चित्र : बलराम अग्रवाल
मित्रो ’रचना समय’ के इस अंक से मैं अपने प्रकाश्य उपन्यास ’गलियारे’ का धारावाहिक प्रकाशन प्रारंभ कर रहा हूं. मेरा प्रायास रहेगा कि उपन्यास के एक या दो अंश प्रति सप्ताह आप तक पहुंचे. मुझे आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.
गलियारे
(उपन्यास)
रूपसिंह चन्देल
भाग - एक
(1)
आम के पेड़ पर सरसराती हवा। हवा में बहकर आती बौरों की सोंधी गंध। उस गंध में मिश्रित क्यारियों में खिले फूलों की महक। महक में एक फूल से दूसरे फूल पर मंडराते भौरों के झुण्ड। कलरव करते पक्षी। बंगले की छत पर उतरने को उद्यत सूर्य को गुटरगूं करके प्रणाम करते कबूतर और लॉन में घुस आयी बिल्ली को दौड़ाता उनका लेब्रा साशा।
'बसंत पूरे शबाब पर है।' मंद कदमों से लॉन में टहलते हुए उन्होंने सोचा।
बंगले के मेन गेट के पास एक ओर आम का पेड़ था और दूसरी ओर नीम का। आम में घनी बौरें आयी हुई थीं। बंगले की बाउण्ड्री-वाल के साथ क्यारियां बनाई गई थीं, जिनमें गेंदे से लेकर गुलाब के फूल लगे थे और सभी खिले हुए थे। पेडों की शाखाओं के बीच से होकर सूरज की किरणें उन्हें छूने लगी थीं। उनके स्पर्श से फूल खिलखिला उठे थे।
बिल्ली साशा को चकमा देकर बाउण्ड्री वाल पर चढ़ी, फिर मेन गेट के बांये गुबंद पर बैठ साशा की ओर अपनी छोटी आंखें गड़ा देखने लगी। साशा गुबंद के पास उछलकर भोंकता रहा, लेकिन बिल्ली चुप उसकी ओर देखती रही।
साशा पूंछ हिलाता उनकी ओर देखने लगा था।
उनकी नजर आम की एक डाल पर बैठे गौरय्या के जोड़े पर जा टिकी। 'कितना शांत -कितना निश्चिंत....।' लॉन के बीच पड़ी कुर्सी की ओर बढ़ते हुए उन्होंने सोचा और दीर्घ निश्वास ली।
कुर्सी पर बैठ वह देर तक गौरय्या के जोड़े को देखती रहीं। चिड़ा चिड़िया के साथ छेड़छाड़ करने लगा। चिड़िया उड़कर दूसरी डाल पर जा बैठी। क्षणभर बाद चिड़ा भी उसके पास जा पहुंचा और कुछ दूर बैठकर चिड़िया को घूरता रहा, फिर फुदकता हुआ उसकी ओर बढ़ने लगा। उसके अपने निकट आने से पहले ही चिड़िया फुर्र उड़ गयी। उन्होंने दीर्घ निश्वास ली, उधर से अपनी नजरें हटाईं और गेट की ओर देखने लगीं, जहां साशा अभी भी बिल्ली की ओर गर्दन ताने कूं-कूं कर रहा था।
सड़क पर हॉकर अखबारों का बण्डल साइकिल की कैरियर पर रखे दौड़ा जा रहा था।
'आज अभी तक अखबार नहीं आया' उन्होंने सोचा,'लेकिन आज वह आ रहा है।' उसका खयाल आते ही उनका चेहरा म्लान हो गया। कल रात उसका फोन आया था। ''कल लंच के समय कोई कार्यक्रम मत बना लेना प्रीति।''
''क्यों?''
''मैं यहीं हूं। ''
''कहां?''
''नेशनल डिफेन्स अकेडमी के गेस्ट हाउस में।''
''कब आए?''
''शाम की फ्लाइट से।''
''हुंह।''
''हुंह क्या?''
वह चुप रहीं।
''तुम्हारे बंगले से दूर नहीं हूं। तुमने डिनर ले लिया होगा....?''
उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
''नो प्राब्लम.... कल लंच तो साथ ले सकेगें?''
''मिनिस्ट्री में मीटिगं है दस बजे .... आ पायी तो....।''
''मैं फोन करूंगा...ओ.के. .......।''
........................
''गुड नाइट।''
वह तब भी चुप रही थीं।
उन्हें झटका लगा था। लेकिन मीणा.... डी.पी. मीणा की यह आदत थी। सदैव बात की सीमा वही तय करता था... वह रात ही बंगले में आना चाहता था... थोड़ी भी रुचि दिखातीं तो केवल 'एक कप चाय पिऊंगा....बस्स...' कह वह आ धमकता।..........लेकिन अब वह अतीत को पुन: दोहराना नहीं चाहतीं।
उन्होंने घड़ी देखी. सात बजने वाले थे। साशा को आवाज दी, ''साशा.... चलो बेटा...।''
साशा ने मुड़कर उनकी ओर देखा, दो बार बिल्ली की ओर भोंकते हुए छलांग लगायी, फिर कूं-कूं किया और उनके पीछे दौड़ लिया। उन्होंने मेड को आवाज दी, ''माया, साशा को ब्रेकफॉस्ट दो...मैं नहाने जा रही हूं।''
''जी मेम साहब।'' खिड़कियों की डस्टिगं करती माया बोली और बाहर निकलकर साशा को बुलाने लगी।
******
(2)
दोपहर दो बजकर पचीस मिनट पर वह दफ्तर पहुंची।
उन्होंने किसी को नहीं बताया था कि उन्हें मीटिगं के लिए जाना है। न पी.ए. को, न प्रशासन के सहायक निदेशक को और न ही सेक्शन अफसर को। सेक्शन अफसर और सहायक निदेशक सुबह से तीन बार पी.ए. से पूछ चुके थे, ''चन्द्रभूषण मैडम कब तक आ रही हैं?''
