सोमवार, 24 मार्च 2025

आलेख

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कब थमेगा यह सिलसिला

 रूपसिंह चन्देल

 28 फरवरी,2025 को कानपुर की समाज सेविका नीलम चतुर्वेदी के 41 वर्षीय पुत्र निशांत ने पत्नी से पीड़ित/प्रताड़ित होकर मुम्बई में आत्महत्या की थी. नीलम चतुर्वेदी ’सखी’ संस्था की संस्थापिका और उसकी महामंत्री हैं, जो पीड़ित, शोषित और प्रताड़ित महिलाओं के हितार्थ कार्य करती है. संस्था की शाखाएं देश के अन्य कई शहरों के साथ विदेश में भी हैं. नीलम चतुर्वेदी अपने घर में अपनी पुत्र-वधू की प्रताड़ना से अपने पुत्र को नहीं बचा सकीं. ऎसा तब हुआ जब निशांत लगातार पत्नी की प्रताडना से पीडित कानपुर और मुम्बई के बीच भटक रहा था. वह एक प्रभावशाली और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का धनी युवक था. फिल्म डायरेक्टर था. वह एक ऎसी युवती के प्रेमजाल में फंस गया जो तलाकशुदा थी. उसने अपने पूर्व विवाह को उससे छुपाया था. उस युवक के साथ उस लड़की का यह पहला और बडा विश्वासघात था, जिसे उसने यह कहकर हल्का करने का प्रयास किया कि उसने यह सब इसलिए छुपाया था क्योंकि वह निशांत को बहुत प्यार करती थी और उसे खोना नहीं चाहती थी. शादी से पहले बता देने के बाद उसे इस बात का खतरा था कि निशांत और उसका परिवार शादी से इंकार कर देता. यह सब बातें नीलम चतुर्वेदी ने टीवी चेनल और इन पंक्तियों के लेखक को बताईं. शादी के कुछ दिन बाद ही निशांत की पत्नी उसे अपने परिवार से अलग रहने का दबाव बनाने लगी. वह सप्ताह में कम से कम दो दिन मंहगे होटल में खाने जाने का दबाव बनाती, मंहगी खरीददारी करती और लैविश जीवन जीना चाहती, ऎसा न करने पर हाथ की नस काटने की धमकी देती. फिल्म डायरेक्टर के रूप में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे युवक के लिए एक सीमा तक ही उसकी मांगे पूरी करना संभव था. अंततः उसकी बढ़ती मांगों के आगे निशांत थक-हार गया और उसने पत्नी के साथ रहने से इंकार कर दिया. कानपुर कोर्ट में तलाक का केस डाला गया. लड़की के घरवालों ने 50 लाख रुपए लेकर मामले को कोर्ट के बाहर सेटल करने का दबाव बनाया. इन स्थितियों से टूट चुके निशांत ने जीवन समाप्त करने का निर्णय किया. उसने अपने स्टूडियो की वेब साइट में I Died शीर्षक देकर पांच पत्र लिखे, जिसमें मां को अति-भावुक कर देने वाला पत्र है, जिसे पढ़कर कठोर हृदय व्यक्ति भी रो देगा, दूसरा पत्र बहन, दो अपने घनिष्ट मित्रो और अंतिम पत्र पत्नी के नाम लिखा. पत्नी के पत्र में स्पष्ट शब्दों में उसने अपनी आत्महत्या के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया.

 निशांत की आत्महत्या से युवकों की आत्महत्या की बहस फिर प्रारंभ हो गयी है.

