यतीन्द्रनाथ राही की तीन गज़लें
(१)
महकते दिन
फिर उतर आए पलाशों इन दहकते दिन
वादियों की देह दुलराते थिरकते दिन .
हो गए गैं फिर हवाओं के चलन चंचल
छेड़ते गैं हर गली-आंगन बहकते दिन .
बांधकर पायल, फसल के पांव में रुन-झुन,
झुरमुटों में झूलते हैं , फिर कुहकते दिन .
शकुन आंगन, डाल पर फूटे नए पीके
बोलते हैं फिर मुंडेरी पर फुदकते दिन .
चढ़ रहे पीली उमर पर , रंग कुमकुम के
लग रहे अंगूर के आसव छलकते दिन .
हैं दिशाओं के पलक पर,मौंन आमंत्रण
प्यार के अनुबध लिखते हैं, महकते दिन .
*****
फिर उतर आए पलाशों इन दहकते दिन
वादियों की देह दुलराते थिरकते दिन .
हो गए गैं फिर हवाओं के चलन चंचल
छेड़ते गैं हर गली-आंगन बहकते दिन .
बांधकर पायल, फसल के पांव में रुन-झुन,
झुरमुटों में झूलते हैं , फिर कुहकते दिन .
शकुन आंगन, डाल पर फूटे नए पीके
बोलते हैं फिर मुंडेरी पर फुदकते दिन .
चढ़ रहे पीली उमर पर , रंग कुमकुम के
लग रहे अंगूर के आसव छलकते दिन .
हैं दिशाओं के पलक पर,मौंन आमंत्रण
प्यार के अनुबध लिखते हैं, महकते दिन .
*****
(२)
क्या कहें
पूछा तो आपने, भला हालात क्या कहें ?
गुज़रे हैं किस तरह से ये, लम्हात क्या कहें ?
तरसे हैं छटपटाए हैं, अलफा़ज के लिए,
मेरे घुटे घुटे से ये , जज़बात क्या कहें ?
अन्याय-झूठ-भ्रष्टता , छल -छद्म- नफरते ,
जो मिल रहे हैं रोज़, इनामात क्या कहें ?
भूखों के हाथों रोटियां, साबुत नहीं लगीं
बांटी गई लंगोटियों की, बात क्या कहें ?
लेने में सांस सत्य का,घुटने लगा है दम,
बिकते हुए ईमान की, औका़त क्या कहें ?
सब जल गया , ज़मीर-मोहब्बत-खुलूस-इल्म,
ऎसी हुई तेज़ाब की, बरसात क्या कहें ?
सूरज भी बिक चुका है, स्याह रात के हाथों,
हम कल सुबह के और, अलामात क्या कहें ?
आओ! कि एक बार तो, आईना देख लें ,
चेहरों पर पुती कालिखों की, बात क्या कहें ?
राही कही इंसानियत, हमको भुला न दे ,
कल पीढि़यां भोगेंगीं जो, आघात क्या कहें ?
*****
(३)
सौ जनम के लिए
सोचते हम रहे सौ जनम के लिए .
सांस में दम नहीं, दो कदम के लिए .
कंठ तक पंक में डूबने को खड़े,
हाथ ऊंचे हैं पूजा-धरम के लिए .
आदमी, आदमी है , कि चट्टान है,
शीश झुकता नहीं , शरम के लिए .
एक चेहरा गुनाहों का, घूंघट में है ,
एक चेहरा धरे हैं, भरम के लिए .
ज़िन्दगी का खुलापन, गज़ब हो गया,
अब न पर्दे रहे हैं, हरम के लिए .
आचरण, नीति-निष्ठा हुए बेदखल ,
अब बचा ही कहां कुछ, क्सम के लिए.
क्या सितम तख्त पर, आज शैतान है,
हाथ बांधे है आदम, करम के लिए .
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परिचय
यतीन्द्रनाथ राही का जन्म ३१ दिसम्बर, १९२६ को भारौल, जिला मैंनपुरी (उ.प्र.) में हुआ था.
शिक्षा : एम.ए. बी-एड.
मध्य शिक्शा विभाग से सेवा निवृत्त.
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन .
प्रकाशित पुस्तकें : पुष्पांजलि , बांसुरी, दर्द पिछड़ी जि़न्दगी का, रेशमी अनुबन्ध, बाहों भर आकाश, महाप्राण (खंड काव्य).
