निशा भोंसले की कविताएं
भूख
भूख की आग से
तेज होती है
जंगल की आग
तेज होती है
जंगल की आग
भूख की आग
जिन्दगी जलाती है
जिन्दगी जलाती है
और
जंगल की आग
सभ्यता को।
सभ्यता को।
****
घरौंदा
लड़की
बनाती है
घरौंदा रेत का
समुंदर के किनारे
बुनती है सपने
सपने सुनहरे भविष्य के
बनाती है
घरौंदा रेत का
समुंदर के किनारे
बुनती है सपने
सपने सुनहरे भविष्य के
घरौंदे के साथ
चाहती है समेटना
रेत को
अपनी मुठ्ठियों में
बांधती है सपने को
घरौंदे के साथ
चाहती है समेटना
रेत को
अपनी मुठ्ठियों में
बांधती है सपने को
घरौंदे के साथ
टूटता है बारबार
घरौंदा
अपने आकार से
घरौंदा
अपने आकार से
लड़की सोचती है
रेत/घरौंदा और
सपनों के बारे में
टूटते है क्यूं ये सभी
बारबार जिन्दगी में।
रेत/घरौंदा और
सपनों के बारे में
टूटते है क्यूं ये सभी
बारबार जिन्दगी में।
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गठरी में बंधी साडि़यों के अनेक रंग
वह औरत
कपड़ों का गठ्ठा लिये
रिक्शे में
घूमती है/शहर के
गली मोहल्ले में
कपड़ों का गठ्ठा लिये
रिक्शे में
घूमती है/शहर के
गली मोहल्ले में
देती है दस्तक
घरों के दरवाजे पर
मना करने के बावजूद
दिखाती है गठरी खोलकर
साडि़यां
घरों के दरवाजे पर
मना करने के बावजूद
दिखाती है गठरी खोलकर
साडि़यां
कश्मीरी सिल्क, कोसा सिल्क,
बंगाल और साउथ इंडिया की
बंगाल और साउथ इंडिया की
बैठ जाती है
घर की चैखट पर
बताती रहती है
साडि़यों के बारे में
घर की चैखट पर
बताती रहती है
साडि़यों के बारे में
कभी थक जाती है
धूप में चलकर
कभी उसके कपड़े
गीले हो जाते है पसीने से
कभी उसका गला
सूख जाता है प्यास से
धूप में चलकर
कभी उसके कपड़े
गीले हो जाते है पसीने से
कभी उसका गला
सूख जाता है प्यास से
वह फिर भी रुकती नहीं
निकल जाता है/रिक्शावाला
कहीं उससे आगे
वह फिर से तेज चलती है
देती है आवाज
गली मोहल्ले में
निकल जाता है/रिक्शावाला
कहीं उससे आगे
वह फिर से तेज चलती है
देती है आवाज
गली मोहल्ले में
शाम को लौटती है/घर
थकी हारी
गठरी को लादकर
थकी हारी
गठरी को लादकर
रात में
जब वह सोती है
झोपड़ी में
मिट्टी के फर्श पर निढाल
जब वह सोती है
झोपड़ी में
मिट्टी के फर्श पर निढाल
उसकी फटी साड़ी में
सिले होते हैं
अनेक साडि़यों के टुकड़े
जिसमें होते हैं
गठरी में बंधी साडि़यों के
अनेक रंग।
सिले होते हैं
अनेक साडि़यों के टुकड़े
जिसमें होते हैं
गठरी में बंधी साडि़यों के
अनेक रंग।
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निशा भोसले
रायपुर (छत्तीसगढ़) में जन्मी निशा भोसले ने समाजशास्त्र में एम.ए. किया है.
*अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित.
*उदंती डाट काम, लोकगंगा, एवं ई पत्रिका में सक्रिय।
संपर्क : शुभम विहार कालोनी
बिलासपुर छ0ग0
बिलासपुर छ0ग0
12 टिप्पणियां:
अच्छी कविताएं हैं निशा जी की। निशा जी इस प्रयास को जारी रखें।
बहुत गहरी और उम्दा रचनाएँ. आपका आभार इन्हें प्रस्तुत करने का.
NISHA BHOSLE JEE KEE KAVITAYEN
PADHEE HAIN MAINE BADE ITMEENAN
KE SAATH.GATHREE MEIN BANDHEE
SAADIYON KE ANEK RANG AUR GHARAUNDA
KEE PRASHANSA MEIN KAEE SHABD KAHNA
CHAHTAA THA LEKIN MERE LIYE MUSHKIL
HO RAHAA HAI.EK HEE SHABD KAH PAA
RAHAA HOON-- SASHAKT
भाई चंदेल जी,आप ने निशा भोसले की कविताओं को प्रस्तुत किया है,पहली वर पढ़ रहा हूँ.दो कवितायेँ घरोंदे तथा गठरी में बंधी sadion के अनेक रंग,संवेदना युक्त हैं.काव्य प्रयास के लिए बधाई.09818032913
bahut achchhi kavitaen hein nisha jee ki
ladki sochti hei
ret/gharonda aur
sapno ke baare mei
totte hein kayoon ye sabhee
barbaar jindagee he
badhaee
ashok andrey
आदरणीय चंदेल सर
आपने नए रचनाकार को अपने ब्लॉग पर स्थान दिया .
में आपकी आभारी रहूंगी. साथ ही सभी साहित्य बंधूओ की टिप्पणी मेरे लिए प्यार एवं आर्शीवाद है . आप सबका धन्यवाद्. भविष्य में उत्कृष्ट रचनाये दे सकु . यही प्रयास होगा.
निशा
आदरणीय चदेल सर
आपने नए रचनाकार को अपने ब्लॉग पर स्थान दिया .
आपका बुत बहुत आभार. सभी साहित्य बंधुओ की टिपण्णी मेरे लिए प्यार एवं आशीर्वाद है.आप सबका धन्यवाद् . भविष्य में उत्कृष्ट रचनाये दे सकू यहीप्रयास होगा.
निशा
उम्दा रचनाएं हैं सभी. निशाजी को पहले न पढ़ पाने का अफसोस हो रहा है.
बहरहाल.. बधाई एवं दीप पर्व की शुभकामनाओं सहित...
- प्रदीप जिलवाने, खरगोन म.प्र.
Nisha Ji ki KavitaaoM me saMvedanshIlataa hai.Unnat bhavishy hetu shubhkaamnaayeM.
निशा जी की कवितायों में भरपूर संवेदना है -बस लिखती रहें ..
निशा जी की कविताओं में जीवन की गहराई और यर्थात का चित्रण है. कोटिशः बधाई.
डॉ. रत्ना वर्मा
www.udanti.com
Beautiful Ji. Keep it on ... ...
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