सुरेश यादव की कुछ कविताएं
सवेरा
सवेरा
तोड़ देता रोज
एक खौफनाक सपना
जोड़ देता
खौफनाक सवाल !
सवेरा
खतरनाक पुल है
दिन-
इसी पर से
गुजरता है रोज।
अच्छा आदमी
तुमने मुझे अच्छा आदमी कहा
मैं, काँप गया
हिलती हुई पत्ती पर
थरथराती
ओस की बूँद-सा !
तुमने
मुझे 'अच्छा आदमी' कहा
मैं सिहर उठा
डाल से टूटे
कोट में टंक रहे उस फूल-सा,
जो किसी को अच्छा लगा था।
'अच्छा आदमी' फिर कहा,
तुमने मुझे
और मैं भयभीत हो गया हूँ
भेड़ियों के बीच मेमने-सा
जंगल में जैसे घिर गया हूँ।
'अच्छा आदमी' जब-जब कोई कहता है
बहुत डर लगता है।
बिछा रहा जब तक
घिरा रहा
शुभ-चिन्तकों से
बिछा रहा
जब तक सड़क सा!
खड़ा हुआ तनकर
एक दिन
अकेला रह गया
दरख्त-सा !
धार पा गए
गर्म दहकती भट्टी में
पड़े रहे तपते हुए
और- एक दिन
ढलने का अहसास पा गए
संभव और कुछ नहीं था
इस हालात में
गर्म थे
पिटे खूब
और - एक दिन
धार पा गए।
ज़िन्दगी अच्छी लगती है
मैं
हार भी जाता हूँ
कभी-कभी तो
मुझ से फिर
मेरी ज़िन्दगी लड़ती है
मुझे
इसीलिए ज़िन्दगी
बहुत अच्छी लगती है।
शहर नंगा हुआ
हज़ारों
साधु, सन्त, फकीरों के
लाखों प्रवचन हुए हैं
अजान की गूंजी हैं
दूर तक आवाजें
और मंदिर की घंटियाँ भी
बजती रही हैं रोज़
अभी तक
मन लोगों का
जाने कितना 'गंगा' हुआ है
सभ्यता के आवरण
जितने थे शहर के पास
फटते गए
और सारा शहर
एकदम नंगा हुआ है...
शहर में फिर दंगा हुआ है।
ताजमहल
पत्थर भी
अपना रंग बदलने लगते हैं
वक्त के साथ
गलने लगते हैं
मैं -
तुम्हारी याद में कभी
ताजमहल नहीं बनाऊँगा
वक्त के हाथों
बदरंग हो जाए जो पत्थर
मैं
तुम्हारी याद को
ऐसा पत्थर नहीं बनाऊँगा।
जल गई शाम
मुझसे लिपटी
वह कितनी खूबसूरत थी
शाम-ए-तन्हाई
प्रेमिका की तरह
और
पहाड़ी की ओट से
झांक भर पाई शाम
पत्नी की तरह
कि जलकर राख हो गई।
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दिनांक 1 जनवरी 1955 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में जन्में सुरेश यादव की प्रारंभिक शिक्षा बेवर तथा शिकोहाबाद एवं उच्च शिक्षा- एम.ए.(राजनीति शास्त्र), दिल्ली विश्वविद्यालय, एम.ए.(हिन्दी), राजस्थान विश्वविद्यालय से प्राप्त की। अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान, अनुवाद सिध्दांत एवं व्यवहार, पोस्ट एम.ए. डिप्लोमा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, दिल्ली से प्राप्त किए। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया जिनमें 'संधान','सर्वहिताय' एवं 'सहजानन्द' प्रमुख हैं। प्रथम कविता संग्रह - 'उगते अंकुर' वर्ष 1981 में प्रकाशित हुआ। दूसरा कविता संग्रह -'दिन अभी डूबा नहीं' वर्ष 1986 में प्रकाशित हुआ और इस चर्चित कविता संग्रह पर 'हिन्दी अकादमी, दिल्ली' की ओर से वर्ष 1987 के लिए 'साहित्यिक कृति' सम्मान प्रदान किया गया। तीसरा काव्य संग्रह - 'ये शहर किसका है' शीध्र प्रकाश्य है।
सुरेश यादव की कविताओं का अंग्रेजी, बंगला एवं पंजाबी भाषाओं में अनुवाद विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है। अकाशवाणी, दिल्ली तथा दिल्ली दूरदर्शन पर कविताओं का निरन्तर प्रसारण।
