से हमारी मुलाकात हुई . उन्होंने हमें अपनी हैट के खो जाने के विषय में बताया . सौभाग्य से मेरी जेब में उनकी एक दूसरी कैप थी . कीचड़भरा रास्ता पारकर हम अस्तबल पहुंचे जहां कोचवान घोड़े जोतने का काम समाप्त कर रहा था . लेव निकोलाएविच ने उसकी सहायता की . वह वहां से प्रस्थान कर जाने के लिए उत्सुक थे . हमने सामान सजाकर रख दिया . लेव निकोलाएविच ने रुई से बनी अपनी जैकट पर अम्र्याक डाल लिया..... और हमने शेकिनो स्टेशन के लिए प्रस्थान किया . कीचड़ के कारण कोचवान ने सलाह दी कि साइस लालटेन लेकर गाड़ी के आगे चले और राजमार्ग तक रास्ता दिखाए , लेकिन लेव निकोलाएविच गांव के बीच से होकर जाना चाहते थे .
कुछ झोपड़ियों में बत्ती जलती दिखाई दे रही थी . अंगीठियां गर्मायी जा रही थीं . जब हम गांव के अंत में पहुंचे , पता चला एक लगाम खुली हुई थी . हम रुके . मैं नीचे उतरा , लगाम का आखिरी छोर खोजा , उसे कोचवान को पकड़ाया और अवसर का लाभ उठाकर यह देखा कि लेव निकोलाएविच के पैर भली प्रकार ढके थे . वह मुझपर चीखे . कुछ लोग निकट की झोपड़ियों से बाहर निकल आए . जब हम गांव से बाहर आ गए और राजमार्ग पर पहुंचे , लेव निकोलाएविच जो अब तक चुप , दुखी और उदास थे , उखड़ी हुई आवाज में बोले , मानो वह सोफिया अन्द्रेएव्ना को छोड़ आना अधिक वहन नहीं कर पा रहे थे और खेद प्रकट करना चाहते थे . उन्होंने उस घटना के विषय में बताया जो उनके प्रस्थान का कारण बनी थी: सोफिया अन्द्रेएव्ना ने पुनः उनके कमरे में प्रवेश किया था . वह सोने में असमर्थ रहे और उन्होंने प्रस्थान का निर्णय किया . अन्यथा उन्हें भय था कि वह उनका अपमान कर सकते थे , जिसके लिए वह कभी स्वयं को क्षमा नहीं कर पाते .
उन्होंने प्रश्न किया कि हमें कहां जाना चाहिए . ‘‘हम दूर कहां जा सकते हैं ? ’’ उन्होंने पूछा . मैंने उन्हें मास्को के कामगार गुसारोव के घर बेसाराबिया जाने की सलाह दी , जो अपने परिवार के साथ एक फार्म में रह रहा था . अलेक्जान्द्री भी वहां है . ‘‘लेकिन यह बहुत लंबी यात्रा होगी .’’ मैं आगे बोला , ‘‘केवल इस कारण नहीं कि दूरी बहुत अधिक है , बल्कि इसलिए भी कि ट्रेन बहुत धीमी चलती है और संचार बहुत खराब है . लेव निकोलाएविच ने कोई उत्तर नहीं दिया . वह गुसारोव के परिवार को जानते और उसे प्यार करते थे .
शेकिनो के रास्ते लेव निकोलाएविच को सिर पर ठण्ड महसूस हुई और उन्होंने एक कैप के ऊपर दूसरी कैप पहन ली .
उन्हें उत्रेन्नाया ज्वेज्दा में प्रकाशित एक पादरी को लिखा पत्र और उसका उत्तर याद आया . वह आश्चर्यचकित थे कि सम्पादक ने उन्हें छापने का साहस दिखाया था . बहुत ही साहसी . वह उसे किसी समाचार पत्र में प्रकाशित देखना चाहते थे .

हमने तय किया कि शेकिनो पहुंचकर गाड़ियों के बारे में पता करेगें और जानना चाहेगें कि कोजेस्क से सीधे संचार का कोई साधन है . लेव निकोलाएविच ने कहा कि वह गोर्बाचोवो तक द्वितीय श्रेणी में और वहां से तृतीय श्रेणी में यात्रा करेंगे और सुझाव दिया कि हमें सीधे तूला जाना चाहिए फिर वापस लौटना चाहिए .
शेकिनो पहुंचने पर ज्ञात हुआ कि तूला के लिए ट्रेन बीस मिनट पहले और गोर्बाचोवो के लिए डेढ़ घण्टा पहले जा चुकी थीं . लेव निकोलाएविच ने पहले स्टेशन में प्रवेश किया . सामान तैयार करने में हमें देर हो गयी थी . उपहार कक्ष के इंचार्ज से उन्होंने पूछा कि क्या कोई ऐसी ट्रेन है जो गोर्बाचोवो से सीधे कोजेस्क जाती हो . वही प्रश्न उन्होंने स्टेशन मास्टर कार्यालय में यह भूलते हुए पूछा कि वह अपने गंतव्य को गोपनीय रखना चाहते थे . लेव निकोलाएविच ने फिर पूछा कि तूला के लिए अगली ट्रेन कब जायेगी और उसे लेने की हमें सलाह दी . ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य अपने को खोजे जाने से छुपा रखना था . (लेकिन मुझे ज्ञात था कि तूला में निश्चित ही उन्हें पहचान लिया जाना था , और जसेका होकर शेकिनो लौटते हुए बहुतों को यह जानकारी हो जाने वाली थी कि तोल्स्तोय ट्रेन में थे ) . दूसरी बात यह कि वह सोफिया अन्द्रेएव्ना के आ पहुंचने के भय से शेकिनो स्टेशन में प्रतीक्षा नहीं करना चाहते थे . मैंने तूला जाने के विचार का इस आघार पर विरोध किया कि हमारे पास गाड़ियां बदलने का समय नहीं होगा . मैंने गोर्बाचोवो की टिकटें खरीद लीं . मैंने उन्हें अलग-अलग स्टेशनों में खरीदने के विषय में सोचा था , लेकिन इस मामले में मुझे यह बहुत अधिक असंभाव्य प्रतीत हुआ कि हम लेव निकोलाएविच का पता-ठिकाना गुप्त रखने में सक्षम हो पायेगें . मैंने पुनः सामान बांधा--और यह जानकर कि लेव निकालाएविच के पास अनेक कोट हैं अपना कोट वापस भेज दिया . मैं यह नहीं सोच पाया कि उन्होंने किसी खास उद्देश्य से यास्नाया पोल्याना छोड़ा था . मैंने सोचा कि केवल कुछ सप्ताहों के लिए हम जा रहे थे . जब आने वाली ट्रेन का सिग्नल दे दिया गया , लेव निकोलाएविच स्टेशन से चार सौ कदम दूर एक छोटे बच्चे के साथ टहल रहे थे जो उनका शिष्य था . उन्हें चेतावनी देने के लिए मैं दौड़ा कि जल्दबाजी नहीं करें , क्योंकि ट्रेन स्टेशन पर दस मिनट तक रुकने वाली थी .
