भूमिका
अबाधित पठनीयता
रूपसिंह चन्देल
‘विष्णुगुप्त चाणक्य’ जैसे कालजयी उपन्यास के प्रणेता वरिष्ठ रचनाकार वीरेन्द्रकुमार गुप्त की कृतियों में न केवल जीवन की वैविध्यता परिलक्षित है प्रत्युत उनका विशिष्ट जीवन-दर्शन भी उद्भासित है । उनके उपन्यास ‘प्रियदर्शी’ और ‘विजेता’ बौद्धदर्शन की एकदम नवीन व्याख्या प्रस्तुत करते हैं तो पस्तुत उपन्यास ‘जीवन के सात रंग’ में वह प्रेम के सात रूपों को सहज और सरल रूप में चित्रित करने में सफल रहे हैं । न केवल उनके पूर्व प्रकाशित उपन्यासों बल्कि प्रस्तुत उपन्यास से भी यह सिद्ध होता है कि वह कथाकार मात्र नहीं , चिन्तक , विचारक और विश्लेशक भी हैं और ये विशेषताएं उन्हें अन्य समकालीन रचनाकारों से अलगाती हैं ।
आजीवन साहित्य और शिक्षा , अध्ययन और अध्यापन के लिए समर्पित वीरेन्द्र जी सदैव भीड़ से अलग रहकर एक साधक की भांति कर्मलीन रहे, आत्म-प्रक्षेपण की कला वे न सीख सके और शायद यही कारण रहा कि उनके साहित्यिक अवदान का प्राप्य उन्हें नहीं मिल सका । उन्होंने जैनेन्द्र जी का अभूतपूर्व साक्षात्कार किया , जो ‘समय और हम’ शीर्षक से जैनेन्द्र जी के नाम से प्रकाशित हुआ । यह विश्व में एक साहित्यकार का एक साहित्यकार द्वारा किया गया सबसे वृहद् साक्षात्कार है , जिसमें साक्षात्कर्ता अर्थात वीरेन्द्र जी को पृष्ठभूमि में डाल दिया गया।
वीरेन्द्र जी परिवेश , वातावरण और पात्रानूकूल भाषा का निर्वाह कर कृति को प्रवाहमय और सरस बना देते हैं । शिल्प के प्रति न वह लापरवाह हैं और न ही दुराग्रही । पात्रों और घटनाओं को वे उनके अपने अंतर्वेग से बहने देते हैं, उन पर छाते नहीं । पाठक भी उनकी दृष्टि से कभी ओझल नहीं होता ।
‘जीवन के सात रंग’ का केन्द्रीय विषय प्रेम है । ‘प्रेम’ शब्द कहने-सुनने में जितना सामान्य प्रतीत होता है उतना ही यह गूढ़ है । दो खण्डों में विभक्त इस उपन्यास में वर्तमान से लेकर पूर्वजन्म के प्रेम से पाठक का साक्षात होता है । मंजु और कमल का प्रेम उनमें से एक है जिसमें नारी का एक ऐसा स्वरूप प्रकट होता है जो अपने पूर्व प्रेमी अर्थात् कमल से घृणा करने के बावजूद उसे अंत तक अंतर्तम से प्रेम करती रहती है । प्रेम के भिन्न-भिन्न रूपों को चित्रित करते इस उपन्यास में आद्यंत औत्सुक्य और अबाधित पठनीयता विद्यमान है ।
01.03.2010
अबाधित पठनीयता
रूपसिंह चन्देल
‘विष्णुगुप्त चाणक्य’ जैसे कालजयी उपन्यास के प्रणेता वरिष्ठ रचनाकार वीरेन्द्रकुमार गुप्त की कृतियों में न केवल जीवन की वैविध्यता परिलक्षित है प्रत्युत उनका विशिष्ट जीवन-दर्शन भी उद्भासित है । उनके उपन्यास ‘प्रियदर्शी’ और ‘विजेता’ बौद्धदर्शन की एकदम नवीन व्याख्या प्रस्तुत करते हैं तो पस्तुत उपन्यास ‘जीवन के सात रंग’ में वह प्रेम के सात रूपों को सहज और सरल रूप में चित्रित करने में सफल रहे हैं । न केवल उनके पूर्व प्रकाशित उपन्यासों बल्कि प्रस्तुत उपन्यास से भी यह सिद्ध होता है कि वह कथाकार मात्र नहीं , चिन्तक , विचारक और विश्लेशक भी हैं और ये विशेषताएं उन्हें अन्य समकालीन रचनाकारों से अलगाती हैं ।
