सोमवार, 26 मार्च 2012

संस्मरण

मित्रो,

पिछले दिनों मैंने महान रूसी लेखक लियो तोलस्तोय पर उनके रिश्तेदारों, मित्रों, लेखकों, रंगकर्मियों और शिष्यों द्वारा उन पर लिखे तीस संस्मरणों का अनुवाद किया था जो पुस्तक रूप में शीघ्र ही ’संवाद प्रकाशन’ मेरठ/मुम्बई से प्रकाश्य हैं. उनमें से कुछ संस्मरण मैं रचना समय के पाठकों के लिए धारावाहिक रूप से प्रस्तुत कर रहा हूं.
(चित्र में लियो तोलस्तोय मास्को से यास्नाया पोल्याना जाते हुए)

अकाल के दौरान लेव निकोलाएविच के साथ
तोल्स्तोय परिवार के साथ जान-पहचान
वेरा वेलीच्किना
(वेरा मिखाइलोव्ना वेलिच्किना (1868-1918 ) एक फीजिशियन , क्रान्ति के बाद ‘कालेजियम आफ दि पीपुल्स कमिसारियत आफ हेल्थ‘ की सदस्य , कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य और वी.डी. बोंच-ब्रुयेविच की पत्नी थी )

अनुवाद - रूपसिंह चन्देल
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1891-92 का प्रचण्ड जाड़ा प्रारंभ हो गया था . काली-मिट्टी क्षेत्र के कोई छत्तीस गुबेर्निया अकाल से पीड़ित थे . अकाल अपेक्षित था. मास्को में सभी प्रकार के मंडल और समितियों का गठन फण्ड एकत्र करने और अकाल पीड़ित किसानों की सहायता करने के लिए किया गया . मास्को समाज मानो लंबी नींद से जागा था . सभी उत्तेजित थे . सभी के पास कुछ करने के लिए था और वे प्रसन्न प्रतीत हो रहे थे . आप जहां जाते लोगों को केवल अकाल के विषय में ही चर्चा करते सुनते . मैं , भी जागी , और मास्को से प्रस्थान कर वहां जाने का निर्णय किया जहां लोग इसप्रकार भयंकर विपत्ति में थे . मुझे यह बोध नहीं था कि मैं उनके लिए क्या सहायता कर सकती थी . मेरे पास कोई साधन भी नहीं थे . लेकिन मैंने अनुभव किया कि मैं मास्को के गर्म कमरे में रुकी नहीं रह सकती, इसलिए मुझे वहां जाना चाहिए जहां लोगों के कष्टों में प्रतिदिन भयानक वृद्धि हो रही थी . लेकिन , मैं , एक नौजवान लड़की , जो कभी अपने परिवार से अलग नहीं हुई थी और उसके बिना रहने की कल्पना नहीं कर सकती थी , यह सब कैसे कर पायेगी ?
एक परिचित ने एक दिन मुझसे कहा कि तोल्स्तोय ने अकाल पीड़ित किसानों के लिए ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ स्थापित किए हैं और उन्हें चलाने के लिए उन्हें लोगों की आवश्यकता है . उसने मुझे एक महिला का पता दिया और कहा कि वह मुझे अपेक्षित जानकारी दे सकती हैं . घर लौटकर मैंने अपनी मां को बताया . मेरी भावना की कद्र करते हुए मां ने मेरे अकाल क्षेत्र में जाने पर कोई आपत्ति नहीं की . बल्कि उन्होंने मुझे जाने की सलाह दी . मुझे जो पता दिया गया था वहां मैंने आवेदन किया . वहां से मुझे मार्गरिटा अलेक्जैंद्रोव्ना सबाश्निकोवा से बात करने के लिए भेजा गया . जिस मकान में वह रहती थीं उसे देख मुझ पर बुरा प्रभाव पड़ा , जो बाद में गहराता गया . वह मुझसे ऐसे मिलीं मानो मैं उनसे सिफारिश चाहती थी . यह कहकर कि उनके पास पर्याप्त लोग हैं , वह बोलीं कि मैं अपना नाम और पता उनके पास छोड़ दूं और यदि कुछ संभावना हुई तो वह मुझे सूचित कर देंगी. निसंदेह कुछ नहीं किया गया और उन्होंने जिसप्रकार से मेरा ठण्डा स्वागत किया उसने मुझमें तोल्स्तोय के संपर्क में आने की मेरी इच्छा को समाप्त कर दिया था . फिर भी मां ने कहा कि मैं सीधे उन्हें आवेदन करूं .
पहले इस विचार से मैं स्तब्ध हुई कि मैं लोंगो के पास अनिमंत्रित कैसे जा सकती हूं ? उन पर जबर्दश्ती , विशेषरूप से तोल्स्तोय जैसे व्यक्ति पर अपने को थोप दूं ? मैं इस विचार से भयभीत हुई कि वे सोच सकते थे कि केवल उनसे जान-पहचान बनाने के लिए मैं वैसा कर रही थी . एक बार मेरा स्वागत अनुग्रह प्राप्त करने वाले व्यक्ति के रूप में किया जा चुका था , और एक बार ही पर्याप्त था . मुझे तोल्स्तोय के विचारों से , तब जैसा मैंने समझा था , कोई सहानुभूति नहीं थी और उन्हें और बेहतर समझने की लालसा भी न थी . इसलिए तोल्स्तोय को मेरे आवेदन करने का कोई कारण नहीं था. मैं कहीं अन्यत्र आवेदन करना बेहतर समझती थी , लेकिन कहां करती ?
अंत में मां ने मुझे उनके पास जाने के लिए राजी कर लिया. इससे मेरी स्वाभाविक सकुचाहट की आदत पर मुझे विजय प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयत्न करना पड़ा , लेकिन दिसम्बर , 1891 के अंत में मैंने वह किया .
सोफिया अन्द्रेएव्ना ने मेरा स्वागत किया . उनकी दृष्टि तटस्थ , विद्वेषी थी . बाद में उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे दुर्बल शरीर को देखकर उन्होने यह माना था कि मैं कोई गंभीर सहयोग नहीं कर सकती और उनके परिवार पर बोझ ही बनूंगी . फिर भी , उन्होंने मुझे पूरी तरह से हताश नहीं किया था . उन्होंने कहा कि मैं 3 जनवरी को पुनः आऊं जब उनके पति और उनकी बेटी देहात से वापस आयेंगे. वह स्वयं सुनिश्चितरूप से कुछ नहीं कह सकती थीं क्योंकि उन्हें यह सूचना नहीं थी कि स्थिति कैसी थी. 3 जनवरी को मैं पुनः वहां गयी . इस बार तात्याना ल्वोव्ना ने ऊपर के एक बड़े कमरे में मेरा स्वागत किया . उनकी आवाज भी रूखी थी , हांलाकि हमारी बातचीत देर तक हुई थी. ‘‘ हमने सत्तर ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ खोले हैं, ‘‘ उन्होंने कहा , ‘‘ धनाभाव के कारण हम और अधिक नहीं खोल सकते और उन्हें चलाने वाले लोग पर्याप्त हैं. इसके अतिरिक्त असंख्य प्रार्थना पत्र आये हुए हैं . सभी अकाल क्षेत्र में जाना चाहते हैं .‘‘
मैंने कुछ नहीं कहा . निश्चित था कि मामला समाप्त हो गया था . यदि असंख्य लोग आवेदन कर रहे थे , तब उन्हें एक अनजान लड़की को बिना किसी अनुशंसा और इस बात का किचिंत भी ज्ञान न रखने वाली कि उसे क्या करना होगा , उन्हें क्यों लेना चाहिए ?
‘‘तथापि‘‘ अप्रत्याशितरूप से तात्याना ने कहा , ‘‘तीन दिन बाद आओ . तब तक स्थितियां स्पष्ट हो जायेंगी . संभवतः तुम्हारे करने के लिए हम तब कुछ खोज लेंगे.‘‘
मैं यह अनुभव करती हुई वापस लौटी कि मेरा ‘केस‘ निराशाजनक था .
फिर भी , तीन दिन बाद खमाव्दिचेस्की स्ट्रीट के दरवाजा सं. 15 के सामने मैं पुनः खड़ी थी . बाद में कितनी ही बार मैं उस स्थान पर खड़ी हुई , और उसी घबड़ाहट के साथ . इस बार मैंने अभी घण्टी बजायी ही थी कि दरवाजा खुला और सफेद भेड़ की खाल की जैकेट पहने लंबे भारी-भरकम व्यक्ति को मैंने खड़ा पाया , जिन्होंने मुझसे पूछा:
‘‘क्या है ?‘‘
मैंने तत्काल उन्हें पहचान लिया और उत्तर देने के बजाय मैंने कहा:
‘‘क्या आप लेव निकोलाएविच हैं ?‘‘
‘‘हां , मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं ?‘‘
कुछ असम्बद्ध वाक्यांश बुदबुदाते हुए मैंने अपने आने का उद्देश्य बताया .
‘‘मैं जानता हूं . मेरी बेटी ने मुझे बताया था . तुम्हें ठण्ड लग रही है ?‘‘
मैंने कहा मुझे ठण्ड नहीं लग रही .
‘‘अंदर जाओ और मेरी प्रतीक्षा करो , यदि कर पाओ , मैं जल्दी ही लौट आऊंगा . यदि प्रतीक्षा न कर पाओ , मेरे साथ आओ , यदि रास्ता तुम्हारे रास्ते से अलग नहीं है, और मैं तुम्हें स्पष्ट करूंगा कि स्थिति कैसी है .‘’
हम चल पड़े . मुझे आश्चर्य हुआ . लेव निकोलाएविच ने इस प्रकार मेरी ओर देखा मानों मेरा चयन कर लिया गया था और मुझे क्या कार्य करना होगा मुझे समझाने लगे .
‘‘पिछली रात एक तुलना मेरे दिमाग में आयी . हम उन लोंगो की तरह हैं जो छोटी बोतल बड़े वेसिन से भरना पसंद करते हैं . द्रव्य का एक बूंद भी बिना नष्ट किये प्रत्येक बोतल को बिल्कुल ठीक-ठाक भरते हैं . यह एक कठिन काम है और प्रत्येक अलग बोतल भरने के लिए यह पूर्ण ध्यानाकर्षण की मांग करता है . अपने विषय में इस दृष्टि से देखो जब तुम वहां होगी . तुम कब जाने की सोच रही हो ? ‘‘ उन्होंने पूछा.
