
यतीन्द्रनाथ राही की तीन गज़लें
(१)
महकते दिन
फिर उतर आए पलाशों इन दहकते दिन
वादियों की देह दुलराते थिरकते दिन .
हो गए गैं फिर हवाओं के चलन चंचल
छेड़ते गैं हर गली-आंगन बहकते दिन .
बांधकर पायल, फसल के पांव में रुन-झुन,
झुरमुटों में झूलते हैं , फिर कुहकते दिन .
शकुन आंगन, डाल पर फूटे नए पीके
बोलते हैं फिर मुंडेरी पर फुदकते दिन .
चढ़ रहे पीली उमर पर , रंग कुमकुम के
लग रहे अंगूर के आसव छलकते दिन .
हैं दिशाओं के पलक पर,मौंन आमंत्रण
प्यार के अनुबध लिखते हैं, महकते दिन .
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फिर उतर आए पलाशों इन दहकते दिन
वादियों की देह दुलराते थिरकते दिन .
हो गए गैं फिर हवाओं के चलन चंचल
छेड़ते गैं हर गली-आंगन बहकते दिन .
बांधकर पायल, फसल के पांव में रुन-झुन,
झुरमुटों में झूलते हैं , फिर कुहकते दिन .
शकुन आंगन, डाल पर फूटे नए पीके
बोलते हैं फिर मुंडेरी पर फुदकते दिन .
चढ़ रहे पीली उमर पर , रंग कुमकुम के
लग रहे अंगूर के आसव छलकते दिन .
हैं दिशाओं के पलक पर,मौंन आमंत्रण
प्यार के अनुबध लिखते हैं, महकते दिन .
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(२)
क्या कहें
पूछा तो आपने, भला हालात क्या कहें ?
गुज़रे हैं किस तरह से ये, लम्हात क्या कहें ?
तरसे हैं छटपटाए हैं, अलफा़ज के लिए,
मेरे घुटे घुटे से ये , जज़बात क्या कहें ?
अन्याय-झूठ-भ्रष्टता , छल -छद्म- नफरते ,
जो मिल रहे हैं रोज़, इनामात क्या कहें ?
भूखों के हाथों रोटियां, साबुत नहीं लगीं
बांटी गई लंगोटियों की, बात क्या कहें ?
लेने में सांस सत्य का,घुटने लगा है दम,
बिकते हुए ईमान की, औका़त क्या कहें ?
सब जल गया , ज़मीर-मोहब्बत-खुलूस-इल्म,
ऎसी हुई तेज़ाब की, बरसात क्या कहें ?
सूरज भी बिक चुका है, स्याह रात के हाथों,
हम कल सुबह के और, अलामात क्या कहें ?
आओ! कि एक बार तो, आईना देख लें ,
चेहरों पर पुती कालिखों की, बात क्या कहें ?
राही कही इंसानियत, हमको भुला न दे ,
कल पीढि़यां भोगेंगीं जो, आघात क्या कहें ?
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(३)
सौ जनम के लिए
सोचते हम रहे सौ जनम के लिए .
सांस में दम नहीं, दो कदम के लिए .
कंठ तक पंक में डूबने को खड़े,
हाथ ऊंचे हैं पूजा-धरम के लिए .
आदमी, आदमी है , कि चट्टान है,
शीश झुकता नहीं , शरम के लिए .
एक चेहरा गुनाहों का, घूंघट में है ,
एक चेहरा धरे हैं, भरम के लिए .
ज़िन्दगी का खुलापन, गज़ब हो गया,
अब न पर्दे रहे हैं, हरम के लिए .
आचरण, नीति-निष्ठा हुए बेदखल ,
अब बचा ही कहां कुछ, क्सम के लिए.
क्या सितम तख्त पर, आज शैतान है,
हाथ बांधे है आदम, करम के लिए .
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परिचय
यतीन्द्रनाथ राही का जन्म ३१ दिसम्बर, १९२६ को भारौल, जिला मैंनपुरी (उ.प्र.) में हुआ था.
शिक्षा : एम.ए. बी-एड.
मध्य शिक्शा विभाग से सेवा निवृत्त.
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन .
प्रकाशित पुस्तकें : पुष्पांजलि , बांसुरी, दर्द पिछड़ी जि़न्दगी का, रेशमी अनुबन्ध, बाहों भर आकाश, महाप्राण (खंड काव्य).
संपर्क : ए-५४, रजत विहार, होशगांबाद रोड, भोपाल-२६
मोबाईल : ०९६८५३४१०२०
०९९९३५०११११