''मुझे कोई सूचना नहीं है सर।'' सहायक निदेशक विपिन कुमार के अपने केबिन में घुसते ही चन्द्रभूषण खड़ा हो गया और फुसफुसाया, ''क्या बकवास है?''
विपिन कुमार ने चन्द्रभूषण के चेहरे पर नजरें गड़ा पूछा, ''आपने उनके बंगले फोन किया?''
''किया था सर!'' पी.ए. के स्वर में दयनीयता उभर आयी, ''मेड ने बताया कि मैम सुबह नौ बजे निकल गई थीं....कुछ बोलकर नहीं गर्इं।''
''लैब्स में पता करो.... शायद उधर गई हों...।''
''वहां भी फोन किया था सर...वहां नहीं पहुंचीं।''
''यार, चन्द्रभूषण।'' विपिन कुमार ने उसे यों घूरा जैसे प्रीतिदास के दफ्तर न पहुंचने के लिए चन्द्रभूषण दोषी था, ''आप पी.ए. बनने काबिल नहीं हैं।''
''यस सर।''
''व्वॉट यस सर?'' विपिन कुमार का स्वर तीखा था, ''हेडक्वार्टर से फोन पर फोन आ रहे हैं। उन्हें देहरादून प्रोजेक्ट की रपोर्ट भेजनी है....।''
''सर...।''
''जैसे ही मैम आएँगी...मुझे तुरंत सूचित करना....।''
''यस सर।'' विपिन कुमार पैर पटकता चला गया तो चन्द्रभूषण बुदबुदाता हुआ सीट पर पसर गया,
''स्साले देहरादून प्रोजेक्ट पर चांदी तुझे काटनी है.... और रौब मुझ पर झाड़ रहा है।'' उसने सोच लिया कि प्रीति दास के आने पर भी वह विपिन कुमार को सूचित नहीं करेगा।
'उस प्रोजेक्ट को लेकर मैडम को अधिक उत्साह नहीं है...मैडम निदेशक हैं और विपिन कुमार सहायक... उनसे दो पद नीचे..... फिर भी यह इतनी रुचि क्यों ले रहा है उस प्रोजेक्ट में। इसलिए न कि हेडक्वार्टर आफिस में सांठ-गांठ करके उस प्रोजेक्ट को अपने हाथ में लेना चाहता है। यह तो इस प्रयास में है कि सिध्दांतत: एक बार प्रोजेक्ट रिपोर्ट सबमिट होकर हेडक्वार्टर आफिस और मंत्रालय से स्वीकृति पा ले तो यह उस प्राजेक्ट के इंचार्ज के रूप में अपना स्थानातंरण देहरादून करवा ले। दस करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है। इसके पांच प्रतिशत कहीं नहीं गए.... हेडक्वार्टर आफिस में बेठे अपने आकाओं को आधा भी देना पड़ा तो भी....।''
फोन की घण्टी बजी,''मिसेज प्रीति इज देयर?''
''अभी तक आयी नहीं सर।'' चन्द्रभूषण ने स्वर में बनावटी मिश्री घोली और पूछा,''सर, मे आई नो हू इज आन द लाइन सर?''
''डी.पी.।''
''नमस्कार सर।....मैं बता दूंगा सर।'' चन्द्रभूषण को डी.पी. से पहले नमस्ते करने का ध्यान नहीं रहा था। यह भयानक त्रुटि मानी जाती थी। फोन उठाते ही पी.ए. को समयानुसार नमस्कार कहना होता है।
''सर, आप पटना से बोल रहे हैं?'' पूछना उचित समझा चन्द्रभूषण ने,'' मैडम के आते ही आपको फोन करवा दूंगा सर।''
''दिल्ली से बोल रहा हूं।'' डी.पी. के स्वर में चन्द्रभूषण ने अपेक्षाकृत शुष्कता अनुभव की।
''सर अपना फोन नंबर दे दीजिए.... आते ही फोन....।''
''मैं कर लूंगा...।'' डी.पी. का स्वर पहले से अधिक शुष्क हो उठा था।
''ओ.के. सर।''
डी.पी. मीणा से बात खत्म कर चन्द्रभूषण अपने केबिन से बाहर निकला और चपरासी सोहन लाल को देखने लगा। सोहन लाल प्रीतिदास के चैम्बर के बाहर स्टूल पर दिन भर बैठा होता था। लेकिन चन्द्रभूषण जानता था कि उस समय वह वहां न होगा क्योंकि मिसेज दास चैम्बर में न थीं। उसका अनुमान था कि वह मैडम दास को रिसीव करने के लिए चैम्बर के बाहर सड़क की ओर खुलने वाले दरवाजे के पास खड़ा होगा या चैम्बर के बायीं ओर बने पार्किंग में किसी स्कूटर या मोटर साइकिल पर बैठा मेन गेट की ओर नजरें गड़ाए होगा।
'सी' ब्लॉक में केन्द्र सरकार के कई कार्यालय अवस्थित थे। ब्लॉक चार-दीवारी से घिरा हुआ था और उसके पूरब और पश्चिम की ओर गेट थे। प्राय: अधिकारीगण पूरब के गेट से आते-जाते थे।
चन्द्रभूषण मैडम दास के चैम्बर से होकर सड़क की ओर खुलने वाले दरवाजे पर पहुंचा। दरवाजे की सिटकनी खुली हुई थी, लेकिन वह बंद था। दरवाजा खोल वह बाहर झांका, लेकिन पार्किगं में उसे कोई टू ह्वीलर खड़ा नहीं दिखा।
वह एक छोटी-सी पार्किंग थी, जहां चार सुविधा से और ठूंस-ठांसकर पांच टू ह्वीलर खड़े हो जाते थे। लेकिन उस दिन विपिन कुमार की मारुति खड़ी थी। सोहन लाल को न देख चन्द्रभूषण की परेशानी बढ़ गई, 'अपने साथ मेरी नौकरी भी लेगा यह सोहन लाल....मैडम आ जाये तो गाड़ी का दरवाजा कौन खोलेगा....कौन उनका ब्रीफकेस-लंच बॉक्स का थैला गाड़ी से निकालेगा....?'