मैंने कहा यह उन पर है . मैं तो तुरंत जाने को तैयार हूं .
‘‘बहुत अच्छा . कल या परसों प्रस्थान कर दो और चीजों के विषय में मेरी बेटी से बात कर लो . वह तुम्हें बता देगी कि कैैसे जाना है . इस बीच हम तुम्हारे लिए आवश्यक कागजात प्राप्त कर लेंगे . ’’
हम अलग हो गए . मैंने इस प्रकार तुरंत सफलता का स्वप्न नहीं देखा था . यह स्पष्ट था कि नए ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ खोले जाने के साधन और अवसर थे अथवा नहीं , यह प्रश्न स्वयं लेव निकोलाएविच के समक्ष कभी प्रस्तुत नहीं किया गया .
अगले दिन 12 जनवरी थी , और माना जा रहा था कि परिवार तात्याना ल्वोव्ना का नाम दिन मनायेगा . मैंने अगले दिन उनसे पुनः मिलने जाने तक प्रतीक्षा की .
इस बार मुझे एक छोटे कमरे में बैठाया गया जो तोल्स्तोय की दूसरी-बड़ी बेटी मारिया ल्वोव्ना का था , जो मेरे प्रति बहुत ही सहृदय थी और उन्होंने सब कुछ स्पष्ट बताया .
‘‘तुमने कब जाने का निर्णय किया है ?‘‘ उन्होंने पूछा .
‘‘मैं आज भी जा सकती हूं .‘‘ मैंने कहा , ‘‘जितनी जल्दी उतना अच्छा .‘‘
‘‘मेरी प्यारी , क्या तुम हड़बड़ी में नहीं हो !‘‘ वह हंसी . ‘‘लेकिन यह अच्छा है . जब हम बहुत दूर हों तब यह बहुत अच्छी चीज होगी कि हमारे पास एक अतिरिक्त व्यक्ति हो . तुम अकेली नहीं होगी . मेरा भाई इंचार्ज है और क्या करना है वह बता देगा . हम उसके नाम पत्र दे देंगे . एक और लड़की , मोहक लड़की , एक डाक्टर की सहायक भी वहां है . मुझे पक्का विश्वास है कि तुम और वह ख्याति अर्जित करोगी . वह आयुर्विज्ञान की प्रैक्टिस कर रही है .‘‘
तभी लेव निकोलाएविच अंदर आये .
‘‘पापा‘‘ उनकी ओर मुड़ती हुई मारिया ल्वोव्ना बोली , ‘‘यह आज ही जाना चाहती है . हमें इल्या और यर्मोलाएव के नाम पत्र दे देना चाहिए .‘‘
‘‘निश्चित ही हमें दे देना चाहिए . तुम उन्हें लिखो . येर्मोलाएव से कहो कि वह इनके लिए उपयुक्त व्यवस्था करें.... बहुत ठण्ड है और उसे बहुत लंबी यात्रा करनी है . इल्या को मैं स्वयं लिखूंगा . हमने यर्मालाएव के पास बहुत-सी गर्म चीजें छोड़ रखी हैं .‘‘
वे मार्ग के लिए मेरे वस्त्रों के विषय में चर्चा कर रहे थे और मेरे छोटे डील-डौल पर हंस रहे थे . दो छोटे सुन्दर बालों वाले बच्चे दौड़ते हुए अंदर आए ... एक लड़का और एक लड़की और अपने पिता के ऊपर चढ़ गए . उन्होंने उनके बाल सहलाये और अन्यमनस्क भाव से उनके बकबक का उत्तर दिया .
अंततः आवश्यक पत्र और सलाह लेकर मैंने पिता और पुत्री से विदा ली .
‘‘हम जल्दी ही बेगीचेव्का में मिलेंगे .‘‘ विदा होते समय वे बोले .
गांव में मेरा आगमन
कुछ घण्टो बाद मैं पूर्णरूप से उदास ट्रेन में थी . पहले मैं कभी अपने परिवार से एक क्षण के लिए भी अलग नहीं हुई थी . तुला में मैंने तीसरे दर्जे के गंदे और भीड़भाड़ वाले डिब्बे में शिफ्ट कर लिया ( मुझे र्याज्स्क-व्याजेक्स्की रेलमार्ग से जाना चाहिए था ) . अंदर असह्य गर्मी थी और मखोर्का सिगरेट के धुंए से हवा भारी थी . अधिकांश यात्री किसान थे और ट्रेन के विलंब के बावजूद , प्रत्येक स्टेशन में नये यात्री डिब्बे में धुस रहे थे . मौसम बहुत ठण्डा था . यदि अधिक नहीं तो शून्य से 25 डिग्री सेंटीग्रेट से नीचे और हर बार स्टेशन पर ट्रेन के देर तक रुकने और दरवाजा खुलने पर बादलों में से दौड़ती ठण्डी हवा डिब्बे में घुस रही थी . मैं थकावट और मखोर्का के धुंए से व्याकुल थी , लेकिन बहुत प्रसन्न थी क्योंकि बहुत समय से इसके लिए लालायित थी . अपने परिवार से अलग होने का दुख अब तक समाप्त हो गया था . शेष मेरे सामने जो था उसका एक सुखद पूर्वानुमान था .
डिब्बे में मेरे पड़ोसियों ने पूछना प्रारंभ किया कि मैं कहां जा रही थी और किस उद्देश्य से . पहले मैं चुप रही , फिर जल्दी ही मैं उन्हें सब कुछ बता रही थी . मैं कहां जा रही थी और क्यों . मैंने क्या सुना और अखबारों में क्या पढ़ा था ! मैं नहीं जानती थी कि मैं तूला गुबेर्निया क्षेत्र से गुजर रही थी जो उतनी ही बुरी तरह अकाल प्रभावित था जितना वह स्थान जहां मैं जा रही थी . उस समय मैं डिब्बे के बीच में किसानों की भीड़ से घिरी बैठी थी , अधिकांश पुरुष , जो उत्सुकतापूर्वक , ध्यानपूर्वक और सहानुभूति के साथ जो कुछ मैं कह रही थी , सुन रहे थे . समय-समय पर मैं किसी को अपने एक पड़ोसी से यह कहते सुनती कि मेरे चेहरे की ओर धुंआ न फेंके ‘‘अथवा उसका सिर तुम्हारी तंबाकू से चकरा जायेगा .‘‘ अथवा भीड़ को चेतावनी देता कोई कहता कि मेरे चारों ओर अधिक दबाव न बनाएं . मैं मखोर्का अथवा अपनी थकान के प्रति अधिक चेतन न रही थी , क्योंकि मैं उन लागों के साथ स्वयं उल्लसित अनुभव कर रही थी जिनके साथ जीवन में पहली बार मैं सीधे संपर्क में आयी थी . मुझे किंचित भी स्मरण नहीं कि मैं , एक युवा , अनुभवहीन लड़की , ने उन क्षुधित दाढ़ीवाले लागों से क्या कहा था ! मुझे केवल इतना याद है कि किस अफसोस के साथ मैंने वह गर्म और भीड़भाड़ वाला डिब्बा छोड़ा था . जब मैं स्टेशन पर उतर रही थी मेरे पीछे मेरे लिए स्नेहशील शुभकामनाएं बोली गयीं और कई सशक्त हाथ मेरे बैग उतार कर लाए थे .
स्टेशन मास्टर मुझे एजेण्ट येर्मालायेव के पास ले गया , जिसके लिए मेरे पास तोल्स्तोय का पत्र था . डिब्बा , जिसने मुझे इतना सत्कारशील सम्मान दिया था , रेलवे लाइन पर घड़घड़ाता हुआ जा रहा था .
दो युवक स्टेशन पर मेरे सामने आ उपस्थित हुए थे . वे जागीर के मालिक रायेव्स्की के लड़के थे , जहां मैं जा रही थी और जो ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ का संघटनात्मक केन्द्र था . लड़के तूला जा रहे थे .
‘‘उत्तम‘‘ येर्मोलायेव बोले , ‘‘आप मेरे यहां रात बिताएं और सुबह यही घोड़े आपको बेगीचेव्का ले जाएंगे .‘‘
मैंने येर्मोलाएव के घर के बैठकखाने में सख्त सोफे पर रात बितायी . अगली सुबह उन्होंने मुझे नाश्ता करवाया और मेरी यात्रा की तैयारी की . मैं मात्र एक शहर निवासी थी और मुझे बिल्कुल जानकारी नहीं थी कि सर्दियों के मध्य में खेतों के बीच से जब यात्रा करनी हो तब अपने को कैसे तैयार करना चाहिए . हमें आगे चालीस वर्स्ट्स की यात्रा तय करनी थी . दिन ठण्डा था और धूप खिली हुई थी . येर्मोलायेव ने हालांकि अपेक्षाकृत अधिक सावधानी बरतते हुए मुझे इतने अधिक गर्म कपड़े ओढ़ाए कि मैं फर का एक निश्चल पुलिन्दा बन गयी थी .
जब उन्होंने फर का कंबल स्लेज पर बांध दिया , उन्होंने ड्राइवर को चेतावनी दी , ‘‘देखना युवा लेडी के साथ कुछ घटने न पाए . ‘‘
हम चल पड़े थे.
मैंने पहले कभी अकेले व्यापक बर्फ से ढके मैदानों के बीच से यात्रा नहीं की थी . शहर के , गर्म कमरों , मुलायम फर्नीचर और ढक्कनवाले लैम्पों के विचार पीछे छूट गए , और मैंने अपने को पूरी तरह नये जीवन के विचार के हवाले कर दिया था .
