खेत जोतते हुए लियो तोलस्तोय
(इल्या रेपिन द्वारा १८८७ में बनायी
गयी आयल पेण्टिंग)
’हाज़ी मुराद’
लियो तोलस्तोय
अनुवाद - रूपसिंह चन्देल
चैप्टर ८ और ९
॥ आठ ॥
जिस दिन पीटर आवदेयेव की वोज्दविजेन्स्क अस्पताल में मृत्यु हुई, उसी दिन उसका वृद्ध पिता, भाभी और उसकी जवान बेटी बर्फ़ जमे खलिहान में जई गाह रहे थे। शाम को बहुत अधिक बर्फ़ गिरी थी, और कुछ ही देर में जमकर वह सख्त हो गयी थी। वृद्ध व्यक्ति मुर्गे की तीसरी बांग पर ही जाग गया था, और, तुषाराच्छन्न खिड़की से चाँद की चटख रोशनी देख, उसने अंगीठी बुझाई, जूते, फरकोट और हैट पहने और खलिहान की ओर चल पड़ा था। उसने वहाँ दो घण्टे तक काम किया, फिर झोपड़ी में लौटा और बेटा और महिलाओं को जगाया था। जब औरतें और लड़की बाहर आयीं; फर्श साफ थी, लकड़ी का एक बेलचा मुलायम सफेद बर्फ़ में सीधा खड़ा हुआ था, जिसके बगल में एक झाड़ू रखी हुई थी, जिसकी मूठ ऊपर की ओर थी और साफ फर्श पर जई के पूले एक के बाद एक दो कतारों में रखे हुए थे। उन्होंने मूसल उठाए और तीन समान्तर प्रहारों के लय से गाहना प्रारंभ कर दिया था। बूढ़ा भारी मूसल का प्रयोग कर पुआल को कुचल रहा था। उसकी पोती पूले के ऊपरी हिस्से को संतुलित ढंग से कूट रही थी और उसकी पुत्रवधू उन्हें उलट रही थी।
चाँद अस्त हो चुका था और प्रकाश फैलने लगा था। उनका काम समाप्त होने वाला ही था जब बड़ा बेटा आकिम हाथ बटाने के लिए आया।
''इधर उधर समय व्यर्थ क्यों कर रहा है?'' उसका पिता काम रोक कर और मूसल के सहारे खड़ा होकर उस पर चिल्लाया।
, ''मुझे घोड़ों को खरहरा करना था।''
''घोड़ों को खरहरा करना था,'' बूढ़े ने तिरस्कृत भाव से दोहराया। ''तुम्हारी माँ उन्हें खरहारा कर देगी। एक मूसल ले ले। तुम नशेबाज वीभत्स रूप से मोटा गये हो।''
''मैं आपसे अधिक नहीं पीता,'' बेटा बुदबुदाया।
बूढ़ा क्रोधित हो उठा और कूटना चूक गया। ''वह क्या है?'' उसने धमकी भरे स्वर में पूछा।
बेटे ने चुपचाप मूसल उठा लिया और काम नयी लय के साथ प्रारंभ हो गया, ''ट्रैप…टा…पा…ट्रैप…ट्रैप…।'' बूढ़ा सबके अंत में अपने भारी मूसल से चोट करता था।
''उसकी ओर देखो, उसकी गर्दन एक भेंड़ की भाँति मोटी हो गयी है। मुझे देखो, मेरी पतलूनें नहीं ठहर पातीं।'' बूढ़ा बुदबुदाया, कूटना चूक गया और उसका मूसल हवा में लहराया जिससे कूटने की लय बनी रही।
उन्होंने पूले की पंक्ति समाप्त कर दी और महिलाओं ने पांचे से मुआल समेटना शुरू कर दिया।
''पीटर मूर्ख था जिसने तेरा स्थान ग्रहण किया। उन्होंने फौज में तेरे स्थान पर उस मूर्ख को पीटा होगा, और घर के काम में वह तुझसे पाँच गुना योग्य था।''
''इतना पर्याप्त है, दादा,'' उसकी पुत्रवधू टूटे गुच्छों को उठाती हुई बोली।
''खाने वाले तुम्हारे छ: मुँह हैं और तुममें से कोई एक दिन भी काम नहीं करता। जबकि पीटर दो लोगों के बराबर अकेला काम करता था, किसी लोकोक्ति की भाँति नहीं …।''
बूढ़े की पत्नी बाड़े की ओर के रास्ते से आयी। उसने फीते से सख्त बंधी हुई ऊनी पतलून पहन रखी थी और उसके नये जूतों के नीचे बर्फ़ चरमरा रही थी। आदमी लोग पांचे से बिना ओसाए आनाज को एक ढेर में समेट रहे थे और औरतें उसे उठा रही थीं।
''कारिन्दे ने बुलाया है। वह चाहता है कि सभी जमींदार के लिए ईंटें ढोयें।'' वृद्धा ने कहा, ''मैंनें तुम्हारा लंच बांध दिया है। क्या तुम अब जाओगे?''