चन्द्रभूषण ने इधर-उधर देखा, गेट की ओर नजरें दौड़ायीं, उस दरवाजे की ओर देखा जहां से आम तौर पर कार्मचारी आते-जाते थे, लेकिन सोहन लाल नदारत था।
'अब मुझे ही रुकना होगा यहां...।' लेकिन तभी उसने सोचा, 'मैं यहां रुका और वहां मैडम का ही फोन आ जाये, कुछ पूछने-बताने के लिए.... नहीं सोहन लाल को ही खोजता हूं।' वह ब्लॉक के गेट की ओर धीरे-धीरे खिसकने लगा। लेकिन एक बार उसने पीछे मुड़कर कैण्टीन की ओर देखा, जहां बाबुओं और कुछ फौजी सिपाहियों की लाइन लगी हुई थी। यह ऐसी कैण्टीन थी जहां बाजार भाव से चीजें कम कीमत पर मिलती थीं, ....दस से पन्द्रह प्रतिशत कम कीमत पर। फौजियों को उस पर और भी दस प्रतिशत की छूट होती थी।
'बेचारे सिपाही!' चन्द्रभूषण सोचने लगा, 'अपने अफसरों के सामान खरीदने के लिए घण्टो लाइन में लगे रहते हैं। जितना बड़ा अफसर उतने अधिक अर्दलीं। कपड़े चमकाने से लेकर जूते चमकाने तक और कैण्टीन से सामान, सब्जी-राशन लाने, बच्चों को स्कूल छोड़ने से लेकर बंगले के बगीचे में काम करने तक।'
'मैं उनके विषय में ही क्यों सोच रहा हूं! मेरे विभाग में भी यह सब होता है और दूसरे विभागों में भी.... हकीकत यह है कि इस देश का कौन-सा ऐसा विभाग है, जहां अफसरों के यहां काम करने के लिए चौथे दर्जे के कर्मचारी नहीं जाते। अगर वह नहीं जाते तब उसके स्थान पर कैजुअल लेबर जाते हैं। बल्कि अधिकतर वही जाते हैं।'
चन्द्रभूषण यह सोच ही रहा था कि तभी उसकी नजर मारुति की ओट में दाहिनी ओर खड़ी मोटर साइकिल पर बैठे सोहन लाल पर पड़ी। सोहन लाल उसे देख मुस्करा रहा था..... मंद-मंद। चन्द्रभूषण उसकी ओर मुड़ा। वह कुछ कहता उससे पहले ही सोहन लाल बोला, ''सर, सुबह नौ बजे से बैठा हूं यहां। थक गया हूं बैठे-बैठे... गेट की ओर देखते आंखें दुखने लगी हैं....।''
''फिर?''
''सर, पेशाब करने तक नहीं जा पाया। आप किसी और को बैठाइये.... पेशाब करने जाऊं। रोटी चबा आऊं।''
'किसे बैठाऊं? सभी चपरासियों पर विपिन कुण्डली मारे बैठा है...।' चन्द्रभूषण ने सोचा, 'सोहन लाल को अवश्य पेशाब आया होगा।'
''जाओ बाथरूम हो आओ.... तब तक मैं खड़ा हूं...मैडम आ गईं तो मैं रिसीव कर लूंगा।''
''सर....पेट में चूहे कूद रहे हैं। सुबह सात बजे दाना डाला था पेट में।''
''यार, खा लेना.... मर नहीं जाओगे बिना खाए....लेकिन अगर वह आ गईं और कोई न हुआ तब...तब...नौकरी पर बन आएगी।''
सोहन लाल बुदबुदाता हुआ बाथरूम की ओर लपका, लेकिन तभी चन्द्रभूषण को फोन की घंण्टी सुनाई दी तो वह चीखा, ''सोहन फोन....।'' और वह अपनी केबिन तक पहुंचने के लिए मिसेज दास के चैम्बर का दरवाजा खोल अंदर घुस गया।
''सर....।'' उसे पीछे से सोहन लाल की आवाज सुनाई दी।
''सॉरी सोहन....।'' चैम्बर के अंदर से चन्द्रभूषण चीखा।
* * * * *
फोन डी.पी. मीणा का था।
''गुड आफ्टर नून सर।'' चन्द्रभूषण आवाज पहचान गया था।
''मिसेज दास आ गयीं ?'' गुनगुनाते-से स्वर में मीणा ने पूछा।
''अभी नहीं सर।''
''कोई सूचना?''