रास्ते में हमने कुछ गांव पार किये , लेकिन उन्हें देख मैं कितना आतंकित हुई थी ! मेरी जानकारी थी कि गांव जंगल क्षेत्र में बड़े शहरों के चारों ओर होते हैं , जहां अधिकांश घर लट्ठों के और कुछ धनी लागों के ईटों से बने होते हैं . यहां हमें वृक्ष-रहित मैदान में छोटी झोपड़ियों के छोटे समूह मिले जो ‘असम पत्थरों‘ से बनी हुई थीं और जिन पर पुआल की छाजन थी . उनमें जगह-जगह अंतराल था ( बाद में मुझे ज्ञात हुआ कि यह पुआल जानवरों को चारे के रूप में दिया जाता है ) . झोपड़ियों में चिमनी नहीं थीं . खुला चूल्हा बीच में था जिसका धुंआ छत में बने छेद से बाहर निकलता था . ‘मैं उन जैसी झोपड़ियों में काम करने जा रही हूं, मैंने स्वयं से कहा .’ मैं अपने विचारों में इतना तल्लीन थी कि गाड़ीवान से बात नहीं की . कुछ घण्टो तक चलने के बाद उसने चाबुक से कुछ दूरी की ओर संकेत किया और मेरी ओर मुड़कर बोला -
‘‘वह उधर गोर्की है . हम लगभग पहुंच गए .‘‘
बिल्कुल सच , हम हरी छतवाले एक मंजिला मकान तक गये और दरवाजे के ठीक सामने जा रुके .
घर के अंदर से एक नौकर की आवाज सुनाई दी .
‘‘ईश्वर ने हमारे लिए एक युवा लेडी भेजी है .‘‘
हाल में कोई मेरे स्वागत के लिए आया , और उसने मेरा फर खोलना प्रारंभ किया , जो सहज कार्य नहीं था .
अंततः जब मैं अपने फरों और कोटों से मुक्त हुई , मैंने बताया कि मैं कौन हूं और मैं किसलिए वहां आई हूं . मैंने यह भी बताया कि मेरे पास इल्या ल्वोविच के लिए पत्र है . लंबे ,दुबले , भूरे बालों वाले नौजवान ने बताया कि वही इल्या ल्वोविच हैं और पत्र ले लिया . मुझे डिनर के लिए बुलाया गया .
घर को लेकर मेरी पहली राय निश्चितरूप से अच्छी नहीं थी . गर्म आरामदायक अपने घर के बाद , यहां सबकुछ गंदा और अनाकर्षक प्रतीत हो रहा था . वहां बहुत कमरे थे , लेकिन कुछ समय तक मैं समझ नहीं सकी कि उनमें से किसमें मैं एकांतवास कर सकती थी . सभी फेल्ट बूट पहने हुए थे , जिसका अर्थ था कि फर्श ठण्डा था .
डिनर के बाद येलेना मिखाइलोव्ना ( उस युवती का नाम जिसके विषय में मारिया ल्वोव्ना ने बताया था ) मुझे मेरे कमरे में ले गईं , फिर अपने कमरे में , जहां उनके पास दवाओं का छोटा-सा भंडार था. उसके बाद उन्होंने मुझे अकेले छोड़ दिया जिससे मैं स्वयं को और अपने सामान को व्यवस्थित कर सकूं .
हे ईश्वर , मैंने कैसा अकेलापन अनूभव किया ! मुझे नहीं मालूम था कि किसी चीज को कैसे व्यवस्थित करके रखूं . यह भी नहीं मालूम था कि कोई चीज कहां थी , यहां तक कि स्नान करने के लिए पानी कहां था ! सभी नौकर पुरुष थे... दूसरे शब्दों में सब कुछ मुझे ही करना था . मैं किसी भी व्यक्ति को नहीं जानती थी और मैंने अनुभव किया कि हममें बहुत कम समानता थी . मैं अपरिचित अप्रीतिकर कमरे में बच्चों की तरह गृहासक्ति से इतना ग्रस्त हुई कि अंततः मैं फूट-फूटकर रो पड़ी . इससे मैंने हल्का अनभव किया और कुछ देर रोने के बाद मैं इल्या ल्वोविच के पास गयी और कहा कि वह मुझे करने के लिए कुछ काम दें . वह येलेना मिखाइलोव्ना के साथ बातचीत में डूबे हुए थे , और मेरा अनुरोध सुनते ही वे दोनों हंस पड़े थे .
‘‘अभी-अभी आयी हो और कहती हो कि काम सौंप दिया जाये . इस समय करने के लिए कुछ भी नहीं है . ‘‘
कुछ भी नहीं ? मैं निश्चित ही उदासीन दिखी होऊंगी , क्योंकि येलेना ने त्वरितता से कहा ,‘‘जब सपर का समय होगा तब मैं तुम्हें दूसरे गांव में ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ ले जाऊंगी . तब तक आराम करो .‘‘
इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता था कि मैं शाम तक प्रतीक्षा करती .
कार्यारंभ
पहला ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ मैंने देखा . उसने मुझपर बहुत अधिक प्रभाव डाला . यह भी एक ‘ब्लैक हीटेट‘ झोपड़ी में स्थापित था . उस जिले की अधिकांश झोपड़ियां उसी प्रकार की थीं . उनके अंदर मैं पहले कभी नहीं गई थी . मुझे वह घिनावनी और अंधकारपूर्ण मिली . धुंए से उसकी दीवारें काली पड़ चुकी थीं. यह छोटी और धुंए की बदबू और लोंगो से भरी हुई थी .
झुककर नमस्कार करते हुए हमारा स्वागत किया गया , और कोयले की भांति काली दाढ़ी ,काली आंखों और अत्यंत प्रसन्न चेहरे वाला एक मुज़िक स्वादिष्ट काली ब्रेड ,जो ओवन से ताजी निकली होने के कारण अभी भी गर्म थी , से भरी टोकरी हमारे पास लेकर आया . हमने ब्रेड और सूप का परीक्षण किया , जिसे सभी हमारे लिए लेकर रुके हुए थे . हमने उसी के चम्मच से उसका स्वाद लिया . अब सभी लोग बैठ गये . गर्म धुंआयी छोटी झोपड़ी के अंदर सुखद हवा आयी . घर की मालकिन देखने में बहुत ही सौम्य , विनम्र और शिष्ट थी कि जब हम विदा होने लगे मुझे अफसोस हुआ .
वापस लौटते समय मैंने अपने साथी से कहा कि मालिक लोग बहुत खुशमिजाज प्रतीत होते हैं .
‘‘हां‘‘ उन्होंने उत्तर दिया , ‘‘लेकिन अपने सौम्य स्वभाव के बावजूद वह तेज है .‘‘
मेरे लिए इन शब्दों का अधिक अर्थ न था .
अगले दिन मैंने पाया कि मेरे करने के लिए कुछ था . एक पड़ोसी गांव गाई में ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ को लेकर कुछ भ्रम उत्पन्न हो गया था और इल्या ल्वोविच ने येलेना मिखाइलोव्ना से कहा कि किसी को उसे देखने जाना है , लेकिन भेजे जाने के लिए कोई नहीं था . मैंने सुना और अपनी सेवा प्रस्तुत की .
‘‘लेकिन तुमने अभी तक काम को समझा नहीं है . और तुम्हे बिना गाड़ीवान के जाना होगा . हमारे पास कोई अतिरिक्त व्यक्ति नहीं है .‘‘
मैंने उनसे कहा कि मुझे रास्ता दिखा दें और बोली कि पूछती हुई आगे मैं रास्ता पा लूंगी . जहां तक स्लेज का प्रश्न है , मैं स्वयं उसे हांक लूंगी .
इल्या ल्वोविच ने मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया . उन्होंने एक बड़ी स्लेज पर घोड़े जोते . इस प्रकार की स्लेज पर मैंने कभी यात्रा नहीं की थी . मुझे बैठने की सुविधाजनक स्थिति नहीं मिली , लेकिन इससे मैं चिन्तित नहीं हुई . मैंने खड़े होकर घोड़ों को हांका .
संध्या उतर रही थी और हल्की हवा बहने लगी थी . गांव नजदीक था और मुझे किंचित भी संदेह नहीं था , बल्कि विश्वास था कि मैंने जिस कार्य का भार अपने पर लिया था उसे पूरा कर सकूंगी .
जल्दी ही मैं पहुंच गई और ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ भी मुझे मिल गया , जहां लोग रात के भोजन के लिए एकत्रित थे . इस पहले स्वतंत्र कार्य ने सच मुझे आनंददायक क्षण प्रदान किए . यहां भीड़-भाड़ वाली झोपड़ी में मैंने तत्काल घर जैसा महसूस किया . सच , पहले वे जो बोले मैं बहुत कम समझ पायी , लेकिन फिर जो कहा गया उसे मैंने ध्यानपूर्वक सुना , फिर उनके साथ मामले पर विचार-विमर्श किया . जब वहां से चली मैं प्रसन्न और संतुष्ट थी .
जब मैं वापस लौटी अंधेरा हो गया था . मैंने पाया कि सभी मेरे लिए चिन्तित थे, और एक सज्जन ने, जो मेरी अनुपस्थिति में आए थे अपने कोचवान को मुझे देखने के लिए भेजा था . निःसंदेह मार्ग के खराब ज्ञान के कारण मैं उसे भूल गयी थी .
अगले कुछ दिनों के दौरान मैंने येलेना मिखाइलोव्ना की उनकी दवाओं के काम में सहायता की . परिश्रमपूर्वक पाउडर मापती जिसे कफ पीड़ित बच्चों को दिया जाता जो बड़ी संख्या में घर के हाॅल में इलाज के लिए आते थे .
क्या करना है यह मैंने थोड़ा-थोड़ा सीख लिया . मुझे वे छोटे कार्य याद नहीं जो मैंने किये थे , क्योंकि सब कुछ शायद उस समय इतना अनिश्चित था और मुझे किसी ऐसे बड़े कार्य के लिए बुलाया भी नहीं गया था जो कोई बड़ा प्रभाव छोड़ता . हम दोस्ताना और सहयोगी भाव से कार्य कर रहे थे . येलेना मिखाइलोव्ना अथक मरीजों का इलाज करती थीं . मैं कभी-कभी बुलाने पर उनके साथ जाती और उनकी सहायता करने का प्रयत्न करती थी .