हिन्दी अकादमी के 1987 के सम्मान के अतिरिक्त वर्ष 2004 के 'रांगेय राघव सम्मान' एवं अन्य सम्मान ।
सम्प्रति - वर्तमान में दिल्ली नगर निगम में अतिरिक्त उपायुक्त के पद पर कार्यरत हैं।
सम्पर्क : 2/3, एम सी डी फ्लैट्स, साउथ एक्स, पार्ट-॥,
नई दिल्ली-110049
दूरभाष : 011-26255131(निवास)
09818032913(मोबाइल)
ई मेल : sureshyadav55@yahoo.co.in
सुरेश यादव की कविताओं का अंग्रेजी, बंगला एवं पंजाबी भाषाओं में अनुवाद विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है। अकाशवाणी, दिल्ली तथा दिल्ली दूरदर्शन पर कविताओं का निरन्तर प्रसारण।
हिन्दी अकादमी के 1987 के सम्मान के अतिरिक्त वर्ष 2004 के 'रांगेय राघव सम्मान' एवं अन्य सम्मान ।
सम्प्रति - वर्तमान में दिल्ली नगर निगम में अतिरिक्त उपायुक्त के पद पर कार्यरत हैं।
सम्पर्क : 2/3, एम सी डी फ्लैट्स, साउथ एक्स, पार्ट-॥,
नई दिल्ली-110049
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09818032913(मोबाइल)
ई मेल : sureshyadav55@yahoo.co.in
7 टिप्पणियां:
सुरेश यादव की ये छोटी-छोटी कविताएं बहुत सुन्दर हैं। मारक और भीतर तक उद्वेलित करती हुई कविताएं! इतनी सुन्दर कविताएं रचना-समय पर देकर तुमने "रचना-समय" की सार्थकता सिद्ध कर दी। बधाई, कवि को भी और तुम्हें भी।
बहुत खूब---
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
शब्दकार
priya chandel jee aapke blog par suresh jee ki kavitaen padin bhichha raha jab tak v svera kavitaen achhchhi lageen badhai saveekaren
ashok andrey
सवेरा ,अच्छा आदमी और ज़िन्दगी अच्छी लगती है -बेहतरीन कविताएँ हैं । एक पुरानी कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ गई -
सवेरा होते ही
मनहूस लोग
भजन गाने लगते हैं
औए हम
अपनी बेकारी की सोचने लगते हैं ।
प्राय: अखबार और पत्र -पत्रिकाएँ कविताओं को काँधा दे चुके हैं । ऐसे कठिन दौर में ब्लॉगर ने कविता को ज़िन्दा रखने का यह मह्त्त्वपूर्ण काम सँभाल लिया है ।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Chandel jee,
Aapke stariye blog par aane
se laabh yah hotaa hai ke us par
kuchh vishesh padhne ko miltaa hai.Suresh jee kee kavitaaon ko hee
lijiyee ,unkee chhotee-chhotee
kavitaayen badaa-badaa sanvaad
kar kar rahee hain.Suresh jee mein
mujhe sanvedansheel kavi nazar aaya
hai.unkee "mujhe zindgee achchhee
lagtee hai" kavita padh kar mujhe
apnaa ek sher yaad aa gayaa hai--
maanaa sukh-dukh se hai ladee pyare
phir bhee pyaaree hai zindgee pyare
Achchhee kavitaaon ke liye
Suresh jee ko badhaaee.
बहुत खूब--- बहुत सुन्दर
bhai chandel ji aap ne meri kavitaon ko apane blag par sthan dekar samvedanshil rachanakaron tak pahunchaya aap ko dhanyavad
meri rachanaon par tipparian dekarmere vishwas ko majbooti dene ke liye subhash neerav,dr.kumarendra singh sengar,ashok andreye,rameshwar kamboj himanshu,pran sharma aur sanju ko hardik dhanyavad m 09818032913
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