''नहीं सर।''
मीणा चुप रहा।
''आते ही मैं बता दूंगा सर।''
''हूं ऊं...।''
''सर, आप अपना फोन नंबर दे दें.... आते ही मैं मैडम से बात करवा दूंगा।'' चन्द्रभूषण ने याद किया पहले भी वह फोन नंबर मांग चुका था।
मीणा ने बिना कोई उत्तर दिए फोन काट दिया।
मिसेज दास के ऑफिस पहुचने के समय सोहन लाल मोटरसाइकल पर बैठा उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। सी-ब्लॉक के गेट के बाहर जैसे ही उसे दफ्तर की एम्बेसडर दिखी, वह मोटर सायकल से उछलकर नीचे गूदा और गेट से कैण्टीन को जाने वाली सड़क पर आ गया। ड्राइवर ने मिसेज दास के चैम्बर के दरवाजे के ठीक सामने गाड़ी रोकी और बैठा रहा। सोहन लाल ने आगे बढ़कर ''नमस्ते मैम'' कहा और अटैंशन की मुद्रा में खड़े होकर गाड़ी का पिछला दरवाजा खोला। मिसेज दास उतरीं तो दरवाजा बंदकर वह उनके साथ तेजी से चल पड़ा, क्योंकि उसे चैम्बर का दरवाजा खोलना था। मिसेज दास से आगे हो उसने चेैम्बर का दरवाजा खोला, एक नम्बर पर पंखा चलाया और चैम्बर के एक कोने पर तिपाई पर रखे जग से पानी गिलास में ढाल गिलास मिसेज दास की टेबल पर ठीक उनके सामने रख वह फिर बाहर की ओर लपका। गाड़ी से उसे मिसेज दास का ब्रीफकेस और लंच बॉक्स लाना था।
चैम्बर में पहुंच मिसेज दास सीधे बाथरूम गईं।
ड्राइवर ब्रीफकेस पकड़े नीचे खड़ा था। सोहन लाल को देखते ही भुनभुनाया, 'तेरे को कितनी मर्तबा बोला कि ब्रीफकेस लेकर जाया कर। धूप में कितनी देर से खड़ा हूं.... तेरे भेजे में बात समाती क्यों नहीं?''
''तू नहीं ला सकता था?'' सोहन लाल भी अकड़ गया।
''मैं तेरा ड्राइवर हूं?''
''मैडम का तो है.... उनका ब्रीफकेस है... मेरा नहीं...।''
''तू मूझे बताएगा, मैं किसका ड्राइवर हँ ....तू बताएगा।''
''मैं क्यों बताऊंगा....यह तो दफ्तर में दर्ज है... बल्कि डिपार्टमेण्ट में दर्ज है कि तू ड्राइवर है... और किसका है यह तुझे पता है....।''
''तू आजकल घनी बकवास करने लगा है। मेैं कहे देता हूं.... अपनी औकात में रह...तू चपरासी है और चपरासी रह...अफसर मत बन...वर्ना अच्छा न होगा...।''
''राणा, तू पीकर आया है?'' सोहन लाल ने चुटकी ली।
''हां पीकर आया हूं...तेरे बाप की पी?''
''बकवाद मत कर बचन सिंह राणा...औकात पहचान तू भी...तू ड्राइवर है और वही रहेगा, लेकिन मैं यू.डी.सी. तक पहुंचूंगा...समझा और सुन...तू क्या मैडम के घर से ब्रीफकेस उठाकर गाड़ी में नहीं रखता होगा...फिर..?'' सोहन लाल ने आगे की सीट पर रखा लंच बॉक्स उठाया और राणा के हाथ से ब्रीफकेस झटक चैम्बर की ओर बढा।
''स्साली शाम होने को आई.....न पानी नसीब न खाना और ऊपर से चपरासियों की धौंस सुनो...।'' राणा बुदबुदाया, ''सुने मेरा 'ये'...।'' गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए आखिरी शब्द उसने इतना ऊंचा बोला कि सोहन लाल सुन ले।
''मैं सुबह से अब तक छप्पन भोग लगाता रहा हूं यहां मोटर साइकल पर बैठा...।'' चैम्बर की ओर बढ़ते हुए सोहन लाल ने भी ऊंची आवाज में कहा और गाड़ी की ओर देखा।
बचन सिंह राणा पार्किगं में ले जाने के लिए गाड़ी घुमा रहा था।
ब्रीफकेस मिसेज दास की टेबल के साथ बने रैक पर रख सोहन लाल लंच बॉक्स पकड़े खड़ा रहा। मिसेज दास बाथरूम में थीं और फ्लश चलने की आवाज सोहन लाल को स्पष्ट सुनाई दे रही थीं। लगभग दस मिनट बाद मिसेज दास बाथरूम-कम टॉयलेट से बाहर निकलीं। लेकिन अपने पीछे दरवाजा खुला छोड़ आयीं। लंच बॉक्स मेज पर रख सोहन लाल ने तेजी से बढ़कर बाथरूम का दरवाजा बंद किया। तब तक दास कुर्सी पर बैठ चुकी थीं। सोहन लाल जितनी तेजी से बाथरूम का दरवाजा बंद करने गया उतनी ही तेजी से पलट आया और लंच बॉक्स उठाता हुआ बोला, ''मैम, लंच लगा दूं?''