‘‘लड़का भी जा रहा हैं . ’’ लेव निकोलाएविच ने कहा .
वह गाड़ी के बीच द्वितीय श्रेणी के एक अलग डिब्बे में चढ़े . मैंने एक तकिया ली और उनके लेटने की व्यवस्था की .
जब वह अंदर पहुंच गये और ट्रेन चल पड़ी , ऐसा प्रतीत हुआ मानों उन्होंने राहत महसूस किया था , क्योंकि अब सुनिश्चित था कि वह सोफिया अन्द्रेएव्ना की पहुंच से बाहर थे . उन्होंने टिप्पणी की कि उनके साथ सब ठीक-ठाक हो गया था . मैं बाहर चला गया . वह बैठे रहे . जब मैंने डेढ़ घण्टा बाद कम्पार्टमेण्ट में झांककर देखा , उन्हें उसी प्रकार बैठे पाया . उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें ‘अ साइकिल आफ रीडिगं’ दूं . पता चला कि हम वह लेकर ही नहीं आए थे . मुझे केवल ‘रीडिगं फॉर एवरीडे’ मिली.
लेव निकोलाएविच शांत थे , कम बोल रहे थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह थके हुए थे . पिछले दिन हमने कठिन और थकाऊ घुड़सवारी की थी . प्रस्थान से ठीक पहले मैंने गांव की दो गरीब महिलाओं से बात की थी , जो आग का शिकार थीं और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे सहायता प्राप्त होने की आशा में तोल्स्तोय की प्रतीक्षा कर रही थीं . जब वह आये उन्होंने उन्हें ग्रामीण सोवियत से प्राप्त हलफनामा दिखाया , लेकिन तोल्स्तोय इतना अस्तव्यस्तता की स्थिति में थे कि उन्होंने न तो उन महिलाओं से बात की और न ही उन्हें पैसे दिये . मुझे याद है कि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था .
घुड़सवारी के दौरान हमने अपने को घने जंगल के एक ऐसे रास्ते में पाया जो लेखिन राजमार्ग के समानांतर चल रहा था . हम चारों ओर खड़ी ढलान वाले एक खड्ड में जा पहुंचे . बर्फ की पतली पर्त जमीन पर जमी हुई थी जिससे फर्श फिसलनयुक्त हो गयी थी . मैंने लेव निकोलाएविच को घोड़े से उतरने की सलाह दी , और मुझे आश्चर्यचकित करते हुए , उन्होंने मेरी सलाह मान ली. ढलान इतनी सीधी थी कि प्रत्येक घोड़े को मैं अलग नीचे ले जाना चाहता था इस बात से भयभीत न होते हुए कि जब मैं पहले को ले जाउंगा , लेव निकोलाएविच दूसरे को ले आयेंगे (वह इस बात को बर्दाश्त नहीं करते थे कि कोई दूसरा उनका काम करे ) अतः मैंने दोनों घेड़ों को एक साथ पकड़ लिया . एक की लगाम अपने दाहिने हाथ से और दूसरे की बांए से और उनके फिसलने की स्थिति को ध्यान में रखते हुए दोनों बाहों को फैलाकर एक अच्छी दूरी बना ली . इस प्रकार मैं ढलान में एक ओर उतर गया . जिस समय मैं धारा को लांघकर पार करने लगा , लेव निकोलाएविच इस भय से चेतावनी देते हुए चीखे कि एक घोड़ा मेरे पैर पर कूद सकता था . कुछ समय तक ऊपर मैं लेव निकोलाएविच की प्रतीक्षा करता रहा , जिन्होंने अपने कोट का किनारा बेल्ट में ठूस रखा था , और पेड़ और झाड़ियां पकड़कर सतर्कतापूर्वक नीचे आ रहे थे . धारा के पास पहंचकर वह तटबंध की ओर खिसकने के लिए बैठ गए , दूसरे किनारे पर पहुंचने के लिए हाथ और कोहनियों के बल बर्फ पर रेंगने लगे , फिर शाखाओं का सहारा लेते हुए ठलान पर आगे बढ़े . बीच-बीच में आराम करने और दम भरने के लिए वह रुके भी . उनकी सांस उखड़ रही थी . मैं मुड़ पड़ा , लेकिन अपना हाथ आगे बढ़ाने से इसलिए डर रहा था कि वह हाथ पकड़ने से इंकार न कर दें . जब वह ऊपर पहुंचे और अपने घोड़े के पास गए , लंबी सांसे ले रहे थे . मैंने अनुरोध किया कि घोड़े पर सवार होने से पूर्व वह क्षण भर रुक लें , लेकिन तत्काल वह काठी पर चढ़े और आगे बढ़ने के लिए झुके (ऐसा उन्होंने कभी नहीं किया था. वह अपूर्वढंग से अपने घोड़े पर सीधे बैठे थे ) और प्रस्थान किया था . उस दिन हम लोगों ने लगभग सोलह वर्स्ट्स तय किया था . सितम्बर 24 को कोचेटी से लौटने के बाद हम नियमित सोलह या अठारह वर्स्ट्स घुड़सवारी करते थे . उससे पहले लेव निकोलाएविच प्रतिदिन ग्यारह से चैदह वर्स्ट्स घुड़सवारी करते थे , लेकिन बाद में वह अधिक करने लगे थे . मेरा मानना है कि एक ओर वह शरद का आनंद लेते थे , और दूसरी ओर वह घर से दूर स्वतंत्रता का आनंद उठाने की अपनी चाह को पूरा करते थे .
इस प्रकार लेव निकोलाएविच ने थकान और रात में न सोकर यास्नाया पाल्याना छोड़ा था . इसके अतिरिक्त वह विगत चार माह से उत्तेजनापूर्ण तनाव की स्थिति में थे . प्रायः उनकी सहनशीलता का प्याला छलक उठता था .
डेढ़ घण्टे तक उन्हें अकेले छोड़ने के बाद जब मैंने उनके कम्पार्टमेण्ट में प्रवेश किया , मैंने उन्हें बैठा हुआ पाया , लेकिन उन्होंने हल्की नींद ले ली थी . मैंने थोड़ी-सी कॉफी गरमाई और हम दोनों ने ली . लेव निकोलाएविच बोले:

‘‘मैं अनुमान करता हूं कि सोफिया अन्द्रेएव्ना अब महसूस कर रही होगीं . मुझे उनके लिए खेद है .’’
