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रविवार, 21 अगस्त 2011

अण्णा की अगस्त क्रान्ति

(चित्र : बलराम अग्रवाल)


रचना समय में इस बार प्रस्तुत है - ’अण्णा की अगस्त क्रान्ति’ और मेरे उपन्यास ’गलियारे’ के चैप्टर १३ और १४.


अण्णा की अगस्त क्रान्ति
(समर्थन में उमड़ा जन सैलाब)
रूपसिंह चन्देल

’जन लोकपाल बिल’ के लिए अण्णा हजारे का अनशन तिहाड़ जेल से निकलकर अब दिल्ली के ऎतिहासिक रामलीला मैदान में जारी है. अण्णा के समर्थन में उमड़ता जन सैलाब गान्धी के आन्दोलनों की याद दिलाता है. १६ अगस्त को सुबह सात बजकर सोलह मिनट पर मयूर विहार के सुप्रीम एन्क्लेव से अण्णा की गिरफ्तारी और पुलिस मेस अलीपुर होते हुए सात दिन की न्यायिक हिरासत में उनके तिहाड़ जेल पहुंचने की गाथा भारत की उस सरकार के इरादों को बेनकाब करती है, जो भ्रष्टाचार और अनेकानेक घोटालों से घिरी हुई है. लूट का ऎसा जनमारक स्वरूप शायद ही विश्व इतिहास में---किसी देश में खोजने से मिले. देश को इस लूट से ’जन लोकपाल बिल’ द्वारा ही मुक्ति मिल सकती है. लेकिन सरकार ने उस बिल को खारिज कर आनन-फानन में अपना ’लोक पाल बिल’ न केवल संसद में प्रस्तुत किया बल्कि उसे स्टैंण्डिंग कमिटी को भी भेज दिया. अब अण्णा के समर्थन में देश के शहरों से लेकर कस्बों-गांवों तक उमड़ते जन सैलाब से अण्णा टीम के विरुद्ध भड़काऊ और अपमानजनक वक्तव्य देने वाले मंत्रियों और कांग्रेस के प्रवक्ताओं की टांगे कांपती नजर आ रही हैं. ऊंचे स्वर में बोलने वालों के स्वर अब धीमे---किसी हद तक फुसफुसाते हुए सुनाई देने लगे हैं. कुछ ने चुप्पी साघ ली है. कुछ आज भी टीम अण्णा को चुनाव लड़कर संसद में आने की चुनौती दे रहे हैं, लेकिन उनके स्वर में भी थकावट स्पष्ट नजर आ रही है. दरअसल सत्ता का मद व्यक्ति की आंखों में पट्टी बांध देता है और वह हकीकत जानते हुए भी उसे झुठलाने का प्रयत्न करता है. भ्रष्टाचार के विरुद्ध अण्णा हजारे के इस महाअभियान के समर्थन में उमड़े जन सैलाब को आज भी नकारने की कोशिश की जा रही है.

कोशिश जनता में भ्रम पैदा करने की भी की जा रही है. इसलिए कुछ नेता यह कहते घूम रहे हैं कि एक अरब पचीस करोड़ जनता में कुछ हजार लोगों का समर्थन यह सिद्ध नहीं करता कि संपूर्ण जनता अण्णा के साथ है. एयर कंडीशण्ड बंगलों में रहने वाले और एयर कंडीशण्ड गाड़ियों में घूमने वाले नेता आम जनता से इस कदर कट चुके हैं कि वे जन भावना का अनुमान नहीं लगा पा रहे. आज घर-घर में अण्णा की चर्चा है---जन-जन अपने को उनसे जुड़ा अनुभव कर रहा है---वह ’जन लोकपाल बिल’ और ’लोक पाल बिल’ के बारे में भले ही न जानता हो, लेकिन वह इतना जानता है कि अण्णा भ्रष्टाचार के विरुद्ध हैं और उसे उनका साथ देना है.

नेताओं की भांति समाज के कुछ ऎसे लोग भी हैं जो अण्णा की इस मुहिम के विरुद्ध बयान दे रहे हैं. मुझे निरंतर ऎसे मेल मिल रहे हैं जिनमें यह कहा जा रहा है कि यह आन्दोलन दलितों के विरुद्ध है. ऎसा कहने वालों में दलित विचारक और स्तंभकार श्री चन्द्रभान प्रसाद भी हैं. चन्द्रभान प्रसाद जी क्या यह बराएंगे कि वह कितने प्रतिशत दलितों का प्रतिनिधित्व करते हैं! क्या वह वास्तव में संपूर्ण दलित समाज का स्वर हैं? उनके अनुसार यह सवर्णॊं का आन्दोलन है, लेकिन भ्रष्टाचार से क्या सवर्ण ही परेशान हैं? सच यह है कि सर्वाधिक दलित समाज ही परेशान है. वे इस सचाई से मुंह क्यों मोड़ रहे हैं कि यह आन्दोलन विशुद्ध रूप से भ्रष्टाचार के विरुद्ध है और जाति- धर्म से ऊपर उठकर है. इस आन्दोलन में सभी वर्ग और जाति-धर्म के लोग हिस्सा ले रहे हैं. उसका विरोध वे लोग कर रहे हैं जो भ्रष्ट सरकार से लाभ ले रहे हैं.

किसी व्यवस्था के विरुद्ध चलने वाले आंदोलन को ध्वस्त करने के लिए व्यवस्था कुछ लोगों और संस्थाओं को खरीद लेती है और उस आन्दोलन के विरुद्ध कुप्रचार के लिए उनका इस्तेमाल करती है. ऎसा पहली बार नहीं हो रहा--- यह अंग्रेजों से विरासत में प्राप्त नीति है. लेकिन सरकार के हाथों बिके कुछ चंद लोग क्या किसी महा अभियान की धार कुंद कर सकते हैं?