आम दिनों में वह ऐसा नहीं कहता। एक बजते ही वह प्लेटें, छुरी-कांटे, नमक-कालीमिर्च की डिब्बियां, पानी का गिलास और लंच बॉक्स सोफे के साथ पड़ी टेबल पर चुपचाप रख जाता, लेकिन उस दिन बात कुछ और थी। मिसेज दास से पूछना आवश्यक होता, जब वह लंच के बाद दफ्तर आतीं। शुरू में वह गलती कर चुका था। तब मिसेज दास पोस्टिगं में आयी ही थीं और उस दिन की भांति ही विलंब से दफ्तर पहुची थीं। वह सदैव अपना लंच घर से लेकर आती थीं। लेकिन मीटिगं में हेडक्वार्टर आफिस जाने या किसी से मिलने जाने पर प्राय: लंच वहीं करना होता तब अपना लंच वह घर वापस ले जातीं। रात मेड माया या लेब्रा साशा के काम आ जाता था वह।
पहली बार विलंब से आने पर सोहन लाल ने बिना पूछे उनका लंच सजा दिया था। मिसेज दास ने उसे बुलाकर हटवाया भी नहीं। शाम तक जब वह यों ही सजा रहा तब सोहन लाल ने साहस जुटा विनम्रतापूर्वक पूछा, ''मैडम, आपने लंच....।''
''लगाने से पहले तुमने पूछा था?''
सोहन लाल चुप। पूछता वह कभी नहीं, फिर उस दिन क्यों पूछता, वह कहना चाहता था, लेकिन कहां वह चपरासी... डिपार्टमेण्ट में सबसे नीचे पायदान पर खड़ा और कहां निदेशक ... डिपार्टमेण्ट में सबसे ऊपर के पायदान से दो सीढ़ियां नीचे बैठे व्यक्ति से वह कैसे पूछ सकता था।
''वापस गाड़ी में रख देना।'' मिसेज दास ने कहा था।
''जी मैम।'' सोहन लाल जाने के लिए वापस मुड़ा।
''चन्द्रभूषण आया है?''
''जी मैम।''
''भेज दो।''
''जी मैम।''
बिना आवाज दरवाजा खोल सोहन लाल लंच बॉक्स पकड़े बाहर निकल गया।
एक मिनट बाद शार्ट हैण्ड नोट बुक, पेंसिल और कुछ डाक संभाले चन्द्रभूषण, ''गुड आफ्टर नून मैम' कहता चैम्बर में प्रविष्ट हुआ और डाक मिसेज दास की टेबल पर रखकर अटैंशन की मुद्रा में खड़ा हो गया।
''कोई डाक पैड नहीं है?'' उस दिन के टाइम्स ऑफ इंडिया पर नजर दौड़ाती मिसेज दास बोलीं। तीन अखबार......टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दू और इकोनॉमिक टाइम्स' सुबह नौ बजे से पहले हिन्दी अधिकारी उनकी मेज पर रख जाता था। उसका काम था, दफ्तर के सभी अधिकारियों के पास सुबह दफ्तर खुलने से पहले अखबार पहुंचाना। यह आदेश सरकार के थे कि अफसरों को उनके पदानुसार एक से तीन अखबार और पत्रिकाएं सरकारी खर्च पर दी जायें। सरकारें अफसरों से चलती हैं और अफसरों को अखबार जैसी चीजें खरीदने की चिन्ता से मुक्त रखना सरकारें अपना कर्तव्य समझती हैं।
''जी, आपके पास सबमिट है मैंम।''
''फिर उसमें क्यों नहीं रख रहे...?'' अखबार पर नजरें गड़ाए हुए ही दास बोलीं।
''सॉरी मैम।'' और चन्द्रभूषण पैड खोलकर डाक उसमें रख उसे बांधने लगा।
''ये लिफाफे कौन खोलेगा?''
''सॉरी मैम।'' चन्द्रभूषण ने पुन: क्षमा मांगी और लिफाफे निकाल उन्हें खोलने लगा। तभी ड्राअर से कैंची निकाल उसकी ओर बढ़ती दास बोलीं, ''इससे काटकर लेटर बाहर निकालो... कहीं फाड़ न देना।''
''जी मैम।'' कैंची से लिफाफे काट पत्र बाहर निकालकर डाक पैड में रखते हुए चन्द्रभूषण सोचता रहा, 'लगता है मैडम का मूड कुछ उखड़ा हुआ है।' लेकिन तभी सोचा, 'सीधे कहां बोलती हैं... सदैव भोहें चढ़ी रहती हैं।'
'बताऊं अभी...बताना तो होगी ही।' वह पुन: सोचने लगा।
पत्र डाक पैड में रख उसे बांध चन्द्रभूषण ने डाक पैड फाइलों के ऊपर रखा, कैंची मिसेज दास के सामने बिना आवाज टेबल पर रखे शीशे के ऊपर रख, खाली लिफाफों को पकड़े अटैंशन की मुद्रा में खड़ हो गया।
मिसेज दास की नजरें अखबार पर गड़ी थीं।
'बताऊं...?' चन्द्रभूषण पशोपेश में था।
तभी फोन की घण्टी बजी। मिसेज दास ने इशारा किया कि वह उठाए। जैसे ही चन्द्रभूषण फोन उठाने के लिए आगे बढ़ा दास ने टोका, ''हेडक्वार्टर ऑफिस से हो तो ही मुझे देना... अन्यथा कह देना मैं मिनिस्ट्री से लौटी नहीं हूं.....मीटिंग के लिए गई हूं।''
निर्देश सुन चन्द्रभूषण ने फोन उठाया। डी.पी. मीणा था।
''कौन..?''