कोचेटी की हमारी अंतिम यात्रा मे लेव निकोलाएविच ने ट्रेन में कुछ लिखा अथवा डिक्टेट किया था . उस समय वह विचारों में खो गए थे . बाद में उन्होंने उसी विषय पर चर्चा की जिस पर हमने घोड़ा गाड़ी में की थी .
हम गोर्बाचोवो पहुंच गए . जब हम घोड़ागाड़ी में थे लेव निकोलाएविच ने कहा था कि गोर्बाचोवो से हम तीसरे दर्जे में जाएंगे . हमने अपना सामान ‘सुखीनिची-कोजेल्स्क’ ट्रेन में रखा . पता चला वह एक मालगाड़ी थी , जिसमें तृतीय श्रेणी का एक यात्री डिब्बा जोड़ा गया था . यह डिब्बा लोंगो से खचाखच भरा हुआ था . उनमें से अधिकांश सिगरेट पी रहे थे . भीड़ के कारण तृतीय श्रेणी की टिकट वाले कुछ यात्री मालवाहक डिब्बों में जा बैठे थे .
‘‘कितना सुन्दर ! कैसी आजादी !’’ अपने लिए जगह पाकर लेव निकोलाएविच बोले .
मुझे अफसोस हुआ कि मैंने लेव निकोलाएविच से पहले भलीप्रकार बात बिना किये ही यास्नाया पोल्याना छोड़ा था. मुझे नहीं मालूम कि उन्होंने किसी भले के लिए उसे छोड़ा था और मुझे यह भी नहीं मालूम था कि उन्होंने सोफिया अन्द्रेएव्ना को पत्र में क्या लिखा था . मैंने अनुमान किया था कि वह सोफिया अन्द्रेएव्ना से केवल एक माह के लिए ‘शमार्दिनो’ का चयन कर , जहां वह नहीं पहुंच पाती (वहां उन्हें खोज लेना कठिन था) और फिर कुछ और अधिक दूर जाने का निर्णय कर , अलग हो रहे थे . मुझे यदि यह ज्ञात होता कि वह खास कारण से घर छोड़ रहे थे तब मैं उन्हें बेसराबिया या विदेश जाने के लिए आग्रह करता .
लंबे समय तक वह अपना पता-ठिकाना नहीं छुपाए रख सकते थे , लेकिन दो-या तीन दिन में हम विदेश पहुंच सकते थे . एक बार वहां पहुंचकर हम कहीं दूरवर्ती जगह में स्थान पा लेते जहां सोफिया अन्द्रेएव्ना नहीं पहुंच पातीं .
सामान गाड़ी में लद जाने के बाद लेव निकोलाएविच भीड़ के बीच बैठ गए . अपनी बात के अस्वीकार किए जाने के भय से मैंने कुछ और न कह विनम्रतापूर्वक कहा कि इसमें अत्यधिक भीड़ को देखते हुए हमारी ट्रेन के साथ एक और तृतीय श्रेणी का डिब्बा जोड़े जाने की संभावना है . मैं स्टेशन मास्टर से मिला . उससे कहा कि डिब्बे में अत्यधिक भीड़ है और ट्रेन में एक और डिब्बा जोड़ा जाना चाहिए , विशेषरूप से इसलिए क्योंकि लेव निकोलाएविच इसमें यात्रा कर रहे हैं . उसने मुझे स्मोलेन्स्क स्टेशन के मास्टर के पास भेजा . मैंने अपना अनुरोध उसे दोहराया . उसने मुझे ड्यूटी पर तैनात स्टेशन अटेण्डेण्ट के पास भेज दिया . मैंने मास्टर से अनुरोध किया कि अटेण्डेण्ट को खोजने में वह मेरी सहायता करे . इसके लिए वह प्रसन्नतापूर्वक राजी हो गया . उसे खोजने में पर्याप्त समय लगा . वह डिब्बे में लेव निकोलाएविच को टकटकी लगाकर देखता मिला , जिन्हें यात्रियों ने तब तक पहचान लिया था . यह वह अटेण्डेण्ट नहीं था , जिसकी हमे तलाश थी , लेकिन उसने ड्यूटी पर तैनात अटेण्डेण्ट को खोज लाने की जिम्मेदारी ले ली . पता चला वह अटेण्डेण्ट भी डिब्बे में तोल्स्तोय को देख रहा था . मैंने पुनः अनुरोध किया . उदासीनता , यहां तक कि अनिच्छा सहित उसने रेलवे के एक कर्मचारी को निर्देश दिया कि वह चीफ कंडक्टर से कहे कि ट्रेन में दूसरा तृतीय श्रेणी का डिब्बा जोड़ ले . यह सब मैंने लेव निकोलाएविच की जानकारी के बिना ही किया था , जो अपने लिए किसी को भी परेशानी में डालने का विरोध करत थे .
पांच या छः मिनट में इंजन हमारी ट्रेन में जोड़ने के लिए दूसरा डिब्बा ले आया . चीफ कंडक्टर, जो टिकट चेक करने के लिए आया , ने डिब्बे के आने की घेषणा की और कहा कि अब सभी को जगह मिल जाएगी . (उस समय लोग रास्ते में और बाहर प्लेटफार्म में खड़े हुए थे ) . लेकिन तब तक ट्रेन छूटने की दूसरी , और फिर तीसरी घण्टी बजी , लेकिन दूसरा डिब्बा तब तक ट्रेन से जोड़ा नहीं जा सका था . मैं अटेण्डेण्ट के पास दौड़कर गया कि इस सबका मतलब क्या था . उसने कहा कि उनके पास पर्याप्त डिब्बे नहीं थे . जब ट्रेन चल पड़ी तब कंडक्टर ने मुझसे कहा कि जो डिब्बा लाया गया था उसमें स्कूल के बच्चों को ले जाना था .

रूस की रेलवे में यात्रा के अपने सभी अनुभवों में पहले कभी मैंने इतनी भीड़-भाड़ और घटिया डिब्बे में यात्रा नहीं की थी . दरवाजे को इस प्रकार लगाया गया था कि प्रवेश करने वाले किसी भी यात्री के सिर के एक बोर्ड के किनारे से टकराने का खतरा था जो ऊपर उठा दिये जाने पर ऊपरी बर्थ और नीचे गिरा देने पर सीट के पीछे टेक का काम करता था . बेंचें एक दूसरे से इतना सटाकर रखी गयी थीं कि लोगों या सामान के लिए बहुत कम स्थान बचा था , और दमघोंटू हवा तंबाकू के धुंआ से सराबोर थी .
मैं लेव निकोलाएविच के बैठने के लिए कंबल प्राप्त करना चाहता था , लेकिन उन्होंने मुझे जाने नहीं दिया . विशेषरूप से इस यात्रा के दौरान वह सेवाएं स्वीकार करने के प्रति अनिच्छुक थे , जबकि घर के मामले में कुछ कम या ज्यादा वह अपरिहार्य हिस्सा थीं .
