(चित्र : डॉ. अवधेश मिश्र )
वरिष्ठ कवि तेजेन्दर शर्मा की पांच कवितायें
मेरा घर और तकनीकी क्रान्ति
मेरा घर
बन गया है माईक्रोकाज़्म
मेरे देश के तकनीकी विकास का।
लैपटाप, डेस्कटाप, और मोबाईल
कैमरा, या फिर म्यूज़िक सिस्टम
सभी हो गये हैं डिजिटल
ले आए हैं क्रान्ति
घर में मेरे!
मेरी बेटी और दामाद
भेजते हैं मुझे, मेरे ही
नाना बनने की ख़बर
एस.एम.एस के ज़रिये!
और फिर कर देते हैं बन्द
मोबाईल को अपने
कर लो मशीन से बात
यही है तकनीकी विकास!
मेरे पचपनवें जन्मदिन पर
मेरे अस्पताल के बिस्तर पर
भेजती है एस.एम.एस
मेरी ही पत्नी, और हो जाती है
इतिश्री उसके कर्तव्य की।
लांघ जाती है दूरी
हज़ारों मील की, पल भर में!
भूल जाते हैं मेरे पुत्र
कि अस्पताल के बिस्तर पर
लेटा उनका पिता
बना रहा है एक रिश्ता
अन्जान सा
अपने ही बिस्तर के
गन्धों के साये के साथ।
फिर वो भेजते हैं
एक एस.एम.एस
बिलेटिड हैपी बर्थडे का।
और अचानक बज उठती है
एक घन्टी
अस्पताल के कमरे में।
होता है परेशान
अस्पताल के कमरे में
ब्रेन ट्यूमर से लड़ता
मेरा हमसफ़र।
कहता है करदो बन्द
इस मोबाईल फ़ोन को।
इसने मुझे किया है बीमार
और ज़िन्दगी से बेज़ार।
मैं उसे कैसे समझाऊं
उसे कैसे बताऊं कि यह जो
मोबाईल है, यह प्रतीक है
मेरे राष्ठ्र की प्रगति का।
आज दुल्हन चर्च को करती है
एस.एम.एस. कि हां
मुझे मंज़ूर है दूल्हा।
और पति भी तीन बार बस
टाईप ही करता है
तलाक़, तलाक़, तलाक़
और भेज देता है एस.एम.एस.
मैं पहले करता हूं सलाम
अपने घर को
फिर अपने देश को
बिल गेट्स को
तकनीकी क्रान्ति को!
चांदनी से भर देगा....
मुफ़लिसों को वो थाम लेगा, नया दर देगा
जो भी होगा ज़रूरी, उनके लिये कर देगा।
आग से तप के वो निकला है बना कुंदन है
किसी को प्यार किसी को ज़मीनो ज़र देगा।
आसमां उसका इस क़दर है सितारों से भरा
वो अमावस को तेरी, चांदनी से भर देगा।
ऐसी बातें थे सुना करते उसके बारे में
मांग के देखो वो, बेख़ौफ़ अपना सर देगा।
मेरे हालात का न ज़िक्र उससे करना कभी
छोड़ना मुझको उसके दिल में दर्द भर देगा।
ख़ुद को अकेला पाते.....
वो जो हर रोज़ मुझे याद किया करते थे
आजकल मेरे बुलाने पे भी नहीं आते।
जब तलक काम था मैं धड़कनों में था उनकी
अब मेरे नाम से ही दिन ख़राब हो जाते।
साथ अपने मुझे पहलू में वो बिठाते थे
मेरी मौजूदगी से आज हैं वो घबराते।
मुझ को लाना औ छोड़ना कभी सुहाता था
अब तबीयत ख़राब रहती है वो फ़रमाते
भावनाओं से उनका कुछ नहीं लेना देना
पैसे वाले ही आज उनके दिल को हैं भाते।
न कोई दोस्त है न रिश्ता कोई है अपना
आज दुनिया में हैं वो ख़ुद को अकेला पाते।
ठोस सच्चाई ज़िन्दगी की जानते वो नहीं
सफ़र पे आख़री सब हाथ खाली ही जाते।
अकेलापन.....
नये बिम्ब नई अभिव्यक्ति
देश बदला, मिट्टी बदली
बदला कुल परिवेश
लगे कहीं से जो भी अपना
न चेहरा न वेश !
