सुधा ओम ढींगरा की दो लघु कहानियां
लड़की थी वह------
कड़ाकेदार सर्दी की वह रात थी. घर के सभी सदस्य रजाइयों में दुबके पड़े थे. दिन भर से बिजली का कट था जो पंजाब वासियों के लिए आम बात है. इन्वर्टर से पैदा हुई रौशनी में खाने पीने से निपट कर, टी.वी न देख पाने के कारण समय बिताने के लिए अन्ताक्षरी खेलते-खेलते सब सर्दी से ठिठुरते रजाइयों में घुस गए थे. दिसम्बर की छुट्टियों में ही हम दो तीन सप्ताह के लिए भारत जा पातें हैं. बेटे की छुट्टियां तभी होतीं हैं. दूर दराज़ के रिश्तेदारों को पापा घर पर ही मिलने के लिए बुला लेतें हैं. उन्हें लगता है कि हम इतने कम समय में कहाँ-कहाँ मिलने जायेंगे. मिले बिना वापिस भी नहीं आया जाएगा. हमारे जाने पर घर में खूब गहमागहमी और रौनक हो जाती है. बेटे को अमेरिका की शांत जीवन शैली उपरांत चहल-पहल बहुत भली लगती है. हर साल हम से पहले भारत जाने के लिए तैयार हो जाता है. दिन भर के कार्यों से थके मांदे रजाइयों की गर्माहट पाते ही सब सो गए. करीब आधी रात को कुत्तों के भौंकनें की आवाज़ें आनी शुरू हुई...आवाज़ें तेज़ एवं ऊंचीं होती गईं. नींद खुलनी स्वाभाविक थी. रजाइयों को कानों और सिर पर लपेटा गया ताकि आवाज़ें ना आयें पर भौंकना और ऊंचा एवं करीब होता महसूस हुआ जैसे हमारे घरों के सामने खड़े भौंक रहें हों.....हमारे घरेलू नौकर-नौकरानी मीनू- मनु साथवाले कमरे में सो रहे थे. उनकी आवाज़ें उभरीं--'' रवि पाल (पड़ौसी) के दादाजी बहुत बीमार हैं, लगता है यम उन्हें लेने आयें हैं और कुत्तों ने यम को देख लिया है ''''नहीं, यम देख कुत्ता रोता है, ये रो नहीं रहे ''''तो क्या लड़ रहें हैं''''नहीं लड़ भी नहीं रहे '''''ऐसा लगता है कि ये हमें बुला रहें हैं''''मैं तो इनकी बिरादरी की नहीं तुम्हीं को बुला रहे होंगें''बाबूजीकी आवाज़ उभरी---मीनू, मनु कभी तो चुप रहा करो. मेरा बेटा अर्धनिद्रा में ऐंठा--ओह! गाश आई डोंट लाइक दिस. तभी हमारे सामने वाले घर का छोटा बेटा दिलबाग लाठी खड़काता माँ बहन की विशुद्ध गालियाँ बकता अपने घर के मेनगेट का ताला खोलने की कोशिश करने लगा. जालंधर में चीमा नगर (हमारा एरिया)बड़ा संभ्रांत एवं सुरक्षित माना जाता है. हर लेन अंत में बंद होती है. बाहरी आवाजाई कम होती है. फिर भी रात को सभी अपने-अपने मुख्य द्वार पर ताला लगा कर सोते हैं.उसके ताला खोलने और लाठी ठोकते बहार निकलने की आवाज़ आई. वह एम्वे का मुख्य अधिकारी था और पंजाबी की अपभ्रंश गालियाँ अंग्रेज़ी लहजे में निकल रहीं थीं. लगता था रात पार्टी में पी शराब का नशा अभी तक उतरा नहीं था. अक्सर पार्टियों में टुन होकर जब वह घर आता था तो ऐसी ही भाषा का प्रयोग करता था. उसे देख कुत्ते भौंकते हुए भागने लगे, वह लाठी ज़मीन बजाता लेन वालों पर ऊंची आवाज़ में चिल्लाता उनके पीछे-पीछे भागने लगा ''साले--घरां विच डके सुते पए ऐ, एह नई की मेरे नाल आ के हरामियां नूं दुड़ान- भैन दे टके. मेरे बेटे ने करवट ली--सिरहाना कानों पर रखा--माम, आई लव इंडिया. आई लाइक दिस लैंगुएज. मैं अपने युवा बेटे पर मुस्कुराये बिना ना रह सकी, वह हिन्दी-पंजाबी अच्छी तरह जानता है और सोए हुए भी वह मुझे छेड़ने से बाज़ नहीं आया. मैं उसे किसी भी भाषा के भद्दे शब्द सीखने नहीं देती और वह हमेशा मेरे पास चुन-चुन कर ऐसे-ऐसे शब्दों के अर्थ जानना चाहता है और मुझे कहना पड़ता है कि सभ्य व्यक्ति कभी इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं करते. दिलबाग हमारे घर के साथ लगने वाले खाली प्लाट तक ही गया था( जो इस लेन का कूड़ादान बना हुआ था और कुत्तों की आश्रयस्थली) कि उसकी गालियाँ अचानक बंद हो गईं और ऊँची आवाज़ में लोगों को पुकारने में बदल गईं --जिन्दर, पम्मी, जसबीर, कुलवंत, डाक्डर साहब(मेरे पापा)जल्दी आयें. उसका चिल्ला कर पुकारना था कि हम सब यंत्रवत बिस्तरों से कूद पड़े, किसी ने स्वेटर उठाया, किसी ने शाल. सब अपनी- अपनी चप्पलें घसीटते हुए बाहर की ओर भागे. मनु ने मुख्य द्वार का ताला खोल दिया था. सर्दी की परवाह किए बिना सब खाली प्लाट की ओर दौड़े. खाली प्लाट का दृश्य देखने वाला था. सब कुत्ते दूर चुपचाप खड़े थे. गंद के ढेर पर एक पोटली के ऊपर स्तन धरे और उसे टांगों से घेर कर एक कुतिया बैठी थी. उस प्लाट से थोड़ी दूर नगरपालिका का बल्ब जल रहा था. जिसकी मद्धिम भीनी-भीनी रौशनी में दिखा कि पोटली में एक नवजात शिशु लिपटा हुआ पड़ा था और कुतिया ने अपने स्तनों के सहारे उसे समेटा हुआ था जैसे उसे दूध पिला रही हो. पूरी लेन वाले स्तब्ध रह गए. दृश्य ने सब को स्पंदनहीन कर दिया था. तब समझ में आया कि कुत्ते भौंक नहीं रहे थे हमें बुला रहे थे.''पुलिस बुलाओ '' एक बुज़ुर्ग की आवाज़ ने सब की तंद्रा तोड़ी. अचानक हमारे पीछे से एक सांवली पर आकर्षित युवती शिशु की ओर बढ़ी. कुतिया उसे देख परे हट गई. उसने बच्चे को उठा सीने से लगा लिया. बच्चा जीवत था शायद कुतिया ने अपने साथ सटा कर, अपने घेरे में ले उसे सर्दी से यख होने से बचा लिया था. पहचानने में देर ना लगी कि यह तो अनुपमा थी जिसने बगल वाला मकान ख़रीदा है और अविवाहिता है. सुनने में आया था की गरीब माँ-बाप शादी नहीं कर पाए और इसने अपने दम पर उच्च शिक्षा ग्रहण की और स्थानीय महिला कालेज में प्राध्यापिका के पद पर आसीन हुई. यह भी सुनने में आया था कि लेन वाले इसे संदेहात्मक दृष्टि से देखतें हैं. हर आने जाने वाले पर नज़र रखी जाती है. लेन की औरतें इसके चारित्रिक गुण दोषों को चाय की चुस्कियों के साथ बखान करतीं हैं. जिस पर पापा ने कहा था'' बेटी अंगुली उठाने और संदेह के लिए औरत आसान निशाना होती है. समाज बुज़दिल है और औरतें अपनी ही ज़ात की दुश्मन जो उसकी पीठ ठोकनें व शाबाशी देने की बजाय उसे ग़लत कहतीं हैं. औरत-- औरत का साथ दे दे तो स्त्रियों के भविष्य की रूप रेखा ना बदल जाए, अफसोस तो इसी बात का है कि औरत ही औरत के दर्द को नहीं समझती. पुरूष से क्या गिला? बेटा, इसने अपने सारे बहन-भाई पढ़ाये. माँ-बाप को सुरक्षा दी. लड़की अविवाहिता है गुनहगार नहीं.''''डाक्टर साहब इसे देखें ठीक है ना'' ---उसकी मधुर पर उदास वाणी ने मेरी सोच के सागर की तरंगों को विराम दिया. अपने शाल में लपेट कर नवजात शिशु उसने पापा की ओर बढ़ाया-- पापा ने गठरी की तरह लिपटा बच्चा खोला, लड़की थी वह------
दौड़
मैं अपने बेटे को निहार रही थी. वह मेरे सामने लेटा अपने पाँव के अंगूठे को मुँह में डालना चाहता था. और मैं उसके नन्हे-नन्हे हाथों से पाँव का अंगूठा छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. उस कोशिश में वह मेरी अंगुली पकड़ कर मुँह में डालना चाहता था---चेहरे पर चंचलता, आँखों में शरारत, उसकी खिलखिलाती हँसी, गालों में पड़ रहे गड्डे--अपनी भोली मासूमियत लिए वह अठखेलियाँ कर रहा था और मैं निमग्न, आत्मविभोर हो उसकी बाल-लीलाओं का आन्नद मान रही थी की वह मेरे पास आ कर बैठ गई. मुझे पता ही नहीं चला. मैं अपने बेटे को देख सोच रही थी कि यशोदा मैय्या ने बाल गोपाल के इसी रूप का निर्मल आनन्द लिया होगा और सूरदास ने इसी दृश्य को अपनी कल्पना में उतारा होगा.