जल्दी ही लेव निकोलाएविच बाहर निकलकर सामने के प्लेटफार्म में गए . मैं उनके पीछे गया और अनुरोध किया कि वह पीछे वाले में जाएं . वह डिब्बे में वापस लौटकर आए , फरकोट और कैप और ऊपरी गर्म जूते पहने और पीछे के प्लेटफार्म में गए . लेकिन वहां उन्हें पांच लोग सिगरेट पीते हुए मिले , अतः वह सामने के प्लेटफार्म की ओर लौटे जहां तीन लोग थे , एक बच्चे सहित एक महिला और एक व्यक्ति . उन्होंने अपने कोट का कॉलर ऊपर उठाया , सीट वाली चलने की छड़ी खोली और बैठ गए . थर्मामीटर शून्य से एक या दो डिग्री नीचे तापमान बता रहा था . दस मिनट बाद मैं उनके पास गया और कहा कि यदि वह बेहतर महसूस नहीं कर रहे तो वह अंदर आ जाएं जिससे चलती ट्रेन के कारण तेज हवा के झोंको से बच सकें . उन्होंने कहा कि हवा की उन्हें परवाह नहीं है . वह वैसे ही हैं मानो वह घुड़सवारी कर रहे हों . वह वहां लगभग पौन घण्टे तक बैठे रहे . फिर वह अंदर आए और एक बेंच ( बर्थ ) पर लेट गए . लेकिन अभी-अभी वह लेटे ही थे कि बहुत से यात्रियों ने प्रवेश किया और कुछ बच्चों सहित एक महिला उनके सामने आ खड़ी हुई . उनके लिए स्थान बनाने हेतु वह उठ बैठे , और यात्रा के शेष चार घण्टे या तो वह बैंठे रहे या सामने प्लेटफार्म में खड़ रहे थे .
वह दुदिन्श्चिना के एक पचास वर्षीय यात्री के साथ वार्तालाप करने लगे थे , जो उनके पीछे बैठा था. उससे वह उसके परिवार , गृहस्थी , गाड़ियों के व्यवसाय जिसमें वह लगा हुआ था , पूछते रहे . लेव निकोलाएविच उससे उसके व्यवसाय के विषय में विस्तार से पूछते रह थे . उन्होंने मुझे उसके विषय में बताया था . किसान बहुत बातूनी था . वह निधड़क वोद्का के विषय में बोलता रहा . उसने स्वीकार किया कि वह स्वयं उसे तैयार करता था . उसने यह भी कहा कि किसानों को ‘‘मालिकों के बाग में लगे’’ पेड़ काटने के लिए दण्डित किया जाता था . बाद में पाया गया कि वे किसानों की सीमा में थे . वह जमींदार ‘ब’ के बारे में अत्यंत कटुतापूर्वक बोल रहा था , लेकिन इसी समय एक भूसर्वेक्षक जो पास ही बैठा हुआ था बातचीत में घुस पड़ा . उसने पेड़ों के काटने पर दिए जाने वाली सजा का अलग ही विवरण दिया और जमींदार ‘ब’ के पक्ष में बोलते हुए उसे बहुत ही दयालु हृदय व्यक्ति बताया . किसान बेखटके भूसर्वेक्षक की बात का खण्डन करता रहा . सर्वेक्षक कम आग्रही नहीं था .
‘‘हम तुम किसानों की अपेक्षा अधिक कठोर काम करते हैं .’’ सर्वेक्षक बोला .
‘‘आह ! लेकिन किसानों के काम की तुलना आपके काम से नहीं की जा सकती .’’ तोल्स्तोय बोले .
किसान ने ऊंचे स्वर से अनुमोदन किया , लेकिन सर्वेक्षक ने तोल्स्तोय के दावे का खण्डन किया .
‘‘मैं आपके भाई सेर्गेई निकोलाएविच को जानता हूं .’’
तोल्स्तोय ने उससे बातचीत प्रारंभ कर दी और ज्ञात हुआ कि वह बहुत सयाना , उदार और वैज्ञानिक विचारों का अच्छा अध्येता था , जो बहस के लिए बहस का आनंद ले रहा था .
उसने बातचीत को हेनरी जार्ज के ‘सिंगल टैक्स थियरी’ से मोड़कर डार्विन और शिक्षा पर केन्द्रित कर दिया .
डिब्बे में जब सभी यात्री शांतिपूर्वक वाद-विवाद को सुन रहे थे , लेव निकोलाएविय ने सभी के लाभ पर बोलना प्रारंभ कर दिया . वह इतना उत्तेजित हो उठे कि वह सभी का ध्यान आकर्षित करते हुए उठ खड़े हुए . डिब्बे के दोनों छोरों के लोग बीच में एकत्र हो गए और शांत तन्मयता के साथ सुनने लगे . उनमें किसान , व्यवसायी , कामगार , बद्धिजीवी , दो यहूदी , और एक छात्रा थी जो पहले सुनती और संक्षेप में लिखती रही , फिर वाद-विवाद में शामिल हो , विज्ञान के बचाव में तोल्स्तोय के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करने लगी .
तोल्स्तोय अधिकाधिक उत्तेजित होते गए थे . यद्यपि उनके श्रोता शांत थे . उनके लिए यह आवश्यक था कि वह अपनी आवाज ऊंची रखते . अनेक बार मैंने उन्हें रोकना चाहा , लेकिन कोई उपयुक्त शब्द नहीं पा सका . दलीलें दाहिने और बांए से उड़कर आ रही थीं . वाद-विवाद एक घण्टा से ऊपर चला .
लेव निकोलाएविच ने डिब्बे का दरवाजा खोलने के लिए कहा . फिर अपना कोट पहनकर वह पुनः बाहर प्लेटफार्म में निकल गए . सर्वेक्षक और छात्रा अपने होठों पर नए तर्क लिए उनके पीछे गए . लड़की केवल विज्ञान के पक्ष में थी . उसके पास उदाहरण के लिए वह पॉकेट टार्च थी जिसे जलाकर लेव निकोलाएविच ने फर्श पर अपना खोया दस्ताना देखा था . लेकिन जल्दी ही हम बेलेव पहुंच गए , जहां वे दोंनो उतर गए थे .
लेव पिकोलाएविच भी उतर कर बाहर आ गए और डिनर के लिए द्वितीय श्रेणी के रेस्टारेण्ट में गए . यहां रेस्टारेण्ट के इंचार्ज ने उन्हें पहचान लिया और स्थानीय बुद्धिजीवियों का एक ग्रुप एक मेज पर बैठा हुआ था . इंचार्ज और उसका सहायक उनके प्रति बहुत भद्र और सावधान थे . एक दरवाजा जिसके किनारे पर लोहे की पत्ती लगी हुई थी , और जिससे होकर रेस्टारेण्ट से तृतीय श्रेणी के टिकट ऑफिस में जाया जाता था , घड़ाम की आवाज के साथ खुलता और जितनी बार दरवाजा खुलता लेव निकोलाएविच अपना चेहरा फेर लेते और धड़ाम की आवाज की अपेक्षा करते हुए कष्टकर आह भरते थे .