उस समय लगभग सत्तर अथवा अस्सी ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ थे , लेकिन उनमें से कुछ दूर-दराज गांवों में थे और दूसरे सहायकों द्वारा संचालित थे , जिनसे मैं अब तक नहीं मिली थी . ‘सार्वजनिक भोज कक्षों‘ की योजना सबसे पहले तोल्स्तोय द्वारा नहीं चलायी गयी थी , बल्कि उनके एक अच्छे मित्र इवान इवानोविच रायेव्स्की द्वारा चलायी गयी थी , जिन्होंने अपने निजी धन से पहले छः ‘सार्वजनिक भोज कक्ष‘ खोले थे , जिन्हें ‘‘अनाथ आश्रम‘‘ कहा जाता था . शरद ऋतु में तोल्स्तोय ने इस सम्पूर्ण क्षेत्र की , जो उस समय अकाल का केन्द्र था , स्वयं कार्य करने की वास्तविक स्थिति से परिचित होने के लिए यात्रा की थी , और अस्थायीरूप से मकान लेने का निर्णय किया था . तथापि , वह यह सब नवम्बर के प्रारंभ में कर पाने में सफल हो पाये थे , जब इस क्षेत्र के समाचार अधिक से अधिक भयप्रद हो गये थे . वह और उनकी दो बेटियां सोफिया अन्द्रेयेव्ना द्वारा दिया गया धन लेकर पीड़ितों को भोजन करवाने और देने हेतु ‘‘ईश्वर की इच्छा की पूर्ति के लिए ‘‘, जैसा कि वह कहते थे , इवान इवानोविच रायेव्स्की के यहां पहुंचे थे .
तोल्स्तोय के पहुंचने के बाद जल्दी ही रायेव्स्की गंभीर रूप से बीमार हुए थे और सब कुछ निकोलाएविच तोल्स्तोय के हाथों सौंपकर मर गये थे , जिन्होने योजना को तब तक आगे बढ़ाया था जब तक वह बहुत बड़े आयाम तक नहीं पहुंच गयी थी . सोफिया अन्द्रेएव्ना ने तब सहायतार्थ एक अपील लिखी थी जो रस्कीये वेदोमोस्ती में प्रकाशित हुई जिससे पैसे , आनाज और कपड़ों के दान की बाढ़ आ गयी थी .
जमींदार के पड़ोसी फिलोसोफोव परिवार ने इसीप्रकार की योजना हाथ में ली , लेकिन बहुत ही छोटे स्तर पर . जब मैं पहले गांव में पहुंची मुझे एक बहुत युवा लेकिन ओजस्वी और समर्थ लड़की नतालिया इवानोव्ना मिली , जो अपनी जागीर में रहती थी . मैंने जल्दी ही उससे परिचय कर लिया . वह एक छोटे-से घर में अकेली रहती थी जहां क्रमशः हम जो पीड़ितों की सहायता के लिए वहां एकत्रित हुए थे लगातार इकट्ठा होते थे . मैं अचंभित थी कि वह बिल्कुल अकेली रहती थी , लेकिन बाद में पता चला कि जागीर का नौकर उसका समर्पित सहायक था .
एक सुहावनी सुबह अधिक दूर जिलों में काम करने वाले स्वयं सेवक हमारे घर आये और मुझे यह जानकर आश्चर्य और प्रसन्नता हुई कि उनके साथ एक उम्रदराज मित्र , एम.ए. नावोसेलोव थे . मैं उन्हें बचपन से जानती थी , और मेरे लिए , जो अपने , नये परिचितों के साथ अकेला अनुभव करती थी , एक परिचित चेहरा देख सुखद लगा था .
‘‘हमारी शांत नन्हीं मित्र कैसी इतरा रही है !‘‘ येलेना मिखाइलोव्ना चिल्लायी , ‘‘देखो इसकी आंखें कैसी चमक रही हैं ? ‘‘ उस क्षण से मैं अपने सहयागियों के साथ अधिक सहज हो गयी थी और हमारे संबन्ध निकटतम हो गये थे .
और इस प्रकार , तोल्स्तोय के पहुंचने से पहले मैंने बेगीचेव्का में दो सप्ताह व्यतीत किये . जो कुछ करना था , वह सीख लिया था और अपने सहयागियों के साथ घर जैसा अनुभव करने लगी थी .
तोल्स्तोय का आगमन
कार्य का संघटन और कपड़ों का वितरण
जनवरी के अंत में हमें बताया गया कि दूसरे तोल्स्तोय पहुंचने वाले थे . इस समय तक इल्या ल्वोविच अपनी पत्नी और परिवार के लिए गृहासक्त हो चुके थे और यह उनके वापस जाने के लिए सुखद अवसर था . लेकिन शेष हम इस समाचार से व्यग्र थे . निःसंदेह इसका अर्थ था कि हमें निश्चित ही अपने जीवन के रंग-ढंग बदलने थे और अधिक गंभीर होना था . इल्या ल्वोविच कुछ उदासीन थे . उन्होंने येलेना मिखाइलोव्ना से मजाकिया स्वर में कहा कि वह उनकी रोवान शराब की बोतल अपनी दवाओं के बीच छुपा दें. वह उन पर हंसी और उनसे पूछा कि वह बताएं कि उनके पिता को क्या पसंद था . मुझे ध्यान नहीं कि किस परिवर्तन की हम अपेक्षा कर रहे थे , लेकिन मैं बिल्कुल कुछ नहीं चाहती थी . मुझे अपने मित्रवत कामों में व्यवधान और खाली समय में हमने जो अच्छा वक्त बिताया था उसके छूट जाने का अफसोस हो रहा था .
अंततः वे पहुंच गए थे . सोफिया अंद्रेएव्ना अपने पति और बेटियों के साथ आयीं थीं . मैं अत्यधिक संकुचित थी कि मैंने लेव निकालाएविच की ओर नहीं देखा . लेकिन मारिया ल्वोव्ना आश्चर्यजनक रूप से भली थीं - कृपालु और उत्साही और जो कार्य हम कर रहे थे उसकी अनिवार्यता और महत्व को समझनेवाली थीं . मैंने इस बार उन्हें मास्को में मिलने की अपेक्षा अधिक पसंद किया . अत्यंत सहानुभूति के साथ उन्होंने जानना चाहा कि मेरा कार्य कैसा चल रहा था और क्या काम में मुझे कोई परेशानी है . मैंने तत्काल अनुभव किया कि वहां कोई अच्छा और सच्चा मित्र था .
तोल्स्तोय के पहुंचने के बाद हमारा कार्य सुव्यवस्थित ढंग से होने लगा था . प्रतिदिन सुबह सात बजे से पहले हम उठ जाते थे . उस समय तक हाल में अर्जीदारों की भीड़ एकत्रित हो जाती थी . यदि हमें उठने में विलंब होता लेव निकोलाएविच हमारे दरवाजे खटखटा देते थे . हमारी सुबह उन अर्जीदारों के आवेदन सुनते हुए व्यतीत होती थी . बाद में हममें से एक ड्यूटी छोड़कर घर चला जाता . शेष लेव निकोलाएविच के निर्देश पाकर गांवों में घूमने जाते . उन्हें काम के प्रत्येक पक्ष से अवगत करवाना होता . हमें छोटी-छोटी बातें याद रखनी होतीं , और हमारे लिए यह जानना आवश्यक होता कि हमें कहां जाना चाहिए और क्या करना चाहिए . लेकिन हाल में होने वाला साक्षात्कार सदैव उन्हें अशांत कर देता और हमारा प्रयत्न होता कि हम उन्हें उनके वहां पहुंचने से पहले समाप्त कर दें जिससे वह सुबह का समय शांतिपूर्वक अपने लेखन को दे सकें . जब हम ऐसा कर पाने में सफल होते वह अच्छा अनुभव करते क्योंकि वह बहुत सुबह उठ जाते थे और किसानों का प्रतीक्षा करना उन्हें बर्दाश्त नहीं होता था .
वास्तविकता यह थी कि हाल का साक्षात्कार हमारे कार्य का सबसे निराशाजनक पक्ष था . बहुत सुबह से ही हाल हर प्रकार के आवेदकों से ठसाठस भर जाता था . चीजों की तह तक पहुंचना बहुत कठिन होता था . हमें गांवों में हर मामले की अलग से जांच करने के लिए जाना पड़ता था . अपने निवेदनों के प्रभाव को भावानात्मक चरम तक पहुंचाने के लिए किसान नाटकीय दृश्य का सहारा लेते थे . लेव निकोलाएविच उनका अपने सामने घुटनों के बल गिरने से निरंतर अवमानित अनुभव करते थे . एक दिन जब एक किसान ने ऐसा किया लेव निकोलाएविच भी उसके बगल में घुटनों के बल झुक गए .
‘‘बहुत अच्छा , यदि आपको यह उचित लगता है तब हम इसी प्रकार बात करेंगे .‘‘ उसके बाद घबड़ाकर वह किसान उठ खड़ा हुआ था .
एक बार एक महिला उनके सामने दण्डवत पड़ गयी और इसप्रकार अण्ड-बण्ड बोलती हुई विलाप करने लगी कि लेव निकोलाएविच उसका अनुरोध समझने में असमर्थ रहे . ज्ञात हुआ कि वह उनसे कह रही थी कि उसके बेटे का नाम उस सूची से हटा दिया जाये जिन्हें सार्वजनिक भोजन कक्ष में भोजन करवाया जाता था . लेव निकोलायेविच अत्यधिक आश्चर्यचकित हुए . अधिकांश अनुरोध इसके विपरीत होते थे .
‘‘मेरा अविस्मरणीय प्राण खो जाएगा .’’ महिला बोली , ‘‘घर में हमारे खाने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन तब भी मैं अपने बच्चे को शैतान के लिए कुर्बान नहीं करूंगी .’’
मामला यह था कि पादरी अपने इलाकों में जाकर लोंगो को चेतावनी दे रहे थे कि वे तोल्स्तोय की सहायता स्वीकार न करें क्योंकि वह शैतान के एजेण्ट हैं .
‘‘तुम सोचो क्या शैतान विपत्ति के रूप में प्रकट हुआ है !’’ वे कहते . ‘‘ओह , नहीं . वह सहायता के रूप में भूखों को ब्रेड दान कर रहा हैं . लेकिन उनका दुर्भाग्य जो प्रलोभन के वशीभूत हो जाते हैं .’’
