बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

पुस्तक चर्चा



हाल में अप्रवासी चर्चित हिन्दी कथाकार और कवयित्री इला प्रसाद का कहानी संग्रह - ’उस स्त्री का नाम’ भावना प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है. संग्रह की भूमिका मैंने लिखी, जो अविकल रूप से रचना समय के पाठकों के लिए प्रस्तुत है :
****
गहन जीवनानुभव की कहानियां

रूपसिंह चन्देल

अपनी रचनात्मक वैविध्यता के कारण प्रवासी हिन्दी साहित्यकारों में इला
प्रसाद की अपनी एक अलग पहचान है। वह न केवल एक सक्रिय और सशक्त कहानीकार
हैं बल्कि एक कवयित्री के रूप में भी उन्होंने अपनी रचनात्मकता को
सार्थकता प्रदान किया है। उनकी कहानियां जीवनानुभवों की सहज और स्वाभाविक
अभिव्यक्ति हैं जिनमें उनकी सूक्ष्म पर्यवेक्षक दृष्टि परिलक्षित है ।
छोटे वाक्य विन्यास और काव्यात्मक भाषा उन्हें आकर्षक बनाते हैं । संग्रह

की एक मार्मिक कहानी ‘एक अधूरी प्रेम कथा’ जिसमें बिना विवाह जन्मी
निमी की पीड़ा को इला ने गहनता से व्याख्यायित किया है, से एक छोटा
उदाहरण दृष्टव्य है ..‘‘वह सहसा उठकर बैठ गई । दीवार से पीठ टिका ली ।
तकिया गोद में । आंखें झुकीं । मुंह से पहली बार बोल फूटे -------
थैं क्यू दीदी ।’’

मैंने सदैव अनुभव किया कि जो कथाकार प्रकृति से कवि होते हैं उनकी
-रचना में काव्यात्मक स्पर्श अनायास ही संभव होता है और अनायास
काव्य-स्पर्शित रचना में प्रभावोत्पादकता अवश्यंभावीरूप से प्रादुर्भूत
हो उठती है । रचना में एक चुंबकीय पठनीयता होती हैए पाठक जिससे आद्यंत
गुजरे बिना मुक्त नहीं हो पाता । इला प्रसाद की कहानियों की यह विशेषता
है । उनकी कहानियों की विशेषता यह भी है कि वे ऐसे विषयों को भी अपने
कथानक का हिस्सा बना देती हैं ,जिनकी ओर सामान्यतया लेखकों का ध्यान
आकर्षित नहीं हो पाता । संग्रह की ‘हीरो’ या ‘मेज’ ऐसी ही कहानियां हैं ।

‘हीरो’ में गार्बेज डिस्पोजर खराब होने से प्रारंभ हुई कहानी प्लंबर जिम
के बहाने अमेरिकी जीवन को सहजता से रेखांकित करती है ,जहां ,‘‘हर जगह
पैसा। हर रिश्ते को ये पैसों से क्यों तौलते हैं ? सारी संवेदनाएं मर गई
हैं जैसे !’’

अमेरिका में रिश्ते किस प्रकार बेमानी हो चुके हैं ,इसका दिल दहला देने
वाला वृत्तांत है ‘उस स्त्री का नाम ’ । यह एक ऐसी भारतीय स्त्री की
कहानी है जो पति की मृत्यु के पश्चात दिल्ली की अपनी नौकरी छोड़कर अमरिका
में बेटे के रियल एस्टेट के व्यवसाय में सहायता करने के लिए अमेरिका जा
बसती है । रहस्य और रोमांच से आवेष्टित इस कहानी में लेखिका अंत में यह
उद्घाटित करती हैं कि जिस बेटे के लिए वह मां दिल्ली की अपनी नौकरी और
बिन ब्याही पैंतालीस वर्षीया बेटी को छोड़ आयी वह अमेरिकी जीवन.”शैली
जीता अपने व्यवसाय और अपने परिवार में डूबा वृद्धा मां को ‘ओल्ड एज लोगों
के रिटायरमेण्ट होम में रहने के लिए छोड़ देता है । संग्रह की अधिकांश
कहानियां अमेरिकी पृष्ठभूमि पर आधारित हैं जो प्रवासी भारतीयों के
जीवनचर्या को आधार बनाकर लिखी गई हैं । ‘मेज’ ,‘होली’ ,‘चुनाव’ ,
‘हीरो’ ,‘मिट्टी का दीया’ ,‘कुंठा’ आदि ।

