गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

पुस्तक चर्चा

बहुमुखी प्रतिभा के धनी कथाकार महेश दर्पण का समकालीन हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है. हाल में उनका कहानी संग्रह ’वर्तमान में भविष्य’ प्रकाशित हुआ. प्रस्तुत है उक्त कहानी संग्रह पर युवा कथाकार अरविन्द कुमार सिंह की समीक्षा:



गहरी संवेदना की कहानियां
अरविन्द कुमार सिंह

महेश दर्पण सनसनी पैदा करने के लिए कहानियां नहीं लिखते. कोई छोटी-सी घटना भी जीवन में कैसा अवसाद भर देती है यह उनके ताजा कहानी संग्रह ’वर्तमान में भविष्य’ को पढ़ने के बाद ही जाना जा सकता है. महेश दर्पण में एक गहरी संवेदना मौजूद है. अपने आस-पास के जीवन पर उनकी पैनी नजर होती है. कथा के सूत्र भी अकसर वह वहीं से हासिल कर लेते हैं. बहुत सधे और कम शब्दों में अपनी बात कह जाना दर्पण की कहानियों का वैष्टिय है .
’वर्तमान में भविष्य’ रहस्य, रोमांच और रोचकता से भरपूर दार्शनिक अंदाज में लिखी गई संग्रह की महत्वपूर्ण कहानी है. हालांकि यह दर्शन किसी रहस्य लोक में नहीं भटकाता बल्कि जीवन के लक्ष्य से रू-ब-रू कराता है. कहानी के केन्द्र में फकीर-सा दिखता एक बूढा़ बाबा, कथानायक मैं तथा उसकी पत्नी और बेटी हैं. पत्नी की हथेली पर लिखे भविष्य को पढ़ने के बहाने उस बूढे़ का कथन कि ’आज-कल ज्यादातर लोगों को वर्तमान से कहीं ज्यादा फिक्र भविष्य की लगी रहती है जबकि सच यह है कि वर्तमान को सही तरीके से जीने पर ही भविष्य संवर जाता है’ एक प्रकार से कहानी कादेन्द्रीय कथन है.
’चौबीस बरस’ पढ़कर लगता है कि अतीत की स्मृतियां मोहक होती हैं, लेकिन कहानी में अतीत में गुजरना भर ही नहीं होता, वह त्रासदी भी यहां गै जो महानगार की उपज है. धीरे-धीरे गांव-जवार से रिश्ता ही नहीं टूटता, अपने करीबी लोग भी एक दिन छूट जाते हैं, बची होती हैं सिर्फ स्मृतियां, वे सहारा और पीडा़ दोनों बनती हैं.
’कस्तूरी छाया’ एक आदिवासी हकीम के द्वारा एक निम्न मध्य-वर्गीय परिवार से बीमारी और दवा के नाम पररुपये ऎंठने की चालाकी है. मूलतः यह कहानी बाजार के चरित्र को उद्घाटित करती है. जहां एक आदिवासी जिसे भोला और शरीफ समझा जाता है, बाजार के हथकंडे सीख चुका है.
’डर’आदमी का सुख और सुकून छीन लेता या वास्तविक, यदि वह जुन्द्गी का हिस्सा बन जाए तो जीना कितना दूभर हो जाता है. ’मेरी जगह’ कर्ज रूपी रंग-रेशों से बुनी हुई कहानी है, जिससे पता चलता है कि मजबूरियों से गुजरा हुआ व्यक्ति ही किसी की मजबूरी को समझ सकता है.
अंजुमन’ यानी महफिल की दुनिया धीरे-धीरे उजड़ती जा रही है. मुहल्ले की पारिवारिकता गायब होती जा जही है. कहानी के मुख्य पात्र सलीम नामक नाई की ऎसी ही पीडा़ में गहरी टीस है.
’अपने साथ में’ कथानायक खालीपन एक दिन अपने करीब की उस जिन्दगी से रूबरू होता है, जहां व्यस्तता के चलते वह बहुत गहराई तक नहीं उतर सकी थी. बादल, बारिश और छत से गिरते पानी की धारें उसके खलीपन को बहुत दूर तक ले जाती हैं. भाषा-शिल्प और कथ्य की दृष्टि से यह एका महत्वपूर्ण रचना है.
’हमारे समय की खबर’ मीडिया पर व्यंग्य है. कहानी का मुख्य पात्र तेज-तर्रार और सजग पत्रकार भी पद, पैसा और कैरियर की खातिर अपनी जिम्मेदारी तक भूल जाता है. ’मुक्ति’ मृत्यु-शैय्या पर पड़ी बसंती दीदी का दुख एक त्रासदी बन कर रह गई है. मृत्यु की तरफ बढ़ते हर क्षण पर लेखक की दृष्टि है.
घर-परिवार में छोटी-सी घटना कभी-कभी कितनी रोचक होती है, ’जीरे का डिब्बा’ इसका एक उदाहरण है. ’जख्म’ साम्प्रदायिक्ता से उपजे घाव को उधेड़ती है तो ’एहसास’ और ’घरनी’ भी इस संग्रह की महत्वपूर्ण कहानियां हैं.
महेश दर्पण गहरी संवेदना के रचनाकार हैं, इसलिए कहानी की तलाश में उन्हें भटकना नहीं होता. चुनौतियों के इस कठिन दौर में भी उनकी सक्रियता का ही नतीजा है यह कहानी संग्रह, जिसकी कहानियों को पढ़कर ही जाना जा सकता है.

वर्तमान में भविष्य
(कहानी संग्रह)
महेश दर्पण
सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली-११०००२
पृष्ठ - १४४, मूल्य - १५०/-


3 टिप्‍पणियां:

विजय गौड़ ने कहा…

महेश दर्पण मेरे पसंदिदा कथाकारों में है, उनकी पुस्तक पर समीक्चा पढ्वाने के लिये धन्य्वाद.

बेनामी ने कहा…

aadab
महेश दर्पण kee book rev. kafee achee hai .

सुभाष नीरव ने कहा…

महेश की कहानियाँ समय-समय पर पाठकों का ध्यान आकर्षित करती रही हैं। उनकी नई किताब की समीक्षा पढ़ कर अच्छा लगा। "रचना समय" में "पुस्तक समीक्षा" का यह स्तम्भ लेखकों पाठकों में प्रिय होता जा रहा है।