 इन दिनों मेरठ का सौरभ हत्याकांड चर्चा में है और गत सप्ताह (17-22 मार्च,2025 वाले सप्ताह) सहारनपुर में एक युवक ने पत्नी की प्रताड़ना से परेशान होकर आत्महत्या का प्रयास किया. कुछ दिन पहले आगरा में एक युवक ने पत्नी से प्रताड़ित होकर आत्महत्या की थी. उसने कुछ सेकंड के वीडियो में कहा था, "किसी को लड़कों के पक्ष में भी खड़ा होना चाहिए." उससे पहले दिल्ली के मॉडल टाउन में एक व्यवसायी युवक ने पत्नी और उसके परिवार से पीड़ित होकर आत्महता की थी. बंगलुरू में एक बहुराष्ट्रीय आर्टिफिशियल इंटिलीजेंस कंपनी में इंजीनियर 34 वर्षीय अतुल सुभाष ने पत्नी निकिता और उसके परिवार से प्रताड़ित होकर 9 दिसम्बर,24 को आत्महत्या की थी. आत्महत्या से पूर्व उसने 1 घण्टा 21 मिनट का वीडियो बनाकर अपनी आत्महत्या का कारण बताया था. यही नहीं उसने 24 पृष्ठों का सुसाइड नोट भी लिखा, जिसमें पत्नी,उसकी मां,ताऊ और उसके भाई पर गंभीर आरोप लगाए. उसने फेमिली कोर्ट, जौनपुर की प्रधान न्यायाधीश पर भी गंभीर आरोप लगाए. यह सब सोशल मीडिया, समाचार पत्रों और टी.वी. चेनल्स पर कई दिनों तक चर्चा का विषय रहा. लेकिन चूंकि मामला एक युवक (अर्थात पुरुष का) था इसलिए तीन-चार दिनों बाद मामला शांत हो गया. अतुल सुभाष न पहला युवक था जिसने पत्नी और उसके परिवार से पीडित और प्रताड़ित होकर और न्यायालय द्वारा उचित न्याय न मिलने के कारण आत्महत्या की थी और न ही अंतिम युवक. निशांत, आगरा और दिल्ली के मॉडल टाउन के युवकों की आत्महत्या इसी ओर इशारा करते हैं. और ऎसा भी नहीं कि अतुल से पहले पत्नियों और उनके परिवार से प्रताड़ित युवकों ने आत्महत्या नहीं की थी.

 देश में पत्नियों और उनके परिवार वालों की प्रताड़ना से आत्महत्या करने के मामलों में पिछले 20 वर्षों में तेजी से वृद्धि हुई है. यह समस्या एक दिन की देन नहीं है. संविधान में धारा 498-A के जोड़े जाने के बाद ही उसका दुरुपयोग प्रारंभ हो गया था. लेकिन शुरू में मामले अधिक नहीं होते थे. ऎसा नहीं कि आठवें दशक से पहले ऎसी घटनाएं नहीं घटित हो रही थीं. लेकिन 1983 में 498-A के प्रभाव में आने के बाद सभी सामाजिक मूल्यॊं को दरकिनार करते हुए ऎसी घटनाओं में वृद्धि हुई और अधिक ही वीभत्स रूप में घटित होने लगीं. तब लड़की और उसके परिवार द्वारा लड़के और उसके परिवार ही नहीं उसके रिश्तेदारों के विरुद्ध इस धारा के अंतर्गत एफ.आई.आर. दर्ज करवाते ही पुलिस हरकत में आ जाती थी और सभी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाता था. आसानी से उनकी जमानत नहीं होती थी. होती तब वर्षों मुकदमा चलता. मुकदमें आज भी चलते हैं. केस झूठा पाए जाने के बाद भी लड़की या उसके परिवार के विरुद्ध कोई दण्डात्मक कार्यवाई नहीं की जाती थी. कार्यवाई आज भी नहीं की जाती, यही कारण है कि इस धारा के अंतर्गत एफ.आई.आर की बाढ़-सी आई हुई है. इस ज्यादती के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई. लंबी प्रक्रिया के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस को निर्देश जारी किया कि बिना तहकीकात किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार न किया जाए और न्यायालयों को भी निर्देश जारी किए.