डिब्बे में लौटकर लेव निकोलाएविच दुदिन्श्चिना के किसान के सामने की अपनी पुरानी सीट पर बैठ गए और उससे शमोर्दिनो और ऑप्तिना आश्रम जाने वाले मार्गों के विषय में , दोनों की दूरियों की तुलना करते हुए दरियाफ्त करने लगे . यह जानकर कि लेव निकोलाएविच ऑप्तिना आश्रम जा रहे थे , किसान बोला: ‘‘पिता , आप सन्यासी क्यों नहीं हो जाते . सांसारिक चीजों का परित्याग और आत्मा की मुक्ति के लिए आपके लिए यही उपयुक्त समय है . शेष समय मठ में बिताएं .’’
लेव निकोलाएविच उसकी ओर देखकर अनुग्रहपूर्वक मुस्कराए .
एक मजदूर ने अकार्डियन वाद्य की आकर्षक ध्वनि से प्रभावित होकर गाना प्रारंभ कर दिया था . उसने कई गान गाए . लेव निकोलाएविच ने आनंदपूर्वक उसे सुना और उसके गाने की प्रशंसा की .
बाद में लेव निकोलाएविच ने थकान की शिकायत की---इतने लंबे समय से बैठे रहने की थकान . निश्चय ही ट्रेन रेंग रही थी . एक सौ वर्स्ट्स की दूरी उसने छः घण्टे पैंतालीस मिनट में तय की थी (निःसंदेह यह लंबी रेल यात्रा ही तोल्स्तोय की मृत्यु का कारण बनी थी ) .
पांच बजने में दस मिनट पर हम कोजेल्स्क पहुंचे . लेव निकोलाएविच पहले व्यक्ति थे जो ट्रेन से नीचे उतरे . जब एक कुली और मैं सामान उतारकर स्टेशन पहुंचे , लेव निकोलाएविच यह बताने आए कि उन्होंने ऑप्तिना आश्रम के लिए गाड़ी पहले ही किराए पर तय कर ली है और एक बॉस्केट उठाकर वह हमें सामान ढोने वाली गाड़ी तक ले गए . हम जिस गाड़ी में यात्रा कर रहे थे उसके कोचवान का नाम फ्योदोर इलिच नाविकोव था , जबकि हमारे पीछे हमारे सामान से लदी गाड़ी चल रही थी . सड़क दलदली थी . जब हम कस्बे के अंतिम छोर पर पहुंचे कोचवानों ने सलाह-मशविरा किया कि उन्हें सड़क से ही चलना चाहिए अथवा खेतों के बीच से होकर . सड़क भयानक गड्ढों से भरी हुई थी , अतः उन्होंने बायें मुड़कर कोजेल्स्क के बाहर खेतों के बीच से होकर जाने का निर्णय किया . अनेकों बार हमें खाइयां पार करनी पड़ीं . अंधेरी रात उतर आयी थी . बादलों के बीच चांद चमकने लगा था . घोड़े धीमी गति से चल रहे थे . एक बार हमारे कोचवान ने लगाम खींची और अचानक घोड़े उछल पड़े , जिससे कोचवान झटका खाकर गिरते बचा . लेव निकोलाएविच कराह उठे . यह उस समय घ्टित हुआ जब हम पुल पर पहुंचने से पहले गहरी नाली पार कर रहे थे . फिर हम मठ के मैदान के साथ बनी दीवार के साथ-साथ चलने लगे . यहां भी , सड़क खराब थी , और , इसके अतिरिक्त , पेड़ों की शाखाएं इतना अधिक नीची झुकी हुई थीं कि उन्हें काटा गया था , जिन्हें बचाने के लिए हमें झुकना पड़ा था . प्रतिवर्ष इन पेड़ों को काटने के लिए पूरे दो दिनों के काम की जरूरत होती थी .
ट्रेन में लेव निकोलाएविच ने साथी यात्रियों से पूछा था कि कौन से मठ में सन्यासी रहते थे , और अब वही प्रश्न वह कोचवान से पूछ रहे थे और मुझसे बोले कि वह जानना और उनसे बात करना चाहते हैं . उन्होंने कोचवान से यह भी पूछा कि हम कहां ठहर सकते हैं . कोचवान ने फादर मिखाइल की देखरेख में चलने वाले धर्मशाला को यह कहते हुए कि वह साफ-सुथरी है , उपयुक्त बताया .
लंबे समय तक हमने नाव की प्रतीक्षा की . लेव निकोलाएविच ने मठवासी से , जो नाविक के रूप में कार्य कर रहा था , कुछ शब्दों का आदान-प्रदान किया और मुझसे कहा कि वह व्यक्ति किसान वंश का था . लालबालों और लाल दाढ़ी वाले धर्मशाला के मालिक फादर मिखाइल ने सहृदयतापूर्वक हमारा स्वागत किया और हमें एक लंबा-चैड़ा कमरा दिखाया , जिसमें दो बेड और एक बड़ा कोच पड़े थे . हमारा सामान वहां लाया गया .
‘‘यहां कितना सुखद है !’’ लेव निकोलाएविच ने कहा .
वह तुरंत बैठ गये और लिखने लगे . उन्होंने एक लंबा पत्र और एक टेलीग्राम लिखा- वह स्वयं उन्हें लेकर कोचवान फ्योदार के पास गए और उसे कहा कि वह उन्हें भेज दे . उन्होंने यह भी व्यवस्था कर ली कि फ्योदर ही अगले दिन हमें लेकर शमार्दिनो जाएगा . फिर उन्होंने एक गिलास चाय और शहद लिया (उन्होंने कुछ भी नहीं खाया ). उन्होंने सुबह खाने के लिए एक सेब , अपना फाउण्टेन पेन रखने के लिए एक गिलास मांगा . उसके बाद उन्होंने अपनी डायरी लिखना प्रारंभ किया और मुझसे तारीख पूछी . दस बजे वह सोने चले गए . यह जानते हुए कि कमरे में अकेले सोने की उनकी आदत है मैंने उनसे कहा कि मैं हॉल के बाद वाले कमरे में सोऊंगा .
