शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

गज़ल



महावीर शर्मा की पांच गजलें
1) ग़ज़ल
सोगवारों में मिरा क़ातिल सिसकने क्यूं लगा
दिल में ख़ंजर घोंप कर, ख़ुद ही सुबकने क्यूं लगा

आइना देकर मुझे, मुंह फेर लेता है तू क्यूं
है ये बदसूरत मिरी, कह दे झिझकने क्यूं लगा
गर ये अहसासे-वफ़ा जागा नहीं दिल में मिरे
नाम लेते ही तिरा, फिर दिल धड़कने क्यूं लगा
दिल ने ही राहे-मुहब्बत को चुना था एक दिन
आज आंखों से निकल कर ग़म टपकने क्यूं लगा
जाते जाते कह गया था, फिर न आएगा कभी
आज फिर उस ही गली में दिल भटकने क्यूं लगा
छोड़ कर तू भी गया अब, मेरी क़िस्मत की तरह
तेरे संगे-आसतां पर सर पटकने क्यूं लगा
ख़ुश्बुओं को रोक कर बादे-सबा ने यूं कहा
उस के जाने पर चमन फिर भी महकने क्यूं लगा।

******

2) ग़ज़ल
तिरे सांसों की ख़ुश्बू से ख़िज़ाँ की रुत बदल जाए,
जिधर को फैल जाए, आब-दीदा भी बहल जाए।
ज़माने को मुहब्बत की नज़र से देखने वाले,
किसी के प्यार की शमआ तिरे दिल में भी जल जाए।
मिरे तुम पास ना आना मिरा दिल मोम जैसा है,
तिरे सांसों की गरमी से कहीं ये दिल पिघल जाए।
कभी कोई किसी की ज़िन्दगी से प्यार ना छीने,
वो है किस काम का जिस फूल से ख़ूश्बू निकल जाए
तमन्ना है कि मिल जाए कोई टूटे हुए दिल को,
बनफ़्शी हाथों से छू ले, किसी का दिल बहल जाए।
ज़रा बैठो, ग़मे-दिल का ये अफ़साना अधूरा है,
तुम्हीं अंजाम लिख देना, मिरा गर दम निकल जाए।
मिरी आंखें जुदा करके मिरी तुर्बत पे रख देना,
नज़र भर देख लूं उसको, ये हसरत भी निकल जाए।
********
3) ग़ज़ल
ग़म की दिल से दोस्ती होने लगी।
ज़िन्दगी से दिल्लगी होने लगी।
जब मिली उसकी निगाहों से मिरी
उसकी धड़कन भी मिरी होने लगी।
ज़ुल्फ़ की गहरी घटा की छांव में
ज़िन्दगी में ताज़गी होने लगी।
बेसबब जब वो हुआ मुझ से ख़फ़ा
ज़िन्दगी में हर कमी होने लगी।
बह न जाएं आंसू के सैलाब में
सांस दिल की आखिरी होने लगी।
आंसुओं से ही लिखी थी दासतां
भीग कर क्यों धुनदली होने लगी।
जाने क्यों मुझ को लगा कि चांदनी
तुझ बिना शमशीर सी होने लगी।
आज दामन रो के क्यों गीला नहीं?
आंसुओं की भी कमी होने लगी।
तश्नगी बुझ जाएगी आंखों की कुछ
उसकी आंखों में नमी होने लगी।
डबडबाई आंख से झांको नहीं
इस नदी में बाढ़ सी होने लगी।
इश्क़ की तारीक गलियों में जहां
दिल जलाया, रौशनी होने लगी।
आ गया क्या वो तसव्वर में मिरे
दिल में कुछ तस्कीन सी होने लगी।
मरना हो, सर यार के कांधे पे हो
मौत में भी दिलकशी होने लगी।
*******
4) ग़ज़ल
ज़िन्दगी में प्यार का वादा निभाया ही कहां है
नाम लेकर प्यार से मुझ को बुलाया ही कहां है?
टूट कर मेरा बिखरना, दर्द की हद से गुज़रना
दिल के आईने में ये मञ्ज़र दिखाया ही कहां है?
शीशा-ए-दिल तोड़ना है तेरे संगे-आसतां पर
तेरे दामन पे लहू दिल का गिराया ही कहां है?
ख़त लिखे थे ख़ून से जो आंसुओं से मिट गये वो
जो लिखा दिल के सफ़े पर, वो मिटाया ही कहां है?
जो बनाई है तिरे काजल से तस्वीरे-मुहब्बत
पर अभी तो प्यार के रंग से सजाया ही कहां है?
देखता है वो मुझे, पर दुश्मनों की ही नज़र से
दुश्मनी में भी मगर दिल से भुलाया ही कहां है?
ग़ैर की बाहें गले में, उफ़ न थी मेरी ज़ुबां पर
संग दिल तू ने अभी तो आज़माया ही कहां है?
जाम टूटेंगे अभी तो, सर कटेंगे सैंकड़ों ही
उसके चेहरे से अभी पर्दा हटाया ही कहां है?
उन के आने की ख़ुशी में दिल की धड़कन थम ना जाये
रुक ज़रा, उनका अभी पैग़ाम आया ही कहां है?

