प्राण जी की निम्न गज़लें आज से पचास वर्ष पूर्व लिखी गयी थीं.
वरिष्ठ साहित्यकार प्राण शर्मा की गज़लें
उसकी चर्चा हर बार न करते , अच्छा था
ज़ाहिर अपना उपकार न करते , अच्छा था
खुदगर्जी की हद होती है मेरे
प्यारे
अपने से ही तुम प्यार न करते , अच्छा था
चलने से पहले सोचना था कुछ तो प्यारे
रस्ते में हाहाकार न करते , अच्छा था
वो चुप था तो चुप ही रहने देते उसको
पागल कुत्ते पर वार न करते , अच्छा था
अपनों से ही सब रिश्ते - नाते हैं प्यारे
अपनों में कारोबार न करते , अच्छा था
खुद तो बीमार हुए ही तुम पर मुझको भी
अपनी ज़िद से बीमार न करते , अच्छा था
ए ` प्राण ` भले ही मिलते तुम सबसे खुलकर
लेकिन सबका एतबार न करते , अच्छा था
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उनको मत दिल से कभी अपने लगाना
अच्छा रहता सभी झगड़े भुलाना
टूटने लगता है सारा ताना -
बाना
आँधियों में टिकता है कब शामियाना
हो भले ही कोई सूना - सूना आँगन
ढूँढ लेता है परिंदा दाना -
दाना
एक दिन की बात हो तो चल भी जाये
रोज़ ही चलता नहीं लेकिन बहाना
कुछ न कुछ तो खूबियाँ होंगी कि अब भी
याद करते हैं सभी गुज़रा
ज़माना
लेना तो आसान होता है किसी से
दोस्त ,
मुश्किल होता है
कर्ज़ा चुकाना
` प्राण ` इन्सां हो भले ही हो परिंदा
हर किसी को प्यारा है अपना ठिकाना
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वरिष्ठ साहित्यकार प्राण शर्मा के ’माहिय’
` माहिया `
पंजाब का प्रसिद्ध लोग गीत है . यूँ तो इसमें श्रृंगार रस के दोनों
पक्ष संयोग और वियोग का समावेश होता लेकिन अब अन्य रस भी
शामिल किये
जाने लगे
हैं . इस छंद में नायक और नायिका ( प्रेमी और
प्रेमिका ) की अमूमन
नोंक - झोंक होती है . यह तीन पंक्तियों का छंद है . इसे ` टप्पा ` भी कहते हैं .
पहली और तीसरी पंक्तियों में 12 मात्राएँ यानि 2211222 और दूसरी पंक्ति में
10 मात्राएँ
यानि 211222 होती हैं . तीनों पंक्तियों में सारे
गुरु ( 2 ) भी आ सकते हैं .
कुछ माहियों की छटा देखिए –(प्राण शर्मा)
तेरी ये पहुनाई
कानों में घोले
रस जैसे शहनाई
मोहा पहुनाई से
साजन ने लूटा
मन किस चतुराई से
माना तू अपना है
तुझसे तो प्यारा
तेरा हर सपना है
फूलों जैसी रंगत
क्यों न लगे प्यारी
मुझको तेरी संगत
हर बार नहीं करते
अपनों का न्योता
इनकार नहीं करते
रस्ते अनजाने हैं
खोने का डर है
साथी बेगाने हैं
आँखों में ख्वाब तो हो
फूलों के जैसा
चेहरे पे आब तो हो
इक जैसी रात नहीं
इक सा नहीं बादल
इक सी बरसात नहीं
तकदीर बना न सका
तूली के बिन मैं
तस्वीर बना न सका
हम घर को जाएँ क्या
बीच में बोलते हो
हम हाल सुनाएँ क्या
मैं - मैं ना कर माहिया
ऐंठ नहीं चंगी
रब से कुछ डर माहिया
नादान नहीं बनते
सब कुछ जानके भी
अनजान नहीं बनते
झगड़ा न हुआ होता
सुन्दर सा अपना
घरबार बना होता
पल का मुस्काना न हो
ए मेरे साथी
झूठा याराना न हो
कुछ अपनी सुना माहिया
मेरी भी कुछ सुन
यूँ प्यार जगा माहिया
आँखों में नीर न हो
प्रीत ही क्या जिस में
मीरा की पीर न हो
आओ इक हो जाएँ
प्रीत की दुनिया में
दोनों ही खो जाएँ
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