गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008
हिदी कविता का दुख
अनिल जनविजय की कविता
हिन्दी कविता का दुख
अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते
और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते
ऎसा क्यों है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी
अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी
क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं
क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं
परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे
क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं
क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर राठी
हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी
पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी
कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी
-- अनिल जनविजय
www. kavitakosh.org
Moscow, Russia
+7 495 911 10 13 ( office)
+7 916 611 48 64 ( mobile)
सोमवार, 25 फ़रवरी 2008
सूचना
विश्व-प्रसिद्ध लेखक लियो तोलस्तोय के उपन्यास "हाजी मुराद" जिसका हिन्दी अनुवाद कथाकार-उपन्यासकार रूपसिंह चंदेल ने किया है और जो संवाद प्रकाशन, मेरठ से पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुका है, का धारावाहिक प्रकाशन ब्लाग पत्रिका "साहित्य सृजन" के फरवरी 2008 अंक से प्रारंभ होने जा रहा है। "साहित्य सृजन" का फरवरी अंक 28 फरवरी को जारी होगा। हिन्दी के पाठक अब http://www.sahityasrijan.blogspot.com/ पर 28 फरवरी से इस उपन्यास का धारावाहिक आनन्द ले सकेंगे।
-सुभाष नीरव
-सुभाष नीरव
नए प्रकाशन
हाजी मुराद
(उपन्यास)
ले० लियो तोलस्तोय
अनुवाद - रूप सिंह चंदेल
संवाद प्रकाशन
आई-४९९, शास्त्रीनगर,
मेरठ - २५० ००४
’हाजी मुराद’ लियो तोलस्तोय द्वारा उम्र के आखि़री दौर में लिखा गया एक ऎतिहासिक उपन्यास है. यह एक ऎसी उत्कृष्ट कृति है, जो उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हुई थी या जिसकी पर्याप्त चर्चा नहीं हो सकी थी. इस उपन्यास का नायक वास्तविक जीवन से लिया गया है, जो तत्कालीन इतिहास का अति महत्वपूर्ण व्यक्तित्व है. वह काकेशस प्रांत के क़बीलाई फौजों का जनरल था, जिसने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में रूसी प्रभुसत्ता का प्रतिरोध किया था. लेकिन वह चेचेन्या के शासक शमील का भी विरोधी था और उससे प्रतिशोध लेने के लिए उसने रूसियों के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. हाजी मुराद के माध्यम से तोलस्तोय ने चेचेन्या-समस्या का गंभीर अध्ययन प्रस्तुत किया है.
समाचार
ज्योतिष जोशी को देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान
समकालीन आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए २००७ का देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान युवा आलोचक डॉ० ज्योतिष जोशी को उनकी आलोचना पुस्तक ’उपन्यास की समकालीनता’ के लिए देने की घोषणा की गई है. पुरस्कार के निर्णायक मंडल में डॉ० नामवर सिंह, केदार नाथ सिंह ,विष्णु खरे, डॉ० विजयमोहन सिंह और कथाकार उदयप्रकाश थे.
६, अप्रैल १९६५ को धर्मगता, गोपालगंज(बिहार) में जन्में डॉ० जोशी १९९५ से ललित कला अकादमी की राष्ट्रीय कला पत्रिका ’समकालीन कला’ के संपादक हैं. अब तक उनकी प्रकाशित कृतियों में - जैनेन्द्र संचयिता, सम्यक तथा विधा की उपलब्धि, कृति-आकृति, भारतीय कला के हस्ताक्षर तथा रूपंकर (कला आलोचना), सोनबरसा(उपन्यास) और आलोचना की छवियॉं, विमर्श और विवेचना, जैनेन्द्र और नैतिकता तथा पुरखों का पक्ष (आलोचना) आदि हैं.
शनिवार, 23 फ़रवरी 2008
नए प्रकाशन
दोस्तोएव्स्की के प्रेम
रूपसिंह चन्देल
संवाद प्रकाशन
आई-४९९,शास्त्रीनगर
मेरठ -२५० ००४
फ्योदोर दोस्तोएव्स्की की ज़िदंगी में प्रेम बारंबार आया --- हर बार एक नई शक्ल लेकर. उनके मानस-क्षितिज पर इसके गहरे असर पड़े. प्रेम के ये अनुभव उनके जीवन में सामान्य तरीके से नहीं आए. इन संबंधों में हमेशा एक जटिल विन्यास वाले उपन्यास का पूरा एक भाव-जगत छिपा होता था. साइबेरिया में निर्वासन के बीच, मास्को के जन-संकुल जीवन या पीटर्सबर्ग के कुलीन परिवेश में घटे ये प्रसंग स्त्री-पुरुष संबंधों के विभिन्न स्तरों और जटिलताओं को उद्घाटित करते हैं------ साथ ही ये विश्व के इस महान कथाशिल्पी के अंतजर्गत का बिंब रचते हैं.
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