उसने मुझे पुकारा--मैंने सुना नहीं--उसने मुझे कंधे पर थपथपाया तभी मैंने चौंक कर देखा--हंसती, मुस्कराती,सुखी,शांत, भरपूर ज़िन्दगी मेरे सामने खड़ी थी--बोली--''पहचाना नहीं?मैं भारत की ज़िन्दगी हूँ.'' मैं सोच में पड़ गई--भारत में भ्रष्टाचार है, बेईमानी है, धोखा है, फरेब है, फिर भी ज़िन्दगी खुश है. मुझे असमंजस में देख ज़िन्दगी बोली--''पराये देश, पराये लोगों में अस्तित्व की दौड़, पहचान की दौड़ दौड़ते हुए तुम भारत की ज़िन्दगी को ही भूल गई. मैं फिर सोचने लगी--भारत में गरीबी है, भुखमरी है, धर्म के नाम पर मारकाट है, ज़िन्दगी इतनी शांत कैसे है? जिंदगी ने मुझे पकड़ लिया--बोली--भारत की ज़िन्दगी अपनी धरती, अपने लोगों, आत्मीयता, प्यार-स्नेह , नाते-रिश्तों में पलती है. तुम लोग औपचारिक धरती पर स्थापित होने की दौड़ , नौकरी को कायम रखने की दौड़, दिखावा और परायों से आगे बढ़ने की दौड़---मैंने उसकी बात अनसुनी करनी चाही पर वह बोलती गई--कभी सोचा आने वाली पीढ़ी को तुम क्या ज़िन्दगी दोगी? इस बात पर मैंने अपना बेटा उठाया, सीने से लगाया और दौड़ पड़ी---उसका कहकहा गूंजा--सच कड़वा लगा, दौड़ ले, जितना दौड़ना है--कभी तो थकेगी, कभी तो रुकेगी, कभी तो सोचेगी-क्या ज़िन्दगी दोगी तुम अपने बच्चे को--अभी भी समय है लौट चल, अपनी धरती, अपने लोगों में......मैं और तेज़ दौड़ने लगी उसकी आवाज़ की पहुँच से परे--वह चिल्लाई--कहीं देर न हो जाए, लौट चल----मैं इतना तेज़ दौड़ी कि अब उसकी आवाज़ मेरे तक नहीं पहुंचती--पर मैं क्यूँ अभी भी दौड़ रहीं हूँ......
जालंधर(पंजाब) के साहित्यिक परिवार में जन्मी. एम.ए.,पीएच.डी की डिग्रियां हासिल कीं. जालंधर दूरदर्शन, आकाशवाणी एवं रंगमंच की पहचानी कलाकार, चर्चित पत्रकार(दैनिक पंजाब केसरी जालंधर की स्तम्भ लेखिका).कविता के साथ-साथ कहानी एवं उपन्यास भी लिखती हैं. काव्य संग्रह--मेरा दावा है, तलाश पहचान की, परिक्रमा उपन्यास(पंजाबी से हिन्दी में अनुवाद)एवं माँ ने कहा था...कवितायों की सी.डी. है. दो काव्य संग्रह एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है. १)विश्व तेरे काव्य सुमन २)प्रवासी हस्ताक्षर ३)प्रवासिनी के बोल ४) साक्षात्कार ५)शब्दयोग ६)प्रवासी आवाज़ ७)सात समुन्द्र पार से८)पश्चिम की पुरवाई ९) उत्तरी अमेरिका के हिन्दी साहित्यकार इत्यादि पुस्तकों में कवितायें-कहानियों का योगदान. तमाम पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकीं हैं. हिन्दी चेतना(उत्तरी अमेरिका की त्रैमासिक पत्रिका) की सह- संपादक हैं. भारत के कई पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब-पत्रिकाओं में छपतीं हैं. अमेरिका में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अनगिनत कार्य किये हैं. हिन्दी के बहुत से नाटकों का मंचन कर लोगों को हिन्दी भाषा के प्रति प्रोत्साहित कर अमेरिका में हिन्दी भाषा की गरिमा को बढ़ाया है. हिन्दी विकास मंडल(नार्थ कैरोलाइना) के न्यास मंडल में हैं. अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति(अमेरिका) के कवि सम्मेलनों की संयोजक हैं.
'प्रथम' शिक्षण संस्थान की कार्यकारिणी सदस्या एवं उत्पीड़ित नारियों की सहायक संस्था 'विभूति' की सलाहकार हैं.
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