मैंने सर्वोच्च न्यायालय, हैदराबाद, कोलकाता और दिल्ली उच्च न्यायलयों के उन फैसलों का अध्ययन किया जो तलाक के मामलों से जुड़े हुए थे. मैंने गूगल में उपलब्ध पत्नी प्रताड़ित पुरुषों के वीडियो सुने और उन वरिष्ठ अधिवक्ताओं से बातचीत की जिन्होंने ऎसे मामले लड़े थे या लड़ रहे थे. एक यू ट्यूब चेनल में मैंने फ़ेमैली कोर्ट के एक वरिष्ठ एडवोकेट का साक्षात्कार सुना. फ़मिली कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू करने से पहले वह एक महाविद्यालय में फिजिक्स के प्रोफेसर रहे थे. साक्षात्कार में उन्होंने चौंकाने वाले उदाहरण दिए थे. उनका कहना था कि पिछले कुछ वर्षों से ऎसे मामले तेजी से बढ़े हैं. साधारण परिवार अपनी पढ़ी-लिखी सुन्दर लड़की के लिए एक ऎसा आदर्शवादी परिवार खोजते हैं जो मोटा वेतन पाने वाले अपने बेटे के विवाह के लिए दहेज नहीं लेता. सन्तान होने तक सब ठीक चलता है, लेकिन संतान होते ही लड़की अपने परिवार वालों के कहने पर ससुराल में समस्याएं उत्पन्न करना प्रारंभ कर देती है, फिर वही होता है जो अतुल के साथ हुआ. लड़की बच्चे को लेकर मायके जा बैठती है. फिर शुरू होता है ब्लैकमेल का खेल. एलीमनी के रूप में मोटी रकम मांगी जाती है. लड़के वाले घबड़ाकर समझौता कर लेते हैं, नहीं करते तब 498-A सहित कितने ही मुकदमें लड़के वालों के खिलाफ दायर कर दिए जाते हैं.

किसी प्रकार उनका मोबाईल नंबर प्राप्त कर मैंने उनसे सवा घण्टे तक इस विषय में चर्चा की थी. उनका कहना था कि साधारण परिवार बेटी के माध्यम से रात-रात में धनी हो जाना चाहते हैं. ऎसे भी उदाहरण हैं कि कुछ लड़कियों ने तीन विवाह किए और करोड़ों रुपए लेकर अपना भावी जीवन सुखी बनाने के सपने देखे. कितना सुखी हो पायीं होंगी यह उन्हें ही मालूम होगा. मैंने एक महिला का वीडियो सुना जिसके तलाक को दस वर्ष हो चुके थे. छोटी-छोटी बातों में अपने परिवार वालों के भड़काने पर वह पति से लड़ती थी. एक दिन उसके भाई ने उसके पति को मारा और बहन को वापस ले गया. उसका पति उसे लेने गया, लेकिन भाई के भड़काने के कारण वह उसके साथ नहीं गयी. अंततः तलाक हुआ. उसे जो एलीमनी मिली उसके भाई और परिवार के लोगों ने रख ली. उसके पति ने दूसरा विवाह कर लिया, जिससे उसे दो संतानें थीं, लेकिन वह लडकी अविवाहित रही, क्योंकि भड़काने वाला भाई अपने विवाह के बाद उसे भूल गया था. वह युवती दस वर्षों से पश्चाताप की अग्नि में झुलस रही थी. औरों के साथ भी यह कहानी दोहरायी जाती होगी. लेकिन तब बहुत विलंब हो चुका होता है.

 भारत में एक समय सभी वर्गों की महिलाएं प्रताड़ित थीं. निम्न मध्यवर्ग और निम्न वर्ग में यह प्रताड़ना आज भी जारी है, लेकिन मध्य,उच्च मध्य वर्ग और उच्च वर्ग की महिलाएं प्रताड़ित नहीं, पुरुषों को प्रताड़ित कर रही हैं. कुछ अपवाद यहां भी हो सकते हैं.

 लगभग दो वर्ष पहले जब एक लेखिका ने ’पुरुष विमर्श’ की कहानियों के सम्पादन के बारे में चर्चा करते हुए मुझसे पूछा, "सर, आपके अनुसार आज कितने प्रतिशत पुरुष पत्नियों द्वारा प्रताड़ित होंगे?" मेरा उत्तर था, "पचीस-तीस प्रतिशत." 

 "नहीं सर, साठ से सत्तर प्रतिशत." तब मैं उसके उत्तर से चौंका था. यकीन नहीं हुआ था. लेकिन बाद में मैंने पाया कि उसने सही कहा था. ऎसा कैसे हो रहा है. इसके लिए अलग-अलग लोगों के अपने तर्क हैं. लेकिन दो बातों में सभी सहमत हैं-- 1. नारीवादियों द्वारा चीजों को गलत प्रकार से प्रस्तुत करना, जिसमें परिवार विच्छिन्नता को दरकिनार करते हुए केवल आत्मसुख की बात उन्हें समझायी गयी. 2. पश्चिम की अर्थवादी मानसिकता. ऊपर बताए युवकों के मामले इसका ज्वलंत उदाहरण हैं. अपने शोध में मुझे और भी ऎसे ही मामले सुनने/पढ़ने और जानने को मिले.