निश्चित ही भूखों के लिए इस प्रलोभन का प्रतिरोध कठिन था , और इसप्रकार कुछ ही थे जो उस स्त्री के दृष्टांत का अनुगमन करते थे . इसके अतिरिक्त लोग वास्तव में अपने पादरी की बात पर विश्वास नहीं करते थे . लेकिन इसप्रकार की बहुत-सी बातें की जा रही थीं . बहुत से स्थानों में हमने स्वयं बच्चों को शैतान कहते सुना . किसानों का इसप्रकार का व्यवहार वास्तविक खतरा प्रस्तुत करता था क्योंकि हम अकेले और असुरक्षित गांव-गांव घूमते थे .
हमारे कमरों की धूल और अव्यवस्था देखकर सोफिया अन्द्रेएव्ना दुखी थीं . सबसे पहला काम उन्होंने यह किया कि घर को विशिष्ट ऊर्जा के साथ सुव्यवस्थित किया . उन्होंने स्वयं फर्श की सफाई की और फर्नीचर की धूल झाड़ी . मेज पर साफ कपड़ा नजर आया . सामान्य बात यह कि हम अपने बीच एक कठोर गृहणी से परिचित हुए . उसके बाद उन्होंने कोषागार की ओर ध्यान दिया अब तक जिसकी येलेना मिखाइलोव्ना इंचार्ज थीं . सोफिया अन्द्रेएव्ना ने हमारे भण्डार गृहों का परीक्षण किया और उन्हें हर प्रकार के कपड़ों , पोशाकों और लिनेन का ढेर मिला , जिन्हें वितरित किया जाना था . अपने वर्तमान स्वरूप में उनमें से अधिकांश किसानों के प्रयोग के लिए अनुपयुक्त थे . बच्चों के लिए बुनी हुई उत्तम कोटि की चीजों का गट्ठर था , लेकिन वे कपड़े गांव के बच्चों के हिसाब से अधिक ही फैंसी थे .
इन चीजों का वितरण इतना नाजुक कार्य था कि हम सभी उससे बचते थे . सबसे पहले तातान्या ल्वोव्ना ने इस काम को संभाला लेकिन इसने उन्हें इतनी अप्रियता प्रदान की कि उन्होंने उसके लिए जाने से इंकार कर दिया . एक बार उन्होंने पेन्की गांव की दो या तीन स्त्रियों से कहा कि अगले दिन वे बच्चोंा के लिए कपड़े लेने घर आ जाएं . उससे पहले कि वह सुबह बिस्तर से उठ पातीं अहाता महिलाओं से भर चुका था . जिन महिलाओं से उन्होंने बात की थी उन्होंने अपनी सभी पड़ोसिनों को इस विषय में बता दिया था , और गांव की सभी महिलाएं हिस्सेदारी के लिए वहां आ गयी थीं . ‘‘हम सभी पेन्की से हैं .’’ वे चीखी थीं , ‘‘हमने सुना कि कपड़े दिये जाने हैं .’’
जब उन्होने चीजें देखीं उनकी आंखें चमक उठीं . उन्होंने उससे पहले उतनी सुन्दर चीजें कभी नहीं देखी थीं . ऐसे प्रलोभन का वे कैसे विरोध करतीं ?
मुझे , स्वयं , नयी होने के कारण , इस कार्य के अप्रिय पक्ष का अनुभव नहीं था , और जब मारिया ल्वोव्ना ने निश्चय ही कपड़ों के वितरण का कुछ भी कार्य करने से इंकार कर दिया और सोफिया अन्द्रेएव्ना ने मुझे उनकी सहायता के लिए कहा , मैंने खुशी से सहमति दे दी . जल्दी ही मुझे पछतावा हुआ . एक दिन मैं और मारिया ल्वोव्ना दूर के एक गांव गए जहां हम एक नया सार्वजनिक भोज कक्ष खोलने की तैयारी कर रहे थे . मैंने कुछ चीजें , अधिकांश बच्चों के कपड़े , अपने साथ ले लिए . जब हम वहां पहुंचे , हम एक-दूसरे से अलग हो गये . हम दोनों आधे गांव का सर्वेक्षण करते थे जिससे जनसंख्या गणना कर सकें . मैंने अपना आधा सर्वेक्षण समाप्त कर लिया और जरूरतमन्द लोंगों को कपड़े देने के लिए मैं मारिया ल्वोव्ना की प्रतीक्षा कर रही थी . बहुत ही कम चीजें मैंने स्लेज से लीं , और उनके साथ पहली झोपड़ी में प्रविष्ट हुई तभी स्लेज को भीड़ ने घेर लिया . इसने बिना देखे मेरे और जिसे मैं उपयुक्त समझकर चीजें बांटती उसे असंभव बना दिया . भीड़ की आंखें क्षुधित भाव से मेरी छोटी-सी आपूर्ति पर टिकी हुई थीं . हर चेहरे पर कुछ दिए जाने की तीव्र उत्कंठा थी . पुरुष भी उतने ही लालची थे जितनी महिलाएं और सभी मुझे बता रहे थे कि मुझे क्या करना चाहिए . मेरा दिमाग परेशान हो उठा . मैं अपना सुविचारित उद्देश्य भूल गयी . मैंने अनुभव किया कि मैं भीड़ की दया पर निर्भर थी और वहीं पूरी तरह परेशान खड़ी थी . उसी समय मेरे बचाव के लिए मारिया ल्वोव्ना आयीं . उन्होंने तेजी से सभी कपड़े फेंक दिए और जितनी तेजी से संभव था हम वहां से भाग खड़े हुए थे .
ठण्ड की एक खूबसूरत शाम थी . पूरा चांद आकाश में लटक रहा था , लेकिन मेरा हृदय कुछ भयानक गलती करने के निराशाजनक भाव से भरा हुआ था . मारिया ल्वोव्ना ने मेरे भाव को समझा और अनोखी व्यवहारशीलता दिखाई . उसके बाद मैंने भी कपड़ों के वितरण संबन्धी कुछ भी कार्य , आवश्यक स्थिति के अतिरिक्त , करने से इंकार कर दिया . यह आवश्यकता तब तक उत्पन्न नहीं हुई जब तक सोफिया अन्द्रेएव्ना हमारे साथ रहीं . उन्होंने गांव के दर्जियों को बुलाया , उनसे गर्म कपड़ों को कटवाकर किसानों के छोटे बच्चों के लिए कोट बनवाए और यह खयाल रखा कि जाड़ा प्रारंभ होने से पहले ही वे तैयार हो जाएं . उन्होंने स्वयं कपड़ा काटने के कार्य का ठण्ड में बिना कमरा गर्माए निरंतर दिनोंदिन निरीक्षण किया . उन्होंने जो ऊर्जा दिखाई उसने मुझे आश्चर्यचकित किया . बहुत जल्दी बड़ी संख्या में छोटे बच्चे नए कोटों में इठलाने लगे थे.
बर्फानी तूफान और तोल्स्तोय परिवार के साथ मेरी घनिष्ठता
जब तोल्स्तोय परिवार आया मैंे लेव निकोलाएविच से बचती रही और इस वास्तविकता को छुपाया भी नहीं कि मैं उनके विचारों और दृढ़ -धारणाओं में हिस्सेदार नहीं थी . स्थिति असामान्य थी , क्योंकि जहां जक मुझे याद है कि उस समय उनके साथ आकर रहने और काम करने वाले वे ही लोग थे जो उनके विचारों के प्रति सहानुभूति रखते थे . उनके साथ बातचीत करने से बचने का एक अन्य कारण यह भी था कि मैं अत्यधिक संकोची और अल्पभाषी थी . अपने विचारों और भावों को किसी को बतलाना मेरी आदत नहीं थी .
एक बार जब मैं लेव निकोलाएविच के लिए काफी तैयार कर रही थी उन्हें निश्चय ही अचानक यह जिज्ञासा हुई कि बंद मुंह वाली यह कौन छोटा-जीव उनके साथ काम कर रहा था . उन्होंने मूझसे मेरे विचारों के विषय में प्रश्न करने प्रारंभ कर दिए. मैं सोचती हूं कि उन्हें यह जान लेने की आशा थी कि मैं साधारण धार्मिक विचार रखती थी . मैं उन्हें उत्तर देने की इच्छुक न थी , लेकिन जब लेव निकोलाएविच अपने मस्तिष्क में यह तय कर लेते कि उन्हें कुछ हासिल करना ही है तब निश्चित ही वह वैसा कर लेते थे . उनके साथ यह मेरी पहली गंभीर वार्तालाप थी . जब उन्हें ज्ञात हुआ कि मेरे विचार क्या थे वह प्रसन्नतापूर्वक मुस्काराए और बोले -
‘‘मैं जानता हूं मिखाइलोव्स्की , शेल्गुनोव , तिमिर्याजेव , और ऐसे ही लोंगो की अनुयायी--- .’’
उन्होंने पूछा मैंने क्या पढ़ा था . मैंने उन्हें बताया . उस समय तक मैं इतिहास , दर्शन और साहित्य में बहुत कुछ पढ़ चुकी थी .
‘‘तुमने कांट को पढ़ा ?’’ उन्होंने पूछा .
‘‘नहीं .’’
‘‘शॉपेनहावर? .’’
‘‘नहीं .’’
‘‘इन महान लोगो की ओर ध्यान कैसे नहीं दिया , दर्शन के ये स्तंभ हैं ?’’
मैंने उन्हें इसलिए नहीं पढ़ा था , क्योंकि वे उस ग्रुप में प्रसिद्ध नहीं थे जिसमें मेरा उठना-बैठना था . लेकिन अब मैंने यह अनुभव किया कि मेरे द्वारा यह एक गंभीर त्रुटि थी और निर्णय किया कि जैसे ही संभव होगा वह सब पढ़ना है लेव निकोलाएविच जिसकी सलाह देंगे .
मेरा विचार था कि इस बातचीत के बाद तोल्स्तोय मेरी ओर अधिक ध्यान देने लगे थे और इससे मैं पहले की अपेक्षा अधिक संकोची हो गयी थी . उसके बाद एक छाटी-सी घटना घटित हुई जो तुरंत हमें एक-दूसरे के निकट ले आयी और तोल्स्तोय परिवार के साथ जीवन-पर्यंत के लिए मैं जुड़ गयी थी .