सुबह न कोई कोयल बोले
न चिड़िया चहचहाए
धुन्ध सुबह, धुन्धली हो शाम
खो गया हर वो नाम
जो कभी मिलने आता था
टेलिफ़ोन पर बतियाता था
कहीं भीतर तक दिल के
तारों को छू जाता था।
सुपर मार्किट की भीड़ में
सुबह की लोकल की भीड़ में
कार-बूट सेल की भीड़ में
फ़ुटबॉल प्रेमियों की भीड़ में
अपने आप को कहीं किसी
अकेले कोने में,
अकेला खड़ा पाता हूं।
किसी गहरी सोच में
डूब जाता हूं।
अपने इस अकेलेपन की अभिव्यक्ति
कहां कर पाता हूं शब्दों में ?
खो जाता हूं, डूब जाता हूं
शब्दों के मायाजाल में।
किन्तु शब्द ! न मिलते हैं !
न मेरे करीब आते हैं।
मुझे दौड़ाते हैं, थकाते हैं
और अकेला छोड़ जाते हैं।
रात को चांद
सितारों के हुजूम में चांद
अकेला चांद
फ़ैक्टरियों और कारों के
प्रदूषण से ग्रस्त चांद
पीला चान्द !
आंसुओं से गीला चांद !
मुझे देख कर मुस्कुराया
एक पीली कमज़ोर मुस्कान !
उससे, उसके अकेलेपन पर
करता हूं एक प्रश्न।
पीड़ा की एक वक्र रेखा
चीर कर निकल जाती है
उसका चेहरा ज़र्द ! !
शब्द अस्फुट से सुनाई
देते हैं फिर भी....
पहुंच जाते हैं मुझ तक।
अकेलेपन के लिये
नई शब्दावली ढूंढ रहे हो ?
पगला गये हो। क्यों व्यर्थ में
कुम्हला रहे हो ?
सबसे पहले अकेला था आकाश
फिर धरती अकेली थी
फिर अकेला था आदम।
उसके रहते, अकेली थी हव्वा
अकेलापन जीवन का सत्य है
शाश्वत है !
क्या उसके लिये नये बिम्ब चाहते हो ?
चाहते हो नई शब्दावली।
ढूंढो अपने ही युग में।
करो तलाश अपने आसपास।
विश्व युद्ध में पड़ा अकेला जर्मनी
गहन अकेला नाम, जिसे कहते थे सद्दाम
अकेला ही जला जो कभी था युगोस्लाविया
अफ़गानिस्तान भी दुखी अकेला
यही शब्द हैं, बिम्ब नये हैं
पूरे विश्व में नाम अकेले।
क्या ये बिम्ब अपनाओगे ?
अकेलापन दिखलाओगे ?
मैं एकाएक घबरा गया हूं
नेत्र गीले, स्वर भर्रा गया है
अकेला तो पहले भी था
अन्धेरा और हुआ सघन।
मुझसे छिन रहा है
मेरा अपना गगन।
……..मुसलमान हो गया।
अपने को हंसता देख मैं हैरान हो गया
तुझसे ही ज़िन्दगी मैं परेशान हो गया।
हैं कैसे कैसे लोग यहां आ के बस गये
बसता हुआ जो घर था, वो वीरान हो गया।
किसका करें भरोसा, ज़माने में आज हम
दिखता जो आदमी था वो शैतान हो गया।
इलज़ाम भी लगाने से वो बाज़ नहीं है
बन्दा था अक़्ल वाला वो नादान हो गया।
या रब दुआ है कीजियो उसपे करम सदा
वो दोस्त मेरा मुझ से ही अन्जान हो गया।
मैख़ाने में हमेशा निभाता था साथ वो
क़ाफ़िर था अच्छा खासा, मुसलमान हो गया।
तेजेन्द्र शर्मा (मित्रों के साथ IIC नई दिल्ली में)
-- Tejinder SharmaGeneral Secretary (Katha UK)London, UKMobile: 07868 738 403e-mail: tejendra.sharma@gmail.com
17 टिप्पणियां:
"मेरा घर और तकनीकी क्रान्ति" और "अकेलापन" अपने समय को व्यक्त करती अच्छी कविताएं हैं।
Bhai Chandel jee
apni rachnaeiN dekh kar har rachnkar ko achha hee lagta hai. Yadi Subhash jee jaisa suljha hua vyakti uss par tippni de de to aur bhee achha lagta hai. Ek chhoti see pasting error:
Ghazal: ख़ुद को अकेला पाते.....
meiN aap ne pehli pankti prakashit kee hai:
हर रोज़ मुझे याद किया करते थे
jabki sahi pankti hai:
वो जो हर रोज़ मुझे याद किया करते थे
Aapka
Tejendra Sharma.
