शनिवार, 15 मई 2010

कविता



डॉ० मधु संधु की दो कविताएं
बाजारवाद
ईश्वरीय सत्ता की तरह
सर्वव्यापक है बाजारवाद
देशकालातीत है बाजारवाद।
क्या तब नहीं था बाजारवाद ?
जब
कानन-कन्या शकुन्तला
सम्राट दुष्यन्त की तरफ आकर्षित हुई
और गंधर्व विवाह कर चल पड़ी
मदमस्त विहार-गृह में प्रियतम संग
अथवा
जब पति के स्वर्गगमन के साथ-साथ
मीराबाई को
राज महलों से
लेना पड़ा था प्रवास।
क्या तब नहीं था बाजारवाद ?
जब महमूद गजनवी ने
सोमनाथ के
मंदिर को लूटा था
अथवा
तेल के कुओं के देशों ने
इसी अपराध में
नित्य नए
विस्फोटों को झेला है/था।
कैकेयी का बाजारवाद
सत्ता हथियाता है।
दुर्योधन का बाजारवाद
वचनबद्धता की नीति से
आंखें चुराता है।
अपने पड़ोसी पाक का बाजारवाद
सत्ता बचाता है।
बाजारवाद तो जीने नहीं देता
अनासक्त महात्माओं को भी
सभी के सभी बन गये हैं
स्वास्थ्य-पंडित
फार्मेसियां, योगाश्रम उनकी पहचान हैं।
एक बाजारवाद मेरे घर में भी है
जहां
रिश्ते हो गए हैं
बैंक अकाउंट
कुछ डालते निकालते रहिए
वरना हो सकते हैं मृतप्रायः।
*****
लड़कियां
कैरियर की खोज में
दौड़ती भागती लड़कियां
बसों, आटो गाडि़यों में
धक्कम-धक्का होती लड़कियां
मुस्काती, सकुचाती, बातें करती
आगे, आगे और आगे जाती लड़कियां।
फर्क नहीं है
मेरे तेरे और उनमें
पूरे विश्व की परिक्रमा के बाद भी
किसी राहुल या शोएब की ओर
मुड़ती
उनके अवैधनिक कार्यों के कारण
पुलिस/ टी वी चैनल्स से
श्वेता या सान्या बन पंजे लड़ाती
लड़कियां।
शादी समझौता है
मां, नानी, पड़नानी का
यह टैग गले में बांध
घुटती अंसुआती लड़कियां।
मेरे देश की लड़कियां
तेरे देश की लड़कियां
छत की खोज में
पांव तले की जमीन को भी
खो रही लड़कियां।
****
डा. मधु संधु हिन्दी में एम. ए. पी एच. डी. हैं. पीएच. डी. का विषयः सप्तम दशक की हिंदी कहानी में महिलाओं का योगदान
सम्प्रति गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की बृहद शोध परियोजना की प्रिंसिपल इनवेस्टीगेटर(2010-2012)
सम्पर्क madhu_sd19@yahoo.co.in/ 9876251563
प्रकाशित साहित्यः
कहानी संग्रहः 1. नियति और अन्य कहानियां, दिल्ली, शब्द संसार,20012. आवाज का जादूगर, नेशनल, (प्रकाशनाधीन), कहानी संकलनः 3. कहानी श्रृंखला, दिल्ली, निर्मल, 2003, गद्य संकलन4. गद्य त्रायी, अमृतसर, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, 2007.
आलोचनात्मक एवं शोधपरक साहित्यः5. कहानीकार निर्मलवर्मा, दिल्ली, दिनमान, 1982 6. साठोत्तर महिला कहानीकार, दिल्ली, सन्मार्ग, 19847. कहानी कोश, (1951-1960) दिल्ली, भारतीय ग्रन्थम, 19928. महिला उपन्यासकार, दिल्ली, निर्मल, 20009. .हिन्दी लेखक कोश,(सहलेखिका) अमृतसर, गुरु नानक देव वि.वि., 200310. कहानी का समाजशास्त्रा, दिल्ली, निर्मल, 200511. कहानी कोश, (1991-2000) दिल्ली, नेशनल, 2009
सम्पादनः 12. प्राधिकृत (शोध पत्रिाका) अमृतसर, गुरु नानक देव वि.वि., 2001-04
समकालीन भारतीय साहित्य, हंस, गगनांचल, परिशोध, प्राधिकृत, वितस्ता, कथाक्रम, संचेतना, हरिगंधा, साहित्यकुंज, अभिव्यक्ति, अनुभूति, रचनाकार, परिषद पत्रिाका, हिन्दी अनुशीलन, पंजाब सौरभ, साक्षात्कार, युद्धरत आम आदमी, औरत, पंजाबी संस्कृति, शोध भारती, अनुवाद भारती, वागर्थ, मसि कागद, चन्द्रभागा संवाद, गर्भ नाल आदि पत्रिाकाओं में सौ के आसपास शोध पत्रा तथा सैंकड़ों आलेख, कहानियां, लघु कथाएं एवं कविताएं प्रकाशित.
पच्चास से अधिक शोध प्रबन्धों एवं शोध अणुबन्धों का निर्देशन।

7 टिप्‍पणियां:

सुरेश यादव ने कहा…

डा.मधु संधु की दोनों ही कवितायेँ अपने समय से सवाल करती हैं औरसंवेदना की अलग ज़मीन का विस्तार भी करती हैं. बधाई.चंदेल जी को धन्यवाद.

ashok andrey ने कहा…

Dr Madhu jee ki kavita apne aas-paas ke pure maahol me sawaal daagti hai, baajar vaad ke naam par jo hum sbke sammukh gath rahaa hai. behad samvedan sheel kavitaa hai,tabhi to rishte bhee bank account ho gaye hain, bahut khubsurat, badhai deta hoon iss sundar rachna ke liye

अमरेन्द्र: ने कहा…

सामयिक, सटीक और संवेदनशील कवितायें !
- अमरेन्द्र

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

डॉ. मधु संधु की दोनों कवितायें अच्‍छी हैं. पहली कविता में बाजारवाद की जड़ों को अतीत में खंगालने की कोशिश है और दूसरी वर्तमान में लड़कियों की स्थिति और नियति पर चिंतापरक कविता है.
संधु जी से मिलाने के लिए आभार.

PRAN SHARMA ने कहा…

MADHU SANDHU KEE DONO KAVITAAYEN
POORA PRABHAV CHHOTEE HAIN.SUNDAR
AUR SAHAJ BHAVABHIVYAKTI KE LIYE
UNHEN BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.

बेनामी ने कहा…

छत की खोज में
पांव तले की जमीन को भी
खो रही लड़कियां।
सटीक अभिव्यक्ति!
इला

उमेश महादोषी ने कहा…

विद्यमान यथार्थ की प्रभावी अभिव्यक्ति है दोनों रचनाओं में ........