जैसा कि मैंने पहले ही कहा , प्रत्येक सुबह तोल्स्तोय से इस बात की सलाह लेना हमारी आदत थी कि हमें कहां जाना है ! वह सदैव हमें बताते और हमारे काम तय करते-- कभी-कभी कठिन कार्य . जिस दिन की बात है , उस दिन उन्होंने रिखेत्का नदी के साथ के कई गांवों में जाने के लिए कहा , जो घर से लगभग अठारह वर्स्ट्स दूर थे . हम नदजीक गांवों में गये थे और मार्ग जानते थे , लेकिन दूर के गांवों की यात्रा हमने नहीं की थी . इसके अतिरिक्त ठण्ड भी थी . मैंने फर-कोट , जिसे मैं मास्को में पहनती थी ( लेव निकोलाएविच इसे मेरा किमोनो (जापानी चोगा ) कहते थे , फर की टोपी और मफलर पहना हुआ था . एक शब्द में , शहर में अपने को गर्म रखने के पर्याप्त कपड़े थे , लेकिन जिस यात्रा में मुझे जाना था , वह लंबी थी और मैं अकेली बिना गाड़ीवान के जा रही थी. लेव तोल्स्तोय की भतीजी ने अपना लबादा मेरे कोट पर डाल दिया था .
मैंने प्रस्थान किया . पहले सब ठीक-ठाक रहा , लेकिन शाम के समय हवा चलने लगी . मौसम बदल रहा है यह न जानते हुए मैं बहादुरों की भांति चलती रही...... विशेषरूप से जब चलना आसान था , हवा मेरे साथ-साथ चलती रही . रास्ता भटकने का कोई खतरा नहीं था , क्योंकि मैं नदी के साथ-साथ चल रही थी . अंततः मैं एक गांव में पहुंची जहां मैं पहले कभी नहीं गयी थी . यह जबोरोव्का नामक गांव था जो हमारे घर से लगभग पन्द्रह वर्स्ट्स दूर था . इस समय तक हवा के साथ बर्फ पड़ने लगी थी . अंधेरा घिर आया था . मुझे सुस्पष्ट हो गया कि जो काम मेरे लिए निर्धारित किया गया था उसे मैं पूरा नहीं कर सकती और दुखपूर्वक मैंने घर वापस लौटने का निर्णय किया . लेकिन जब किसानों को मेरा इरादा ज्ञात हुआ वे भयभीत हो उठे . उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि इस प्रकार के मौसम में इतनी दूर जाना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव होगा .
‘‘ऐसे झंझावात में तुम्हे जाने देना अपराध होगा . रात हमारे साथ रुक लो .’’
मैं अपरिचित गांव में रात नहीं बिताना चाहती थी , विशेषरूप से तब जब मैं जानती थी कि घर में लोग मेरे लिए चिन्तित होगें . अभी देर नहीं हुई थी . मेरे पास पर्याप्त समय था . अचानक मुझे याद आया कि अंद्रेयेव्का गांव में , जो वहां से पांच वर्स्ट दूर था , मेरा मित्र नावोसेलेव गास्तेव के साथ रह रहा था . वह पहला व्यक्ति था जिससे बेगीचेव्का पहुंचने पर मैं मिली थी . ग्रामीणें ने मेरे अंद्रेयेव्का जाने का विरोध नहीं किया , क्योंकि वह बहुत निकट था और उसी दिशा में था जिधर को हवा बह रही थी . मैंने सोचा कि रास्ते में मैं अपने कुछ अपूर्ण कार्य कर सकती हूं . लेकिन मैं अगले गांव पहुंचती उससे पहले ही बर्फानी तूफान पूरी ताकत से मुझ पर टूट पड़ा . मुझे गांव मिल गया , लेकिन मेरे सामने जो काम था उसके कारण मुझे जल्दी से अगले गांव पहुंचना था . सड़क अच्छी थी , घोड़े अच्छी गति से चल रहे थे , लेकिन बर्फ ने निश्चय ही सब कुछ नष्ट कर दिया था . कम दिखाई देने के कारण मैं सड़क की झलक पाने के लिए स्लेज पर खड़ी हो गयी थी . मेरी कैप हवा में फड़फड़ा रही थी , जिससे घोड़े भयभीत हो रहे थे . मेरे हाथ जमकर सख्त हो गये थे , लेकिन मैं वास्तविक खतरे को भांप नहीं पायी . प्रतीत हुआ कि हम दो सफेद दीवारों के बीच चल रहे थे . घोड़े सहज-बोध से सड़क जान पा रहे थे . वे डरे हुए लगे . एक बार हम सड़क से भटक गये और अपने को एक फार्म हाउस में पाया . वहां उन्होंने हमे दिशा बतायी और हम पुनः सही चलने लगे थे . उन कुछ वर्स्ट को तय करने में पर्याप्त लंबा समय लगा , क्योंकि जब हम अंद्रेयेव्का के समीपस्थ गांव इस्लेन्येवो पहुंुचे पूरी तरह से अंधेरा हो गया था . वहां भी उन लोंगो ने वहीं रात ठहरने के लिए कहा लेकिन मेरा गंतव्य आधा वर्स्टस दूर रह गया था और इतने प्रयासों के बाद वहां न पहुंचना दुखद होता . सौभाग्य से ग्रामीणें ने मेरे साथ दिशा निर्देश के लिए एक लड़के को कर दिया अन्यथा उस बर्फानी तूफान में सड़क की उस कठिन दूरी में मैं भटक जाती . इस प्रकार मैं अपने गंतव्य तक पहुंच गयी . मैं अभी भी घर लौट जाने के विषय में सोच रही थी . मेरा किचिंत भी इरादा अंद्रेएव्का में ठहरने का नहीं था .
घर में मुझे केवल गास्तेव मिले . वह और नोवोसेलोव स्वर्णकार के साथ रहते थे , जिसकी सम्पन्नता इस बात से स्पष्ट थी कि घर में लकड़ी की फर्शवाला एक अतिरिक्त कमरा उसके पास था और एक समोवार भी था . मुझे भोजन और पेय और मेरे घोड़ों को चारा दिया गया . तब तक रात हो गयी थी . अपने आतिथेय को आश्चर्यचकित करते हुए मैंने घर जाने के अपने इरादे की यह कहते हुए घोषणा की कि मुझे रास्ता पता है . बर्फानी तूफान का प्रकोप अभी तक जारी था . लेकिन शहरवासी , जो कि मैं थी, को होने वाले खतरे का भान नहीं था . मैं इस विचार से अधिक ही परेशान थी कि बेगीचेव्का में तोल्स्तोय मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे. मुझे यकीन था कि उन्हें इस प्रकार व्याकुल करने के लिए सोफिया अंद्रेऐव्ना मुझ पर क्रोधित होंगी . और गास्तेव के साथ मेरे रात बिताने पर वे क्या कहेंगे , लेकिन स्वर्णकार मेरे जाने की बात सुनने को तैयार नहीं था .
‘‘क्यों , ऐसी रात में तुम गांव के अंतिम छोर तक नहीं जा सकती , फिर अकेली बीस वर्स्टस की यात्रा.......!’’ चिड़चिड़ाता हुआ वह बाला . ‘‘इसे अपना सौभाग्य समझना यदि मौसम कल जाने की अनुमति दे दे .’’
इसके अतिरिक्त अन्य उपाय नहीं था , सिवाय मेरे सोचने के . मुझे सुबह तक इंतजार करना था .
सुबह बहुत शानदार थी और गास्तेव मेरे साथ वापस आये . मैं बहुत प्रसन्न थी क्योंकि मैं अपने को दोषी मान रही थी और सोफिया अंद्रेएव्ना से सामना होने से भयभीत थी , जो अपने परिवार के हित के लिए चिन्तित और सावधान रहती थीं , विशेषरूप से उनकी मानसिक शांति के लिए . फिर मुझे याद आया कि वह कहीं जाना चाहती थीं और यह सोचकर हमें राहत मिली कि जब हम पहुंचेगे तब तक शायद वह जा चुकी होंगी .
बीच रास्ते में दो स्लेजें हमारे बराबर आ पहुंची . उनकों हांक रहे कोचवानों ने प्रसन्नतापूर्वक हमें बधाई दी और कहा कि वे रातभर मुझे खोजते रहे थे . बेगीचेव्का के घर वालों ने इस भय से उन्हें भेजा था कि रास्ता भटक गयी होउंगी और बर्फ में जम जाने से मेरी मृत्यु हो जायेगी . इस समाचार ने मुझे भयानकरूप से अशांत कर दिया था .
यह स्पष्ट था कि जितनी मैंने कल्पना की थी वे उससे कहीं अधिक चिन्तित थे . ग्रामीण जीवन के अभ्यस्त होने के कारण वे मेरे हालात के संकट को अधिक समझते थे . मारिया ल्वोव्ना ने मुझे बताया कि लेव निकोलाएविच रातभर सोए नहीं थे . मुझसे नाराज होने के बावजूद वह मुझसे हाथ खोलकर मिले . ‘‘खोया हुआ यह रेवड़ का अत्यंत प्यारा मेमना है .’’ खुशी से मुस्काराते हुए लेव निकोलाएविच ने कहा .
पता चला कि सोफिया अंन्द्रेएव्ना के विषय में भी मेरा अनुमान गलत था . मैंने सोचा कि स्वभाव से वह तटस्थ थीं , लेकिन उन्होंने जोरदार ढंग से मुझे गले लगाया और जब मैंने कहा मैं अपेक्षा करती थी कि वह जा चुकी हागीं , वह बोलीं:
‘‘यह जाने बिना कि तुम्हारे साथ क्या घटित हुआ, मैं कैसे जा सकती थी ?’’
‘‘पिछली रात हम लोगों की कैसी बीती, जीवन के कुछ वर्षों तक उसे हम भूल न पाएंगे ,’’ मारिया ल्वोव्ना ने कहा , लेकिन उनका स्वर सहज था और उसमें उपालंभ नहीं था .
इस अनुभव के बाद मैं पूरी तरह अपने को तोल्स्तोय परिवार का हिस्सा मानने लगी थी .