''नमस्कार सर, मैं चन्द्रभूषण सर।''
दिन में किसी अफसर के कितनी ही बार फोन आने पर हर बार चन्द्रभूषण को उससे नमस्कार, गुड मार्निंग, आफ्टर नून सर कहना होता। यही सरकारी कायदा था। वही नहीं, अफसर भी एक ही अफसर के अनेकों फोन आने पर...भले ही पांच मिनट बाद आए... उससे इसी प्रकार बातें करते थे। ऐसा न करना अशिष्टता माना जाता था।
''चन्द्रभूषण।'' चन्द्रभूषण ने इस बार शहद सना स्वर सुना, ''मैडम का कुछ अता-पता....?''
''नहीं मालूम सर....कोई सूचना नहीं।''
''यार, कैसे पी.ए. हो...पता करो...थाने जाकर रपट दर्ज करवाओ...।' और डी.पी. मीणा का अट्टहास सुना चन्द्रभूषण ने, लेकिन चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आने दी।
मिसेज दास रह-रहकर अखबार से नजरें हटाकर उसकी ओर देखती जा रही थीं।
''आते ही बता दूंगा सर।''
''कोई नहीं....बता देना मेरा फोन था... और यह भी कि शाम छ: बजे की मेरी फ्लाइट है।''
''श्योर सर।''
उधर से फोन कट गया।
''किसका था?''
''मीणा सर थे।'' चन्द्रभूषण ने मिसेज दास की ओर उड़ती नजर डाली और सामने रखे कंप्यूटर की ओर देखने लगा।
मिसेज दास ने अखबार मेज पर रखा और बोलीं,''सिट डाउन।''
कुर्सी पर बैठता हुआ चन्द्रभूषण बोला, ''मीणा सर कह रहे थे कि छ: बजे की उनकी फ्लाइट है।''
दास का चेहरा भाव-हीन रहा। कोई प्रतिक्रिया न दे वह ब्रीफकेस से एक फाइल निकाल उसे खोलते हुए बोलीं, ''टेक डिक्टेशन।''
चन्द्रभूषण अस्त-व्यस्त हो उठा। उसने तेजी से कॉपी खोली, पेंसिल संभाली, कॉपी के कुछ पेज मोड़े जिससे तेजी से लिखते समय पन्ना पलटने में आसानी रहे और डिक्टेशन के लिए तैयार हो तनकर बैठ गया।
''रिस्पेक्टेड सर.... द मैटर वाज डिस्कस्ड विद द एडीशनल सेक्रेटरी ...विदिन ब्रैकेट पी...।''
डिक्टेशन जब समाप्त हुआ, शाम सात बज रहे थे।
''इसे टाइप करके मेरी टेबल पर रख जाना और जाकर ड्राइवर को बोलो कि गाड़ी लगाए।''और मिसेज दास बाथरूम चली गईं।
ड्राइवर चन्द्रभूषण के केबिन में ही बैठा था।
''राणा, गाड़ी लगा दो।'' ड्राइवर को देख चन्द्रभूषण बोला।
''मैडम जा रही हैं सर?'' सोहन लाल ने मिसेज दास के चैम्बर के बाहर की लाल बत्ती बुझाकर हरी बत्ती जलाई और चन्द्रभूषण के पास आकर पूछा।
''हां...।''
''आप नहीं जा रहे सर?'' चन्द्रभूषण को टाइप करने के लिए बैठता देख सोहन लाल ने पूछा।
''मुझे अभी लोहा पीटना है।''
''लोहा तो अब नहीं पीटते सर। अब कंप्यूटर बाबा हैं न...।''
चन्द्रभूषण कुछ नहीं बोला। राणा जा चुका था। सोहन लाल फ्रिज से, जो चन्द्रभूषण के केबिन के बाहर रखा हुआ था, लंच बॉक्स निकाल रहा था और गुनगुना रहा था, ''लागा झुलनियां का धक्का...बलम कलकत्ता चले।''
मिसेज दास ने घण्टी बजायी। सोहन लाल लंच बॉक्स पकड़े दौड़कर गया। पांच मिनट बाद वह लौट भी आया और चन्द्रभूषण से बोला, ''सर अपन भी चले।''
''मैडम का कमरा कौन बंद करेगा?''
''मैं...।''
''कमरा अभी नहीं बंद करना।''
''क्यों सर?''
''यह लेटर टाइप करके मैडम की टेबल पर रखना है।''
''सोमवार को सुबो आके रख देना सर।''
''सोमवार की सुबह किसने देखी है..... आज शुक्रवार है...फिर दो दिन की छुट्टी... मैं सोमवार को न आ पाऊं...।''
''आएगें क्यों नहीं सर?''
''क्योंकि मर भी सकता हूं....कुछ भी हो सकता है...।''
''सर, ऐसा न बोलें...। आप सोमवार आएगें....हम सभी आएगें और सर....'' आवाज धीमी करके सोहन लाल बोला, ''सर, अगर मरना ही हो तो विपिन कुमार मरे.... दफ्तर को तंग कर रखा है उसने.... आप क्यों मरें सर...।''
चन्द्रभूषण टाइप करता रहा। एक स्थान पर उसे अपना शार्टहैण्ड में लिखा शब्द पकड़ में नहीं आ रहा था। देर तक बैठा सोचता रहा और सोहन लाल उसे देखता रहा खड़ा, लेकिन बहुत माथा-पच्ची करने के बाद भी जब शब्द पकड़ में नहीं आया तब उसने उस शब्द के लिए स्थान रिक्त छोड़ दिया और आगे टाइप करने लगा।
चन्द्रभूषण को पुन: टाइप करता देख सोहन लाल बोला, ''तो मैं चलूं सर!''
