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युवा कवयित्री अल्पना भारती की दो कविताएं
(१)
आदमी का खोल पहनकर,
कुछ-कुछ आदमी हो जाता हूँ
रोता हूँ, हँसता हूँ,
पर ज़्यादातर चुप रहता हूँ
सोचता भी हूँ
बड़ी बातों पर कम,छोटी बातो पर ज्यादा
जब वक़्त पुकारता है,उठ, खड़ा हो,
अपनी सोच को आवाज़ दे,बोल!
तो चुप रह जाता हूँ.
और जब बोलने से बात बिगड़ जाती है,
मन मैं कुछ चिटक कर रह जाता है
और सोचता हूँ की मैं क्यों बोला,
तो पाता हूँ की मैं बोल जाता हूँ
अभी कल,
उन्होंने बुलाया बोलने
मैं गया नहीं
लगा ,क्यूँ बोलूं,बोलने से क्या होगा
तो आदमी की तरह चुप रह और नहीं बोला.
आज उन्होंने नहीं बुलाया,मुझे बोलने नहीं बोला .
पर पता नहीं क्यूँ ?कुछ कसमसा रहा है,
कुछ है जो जीने नहीं दे रहा
सांस खुलकर नहीं आ रही
बड़ी बैचैनी सी है
क्या चुप रहूँ ?या कुछ बोलूं?
ये चक्रवात सा क्या है?
मेरी आत्मा में
अर्रें आत्मा!!
ये क्या है? क्या बला है ?
कभी लगा ही नहीं की मुझ में भी एक आत्मा है,
जिसका रिश्ता सिर्फ मेरे बदन से नहीं,
सिर्फ मेरे वजूद से नहीं, पूरी कायनात से है
हर आत्मा से है,भगवान् से है
(सुनते तो यही आये हैं,शायद सच हो?)
मुझमें भी आत्मा है!
अब सिर्फ एक "आदमी" नहीं रहा मैं
हाँ!
हाँ!जो कल रात मेरे घर मैं आग लगाई गयी तो मेरा खोल जल गया शायद
मेरा आदमी का खोल जल गया
अब आदमी नहीं रहा मैं
आदमी का खोल नहीं पहनता
खुल कर बोलता हूँ
अपनी आत्मा की आवाज़ पर
हर किसी के लिए
हाँ! हर किसी आत्मा के लिए
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(२)
लरज़ती आवाज़ से जब निकलते हैं दहकते सवाल
ज़माना सहम जाता हैं
ज़वाब कहीं नहीं होते,
देने पड़ते है इम्तिहान,
खून की स्याही से लिख-लिख कर,
तब कहीं जाकर अखब़ार के कुछ पन्नो पर खबर छपती हैं.
ग़र खूं पानी हैं तो ख़बर भी बासी होंगी
ग़र खूं में उबाल नहीं तो ख़बर क्यों कर झकझोर पाएगी
नसों मैं जोश उबाला ले
खूं लावे की तरह गर्म
और दिल मैं अपना ही नहीं ,ज़माने का दर्द हो तो उठो,और पीछे देखो,
एक हुजूम तुम्हारे साथ है
तुम्हारे तेवर उसका बर्दाश्त है,
आगे बढ़ो
कायनात तुम्हारे साथ है.....
****
अल्पना भारती
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शिक्षा-स्नातकोत्तर (इतिहास).
• भरतनाट्यम में पारंगत
• विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं और कहानियां प्रकाशित.
पता - के -१,साऊथ पार्क,सेरिलिंगाम्पल्ली,
हैदराबाद.
ई मेल : alpanabharati@gmail.com
3 टिप्पणियां:
ALPANAA BHARTI KEE DONON KAVITAAON
KE TEVAR ACHCHHE LAGE HAIN . DOOSRI
KAVITA AGAR LAY ( CHHAND ) MEIN
HOTEE TO BAAT HEE KUCHH AUR HOTEE.
नसों मैं जोश उबाला ले
खूं लावे की तरह गर्म
और दिल मैं अपना ही नहीं ,ज़माने का दर्द हो तो उठो,और पीछे देखो,
एक हुजूम तुम्हारे साथ है
तुम्हारे तेवर उसका बर्दाश्त है,
आगे बढ़ो
कायनात तुम्हारे साथ है.....
अल्पना भारती की दोनों कविताएं ध्यानाकर्षित करती हैं, लेकिन दूसरी कविता में व्यक्त कवयित्री का स्वर विद्रोही है और यह स्वर आज की युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए पर्याप्त है. आज जब देश सभी मंत्री-नेता अरबों के घोटालों में डूबे हुए हैं तब युवाजन से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वह ट्यूनीशिया और मिश्र की जनता की भांति उठ खड़े हों जिससे इन भ्रष्ट लोगों से मुक्ति पायी जा सके.
अल्पना भारती को बधाई और कविताएं पढ़वाने के लिए चन्देल का आभार.
मनोज रंजन
सुन्दर कविताएं हैं। कविता के प्रेमी का ध्यान अपनी ओर खींचने की इनमें भरपूर क्षमता है। बधाई !
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