शनिवार, 10 अप्रैल 2010

कविता



अभिनव शुक्ल की दो कविताएं
हम भी वापस जाएंगे
आबादी से दूर,
घने सन्नाटे में,
निर्जन वन के पीछे वाली,
ऊँची एक पहाड़ी पर,
एक सुनहरी सी गौरैया,
अपने पंखों को फैलाकर,
गुमसुम बैठी सोच रही थी,
कल फिर मैं उड़ जाऊँगी,
पार करूँगी इस जंगल को.
वहाँ दूर जो महके जल की,
शीतल एक तलैया है,
उसका थोड़ा पानी पीकर,
पश्चिम को मुड़ जाऊँगी,
फिर वापस ना आऊँगी,
लेकिन पर्वत यहीं रहेगा,
मेरे सारे संगी साथी,
पत्ते शाखें और गिलहरी,
मिट्टी की यह सोंधी खुशबू,
छोड़ जाऊँगी अपने पीछे ....,

क्यों न इस ऊँचे पर्वत को,
अपने साथ उड़ा ले जाऊँ,
और चोंच में मिट्टी भरकर,
थोड़ी दूर उड़ी फिर वापस,
आ टीले पर बैठ गई .....।

हम भी उड़ने की चाहत में,
कितना कुछ तज आए हैं,
यादों की मिट्टी से आखिर,
कब तक दिल बहलाएँगे,
वह दिन आएगा जब वापस,
फिर पर्वत को जाएँगे,
आबादी से दूर,घने सन्नाटे में।
******
चेहरा
अब कोई इंतजाम चलता नहीं,
एक चेहरे से काम चलता नहीं,
घर का चेहरा,
बाहर का चेहरा,
दफ्तर का चेहरा,
चेहरा दोस्तों के बीच वाला,
चेहरा रिश्तेदारों वाला,
चेहरा कमाई का,
चेहरा गंवाई का.
इस प्रश्न पर जीवन मौन सा है,
कि मेरा असली चेहरा कौन सा है?
मैं चाहता हूँ,
रखना चेहरा एक,
धुला पुछा,
मन से नेक,
चेहरा जो हँसी में हँस सके,
ग़म में आसुओं में धंस सके,
चेहरा वैसा,
पार्क में खेलते हुए बच्चों का है जैसा,
या फिर किसी काम करते किसान का है जैसा,
निश्चल, निर्मल.

चेहरा मुस्कान वाला,
चेहरा इंसान वाला,
चेहरा शत प्रतिशत हिन्दुस्तान वाला.
मेरे एक मित्र नें मुझे बतलाया है,
कि एक चेहरा उन्होंने विदेश से मंगवाया है,
बड़प्पन का गर्वीला,
चमाचम चेहरा,
धन चन्द्रिका से लबालब,
दमादम चेहरा,
पर यह चेहरा भी कितने दिन टिकेगा,
चार दिन में शहर के फुटपाथ कि रेड़ी पर बिकेगा,
चेहरा ऐसा हो जो चले,
न आग से झुलसे,
न पानी में गले,
बेकार में ही बात इतनी बढ़ाई है,
असल में ये सब अपने अपने अस्तित्व कि लड़ाई
है,
उस अस्तित्व कि,
जो अभी है, अभी नही,
बात गहरी है,
तभी तो यहाँ आकर ठहरी है.
*****

प्रकाशन: "अभिनव अनुभूतियाँ" - काव्य संग्रह एवं "हास्य दर्शन" - (आडियो सीडी श्रंखला)
ब्लॉग: http://ninaaad.blogspot.com
संपर्क: shukla_abhinav@yahoo.com ,
फोन. 001-206-694-3353

9 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

ABHINAV SHUKLA KEE DONO KAVITAAYEN
BADE MANOYOG SE PADH GAYAA HOON.
VHAVABHIVYAKTI SUNDAR AUR SAHAJ
HAI.KAVITAAON MEIN PRAVAAH HAI.
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा…

अभिनव की कविताओं के इस तेवर से तो मैं अब तक अपरिचित ही था. कितना अच्छा हो कि वे इस तरफ ज़्यादा ध्यान दें.

अमरेन्द्र: ने कहा…

अच्छी लगी कवितायें - सरल, सरस और संतुलित ।

- अमरेन्द्र

सुभाष नीरव ने कहा…

अभिनव शुक्ल की दोनों कविताएं पठनीय हैं और अपनी ओर खींचती हैं।

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

सम्‍भावनाओं से भरे कवि हैं अभिनव. बधाई.

सुरेश यादव ने कहा…

अभिनव शुक्ल की कवितएं सुन्दर हैं बधाई।चन्देल जी को धन्यवाद्।

ashok andrey ने कहा…

abhinav jee ki dono kavitaen padeen bahut hee saral dhang se apni baat keh gaye yahi inn kavitaon ki khoobi hai badhai deta hoon oonhen

sunil gajjani ने कहा…

अभिनव जी को उमड़ी कविताओं के लिए साधुवाद , चंदेल जी का भी आभार की हमे ऐसी रचनाये पढने का सौभगा मिला .
पुनः बधाई

बेनामी ने कहा…

गहरी अनुभूतियों से भरी, पठनीय कवितायें !
इला