इला प्रसाद की कहानियों में हमें मानवीय संवेदनाओ का सूक्ष्म विवेचन
प्राप्त होता है । ‘एक अधूरी प्रेम कथा’ए ‘मेज’ ए ‘उस स्त्री का नाम ’
आदि कहानियां इसका ज्वलंत उदाहरण हैं । प्रवासी भारतीयों की मनः स्थिति
को पकड़ पाने में लेखिका सफल रही हैं । इनमें जीवन गहनता से चित्रित हुआ
है । अमेरिका की अनेक संस्थाएं भारत के गांवों में अस्पताल /विद्यालय और
आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए धन संग्रह कर भारत भेजती हैं । लेकिन
कितना विकास होता है यहां और कितने विद्यालय/अस्पताल खुलते हैं या खुलकर
अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं ! ‘मिट्टी का दीया’ में इला प्रसाद की
दुश्चिंता स्पष्ट है .. ‘‘उसे इन संस्थाओं से जुड़े लोगों की नीयत पर
भरोसा न हो यह बात नहीं । पैसा भारत पहुंचता होगा ,लेकिन क्या सही लोगों
तक भी पहुंच जाता होगा घ् सारा का सारा ? क्या जानकीवल्लभ शास्त्री की
पंक्तियां .. ‘ऊपर.ऊपर पी जाते हैं जो पीनेवाले हैं ,कहते ऐसे ही जीते
हैं जो जीने वाले हैं ए या दुष्यंत कुमार . ‘यहां तक आते.आते सूख जाती
हैं नदियां ए मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा ।’------
गैर.सरकारी संस्थाओं में उस मनोवृत्ति के लोग नहीं होते होगें क्या ?’’
इसी कहानी में तन्वी पड़ोसी के बारह वर्ष के बेटे को अपनी ओर घूरते देख
कह उठती है . ‘‘यहां बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं ।’’ और वह देख
रही थी .. ‘‘ वे कच्ची कलियां तोड़ रहे हैं । लगातार तोड़ते जा रहे हैं
..... आत्मविश्वास से भरे हुए हैं । वे केवल कच्ची कलियां ही नहीं
तोड़ेंगे ,एक दिन पूरा बगीचा ही उठा ले जाएंगे वे । आने वाला कल उन्हीं
का है ।"

उसे घर पर सो रही अपनी नन्ही कली का खयाल आया । सिन्धु !’’

इला प्रसाद ने अपनी कहानियों के माध्यम से जहां अमेरिकी संस्कृति ;या
अपसंस्कृतिद्ध से दो.चार होते और उसका हिस्सा बनते प्रवासी भारतीयों के
सामाजिक ,आर्थिक और धार्मिक जीवन का वास्तविक चित्रण किया है वहीं
भारतीय परिवेश की उनकी कहानियों में जीवन की विसंगतियां ,विद्रूपताएं और
विश्रृंखलताएं अपनी सम्पूर्णता में उद्घाटित हुई हैं । उनका ”शिल्प
प्रभुविष्णु और भाषा सहज है और यह उनकी कहानियों की शक्ति है । उनकी
कहानियों में एक सम्मोहक पठनीयता है ।

दिल्ली . 110 094
31 मार्च ए 2010
*****
उस स्त्री का नाम - इला प्रसाद
भावना प्रकाशन
109-A, पटपड़गंज, दिल्ली - ११००९१

मूल्य : १५०/- , पृष्ठ : १२८

बुधवार, 6 अक्टूबर 2010

कविताएं


राहुल उपाध्याय की पांच कविताएं

प्रतिभा पलायन

पिछड़ा हुआ कह के
देश को पीछे छोड़ दिया
सोने-चांदी के लोभ में
पराये से नाता जोड़ लिया

एक ने कहा
ये बहुत बुरा हुआ
इनके नागरिकता त्यागने से
देश हमारा अपमानित हुआ

दूसरे ने कहा
ये बहुत अच्छा हुआ
इनके नागरिकता त्यागने से
देश हमारा नाग-रिक्त हुआ

(सिएटल- २४ फ़रवरी)

मौसम

पतझड़ के पत्ते
जो जमीं पे गिरे हैं
चमकते दमकते
सुनहरे हैं

पत्ते जो पेड़ पर
अब भी लगे हैं
वो मेरे दोस्त,
सुन, हरे हैं

मौसम से सीखो
इसमें राज़ बड़ा है
जो जड़ से जुड़ा है
वो अब भी खड़ा है
रंग जिसने बदला
वो कूढ़े में पड़ा है

घमंड से फ़ूला
घना कोहरा
सोचता है देगा
सूरज को हरा

हो जाता है भस्म
मिट जाता है खुद
सूरज की गर्मी से
हार जाता है युद्ध

मौसम से सीखो
इसमें राज़ बड़ा है
घमंड से भरा
जिसका घड़ा है
कुदरत ने उसे
तमाचा जड़ा है

(सिएटल- ९ अक्टूबर,२००७)



करवा चौथ

भोली बहू से कहती हैं सास
तुम से बंधी है बेटे की सांस
व्रत करो सुबह से शाम तक
पानी का भी न लो नाम तक

जो नहीं हैं इससे सहमत
कहती हैं और इसे सह मत

करवा चौथ का जो गुणगान करें
कुछ इसकी महिमा तो बखान करें
कुछ हमारे सवालात हैं
उनका तो समाधान करें

डाँक्टर कहें
डाँयटिशियन कहें
तरह तरह के
सलाहकार कहें
स्वस्थ जीवन के लिए
तंदरुस्त तन के लिए
पानी पियो, पानी पियो
रोज दस ग्लास पानी पियो

ये कैसा अत्याचार है?
पानी पीने से इंकार है!
किया जो अगर जल ग्रहण
लग जाएगा पति को ग्रहण?
पानी अगर जो पी लिया
पति को होगा पीलिया?
गलती से अगर पानी पिया
खतरे से घिर जाएंगा पिया?
गले के नीचे उतर गया जो जल
पति का कारोबार जाएंगा जल?