5) ग़ज़ल
अदा देखो, नक़ाबे-चश्म वो कैसे उठाते हैं,
अभी तो पी नहीं फिर भी क़दम क्यों डगमगाते हैं?
ज़रा अन्दाज़ तो देखो, न है तलवार हाथों में,
हमारा दिल ज़िबह कर, खून से मेंहदी रचाते हैं।
हमें मञ्ज़ूर है गर, गैर से भी प्यार हो जाए,
कमज़कम सीख जाएंगी कि दिल कैसे लगाते हैं।
सुना है आज वो हम से ख़फ़ा हैं, बेरुख़ी भी है,
नज़र से फिर नज़र हर बार क्यों हम से मिलाते हैं?
हमारी क्या ख़ता है, आज जो ऐसी सज़ा दी है,
ज़रा सा होश आता है मगर फिर भी पिलाते हैं।
वफ़ा के इम्तहाँ में जान ले ली, ये भी ना देखा
किसी की लाश के पहलू में खंजर भूल जाते हैं।
********
महावीर शर्मा
जन्मः १९३३ , दिल्ली, भारत
निवास-स्थानः लन्दन
शिक्षाः एम.ए. पंजाब विश्वविद्यालय, भारत
लन्दन विश्वविद्यालय तथा ब्राइटन विश्वविद्यालय में गणित, ऑडियो विज़ुअल एड्स तथा स्टटिस्टिक्स । उर्दू का भी अध्ययन।
कार्य-क्षेत्रः १९६२ – १९६४ तक स्व: श्री उच्छ्रंगराय नवल शंकर ढेबर भाई जी के प्रधानत्व में भारतीय घुमन्तूजन (Nomadic Tribes) सेवक संघ के अन्तर्गत राजस्थान रीजनल ऑर्गनाइज़र के रूप में कार्य किया । १९६५ में इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान । १९८२ तक भारत, इंग्लैण्ड तथा नाइजीरिया में अध्यापन । अनेक एशियन संस्थाओं से संपर्क रहा । तीन वर्षों तक एशियन वेलफेयर एसोशियेशन के जनरल सेक्रेटरी के पद पर सेवा करता रहा । १९९२ में स्वैच्छिक पद से निवृत्ति के पश्चात लन्दन में ही मेरा स्थाई निवास स्थान है।
१९६० से १९६४ की अवधि में महावीर यात्रिक के नाम से कुछ हिन्दी और उर्दू की मासिक तथा साप्ताहिक पत्रिकाओं में कविताएं, कहानियां और लेख प्रकाशित होते रहे । १९६१ तक रंग-मंच से भी जुड़ा रहा ।
दिल्ली से प्रकाशित हिंदी पत्रिकाओं “कादम्बिनी”,”सरिता”, “गृहशोभा”, “पुरवाई”(यू. के.), “हिन्दी चेतना” (अमेरिका), “पुष्पक”, तथा “इन्द्र दर्शन”(इंदौर), “कलायन”, “गर्भनाल”, “काव्यालय”, “निरंतर”,”अभिव्यक्ति”, “अनुभूति”, “साहित्यकुञ्ज”, “महावीर”, “मंथन”, “अनुभूति कलश”,”अनुगूँज”, “नई सुबह”, “ई-बज़्म” आदि अनेक जालघरों में हिन्दी और उर्दू भाषा में कविताएं ,कहानियां और लेख प्रकाशित होते रहते हैं। इंग्लैण्ड में आने के पश्चात साहित्य से जुड़ी हुई कड़ी टूट गई थी, अब उस कड़ी को जोड़ने का प्रयास कर रहा हूं।
दो ब्लॉग:
'मंथन' http://mahavir.wordpress.com/