किस प्रकार सभी वर्ग और जाति-धर्म के लोग अण्णा के आन्दोलन से जुड़े हुए हैं, इसके दो उदाहरण, जिनका अनुभव मुझे २० अगस्त को रामलीला मैदान में हुआ, प्रस्तुत हैं.

सुबह साढ़े आठ बजे जब मैं रामलीला मैदान पहुंचा, लगभग ढाई-तीन हजार लोग वहां पहले से ही उपस्थित थे. लोगों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी. अण्णा ठीक दस बजे मंच पर आए, पांच मिनट का संक्षिप्त भाषण दिया और घोषणा की कि ३० अगस्त तक सरकार ने यदि ’जन लोकपाल बिल’ संसद में पारित नहीं किया तो देशव्यापी जेल भरो आन्दोलन पुनः प्रारंभ हो जाएगा. श्री अरविन्द केजरीवाल ने बताया कि सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले ’जूडिशियल एकाउण्टिबिलिटी’ बिल की खामियां क्या हैं और उसे भी पुनः ड्राफ्ट किया जाना चाहिए और उसमें भी सिविल सोसाइटी के लोगों की भागीदारी हो. पूर्व विधि मंत्री श्री शांतिभूषण जी ने इंदिरा गांधी द्वारा १९७५ में प्रस्तुत एक बिल के दोनों सदनों में एक ही दिन में पारित करवाने का उदाहरण दिया और कहा कि यदि सरकार में इच्छा शक्ति हो तो वह इस बिल को ३० अगस्त तक पारित करवा सकती है.

शांतिभूषण जी के बाद ’परिवर्तन’ से संबद्ध एक दलित लड़की ने मंच पर आकर श्री चन्द्रभान प्रसाद जैसे लोगों की बात का खण्डन करते हुए कहा कि ’वह एक दलित गरीब परिवार की लड़की है और अण्णा के आन्दोलन से जुड़ी हुई है. उसने बताया कि दलित अण्णा के साथ हैं---अण्णा के आन्दोलन के विरुद्ध भ्रामक प्रचार करने वालों को यह समझ लेना चाहिए.

दोपहर बारह बजे तक भीड़ बीस हजार से ऊपर हो चुकी थी. पौने बारह बजे स्वामी अग्निवेश ने बताया कि गुड़गांव के पास के एक गांव की महिलाओं ने सुबह चार बजे उठकर लगभग डेढ़ हजार लोगों के लिए भोजन तैयार किया और उसे ट्रक में लेकर वे रामलीला मैदान पहुंची. ये दो उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि अण्णा को सभी वर्गों का समर्थन मिल रहा है.

आन्दोलन में किसानों की सक्रिय भागीदारी उल्लेखनीय है. आन्दोलन का दूसरा उल्लेखनीय पक्ष यह है कि अनेक स्वयं सेवी संस्थाएं और निजी तौर पर कुछ लोग उसमें हिस्सा लेने पहुंचे लोगों के लिए फल, बिस्कुट, पानी और भोजन आदि निरंतर बांट रहे थे. हजारों लोगों के लिए यह व्यवस्था करने वालों की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है.

दोपहर दो बजे तक जन सैलाब मेरे अनुमान से पैंतीस हजार का आंकड़ा पार गया था. मैदान के मुख्य द्वार पर खड़े होकर मैंने देखा तो पाया कि उधर आने वाली हर सड़क पर दस-पन्द्रह-बीस-पचीस के जत्थे – ’अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं’, ’वंदे मातरम’, ’भारत माता की जय’ के नारे लगाते रामलीला मैदान की ओर बढ़ते जा रहे थे.
(रचना समय में इसे पोस्ट करने (२१ अगस्त) के समय का समाचार यह है कि अन्ना के समर्थन में आज इंडिया गेट से रामलीला मैदान तक लगभग दो लाख लोगों का सैलाब उमड़ा हुआ था. दो बजे दोपहर मैं रामलीला मैदान के सामने था और देखकर हैरान था कि चारों ओर से पैदल लोगों के झुण्ड, ट्रकों, गाड़ियों, मोटरसाइकिलों पर नारे लगाते लोग जा रहे थे. पुलिस ने कनॉट प्लेस से रामलीला मैदान की ओर जाने वाली सड़क बंद कर दी थी. और शाम होते-होते इंडिया गेट से रामलीला मैदान तक लोग ही लोग थे और आज वे सब अण्णा हजारे थे. बच्चे भी और बूढ़े भी.

केजरीवाल के कल के आह्वान पर आज अनेक मंत्रियों और सांसदों के घरों को लोगों ने घेर रखा था. सरकार के हाथ-पैर फूले हुए हैं और अण्णा का रुख और सख्त हो गया है. आज उन्होंने हुंकार भरते हुए कहा कि ३० अगस्त तक यदि ’जन लोकपाल बिल’ पारित नहीं हुआ तो इस सरकार को जाना होगा.

अब देखना है कि “जोर कितना बाजुए कातिल में है”.

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मेरे मन में वरिष्ठ कवि और गज़लकार हरेराम समीप की वह गज़ल, जिसे कल मंच से कुमार विश्वास ने सुनाया था,

“अराजक समय में उसूलों की बातें,
गज़ब कर रहे हो तुम अन्ना हजारे.”

गूंजने लगी है.

कल घर लौटते हुए मैं जब शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन से बाहर निकला, ऑटो और फीडर बस सेवा वालों का शोर था , लेकिन देर तक मुझे उस शोर में ’अण्णा तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं’ ही सुनाई देता रहा. रात सपने में अण्णा और उनके समर्थन में उमड़ी भीड़ और उसके नारे ही दिखाई और सुनाई देते रहे.
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