वह बहुत अधिक थके हुए नहीं दिख रहे थे . उस शाम ऐसा प्रतीत हो रहा था कि लिखने के लिए वह विशेष उतावलापन दिखा रहे थे . लेकिन दिन में उन्होंने एक मिनट का भी उपयोग नहीं किया , जैसा कि वह करते थे . मैंने विशेषरूप से इस पर ध्यान दिया . दिनभर उन्होंने अपने विचार नहीं लिखे . न ही अगले दो दिन उन्होंने समय का उपयोग किया (अर्थात अपनी आदत के अनुसार उन्होंने काम नहीं किया ) मुझे इस सचाई का भी पता चला कि वह किसी से भी सहायता लेना नहीं चाहते थे . (घर में तो वह किसी की भी सेवा लेने के अनिच्छुक रहते ही थे , लेकिन उस ओर बाद के दिनों में उन्होंने पूर्णरूप से उससे इंकार कर दिया था ) . उन्होंने मुझसे कहा कि सुबह वह टहलने और आश्रम देखने जाएगें . उन्होंने मुझे बताया कि अलेक्जांद्रा इल्यिनिश्ना एक बार यहां रही थीं और कई बार वह उनसे मिलने आए थे. उन्होंने बूटजैक (जूता उतारने का उपकरण ) खोजा , लेकिन वह नहीं मिला . मैंने उनके जूते उतार देने का प्रस्ताव किया .
‘‘मैं सब कुछ स्वयं करना चाहता हूं और तुम बीच में कूद पड़ते हो .’’ वह बोले . बहुत मुश्किल से उन्होंने उन्हें उतार लिया . उन्होंने यह भी कहा कि हम उनके लिए जितना कम करेंगे उनका जीवन उतना ही सहज होगा .
‘‘जितना अधिक संभव हो उतना मैं सामान्य रहना चाहता हूं और अपने पैसे की मितव्ययता के साथ .’’
लेव निकोलाएविच चीजों का खरा मूल्य देने का प्रयत्न करते थे . यद्यपि यह मूल्य कठिनाई से ही सुनिश्चित हो पाता था . वह बहुत कम या बहुत अधिक भुगतान करना पसंद नहीं करते थे .
रात के समय हॉल में बिल्लियां आ गयीं जिन्होंने बहुत उत्पात मचाया . वे फर्नीचर पर उछल-कूद मचाती रहीं जो लेव निकोलाएविच के कमरे की दीवार के पीछे रखा हुआ था . फिर एक महिला , जिसके भाई ( दुकान करने वाला मठवासी ) की कुछ समय पहले ही मृत्यु हुई थी , हॉल में घुसी और विलाप करने लगी . अगली सुबह वह लेव निकोलाएविच से अनुनय करने लगी कि वह उसके पितृहीन बच्चों के लिए कुछ करें. ऐसा करती हुई वह कोहनियों के बल तोल्स्तोय के सामने गिर गई . यह सदैव तोल्स्तोय को दुखी कर देता था .

29 अक्टूबर को सुबह छः बजे के कुछ बाद उन्होंने अपना कमरा छोड़ दिया . हॉल में वह अलेक्सेई पेत्रोविच सेर्गेयेन्को से मिले जो यह बताने आए थे कि सोफिया अन्द्रएव्ना ने उनके प्रस्थान को किस प्रकार लिया था और यह जानने के बाद कि आपने रेलवे स्टेशन से कहां जाने का टिकट लिया आपके पता-ठिकाना की किस प्रकार अटकलें लगायी जा रही हैं . उन्होंने यह भी बताया कि गवर्नर के आदेश से पुलिस और जासूस तोल्स्तोय की आगे की गतिविधियों पर दृष्टि रखेंगे . यह भी बताया कि गवर्नर ने सहायता के लिए ‘अपील’ की है और उसके आदेश पर पुलिस तोल्स्तोय की खोज कर रही है .
कुछ देर बाद लेव निकोलाएविच ने सेर्गेयेन्को को मृत्यु दण्ड, जिसे ‘वास्तविक प्रभावी उपाय’ कहा गया था, के खिलाफ एक आलेख डिक्टेट करना प्रारंभ किया . उस आलेख को समाप्त करते हुए तोल्स्तोय के शब्द थे -- ‘‘इस कारण यदि वास्तव में हम मृत्यु दण्ड की त्रुटि से मुक्ति चाहते हैं , और , सबसे महत्वपूर्ण बात यह , कि यदि हमें इस बात का ज्ञान है जो इस त्रुटि को कठिन बनाता हो , तो हमें धमकियों , हानि , और कष्टों की परवाह न करते हुए उस ज्ञान को औरों तक पहुंचाना चाहिए . संघर्ष का यही मात्र प्रभावी उपाय है .’’
लेव निकोलाएविच ने सेर्गेयेन्को के साथ बहुत सम्मानपूर्ण व्यवहार किया .
‘‘मठ का वातावरण क्या आपको विकर्षक लगा?’’ सेर्गेएन्को ने उनसे पूछा .
‘‘बिल्कुल इसके विपरीत’’ लेव निकोलाएविच ने उत्तर दिया .
जब उनसे पूछा गया कि आप कैसे सोये , लेव निकोलाएविच ने उत्तर दिया , ‘‘खराब ढंग से . मेरी तंत्रिकाएं खराब स्थिति में थीं .’’
लेव निकोलाएविच मठ में बहुत शांति अनुभव कर रहे थे और रुकना चाहते थे . उन्होंने सेर्गेएन्को से कहा कि वह आश्रम देखने नहीं जाएंगे . सेर्गेएन्को को अपने आलेख की नकल तैयार करने के लिए कहकर और उस विधवा की वास्तविकता बयान करते हुए जिसने उनसे सहायता के लिए अनुरोध किया था उन्होंने अपने परिवार वालों के नाम यथासंभव उसकी सहायता करने के लिए कहते हुए एक पत्र लिखा . विधवा को वह पत्र देकर वह टहलने चले गए . कमरा छोड़ते हुए उन्होंने कहा:
‘‘कितना अच्छा हो कि किसी चीज को न छुपाया जाए अथवा न ताले में बंद किया जाए ’’.
लेव निकोलाएविच आश्रम तक टहलते हुए गए. वह उसके दक्षिण-पश्चिम छोर तक उसकी दक्षिणी दीवार तक गए. (यह बात एक मजदूर ने मुझे बतायी थी , जिसे उसके मित्र से ज्ञात हुई थी ), फिर वह जंगल के अंदर गए थे .
लौटकर कॉफी लेने से पहले उन्होंने सेर्गेएन्को से बात की . उसके बाद उन्होंने अलेक्जांद्रा ल्वोव्ना (तोल्स्तोय की पुत्री ) , और संभवतः चेत्र्कोव ---शायद दूसरों को भी पत्र लिखे . मैं उन्हें छोड़कर कोजेल्स्क कस्बे की ओर चला गया . ग्यारह के कुछ बाद लेव निकोलाएविच पुनः आश्रम गए . धर्मशाला से निकलकर वह बांये को मुड़े , गेट तक गए , वापस लौटे और दाहिनी ओर मुड़े , फिर पुनः गेट तक गए . कुछ दूर चलने के बाद टावर के नुक्कड़ पर मुड़े और आश्रम की ओर चले गए . फादर पाखोम धर्मशाला के गेट के पास सड़क की सफाई कर रहे थे . यह जानकर कि लेव निकोलाएविच ऑप्तिना आश्रम में थे वह इस बहाने से सफाई कर रहे थे कि बाहर आकर वह उन्हें देख पाएं . जिस क्षण उनकी दृष्टि उनपर पड़ी उन्होंने अनुमान लगा लिया कि वही लेव निकोलाएविच थे . वह झुके . लेव निकोलाएविच ने भी झुककर उनका अभिवादन किया और उनके पास गए .