ये वक्त नया
ज़माना नया
वो ज़माना
गुज़र गया
जब हम-तुम अनजान थे
और चाँद-सूरज भगवान थे

ये व्यर्थ के चौंचले
हैं रुढ़ियों के घोंसले
एक दिन ढह जाएंगे
वक्त के साथ बह जाएंगे
सिंदूर-मंगलसूत्र के साथ
ये भी कहीं खो जाएंगे

आधी समस्या तब हल हुई
जब पर्दा प्रथा खत्म हुई
अब प्रथाओ से पर्दा उठाएंगे
मिलकर हम आवाज उठाएंगे

करवा चौथ का जो गुणगान करें
कुछ इसकी महिमा तो बखान करें
कुछ हमारे सवालात हैं
उनका तो समाधान करें

(सिएटल- २५ अक्टूबर,२००७)

महल एक रेत का

टूट गया जब रेत महल
बच्चे का दिल गया दहल
मिला एक नया खिलौना
बच्चे का दिल गया बहल

आया एक शिशु चपल
रेत समेट बनाया महल

बार बार रेत महल
बनता रहा, बिगड़ता रहा
बन बन के बिगड़ता रहा

रेत किसी पर न बिगड़ी
किस्मत समझ सब सहती रही

वाह री कुदरत,
ये कैसी फ़ितरत?
समंदर में जो आंसू छुपाए थे
उन्हें ही रेत में मिला कर
बच्चों ने महल बनाए थे

दर्द तो होता है उसे
कुछ नहीं कहती मगर

एक समय चट्टान थी
चोट खा कर वक़्त की
मार खा कर लहर की
टूट-टूट कर
बिखर-बिखर कर
बन गई वो रेत थी

दर्द तो होता है उसे
चोट नहीं दिखती मगर

वाह री कुदरत,
ये कैसी फ़ितरत?
ज़ख्म छुपा दिए उसी वक़्त ने
वो वक़्त जो था सितमगर!

आज रोंदते हैं इसे
छोटे बड़े सब मगर
दरारों से आंसू छलकते हैं
पानी उसे कहते मगर

टूट चूकी थी
मिट चूकी थी
फिर भी बनी सबका सहारा
माझी जिसे कहते किनारा

(सिएटल-४ मार्च,२००८)

हम सब एक है

स्विच दबाते ही हो जाती है रोशनी
सूरज की राह मैं तकता नहीं

गुलाब मिल जाते हैं बारह महीने
मौसम की राह मैं तकता नहीं

इंटरनेट से मिल जाती हैं दुनिया की खबरें
टीवी की राह मैं तकता नहीं

ईमेल-मैसेंजर से हो जाती हैं बातें
फोन की राह मैं तकता नहीं

डिलिवर हो जाता हैं बना बनाया खाना
बीवी की राह मैं तकता नहीं

होटले तमाम है हर एक शहर में
लोगों के घर मैं रहता नहीं

जो चाहता हूं वो मिल जाता मुझे है
किसी की राह मैं तकता नहीं

किसी की राह मैं तकता नहीं
कोई राह मेरी भी तकता नहीं

कपड़ो की सलवट की तरह रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं
रिश्ता यहाँ कोई कायम रहता नहीं

तत्काल परिणाम की आदत है सबको
माइक्रोवेव में तो रिश्ता पकता नहीं

किसी की राह मैं तकता नहीं
कोई राह मेरी भी तकता नहीं

(सिएटल, १९ सितम्बर,२००७)
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बचपन सैलाना में गुज़रा. तब से अब तक सैलानी हूँ. सैलाना, रतलाम, मेरठ, शिमला, कलकत्ता और बनारस से शिक्षा प्राप्त कर के पिछले 24 वर्ष से अमेरिका के विभिन्न शहरों में रहते हुए आजकल सिएटल में कार्यरत. पिछले दस साल से कविताएँ लिखने का शौक पाल लिया है, जिनमें या तो एन-आर-आई की त्रासदी का वर्णन होता है या फिर जीवन की विडम्बनाओं में हास्य ढूँढने का प्रयास. शब्दों से खेलना अच्छा लगता है. कविताएँ लिखने की प्रेरणा संत कबीर के दोहों से मिली. छोटी कविता, शब्दों का खेल और बात की बात.
सम्पर्क: upadhyaya@yahoo.com
फोन: दिल्ली 099588 - 90072/ सिएटल - 001-513-341-6798
कविताएँ: http://tinyurl.com/rahulpoems