चन्द्रभूषण टाइप करता रहा। बोला नहीं।
''सर मैं शोभाराम को बोल देता हूं। उसकी क्लोजिंग है। एडमिन में बैठा है। वह मैडम का कमरा बंद कर देगा।''
''ओ.के.।''
''गुड नाइट सर।'' चन्द्रभूषण की ओर देखे बिना सोहन लाल आगे बढ़ गया।
चन्द्रभूषण को गैलरी में सोहनलाल के जाने की आवाज सुनाई देती रही कुछ देर तक।
एडमिन सेक्शन में दो लोगों के बातें करने की आवाजें आ रही थीं। चन्द्रभूषण ने पहचाना उनमें एक शोभाराम और दूसरा उसी सेक्शन का बाबू राकेश गुप्ता था। उनके अतिरिक्त पूरा दफ्तर जा चुका था। उन दोनों की ड्यूटी दफ्तर बंद करवाकर सेक्योरिटी में चाबी जमा करने की थी।
साढ़े सात बजे शोभाराम चन्द्रभूषण के केबिन में आया और बोला,''सर, पूरा दफ्तर खाली है....।''
''हुंह...।'' 'सिन्सेरिटी' की स्पेलिगं को लेकर चन्द्रभूषण द्विविधा में पड़ गया था और आगे टाइप करना रोककर कंप्यूटर में पड़ी डिक्शनरी में उस शब्द की सही स्पेलिंग देखना चाह रहा था, लेकिन डिक्शनरी उसे मिल नहीं रही थी। उसे खीज हुई। वह 'ई' और 'आई' को लेकर पशोपेश में था।
''सर...।''
''क्या है....क्यों दिमाग खराब कर रहा है?''
''सर, मैंने कहा....।''
''कह न .... क्या कहा था?''
''सर, साढ़े सात बज चुके....दफ्तर खाली हो चुका कब का....।''
''तुम्हें किसने रोका हुआ है?''
''सर, आपके कारण...।''
चन्द्रभूषण ने एक बार सोचा कि उस शब्द का स्थान भी वह रिक्त छोड़ दे, लेकिन तत्काल यह विचार आते ही कि शायद राकेश गुप्ता उसकी द्विविधा दूर कर दे उसने कागज के टुकड़े पर हिन्दी में 'सिन्सेरिटी' लिखा और शोभाराम को देकर कहा, ''जाकर गुप्ता जी से इसकी स्पेलिगं लिखवा लाओ।''
''जी सर।'' शोभाराम जब चलने लगा वह बोला, ''अभी आध घण्टा का काम है।''
शोभाराम बिना उत्तर दिए चला गया। उस शब्द के लिए रिक्त स्थान छोड़ उसने आगे टाइप करना प्रारंभ कर दिया। अभी उसने एक पंक्ति भी पूरी टाइप नहीं की थी कि राकेश गुप्ता आकर खड़ा हो गया,
''चन्द्रभूषण जी, आपने मुझे भी कन्फ्यूज कर दिया।''
''कोई गल्ल नहीं।'' टाइप करते हुए चन्द्रभूषण बोला,''याद आ गई....।'' उसने हाथ रोका और बोला, ''एस आई एन.सी ई आर आई टी वाई ।''
''फिर तो मैं सही था.... ये देखिये ...यही लिख लाया था।'' गुप्ता ने कागज का टुकड़ा चन्द्रभूषण की ओर बढ़ाते हुए कहा।
''गुप्ता जी, आप सही क्यों न होगें...अंग्रेजी में एम.ए. जो हैं...वह भी आगरा विश्वविद्यालय से।'' पुन: टाइपिगं प्रारंभ करते हुए चन्द्रभूषण बोला।
''इस क्लर्की में सब एम.ए. सेम.ए. ऐसी-तैसी में मिल गए चन्द्रभूषण जी...वर्ना मैं भी आदमी था काम का....।'' चन्द्रभूषण के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठता हुआ गुप्ता बोला।
''मुझे अफसोस होता है आपके विषय में सोचकर।'' सेकेण्ड के लिए काम रोका चन्द्रभूषण ने, ''आज आप किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर होते।''
''कहीं प्रोफेसर होता या नहीं, लेकिन जिस कॉलेज में था..... कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज में.... रीडर के पद पर तो अवश्य होता।'' गुप्ता के चेहरे पर मायूसी छा गई।
''बुरा न मानें तो एक बात कहूं?''