‘‘यह कौन-सी बिल्डिंग है ?’’ उन्होंने पूछा .
‘‘एक धर्मशाला .’’
‘‘मुझे लगता है एक बार मैं यहां ठहरा था . इसकी देखभाल करने वाला कौन है ?’’
‘‘मैं, फादर पाखोम , एक पातकी . और आप , महामहिम ?’’
‘‘मैं लेव निकोलाएविच तोल्स्तोय . मैं आश्रम में फादर जोसेफ से मिलने जा रहा हूं , लेकिन मुझे उनके बाधित होने का डर है . मुझे पता चला है कि वह बीमार हैं .’’
‘‘बीमार नहीं , लेकिन कमजोर हैं . महामहिम , आप जाएं , वह आपका स्वागत करेंगें .’’
‘‘पहले आप कहां कार्य करते थे ?’’ यह अनुभव करते हुए कि वह साधारण अशिक्षित मठवासी कभी सैनिक रहा होगा , उन्होंने पूछा .
फादर पाखोम ने सेण्ट पीटर्सबर्ग की एक गार्ड्स रेजीमेण्ट का नाम बताया .
‘‘मैं उस रेजीमेण्ट को जानता हूं .’’ लेव निकोलाएविच ने कहा .
‘‘विदा , भाई . भाई कहने के लिए मुझे क्षमा करें . मैं सभी लोंगो को यही कहता हूं . हम सभी एक ही पिता से जन्में भाई हैं .’’
हाथ में टहलने की छड़ी पकड़े वह फादर जोसेफ से मिलने के लिए मुड़े़ .
बाद में फादर पाखोम ने बताया- - कि लेव निकोलाएविच ने उनसे बहुत ही सहृदयता और सज्जनतापूर्वक बात की थी और उनपर गहरा प्रभाव छोड़ा था .
लेव निकोलाएविच आश्रम से बाहर निकले . गेट पर पहंचकर वह दाहिनी ओर मुड़े और जंगल में प्रविष्ट हुए .
जब वह आश्रम में वापस लौटे , वह मेरे कमरे में आए और बताया कि वह कहां गए थे .
‘‘मैं आश्रम देखने नहीं जाऊंगा जब तक कि वह मुझे नहीं कहते . यदि वह मुझे कहेगें , मैं जाऊंगा .’’
उसी सुबह लेव निकोलाएविच ने फादर वसीली , अपने परिचित सन्यासी , से कहा कि वह ऑप्तिना आश्रम में विश्राम के लिए आये थे और यदि वह उसे अपना निवास नहीं बना सके तो किसी अन्य स्थान में चले जायेंगे . अगले दिन उन्होंने अपनी बहन मारिया निकोलाएव्ना , जो एक नन थीं , से कहा कि उन्हें ऑप्तिना आश्रम में रहने से प्रसन्नता होगी और वह कठोर कार्य करेंगे यदि उन्हें चर्च की सेवाएं करने के लिए न कहा जाए .
एक बजे हमने डिनर किया . लेव निकालाएविच ने बंद गोभी का सूप , और कुटू की दलिया ली और वे इतनी स्वादिष्ट बनी थीं कि उन्होंने दोनों ही चीजें पर्याप्त मात्रा में लीं . वहां से चलते समय वह फादर मिखाइल से मिलने गए और बोले:
‘‘मैं किस प्रकार आपका आभार व्यक्त करूं ?’’
‘‘जैसे आप उचित समझें .’’
‘‘क्या तीन रूबल पर्याप्त हैं ?’’
‘‘मेरा सबसे बड़ा पुरस्कार यह है कि आप जैसा व्यक्ति यहां आया ! क्या मैं आपका फोटोग्राफ ले सकता हूं .’’
‘‘ मुझ जैसा एक व्यक्ति ? एक निर्वासित . मेरे पास कोई फोटोग्राफ नहीं है , लेकिन मैं आपको एक भेज दूंगा.’’
‘‘मेरी अतिथि पुस्तिका मैं हस्ताक्षर करने की सहृदयता दिखाएं .’’
लेव निकोलाएविच ने हस्ताक्षर किए और बोले,‘‘ आपके आतिथ्य-सत्कार के लिए धन्यवाद.’’
तीन बजे हमने शमार्दिनो के लिए प्रस्थान किया. पहले लेव निकोलाएविच पैदल चले. यह उनका रिवाज था कि जहां ठहरते थे वहां से प्रस्थान के समय कुछ दूर पैदल चलते थे.
(यहां आकर संस्मरण समाप्त कर दिया गया ) .

अंतिम बीमारी और लेव निकोलाएविच की मृत्यु
हम मानते हैं कि यह हमारा कर्तव्य है कि लेव निकोलाएविच की अंतिम बीमारी की वास्तविक स्थिति से संसार को अवगत कराएं, जिसे, हम फिजीशियन, उनकी मृत्यु का क्षण मानते हैं.
जैसा कि भलीभांति जानते हैं , लेव निकोलाएविच ने 28 अक्टूबर को यास्नाया पोल्याना छोड़ा था . छोड़ने का निर्णय उनके द्वारा अपने अंतःकरण में लंबे और थकाऊ संघर्ष के बाद लिया गया होगा . उनकी कमजोरी के अतिरिक्त , उनकी शारीरिक स्थिति संतोषप्रद थी . यास्नाया पोल्याना से लेव निकोलाएविच शेकिनो गए और वहां से गोर्बाचोवो . वहां से उन्होंने खचाखच भरे , दमघोटू तृतीय श्रेणी के डिब्बे में , जिसे मालगाड़ी के साथ जोड़ा गया था , कोजेल्स्क की यात्रा की . प्रायः वह ताजी हवा लेने के लिए डिब्बे के प्लेटफार्म पर चले जाते थे . कोजेल्स्क से वह अपनी बहन मारिया निकोलाएव्ना से मिलने जाना चाहते थे जो शमार्दिनो के एक मठ में नन थीं , जो स्टेशन से अठारह वर्स्ट्स दूर था , लेकिन उन्हें पहुंचने में विलंब हो गया था और वह थके हुए थे अतः उन्होंने ऑप्तिना आश्रम के मठ में रात बिताने का निर्णय किया था, जो कोजेल्स्क से पांच वर्स्ट्स की दूरी पर था. रात विश्राम के बाद अगले दिन, लेव निकोलाएविच अपनी बहन से मिलने शमार्दिनो गए, जहां उन्होंने रात और 30 अक्टूबर का पूरा दिन व्यतीत किया. उस शाम उन्होंने कुछ अस्वस्थता और कमजोरी की शिकायत की , लेकिन अपनी अस्वस्थता और खराब मौसम के बावजूद-- उन्होंने 31 अक्टूबर की सुबह जल्दी एक गाड़ी में कोजेल्स्क (18 वर्स्ट्स) के लिए प्रस्थान किया ,जहां से उन्होंने याजान-उराल्स लाइन पर बोगोयाव्लेन्स्क और रोस्तोव-ऑन-दोन जाने वाली ट्रेन पकड़ी .