आजीवन साहित्य और शिक्षा , अध्ययन और अध्यापन के लिए समर्पित वीरेन्द्र जी सदैव भीड़ से अलग रहकर एक साधक की भांति कर्मलीन रहे, आत्म-प्रक्षेपण की कला वे न सीख सके और शायद यही कारण रहा कि उनके साहित्यिक अवदान का प्राप्य उन्हें नहीं मिल सका । उन्होंने जैनेन्द्र जी का अभूतपूर्व साक्षात्कार किया , जो ‘समय और हम’ शीर्षक से जैनेन्द्र जी के नाम से प्रकाशित हुआ । यह विश्व में एक साहित्यकार का एक साहित्यकार द्वारा किया गया सबसे वृहद् साक्षात्कार है , जिसमें साक्षात्कर्ता अर्थात वीरेन्द्र जी को पृष्ठभूमि में डाल दिया गया।
वीरेन्द्र जी परिवेश , वातावरण और पात्रानूकूल भाषा का निर्वाह कर कृति को प्रवाहमय और सरस बना देते हैं । शिल्प के प्रति न वह लापरवाह हैं और न ही दुराग्रही । पात्रों और घटनाओं को वे उनके अपने अंतर्वेग से बहने देते हैं, उन पर छाते नहीं । पाठक भी उनकी दृष्टि से कभी ओझल नहीं होता ।
‘जीवन के सात रंग’ का केन्द्रीय विषय प्रेम है । ‘प्रेम’ शब्द कहने-सुनने में जितना सामान्य प्रतीत होता है उतना ही यह गूढ़ है । दो खण्डों में विभक्त इस उपन्यास में वर्तमान से लेकर पूर्वजन्म के प्रेम से पाठक का साक्षात होता है । मंजु और कमल का प्रेम उनमें से एक है जिसमें नारी का एक ऐसा स्वरूप प्रकट होता है जो अपने पूर्व प्रेमी अर्थात् कमल से घृणा करने के बावजूद उसे अंत तक अंतर्तम से प्रेम करती रहती है । प्रेम के भिन्न-भिन्न रूपों को चित्रित करते इस उपन्यास में आद्यंत औत्सुक्य और अबाधित पठनीयता विद्यमान है ।
01.03.2010
बी-3/230 , सादतपुर विस्तार ,
दिल्ली - 110 094
मो. 09810830957
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जीवन के सात रंग - वीरेन्द्र कुमार गुप्त
भावना प्रकाशन, A-109, पटपड़गंज,
दिल्ली - ११० ०९१
पृष्ठ -२२५, मूल्य - २५०/-
3 टिप्पणियां:
Virendra Kumar Gupta aur unkee
rachnadharmita ke baare mein
padh kar bahut achchha laga hai .
Un jaese kaee rachnakaar hain jinko
maun saadhna mein hee aanand milta
hai . Roop jee , aap sadaa aese
maun saadhkon kaa prichay pathkon
se karwaate hain . Aap badhaaee ke
patr hain .
आप पुस्तकों की इतनी बढ़िया ढंग से समीक्षा करते हैं कि समीक्षा पढ़ कर पुस्तक को पढ़ने की इच्छा जाग उठी है। ‘जीवन के सात रंग’ की समीक्षा भी जिज्ञासा जगाने वाली है। बधाई।
सृजनशीलता ही अच्छे साहित्यकार की जननी है। विरेन्द्र कुमार गुप्ता जी के बारे मे और उपन्यास की समीक्षा के लिये धन्यवाद।
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