''बुरा क्यों मानना।''
''आप प्रतिबद्ध न थे अध्यापन के प्रति....।''
''वह बात नहीं चन्द्रभूषण जी...होता नही ंतब ज्वायन ही क्यों करता वहां, लेकिन पारिवारिक स्थितियां ऐसी थीं कि विवश होकर इस डिपार्टमेण्ट में आना पड़ा। एक ऑडिटर (यू.डी.सी.) का वेतन तब एक लेक्चरर से अधिक था। दूसरा कारण यह था कि मैं तब लीव वेकेन्सी में था वहां .... जिनकी जगह था वह दो वर्ष के लिए स्टडी लीव पर थे....।''
''उनके आने के बाद आप खाली थोड़े ही रहते....।'' टाइप करते हुए ही चन्द्रभूषण बोला, ''दो वर्ष का अनुभव काम आता... कहीं रेगुलर लग जाते। कहीं क्या वहीं लग सकते थे।''
''घर वालों का दबाव था कि जब एक परमानेण्ट नौकरी मिल रही है और प्राध्यापकी से अधिक वेतन की तब मुझे उसे ही पकड़ना चाहिए और मैंने डी.ए.वी. छोड़ दिया। मेरे छोड़ते ही तीन दिन के अंदर उन्होंने दूसरे बंदे को रख लिया था। आज वह सीनियर रीडर है वहां।''
''होगा ही....आपसे अधिक नौकरी करेगा। सारी जिन्दगी पढ़ाने के नाम पर मौज की होगी उसने ....और आप नौकरी लगने के बाद चार स्टेशन देख आए....आज तक कहीं सेटल नहीं हुए....सरकारी मकान न होता तो किसी मकान मालिक की धोंस सह रहे होते...।''
''अब बीती को रोने से बात नहीं बनने वाली चन्द्रभूषण जी।'' गुप्ता उठा। चन्द्रभूषण ने देखा उसका चेहरा मुर्झाया हुआ था।
''अभी कितना रह गया?'' गुप्ता ने पूछा।
चन्द्रभूषण ने शार्टहैण्ड नोट बुक के पन्ने गिने...पांच...फिर बोला, ''पांच पेज हैं ....दस मिनट से अधिक न लगेगें।''
तब तक मैं दफ्तर के सभी कमरे चेक करके आता हूं। कोई खुला न छूट गया हो।''
गुप्ता चन्द्रभूषण के केबिन से निकला ही था कि फोन घनघना उठा। चन्द्रभूषण ने झटके से फोन उठाया और छूटते ही बोला, ''गुड इवनिगं मैम।''
राकेश गुप्ता रुक गया।
''सॉरी...।''चन्द्रभूषण बोला, ''आप कहां से बोल रहे हैं?''
फोन मेरठ से था...सुधांशु कुमार दास के कार्यालय से।
''जी सर....।'' चन्द्रभूषण के चेहरे का रंग उड़ गया था, ''जी मैम को गये डेढ़ घण्टा से ऊपर हो गया सर....घर नहीं पहुंची होंगीं।...पता नहीं सर। मेड तो है...हो सकता है वह मार्केट गई हो...।'' चन्द्रभूषण रुका और उधर की बात सुनने लगा, ''वेरी सैड सर, मैं मैडम से संपर्क करके उन तक सूचना पहुचाने का प्रयत्न करूंगा सर।''
उधर से कुछ कहा गया।
''श्योर सर।''
बात कर चन्द्रभूषण कुर्सी पर पसर गया, ''एक और मुसीबत गुप्ता जी।''
''कोई खास बात?''
''यहां आम बात कुछ होती भी है? मैंने पता नहीं किस घड़ी यह घटिया नौकरी करने का विचार किया था।''
''दुखी क्यों हो रहे हैं...बात क्या है?''
''गुप्ता जी, दास साहब ...यानी सुधांशु कुमार दास को हार्ट अटैक हुआ है... मेरा खयाल है यह उनका तीसरा अटैक है... वे लोग एक घण्टा से मैडम दास के बंगले पर फोन ट्राई कर रहे हैं...वहां कोई है नहीं शायद।''
''फिर?''
''खबर तो भिजवानी ही होगी...दास साहब के कार्यालय का सहायक निदेशक बोल रहा था।''
''लेकिन मैडम को फोन क्यों किया?''
''क्योंकि वह अभी भी उनकी बीबी हैं।''
''मतलब अभी तलाक नहीं हुआ?'' राकेश गुप्ता चन्द्रभूषण की ओर और झुक गया।
''इससे हमें-तुम्हें क्या? हो या ना हो...फोन आया है तो सूचना तो देनी ही होगी...तीसरा अटैक है....।''
''ड्रग्स ...ड्रिंक ...सुधांशु सर ने अपने को तबाह कर लिया चन्द्रभूषण जी...।'' राकेश गुप्ता पुन: कुर्सी पर बैठ गया,''आप यकीन नहीं करेंगे...जीनियस इंसान थे वह ...ब्रिलियण्ट...अच्छा लेखक-कवि भी...अंग्रेजी में लेख और हिन्दी में कविताएं लिखते थे सुधांशु सर...हिन्दू और टाइम्स ऑफ इंडिया में उनके लेख छपते थे...हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं। लेकिन यह सब बाइस-तेईस साल पहले की बात होगी...हो सकता है उससे भी अधिक समय हुआ हो...मैं तब पटना पोस्टेड था और वह मेरे बॉस थे। मैडम की तब एंट्री हुई थी डिपार्टमण्ट में....ट्रेनिगं में आयी थीं वहां...।''
''तो दोनो की शादी बाद में हुई थी?''
''नहीं जी...पहले ही हो चुकी थी। मैडम शादी के बाद आई.ए.एस. अलाइड में आईं....बस उसके बाद....।''
राकेश गुप्ता अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया कि फोन की घण्टी पुन: घनघनाई।
''जी..चन्द्रभूषण...मिसेज प्रीति दास का पी.ए.....।''
''सर आदमी भेज रहा हूं... ..जी बोलिए सर।'' और चन्द्रभूषण फोन करने वाले का फोन नंबर लिखने
लगा।
फोन कट गया तो चन्द्रभूषण ने गुप्ता से कहा, ''गुप्ता जी, शोभाराम को पैसे देकर मैडम के यहां दास साहब की सूचना देने के लिए दौड़ा दीजिए.... वह मेरठ मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं। वहीं के सहायक निदेशक प्रशासन का फोन नंबर दे रहा हूं। अधिक जानकारी उनसे मिल जाएगी।'' चन्द्रभूषण ने पर्स से पचास का नोट निकाला और राकेश गुप्ता को देकर कहा, ''तब तक मैं इसे समाप्त करता हूं।''
''ओ.के. सर।'' पचास का नोट लेकर गुप्ता शोभाराम को खोजने चला गया जो कमरों के ताले चेक कर रहा था।
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