अगले दिन सोफिया अंद्रेएव्ना बाहर चली गयीं . उन्होंने एक पत्र छोड़ा जिसमें उन्होंने कहा कि उनका हृदय और आत्मा बेगीचेव्का में ही बसते हैं . इस पत्र को पढ़ा जाता मैंने सुना और अनुभव किया कि सोफिया अंद्रेएव्ना भी मुझे बहुत चाहती हैं और उनके प्रति मैं सहानुभूति से भर उठी थी .
ततिश्चेवो के लिए स्थानातंरण
इसके तुरंत बाद मेरे लिए यह उचित था कि मैं ‘स्टाफ हेडक्वार्टर’ , जैसा कि बेगीचेव्का के घर को कहा जाता था , छोड़ दूं , जो हमारे सभी कार्यों के लिए प्रशासनिक केन्द्र के रूप में कार्यरत था और जहां तोल्स्तोय परिवार रहता था . तात्याना ल्वोव्ना के पहुंचने के बाद मेरे बिना भी वहां पर्याप्त लोग थे जबकि क्षेत्र के दूसरे गांवों में काम करने वालों की आवश्यकता थी जो अधिक दूर-दराज में कार्यरत ‘सार्वजनिक भोज कक्षों’ पर दृष्टि रख सकते और संभव होने पर नए ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ खोल सकते . संयोग से यह पूरे वर्ष संभव था , क्योंकि आने वाली प्रत्येक डाक से नए चंदे आते थे . हमारे पास इतना पैसा एकत्र हो गया था कि हम उसे आनेवाले वर्ष के लिए बचा सकते थे , जो इस वास्तविकता को देखते हुए सौभाग्य की बात थी कि आने वाले वर्ष में कुछ जिलों में फसल नहीं होने की आशा थी . ततिश्चेवो बेगीचेव्का से केवल पांच वर्स्टस था , जिसे मेरे नए निवास के लिए चुना गया था . निखोत्का नदी के साथ के सभी गांव यहां तक कि अंद्रेएव्का भी अब मेरे अधीक्षण में था . मैं चौदह ‘सार्वजनिक भोज कक्षों’ की इंचार्ज थी . जो ततिश्चेवो में थे वे मारिया ल्वोव्ना द्वारा खोले गये थे . (लेव निकोलाएविच ने अपने आलेख ‘‘मीन्स ओफ एडिगं दि पापुलेशन इन दि फेमिन एरिया’’ में इसका वर्णन किया है ) . मारिया ल्वोव्ना ततिश्चेवो के लोगों को भलीभांति जानती थीं और मेरे साथ जाने का उनका उद्देश्य लोगों से मेरा परिचय करवाने में सहायता करना और काम को नियंत्रित करना था .
ततिश्चेवो एक बड़ा गांव था (सौ से अधिक घरों वाला ) जो दो भागों में बटा हुआ था , पुराना और नया . चर्च और पुरोहितवर्ग के मकान पुराने थे . प्रायः हम अपने ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ गरीब लोगों की झोपड़ी में खोलते थे जहां पर बहुत-से बच्चेा होते जिससे मकान मालिक को उसके श्रम के बदले पूरे परिवार को भोजन मिल जाता था और झोपड़ी गर्म रहती थी . दिमाग में इन बातों को ध्यान में रखते हए ग्रामीण स्वयं ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ के लिए झोपड़ी का चयन करते थे , और इस प्रकार वह मुझे स्पष्ट करते कि उन्हें किस पर विश्वास था और किसकी झोपड़ी में वे जाने को तैयार थे . एक बार हमें अपना मकान बदलना आवश्यक हो गया था कयोंकि किसानों ने मकान मालिक के फूहड़पन और उसकी पत्नी के बड़बड़ाने का विरोध किया था .
दूरस्थ गांवों की स्थिति
कार्यवश बेगीचेव्का आने या तोल्स्तोय से मिलने आने पर मुझसे कभी-कभी एक-दो दिन ठहरकर अतिरिक्त काम में सहायता के लिए कहा जाता अथवा विशेष कार्य से कहीं दूर जाने के लिए कहा जाता . ऐसा करते हुए मैंने उन सभी कस्बों की यात्राएं कीं जहां हम काम कर रहे थे और हेडक्वार्टर से बहुत दूर नये ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ खोले . एक बार रेड क्रास द्वारा संचालित ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ में जाने का मुझे अवसर मिला . यह कैसे हुआ ! लेव निकोलायेविच ने मुझे दोन नदी के किनारे गांवों में स्थित ‘सार्वजनिक भोज कक्षों’ में यह संकेत दिए बिना भेजा कि किसमें जाना था . उनका अनुमान था कि मैं जानती थी कि किसमें जाना था . मुझे यह जानकारी नहीं थी कि उनमें से कुछ रेड क्रास द्वारा संचालित थे , मैं सभी में गयी . रेडक्रास केन्द्र के लागों ने भोजन की शिकायत की . उन्हें खाने में बाकला और मसूर दिया जा रहा था , किसान जिसके अनभ्यस्त थे और जिससे वे बीमार पड़ रहे थे . उन्होंने अनुरोध किया कि उन्हें मेरे ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ में स्थानातंरित किया जाए जहां पर खाना अच्छा और प्रचुर मात्रा में मिलता था .
वसंत के आगमन के साथ क्षेत्र के बाह्यांचल में हमारे द्वारा संचालित ‘सार्वजनिक भोज कक्षों’ वाले गांवों में टाइफाइड की महामारी पैलने लगी . हमने महामारी को शांत करने वाला भोजन भेजा और वह समाप्त भी हो गयी . निःसंदेह जिसने यह सिद्ध कर दिया कि ऐसी अपेक्षाकृत थोड़ी सहायता ने अनेकों जिन्दगी बचा ली थी .
इसका वर्णन असंभव था . गांवों में गरीब लोगों के लिए जो भोजन सामग्री आपूर्ति होती ऐसा प्रतीत होता मानों ईश्वर और मनुष्यों ने उसका परित्याग कर दिया था . मैं उनके एहसानमंदी से अभिभूत थी जब मुझे पहली बार अकाल प्रभावित गाांव में ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ खोलने का सौभाग्य मिला . गांव था येकातेरिनोव्का . वहां भयानकरूप से टायफाइड महामारी फैली थी . जब मैं पहुंुची वह कम हो गयी थी . बहुत-से लोंगों की मृत्यु हो गयी थी और लोग निराशा का शिकार थे . उन्होंने अपने उद्धारक के रूप में मेरा स्वगत किया . महिलाएं रो रही थीं और छाती पर क्रास बना रही थीं .
‘‘हमने सोचा ईश्वर खुद ही हमें भूल गया है .’’ वे बोले ‘‘हर दिन एक और अंत्येष्टि यहां तक कि दो होतीं थीं .’’
भारी द्ददय से मैंने येकातेरिनोव्का गांव छाड़ा था . इसके अतिरिक्त महामारी से हुई मौतों के कारण गांव की कंगाली वर्णनातीत थी .
बेगीचेव्का लौटकर मैंने उन्हें महामारी के विषय में बताया , जिसे किसीने नहीं सुना . मैंने मारिया ल्वोव्ना से कहा कि वह सोफिया अंद्रेएव्ना से नहीं कहें . मैं नहीं चाहती थी कि उनमें अतिरिक्त चिन्ता उत्पन्न हो . लेकिन मारिया ल्वोव्ना उन्हें बताने से अपने को रोक नहीं पायी , परिणामस्वरूप सोफिया अंद्रेएव्ना ने अनेक बार मुझे न केवल अपनी जिन्दगी जोखिम में डालने बल्कि दूसरे को भी खतरे में डालने के लिए फटकारा . मैंने , फिर भी , अपने को दोषी नहीं माना , क्योंकि जब मैं वहां गयी मुझे महामारी की जानकारी नहीं थी .
लेव निकोलाएविच देख रहे थे कि जहां भी हमने ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ खोले थे महामारी कम हुई थी . वास्तव में यार्जान गुबेर्निया में टायफायड के मामलों की संख्या दूसरे अकाल पीड़ित क्षेत्रों की अपेक्षा कुछ भी नहीं थी.
बेगीचेव्का वापसी और सर्दी में वहां का जीवन
उस समय सीनियर डाक्टर टायफायड से सख्त बीमार होकर लगभग मरणासन्न हो गया था.
येलेना मिखाइलोव्ना , जो उसके और उसके परिवार के प्रति अत्यधिक आसक्त थीं उसकी देखभाल के लिए चली गयी थीं . और इस प्रकार मुझे ततिश्चेवो छोड़कर उनका स्थान ग्रहण करने के लिए बेगीचेव्का लौटना पड़ा . वहां बहुत अधिक काम था और हेडक्वार्टर में कुछ लोग ही करने वाले थे .
बेगीचेव्का के अपने जीवन के उस दौर में मैं मारिया ल्वोव्ना के प्रति बहुत स्नेहशील हो गयी थी . अधिकांशतया घर में हम तीन ही होते थे . लेव निकोलाएविच , मारिया ल्वोव्ना और मैं . कुछ हफ्ते हमने जिस आत्मीय भाव से व्यतीत किये थे उसकी स्मृतियां मेरे जीवन की अत्यंत मूल्यवान स्मृतियां थीं.