3 मई,2024 को सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ ने कहा कि 498-A के 95% मामले झूठे होते हैं. उन्होंने विधि मंत्रालय को लिखा था कि 1 जुलाई,24 से जारी होने वाले बी.एन.एस. कानून में इस कानून को और रिलैक्स किया जाए, जिससे निर्दोष लोगों को परेशानी से बचाया जा सके. लेकिन तीन तलाक मामले के बाद चुनाव में मुस्लिम महिलाओं से मिले समर्थन के बाद सरकार ने महिलाओं के ’वोट बैंक’ की शक्ति को समझ लिया था और माननीय न्यायमूर्ति के सुझाव पर ध्यान नहीं दिया.

10 दिसम्बर,2024 को न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि न्यायिक और सर्वविदित अनुभव है कि वैवाहिक कलह से उत्पन्न घरेलू विवाद में अक्सर पति और उसके परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति बन गई है। ठोस साक्ष्यों या पुख्ता आरोपों के बगैर सामान्य या व्यापक आरोप आपराधिक मुकदमा चलाने का आधार नहीं बन सकते। ध्यान रहे, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने हाल ही में पूरे परिवार के खिलाफ दायर दहेज प्रताड़ना मामले को 498-ए के अंतर्गत चलाने की मंजूरी नहीं दी है। लेकिन निचली अदालतों पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों का कोई प्रभाव नहीं होता. परिणामस्वरूप वकील और पुलिस की मौज रहती है और सैकड़ों युवक प्रतिवर्ष पत्नियों और उनके परिवार वालों द्वारा सताए जाकर आत्महत्या करने के लिए विवश हो रहे हैं. 

मेरे उपरोक्त कथन को पुरुषवादी सोच न समझा जाए. गलती पुरुष और उसका परिवार करता है तो उन्हें और यदि लड़की और उसके परिवार के लोग करते हैं तो उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए. लड़की और उसके परिवार वालों के हौसले इसलिए बुलंद रहते हैं क्योंकि उनके आरोप झूठे सिद्ध होने के बावजूद उन्हें कोई दण्ड नहीं दिया जाता. लेकिन पुरुष और उसके परिवार को झूठे केस के कारण वर्षों अदालतों के चक्कर काटने पड़ते हैं. अतुल और उसके परिवार के खिलाफ 9 मुकदमे थे. मामले को सेटल करने के लिए मोटी रकम की मांग की जा रही थी. जज साहिबा का कथन, “आपके पास इतने रुपए होंगे तभी न वह इतना मांग रही है”, किसी भी युवक और उसके परिवार को तोड़ दे सकता है. यहां 2019 से 2022 तक के पुरुषों और महिलाओं द्वारा की गई आत्महत्या के आंकड़ों से स्थिति की भयावहता को समझा जा सकता है.

वर्ष                  पुरुषों द्वारा आत्महत्या           महिलाओं द्वारा आत्महत्या

 2019               66815                                   25941
 2020               73093                                   28005
 2021               81063                                   28680
 2022               83713                                   30771 

 उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रतिवर्ष पुरुषों की आत्महत्या की संख्या बढ़ती गयी है. 2023 का डॉटा मुझे उपलब्ध नहीं हुआ. यह कहा जा सकता है कुछ आत्महत्याएं इतर कारणों से भी की गयी होंगी. लेकिन तब भी स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की संख्या तीन गुना ही रही होगी और ऎसे पुरुषों की आत्महत्या का कारण लड़की और उसके परिवार वाले ही रहे होंगे. इस विषय पर न्यायपालिका,विधायिका, कार्यपालिका, समाज के जागरूक लोगों, संस्थाओं को गंभीर चर्चा करना आवश्यक है. ऎसा इसलिए कह रहा हूं कि आज बहुत से युवक विवाह करने से बचने लगे हैं. दक्षिण कोरिया और जापान में लड़कियां रूढ़िवादी कारणों से विवाह से बच रही हैं, जबकि वहां ऎसा कुछ भी नहीं है. दक्षिण कोरिया इस बात से परेशान है कि यदि यही स्थिति रही तो एक समय के बाद वहां लोग नहीं बचेंगे. जबकि भारत में लड़के केवल अतुल और निशांत जैसे युवकों की स्थिति देखकर विवाह नहीं करना चाह रहे. विषय गंभीर है.

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