सोमवार, 23 नवंबर 2009

कविता


रश्मि प्रभा की कविता
माता का अपमान...

सतयुग बीता

हर नारी को सीता बनने की सीख मिली

जनकसुता,राम भार्या

सात फेरों के वचन लिए वन को निकली

होनी का फिर चक्र चला

सीता का अपहरण हुआ

हुई सत्य की जीत

जब रावन का संहार हुआ.


पर साथ साथ ही इसके शंका का समाधान

हुआ हुई सीता की अग्नि-परीक्षा

तब जाकर स्थान मिला !!!???

अनुगामिनी बन लौटी अयोध्या

धोबी न फिर घात

गर्भवती सीता का तब राम ने परित्याग किया .....

बढ़ी लेखिनी वाल्मीकि की

लव और कुश का हुआ

जनम सीता ने दी पूरी

शिक्षा क्षत्रिय कुल का मान किया.....

हुआ यज्ञ अश्वमेध का

लव-कुश ने व्यवधान दिया

सीता ने दे कर परिचय

युद्ध को एक विराम दिया.


पर फिर आई नयी

कसौटी किसके पुत्र हैं ये लव-कुश???

धरती माँ की गोद

समाकर दिया पवित्रता का परिचय.......

अब प्रश्न है ये उठता

क्या सीता ने यही किया?

या दुःख के घने साए में

खुदकुशी को आत्मसात किया???

जहाँ से आई थी सीता

वहीं गयी सब कर रीता!

सीता जैसी बने अगर सब

तो सब जग है बस रीता!

सत्य न देखा कभी किसी ने

सीता को हर पल दफनाया

किया नहीं सम्पूर्ण रामायण

माता का अपमान किया...
******

मैं रश्मि प्रभा , सौभाग्य मेरा कि मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ और मेरा नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और मेरे नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ मेरे नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन" , शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है. अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं...
इन शब्दों की यात्रा तब से आरम्भ है, जब मन एक उड़ान लेता है और अचानक जीवन अपनी जटिलता , अनगिनत रहस्य लिए पंखों को तोड़ने लगती है.......

जी हाँ ऐसे में पन्त की रचना ही सार्थक होती है-
"वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान "
http://lifeteacheseverything.blogspot.com/

8 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Rajnish Kumar ने कहा…

बहुत सही रचना है, सतयुग से लेकर कलियुग तक स्त्री-सशक्तीकरण की बातें तो होती आयी हैं, पर वस्तुतः उनकी स्वतंत्रता का हनन करने हेतु हमलोग हर वखत तैयार रहते हैं । आश्चर्य तो तब होता है जब एक स्त्री को दूसरी स्त्री ही प्रताड़ित करती हैं, शायद पुरुषों से ज्यादा । दोहरा चरित्र है मेरा, उनका, सबका । रामायण-महाभारत युग से आज तक हमलोग स्त्री स्वतंत्रता हेतु अपने को मानसिक रुप से तैयार नहीं कर पाए हैं, महिलाएँ भी द्वंद में हैं ।

डाॅ रामजी गिरि ने कहा…

मैंने तो शुरू से ही राम-राज्य के इस कलंक पर प्रश्न उठाया है ....

मर्यादा-पुरुषोत्तम ???????

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

rashmi ji,

bahut sarthak prashn uthaaya hai....sochane wali baat hai ki hum Seeta ko adarsh maante hain...lekin ek tarah se unhone khudkushi hi ki thee....itna apmaan sah kar..vicharotejak rachna hai...badhai

बेनामी ने कहा…

विश्वास नही तुम्हे ?
इतने लम्बे अरसे साथ रहने पर तो
नस नस से परिचित हो जाते है दोनों एक दुसरे के
मात्र किसी के कह देने भर से त्याग दी गई 'सीता'
कौन सा आदर्श स्थापित करना चाहते थे प्रभु ?
इतनी कमजोर भी नही थी कि-
विरोध भी नही कर सकती थी इस अन्याय के लिए
तब भी सर झुका कर स्वीकार किया '
आज भी सामान्य स्त्री के रूप मे सब स्वीकार कर लेती हूँ
इसलिए कि तुम्हे ,तुम्हारे सम्मान को प्यार करती हूँ
पर...तुम न पहले समझे थे ,ना अब समझ पाओगे
पर मैं ....कल भी वही थी,आज भी वही हूँ
तुम्हे तुमसे भी ज्यादा 'जानने'प्यार करने वाली ..
बार बार 'सब्र' की परीक्षा ना लो राम !
sahmt n ho,par amrthya hone ke baad bhi 'virodh' nhi karanaa hamaari kmjori nhi ,hmara pyar aur smman raha hai .
sunder likha hai ,aaj bhi shashvt stya ...

PRAN SHARMA ने कहा…

RASHMI PRABHA JEE KEE SASHAKT
KAVITA BAHUT KUCHH SOCHNE KE
LIYE VIVASH KARTEE HAI.URDU
MEIN EK SHABD HAI -- AAMAD
YANI BHAVON KAA AAPNE AAP HRIDAY
MEIN AANAA. YE KAVITA AAMAD HEE
KAHEE JAAYEGEE.RASHMI JEE KO
HARDIK BADHAAEE.

वाणी गीत ने कहा…

रश्मि जी ,
मैं अपनी ही कविता की पंक्ति लिख देती हूँ ...
स्त्रियाँ आज भी होती है सीता सी
सुख वैभव का त्याग कर
पति के साथ वनगमन को तत्पर
मगर अब नहीं सजाती हैं वे स्वयं अपनी चिता
अब नहीं देती हैं वे अग्नि परीक्षा ...

अब कोई सीता अग्नि परीक्षा नहीं देगी ...नहीं देना चाहिए ....!!

PRAN SHARMA ने कहा…

RASHMI PRABHA JEE NE SEEDHEE-SAADEE BHASHA MEIN EK VICHAARNIY
KAVITA KAHEE HAI.MEREE HARDIK
BADHAAEE.