उस समय लेव निकोलाएविच एक तात्विक आलेख: ‘दि किंगडम ओफ गॉड इज विदिन यू’ लिखने में व्यस्त थे . उन्होंने कर्म पर अपना चर्चित पत्र भी लिखा था . जैसे ही उनके विचार उभरते वह हम , दो युवा और अनुभवहीन लड़कियों को बतलाते . प्रायः वह इतना उल्लसित मनस्थिति में होते कि उनकी आखों में आंसू छलछला आते . उस बर्फानी तूफान और बर्फबारी के मौसम में बाह्य दुनिया का हमारे लिए अधिक आकर्षण नहीं था . और हम दम साधे लेव निकोलाएविय को सुनते हुए अपनी शामें व्यतीत किया करते थे . जैसे ही वह सुबह जागते वह अपना पेन उठा लेते . इससे पहले मैं कभी रचनात्मक प्रक्रिया में व्यस्त किसी प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति के सान्निध्य में नहीं रही थी और मैं उनसे बहकर आने वाले विचारों से इतना अधिक प्रेरित थी कि कुछ और सोच नहीं सकती थी . मैं मारिया ल्वोव्ना से बातें करते हुए अथवा दिन में विचार-विमर्श की गयी समस्याओं पर मनन करते हुए एक के बाद एक रातें बिता रही थी . मेरा मस्तिष्क अत्यधिक उत्तेजनापूर्ण ढंग से काम करता था . स्वभावतः विचारशील होने के कारण तोल्स्तोय के चित्तवृत्ति के प्रभाव में सब कुछ पर विश्वास कर लेती थी . जब शाम होती मैं पूर्वगत दिन उनके द्वारा व्याख्या किये गये विषय पर निर्भीकतापूर्वक उनसे बहस करती थी . उससे पहले और बाद में मैंने कभी -कभी उन्हें उतना सौम्य , सहिष्णु और गहन-उदार नहीं पाया था . उनके चेहरे पर आश्चर्यजनक चमक फैेल जाती थी . मेरी बौद्धिक सूक्ष्मता के प्रति उनकी उत्साहित करने वाली सहानुभूति और दिलचस्पी मुझे उत्साहित करती और मुझे मेरे सामान्य संकोच पर विजय पाने की शक्ति देती थी . उस समय मारिया ल्वोव्ना स्वस्थ अनुभव नहीं कर रही थीं और हालांकि वह सदैव हमारी बातचीत के दौरान उपस्थित रहती थीं , वह कभी ही उसमें शामिल होती थी . जब मैं चाय ढाल रही होती , बातचीत प्रायः इस प्रकार शुरू होती कि कुछ ऐसे बिन्दु हैं जिन पर मैं लेव निकोलाएविच से सहमत नहीं हूं .
‘‘बोलो , बोलो , यह दिलचस्प है . तुम्हारी आपत्तियां क्या हैं ?’’
मैं उन्हें बताती और जो चीजें मुझे समझ न आयी होतीं , उनसे पूछती . वह धैर्यपूर्वक और विस्तारपूर्वक समझाते . वह विषय की गहराई तक जाते और अपने अनुसार विषय का समाधान प्रस्तुत करते .
उनकी जिन्दगी कितनी स्वस्थ , शांत और छलकती हुई थी . उस समय तक हमारे लिए यह संभव हो जाता कि हम उन्हें ‘सार्वजनिक भोज कक्ष’ से सम्बद्ध दैनन्दिन कार्याें से मुक्त कर दें इससे वह अपने को पूरी तरह लेखन कार्य में व्यस्त कर सकें . वह प्रसन्नचित्त रहते . प्रायः मुस्कराते रहते , और हमारे साथ मजाक और हंसने के अवसर देखते रहते .
‘‘वेरा मिखाइलोव्ना जंगले पर छलांग लगाने की कोशिश करो .’’ वह अचानक कहते , और पहले ही सीढ़ियों के पास के एक नीचे जंगले पर छलांग लगा देते .
ठण्ड और बर्फ के बावजूद वह प्रायः दिन में घुड़सवारी करते . लेकिन एक दिन मैं उदास और दुखी दिखती हुई उनके पास गयी . मैंने बिना साहस यह पूछने के लिए कि उनकी उदासी का क्या कारण था जांचती हुई उनकी ओर देखा.
‘‘मुझे कैसे जागना चाहिए वेरा मिखाइलोव्ना !’’ वह बोले.
उनका मतलब दूसरी दुनिया में ‘‘जागने’’ से था . दूसरे शब्दों में , ‘मरना’ . मैं घबड़ा उठी और कुछ कह नहीं पायी . जल्दी ही उनकी मनोदशा का कारण स्पष्ट हो गया था . वह स्वयं में हताश थे . उन दिनों हमारे एक कस्बे में काम करने वाला एक निराला चरित्र था . वह अनपेक्षित रूप से अपने बारे में अस्पष्ट और चकरा देने वाली सूचना लेकर प्रकट हुआ था , लेकिन हमने उसे अपने एक केन्द्र में काम करने के लिए भेज दिया था . हम तक अफवाहें पहुचतीं कि उसने बहुत अधिक पी ली थी और कभी-कभी झगड़ा भी कर लेता था . हमारे सभी स्वयंसेवक काम के प्रति समर्पित थे , उनमें से अधिकांश तोल्स्तोय के शिष्य और उनकें अनुयायी थे . लेकिन इस व्यक्ति का व्यवहार अप्रिय था जो हमारे सम्पूर्ण दल की सुव्यवस्था को बेसुरे ढंग से चूर-चूर कर रहा था . लेव निकोलाएविच ने इसे दिल से लगा लिया . तोल्स्तोय शराबियों को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे . उस दिन वह व्यक्ति बेगीचेव्का आया था , और लेव निकोलाएविच को अकेला पाकर बैठ गया था और उनसे निर्भीक और बेलगाम धृष्टता से बोलता रहा था . लेव निकोलाएविच उसके लिए अपनी नापसंदगी पर नियंत्रण नहीं पा पाये , और इसने , जिसे वह कमजोरी मानते थे , उनके मस्तिष्क पर भारी प्रभाव डाला था . उन्होंने मुझे कहा कि जाओ उससे बातें करो . मैं गयी और हम शेष दिन उसे लेव निकोलाएविच की नजरों से दूर रखने में सफल रही थीं .
लेकिन अंत में हम उससे अलग हो गये . कुछ देर बाद वह पुनः हाथ में एक पोटली थामें बेगीचेव्का में प्रकट हुआ . उसे वोद्का की गंध मिली और जब उसने पोटली खोली उसमें उसे वोद्का की बोतल मिली . उसके सभी कपड़े उससे दुर्गंधयुक्त हो गये थे . लेव निकोलाएविच उसके बगल में थे . उन्होंने बहुत ही उत्तेजित स्वर में कहा कि उनके लिए यह कष्टकर था और हम लोगों के पास उसका और अधिक रुकना घोर आपत्तिजनक था .
‘‘मैं अनुरोध करता हूं कि आप मुझ जैसे बूढ़े व्यक्ति को क्षमा करेंगें , और प्रार्थना करता हूं कि आप यहां से चलें जायें .’’
जब वह चला गया हमारी जीवन गति लौट आयी थी .
किसानों के साथ संबन्ध
‘किसानों को भोजन कराने का विचार एक परोपकारी कार्य था .’ लेकिन तोल्स्तोय इस विचार के विरुद्ध थे और हम सब उनके साथ थे . हम उन्हें कैसे भोजन दे सकते थे जो स्वयं हमारे लिए अन्न उपजाते थे और जो अपने श्रम से उत्पन्न पैदावार से हमारा पोषण करते थे . जनता के साथ हमारे संबन्ध सामान्य नहीं थे और तोल्स्तोय ने जिनकी सहायता की उनकी चापलूसी और कुटिलता से कष्ट पाया था . निश्चित ही उन्होंने इसे स्पष्ट अनुभव किया था . संबन्ध जितना भी थे , उनसे कुछ भी और अपेक्षा नहीं की जा सकती थी . लेकिन उन्होंने कम कष्ट नहीं पाये . जहां भी वह गए (और वह सभी जगह गये और घृणायुक्त ‘महामहिम’ उनके पीछे-पीछे चला ) . उनका मनपसंद घोड़ा मुखोर्ती यास्नाया पोल्याना से लाया गया था और प्रायः वह दूर तक घोड़े पर सवार होकर जाया करते थे . वह अज्ञात बने रहकर जब भी यात्रा करने में सफल होते और अपने को ‘महामहिम’ के बजाय ‘ग्रैण्डपा’ पुकारा जाना सुनते तो अत्यंत प्रसन्न होते. इस प्रकार की भूमिका में वह दूसरे बूढ़े लोंगों से बात करना पसंद करते , उनके विचार सुनते और अपने विचार बताते .
एक दिन वह बहुत प्रसन्न घर लौटे . वह एक दूर के गांव गए थे जहां उन्हें कोई नहीं जानता था और जब उन्होंने एक किसान की झोपड़ी में विश्राम करना चाहा , तब उन्हें एक साधारण झोपड़ी में ले जाया गया और उन्हें सार्वजनिक कटोरे से भोजन के लिए आमंत्रित किया गया . इसने उन्हें अपने आतिथेय से दिल खोलकर बात करने का अवसर प्रदान किया . लेकिन , प्रायः की भांति , सार्वजनिक कटोरे में शामिल होने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा परिणाम हुआ था .
छोटे बच्चों से बातें करके भी वह आनन्दित होते थे , और एक दिन उन्होंने हमसे कहा कि एक दो वर्ष छोटी बच्ची उन पर आंखें गड़ाकर स्पष्ट और अबोध भाव से उन्हें टकटकी लगाकर देखती रही कि ऐसा लगा कि ‘‘उन आखों में स्वर्ग प्रतिबिबित हो रहा था. एक बड़ा बच्चा , यहां तक कि पांच साल का , इसप्रकार की टकटकी नहीं लगायेगा .’’
जैसा कि बाद में सिद्ध हुआ लोग वास्तव में तोल्स्तोय को महत्व देते थे और संबन्धों की अस्वाभाविकता के बावजूद उनमें ‘मनीबैग’ की अपेक्षा कुछ और ही देखते थे . वसंत में , अफवाह उड़ी कि तोल्स्तोय को गिरफ्तार किया जाना था , और जब अन्नन्कोव का अभियान दल हमारे कस्बे में जनकार्यों के उद्देश्य से पहुंचा. किसानों ने निष्कर्ष निकाला कि उन्हें तोल्स्तोय को गिरफ्तार करने के लिए भेजा गया था . किसानों ने बेगीचेव्का के घर को चारों ओर से इस दृढ़ निश्चय के साथ घेर लिया कि वे किसी को भी उन्हें स्पर्श करने की अनुमति नहीं देगें , और लेव निकोलाएविच के लिए उन्हें समझाना अत्यंत कठिन हो गया कि उनका भय निराधार था .
जब शरद में फसल इकट्ठा हुई और लेव निकोलाएविच ने किसानों से विदा ली तब उन लोगों ने उनके प्रति इतना प्रेम प्रकट किया कि उसकी लेव निकोलाएविच ने कल्पना नहीं की थी और उन्होंने स्पष्ट अनुभव किया कि उन लोगों ने उनके परिश्रम और हित चिन्ता को महत्व दिया था .
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