दोपहर तक लेव निकोलाएविच पूर्णरूप से स्वस्थ अनुभव करते रहे. लेकिन बाद में उन्होंने ठण्ड की शिकायत की. थर्मामीटर ने उनका तापमान 38.6 डिग्री संटीग्रेड दिखाया. उनकी कमजोरी और बुखार को देखते हुए यह निर्णय किया गया कि उन्हें पहले बड़े स्टेशन पर ट्रेन छोड़ देना है. यह स्टेशन अस्तापोवो था, जहां के स्टेशन मास्टर इवान इवानोविच ओजोलिन ने सहृदयतापूर्वक उन्हें अपने घर में एक कमरे का प्रस्ताव किया जो वहां से कुछ गज दूरी पर था. उस समय तक लेव निकोलाएविच बहुत खराब अनुभव करने लगे थे और बहुत कठिनाई से वह घर तक पहुंच सके थे . मुश्किल से अभी उन्हें कुछ निर्देश दिए गये थे कि उन्हें बायीं बांह की पेशी और चेहरे के बांए हिस्से में ऎंठन का दौरा पड़ा और वह चेतनाशून्य हो गए (लगभग एक मिनट तक) . इसके बाद उन्हें बिस्तर पर लेटा दिया गया. उस रात उनका तापमान 39.8 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ गया था . उन्हें कफ और कोल्ड ने जकड़ लिया था और बांए पैर के दर्द से उन्हें अत्यधिक कष्ट था . उनकी नब्ज अनियमित हो गई थी-- (यहां तोल्स्तोय के स्वास्थ्य की प्रतिदिन की विज्ञप्ति दी गई है ).
(नवम्बर 6 ) अपरान्ह लगभग दो बजे वह अचानक रोश में आ गए . बिस्तर पर उठ बैठे और ऊंची आवाज में बोले -- ‘‘यह अंत है---- और इसे आने दो,’’ फिर , ‘‘लेकिन मैं आपसे एक बात याद रखने की प्रार्थना करता हूं कि लेव निकोलाएविच के अलावा दुनिया में लाखों लोग हैं , और आप केवल लेव के विषय में सोचते हैं .’’ इसके बाद तेजी से उनकी हृदय गति क्षीण हो गई . उनकी नब्ज कठिनाई से महसूस हो रही थी . उनके कान , होंठ , नाक और नाखून नीले पड़ गए थे . उनके हाथ और पांव ठण्डे हो गए....... सुबह दो बजे तक कैंम्फर इंजेक्शनों के बावजूद उनकी नब्ज दुर्बल से दुर्बलतर होती गई थी . सैलाइन मिश्रण का इंजेक्शन भी कोई सुधार नहीं ला पाया . फिर भी उन्होंने अपनी चेतना नहीं खोयी . उनसे जो कुछ कहा जाता उस पर वह प्रतिक्रिया देते और उन्हें दिया जाने वाला पानी गटक लेते थे. उनकी गंभीर स्थिति को देखकर उनके परिवार को बुला भेजा गया . सुबह पांच बजे के बाद उनकी नब्ज की धड़कन में समयांतराल था और उनकी सांस सामान्य थी . सुबह छः बजकर पांच मिनट (मास्को के समयानुसार) पर बिना कष्ट , पत्नी , बच्चों और मित्रों की उपस्थिति में लेव निकोलाएविच ने अंतिम सांस ली थी .
जैसा कि हमने पहले ही कहा , लेव निकोलाएविच स्टेशन मास्टर आई.आई. ओजोलिन के घर में लेटे थे , जहां दो बड़े कमरे उन्हें दिए गये थे . स्वास्थ्य स्थितियां संतोषजनक थीं-- अनेकों बार उनकी बेटी तात्याना ल्वोव्ना सुखोतिना और उसका बेटा सेर्गेई ल्वोविच उनके बिस्तर के पास गए. उनके घर के अन्य सदस्य सारे समय हाथ बांधे खड़े रहे थे लेकिन फिजीशियन की सलाह मानते हुए उनके कमरे में नहीं गए थे . परिवार की एक परिषद ने तय किया कि किसी अन्य रिश्तेदार को लेव निकोलाएविच से मिलने नहीं जाना चाहिए क्योंकि इससे उनके उत्तेजित होने की संभावना थी और उनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए उसके घातक परिणाम संभव थे .
तोल्स्तोय की मृत्यु का प्रत्यक्ष कारण उनके हृदय की क्रियाशीलता का तेजी से ह्रास होना था . अपनी अन्य गंभीर बीमारियों के दौरान उन्होंने अपने हृदय की क्रियाशीलता की इसी प्रकार की दुर्बलता को अनुभव किया था , लेकिन उनके हृष्ट-पुष्ट शारीरिक गठन और असाधारण नैतिक शक्ति ने उन्हें जीवन संघर्षों पर विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य प्रदान की थी . इसने हमें आशान्वित किया हुआ था कि इस बार भी लेव निकोलाएविच का हृष्ट-पुष्ट शरीर , हालांकि वृद्ध , संक्रमण से लड़कर जीत जाएगा . तथापि , मेरी राय में वह जो नैतिक पीड़ा सह रहे थे और कठिन यात्रा के कारण उन्हें जो थकान हुई थी उसने उनके हृदय और स्नायु तंत्र को इस हद तक कमजोर कर दिया था कि बीमारी ने तत्काल गंभीर रूप ग्रहण कर लिया जो उन्हें घातक अंत की ओर ले गया.
अपनी बीमारी के शुरू से अंत तक लेव निकोलाएविच ने उन सभी, जिन्हें उनके अंतिम क्षणों में उनकी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, के प्रति जो कृपालुता और भद्रता दिखाई थी, वे लोग उसे कभी भूल नहीं पाएंगे .
डी.पी. मकोवित्स्की
डी.वी.निकितिन
जी.एम. बर्कन्हीम

यास्नाया पोल्याना, नवम्बर 9, 1910
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