'मेरा घर और तकनीकी क्रान्ति' हमारे समय की समस्त सुइयों को अपनी क्रूर चुभन के साथ हमारे संवेदन-तंतुओं में चुभो देती है। किसी भी तरह के कलात्मक छलावे से मुक्त यह प्रभावपूर्ण कविता है।
KAVITAYEN SAAMYIK HAIN AUR POORAA
PRABHAAV CHODTEE HAIN.GAZLON MEIN
BAAT BAN NAHIN PAYEE HAI.BAHRON
MEIN ASANTULAN HAI ISLIYE ABHVYAKTI
KAMZOR PAD GAYEE HAI.
Takaneekee kranti kavi ko udaas karatee hai. Takneekee krati rishton mein,dostion mein uljhav lati hai Aur Tajander Sharma akelepan ka aadhyatmik, rajneetik, vaashvik roop bhee de rahe hain. Kavitaye yug aur vyakti dono ka dard liye hain.
Takaneekee kranti kavi ko udaas karatee hai. Takneekee krati rishton mein,dostion mein uljhav lati hai Aur Tajander Sharma akelepan ka aadhyatmik, rajneetik, vaashvik roop bhee de rahe hain. Kavitaye yug aur vyakti dono ka dard liye hain.
Kavitayein yug aur aadmee kee bahumukhee vedana kaa dastavej hain
तेजेंदर जी की कविताएँ '' मेरा घर और तकनीकी क्रान्ति, ख़ुद को अकेला पाते, अकेलापन '' इनकी कहानियों की तरह सच्च बोलतीं समय के ठोस धरातल पर ला खड़ा करतीं हैं.
सुधा ओम ढींगरा
तेजेंदर जी की पाँचो कविताएँ...एक से एक...ज़बदस्त
tejendraji ki kavitaayeiN abhee padheeN aur mun nahin mana ki yadi oosee samay apnee feelings vyakt na kee jaaeyiN tow feelings koi mayne nahin rakhateeN. mujhe tejendraji ki sabhee kavitaayeiN bahut hi acchi lageeN. vishesh roop se pahalee kavita behad acchi lagee aur anya kavitaayeiN beshaq apne aprivesh,akelepan aur machinee yug ka rekhankan kartee haiN.
aapko badhai tejendraji aur rachasamay ka inko prakashit karne ke liye aabhar.
roop ji aur tejendra ji ko meri badhaiyaan ..
aapne ek saath 5 rachnaayen dekhar mano , complete meal ka prabhandh kar diya ho.. inhe padhne ke baad , kyonki ye paancho alag alag mizaaz ki hai .. aur kahne sunne ko kuch baaki nahi rah jaata hai ..
phir bhi meri pasndida hai ..aakhiri gazal ..
मुसलमान हो गया।
bahut hi bhaavpoorn hai ..
tejendra ji ko aur rrop ji ko mera naman aur badhai ..
aapka
vijay
तेजेन्द्र शर्मा की कविताएं अच्छी लगीं।
पहली कविता में जिस तरह मोबाइल
के साथ उन्होंने रिश्तों की त्रासदी को जोड़ा
है वह अदभुत है।
रामकुमार कृषक की ग़ज़लें हमारे समय
का जीवंत दस्तावेज़ हैं।
देवमणि पाण्डे
रचना समय का नया अंक देखा है। पढ़ा भी। मुझे रामकुमार जी का लेखन अच्छा लगा । गजल की बारीकियाँ मैं नहीं समझती , बहर और वजन । तेजेन्द्र जी को भी पढ़ा। पहली कविता और बाद की गजलें/गीत अच्छे लगे।
इला प्रसाद (USA)
मेरा घर और तकनीकी क्रान्ति में तेजेन्द्र जी ने जीवन की विसंगतियों को बहुत ही सलीके से बयां किया है। इस सुंदर कविता को पढवाने हेतु अभार।
priyabhai apne tejendra sharma jee ki bahut achchi kavitaon se prichaya karvaya hai unki kavita mera ghar aour takniki kranti tatha akelapan bahut achchi lagin gajlen achcha prabhav chodti hain iske liya me apko tatha tejendra sharma jee ko badhai deta hum
ashok andrey
तेजेन्द्र जी की कविताएं सामायिक हैं और शब्दों का सुंदर चयन भावों के अनुरूप है।
ऐसी बातें थे सुना करते उसके बारे में
मांग के देखो वो, बेख़ौफ़ अपना सर देगा।
wah tejindar ji ko padkar bhaut achha laga
unki har gazal alag andaaj main likhi gyai hai
thnx a lot for posting such a gems
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