9 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

SHRI MAHAVIR SHARMA JEE KEE SAAREE
GAZALEN BADEE AATMIYTA SE PADH GAYA
HOON.EK-EK SHER PHOOL KEE MAANIND
APNEE KHUSHBOO BIKHER RAHAA HAI.
MAHAVIR JEE KEE SHAAYREE MEIN
SAADGEE BHEE HAI AUR HIZAAB BHEE.
UNKEE SHAYREE KO PADH KAR MUJHE
SADAA HEE AATMIK SUKH MILAA HAI.
SHRI ROOP SINGH CHANDEL JEE KAA
AABHAAR.UNKE DWARA MAHAVIR JEE KEE
UMDA GAZALEN PADHNE KE LIYE MILEE
HAIN.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया गज़ले प्रेषित की हैं बधाई।

भगीरथ ने कहा…

उम्दा गजले।जीवन के अनुभवों को समेटती हुई

बलराम अग्रवाल ने कहा…

महावीर शर्मा जी की पहली और पाँचवीं--ये दो ग़ज़लें उन्हीं की बाकी तीन ग़ज़लों पर बहुत भारी हैं। ऐसा होता ही है कि एक खास ऊँचाई पर पहुँचकर खुद की ही रचनाएँ खुद की रचनाओं को खाने लगती हैं। संत मलूकदास के तो एक ही दोहे ने उनके समूचे लेखन को चट कर डाला है।

shama ने कहा…

Behtareen rachnaon se ru-b-ru karaya aapne...tahe dilse shukriya..!

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://lalitlekh.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

http://shama-kahanee.blogspot.com

http://shama-baagwaanee.blogspot.com

ashok andrey ने कहा…

PEHLI BAR MAHAVEER JEE KI GAJLEN PADNE KO MILI EK SUKHAD ANUBHAV SE GUJARNE JAISAA MEHSUS HUA HAR GAJAL NE PRABHAVIT KIYA HEI
BADHAI SVEEKA KAREN MERI AUR SE

ASHOK ANDREY

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

हमेशा की तरह महावीर जी की ग़ज़लें दिल को छू गईं. बहुत बढ़िया ग़ज़लें हैं -बधाई!

Randhir Singh Suman ने कहा…

वफ़ा के इम्तहाँ में जान ले ली, ये भी ना देखा
किसी की लाश के पहलू में खंजर भूल जाते हैं।good

Devi Nangrani ने कहा…

Pahli baar ek saath paanch gazalein shri mahavir ji ki is manch par padi aur unka lutf lene ke ilawa inki bareekiyaan v khoobsoorat shabdon ki bunawat bhi dekhkar dang hoon

bahut hi sunder
bahut bahut hi dilfareb

Devi Nangrani