संपर्क : ए-५४, रजत विहार, होशगांबाद रोड, भोपाल-२६
मोबाईल : ०९६८५३४१०२०
०९९९३५०११११
12 टिप्पणियां:
mujhko rachnayen rucheen. sadhuvaad.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
राही जी का परिचय बहुत अच्छा लगा और हर गज़ल उस्तादाना है उन्हें बहुत बहुत शुभकामनायें आपका भी धन्यवाद शुभकामनायें
बहुत बढ़िया गजलें प्रेषित की हैं।आभार।
pehlee baar padaa hei Rahi jee ko unhen in sundar gajlon ke liye badhai deta hoon
यतीन्द्र नाथ राही की ग़ज़लों में ज़िन्दगी की तड़प है सुन्दर विम्ब विधान की इन ग़ज़लों के लिए रचनाकार को बधाई और चंदेल जी को इस चुनाव के लिए धन्यवाद.
राही जी की ग़ज़लें अच्छी हैं। परन्तु पहली ग़ज़ल के पहले दो शे'रों में शायद टाइपिंग के चलते कुछ शब्द गलत चले गए हैं। रचनाओं के आरम्भ में ही ऐसी गलतियां बहुत खलती हैं।
SHRI YATEENDRA NATH " RAHI" KEE
TEEN GAZALEN BADE MANOYOG SE
PADH GAYYAA HOON.BHAAV ACHCHHE HAIN
LEKIN KAHIN TYPING KEE GALTEE HAI
AUR KAHIN BAHAR ( CHHAND ) KEE.
DOOSREE GAZAL KE DO MISRON KO
KAVI RAHEE SAHIB ACHCHHEE TARAH
NIBHA NAHIN PAAYE HAIN.NEECHE KE
DONON ASHAAR VAZAN KEE WAZAH SE
KHAARIZ HAIN--
SOORAJ BHEE BIK CHUKA HAI
SIYAAH RAAT KE HAATHON
----------
CHEHRON PAR PUTEE
KAALIKHON KEE BAAT KYA KAHEN
PAHLE MISRE MEIN " HAATHON"
YANI 2 2 ( HINDI MEIN- S S )KO
HTHON YANI 1 2 ( HINDI MEIN- I S )
KE WAZAN MEIN PRAYUKT KIYA GAYAA
HAI.MISRA YUN PADHAA JAAYE TO SAHEE
HAI---
SOORAJ BHEE BIK CHUKA HAI
SIYAAH RAAT KE HTHON
DOOSRE MISRE KO " PAR "
AUR " PUTEE " GADBADAA RAHE HAIN.
" PAR " KE STHAN PAR " PE " SHABD
AUR " PUTEE " KE STHAAN PAR 2 1
( HINDI MEIN S I ) KE WAZAN KAA
SHABD HONA CHAHIYE . DEKHIYE MISRA
YUN KAHAA JAANAA CHAIYE--
CHEHRON PE KAALIKHON KEE
PUTEE BAAT KYA KAHEN
chandel bhayee,
varishtha kavi rahiji ki gajlon mein sadhe kalam ka jor sahaj dikhta hai.is avastha mein bhi unki rachnatmak shakti mujhe chakit karti hai.ishwar unhen shatayu kare aur isi tarah swastha rakhe taaki sahitya unse labhanvit hota rahe.
krishnabihari
Priya Shri.Sharmaji
Anmol sat paramarsh ke liye aabhari hoon.
Shri.Sanjeev Varma, Nirmala Kapila,Paramjeet baali, Ashok Andrey, Suresh Yadav, Subhash Neeram and Shri.Krishna Bihari, aap sabko bhi dil se dhanyavaad.
sasneha Yatindra Nath Rahi
Bahut acchi gazalein hain.
Ila
Sampaadak jee,
kripya sudhar kar dein.
gazal no:1-
sher no:1-
plaashon PAR(in ki jagah)
sher no:2-
ho gaye HAIN(gein ki jagah)
chedte HAIN(gain ki jagah)
thankyou
Yatindra Nath Rahi
rahi ji ki gajalon mai ek alag ehsaas hai ek alag madhurta hai,, but pran sharma ji jaise log kewal dusro mai kamiyan khojte hai aur aise log apne aap mai ek kami ban jate hai......
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