''बहुत अच्छा । चितकबरे घोड़े को जोतो और जाओ,'' बूढ़े ने आकिम से कहा। ''और ठीक ढंग से व्यवहार करना, अन्यथा पिछली बार की भाँति तुम मुझ पर दोष मढ़ दोगे। पीटर के विषय में सोचो, वह तुम्हारे लिए एक उदाहरण है।''
''जब वह घर पर था वह उसे कोसता था,'' आकिम भुनभुनाया, ''और अब वह चला गया है तो वह मेरी ओर मुड़ गया है।''
''क्योंकि तुम इसी योग्य हो,'' उसकी माँ ने उसी प्रकार क्रोधित होते हुए कहा। '' पीटर से तुम्हारी कोई तुलना नहीं है।''
''बहुत अच्छा, बहुत अच्छा,'' आकिम बोला।
''नि:संदेह, बहुत अच्छा। तुमने फसल का पैसा शराब पीने में उड़ा दिया, और अब तुम 'बहुत अच्छा' कहते हो।''
''पुरानी खरोचों को याद करना क्या अच्छा है? '' बहू बोली।
पिता और पुत्र के बीच झगड़ा होना पुरानी बात थी। पीटर को सेना में बुलाए जाने के तुरन्त बाद से ही ऐसा हो रहा था। बूढ़े ने तभी अनुभव किया था कि उसने खराब समझौता किया था। यह सही था कि नियमानुसार, जैसा कि बूढ़े ने उसे समझा था, बिना बच्चों वाले आदमी को परिवार वाले के लिए सेना में भर्ती हो जाना उसका कर्तव्य है। आकिम के चार बच्चे हैं, जबकि पीटर के एक भी नहीं, लेकिन पीटर पिता की भाँति एक कुशल कारीगर था : दक्ष, बुद्धिमान, मजबूत और कठोर परिश्रमी। वह पूरे समय काम करता था। काम कर रहे लोगों के पास से गुजरने पर, उनकी सहायता के लिए वह तुरंत हाथ बढ़ायेगा, जैसा कि बूढ़ा किया करता था। वह राई की कई जोड़ी कतारों को काटकर बोझ बांध देगा, एक पेड़ गिरा देगा या ईंधन की लकड़ियाँ काटकर गट्ठर बना देगा। उसे खोने का बूढ़े को गम था, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था। सेना की अनिवार्य भर्ती मृत्यु की भाँति थी। एक सैनिक शरीर के एक कटे अंग की भाँति था, और उसे याद करना या उसकी चिन्ता करना व्यर्थ था। केवल कभी-कभी, बड़े भाई पर अकुंश के लिए बूढ़ा उसका जिक्र कर दिया करता था, जैसाकि उसने अभी किया था। उसकी माँ प्राय: अपने छोटे बेटे के विषय में सोचती थी और एक वर्ष से अधिक समय से अपने पति से पीटर को पैसे भेजने के लिए प्रार्थना करती आ रही थी। लेकिन बूढ़ा अनसुना करता रहा था।
आवदेयेव का घर समृद्ध था, और बूढ़े ने काफी धन संग्रह कर रखा था, लेकिन अपनी बचत को वह किसी काम के लिए भी नहीं छूता था। इस समय ,जब वृद्धा ने छोटे बेटे के विषय में बात करते हुए उसे सुना, उसने निश्चय किया कि जब वे जई बेच लेगें, वह उससे पुन:, यदि अधिक नहीं, तो एक रूबल ही भेजने के लिए कहेगी। युवतियों के जमींदार के यहाँ काम करने के लिए चली जाने के बाद जब वह बूढ़े के साथ अकेली रह गयी उसने जई की बेच में से पीटर को एक रूबल भेजने के लिए पति को राजी कर लिया। इस प्रकार ओसाई हुई जई के ढेर से जब बारह चौथाई जई तीन स्लेजों में चादरों में भर दी गयी और चादरों को सावधानीपूर्वक लकड़ी की खूंटियों से कसकर बांध दिया गया, उसने बूढ़े को एक पत्र दिया जिसे उसके लिए चर्च के चौकीदार ने लिखा था और बूढ़े ने वायदा किया कि कस्बे में पहुंचकर वह उसे एक रूबल के साथ डाक में डाल देगा।
नया फरकोट, कुरता और साफ-सफेद ऊनी पतलून पहनकर, बूढ़े ने पत्र लिया, और उसे अपने पर्स में रख लिया। आगेवाली स्लेज पर बैठकर उसने प्रार्थना की और कस्बे के लिए चल पड़ा। उसका पोता पीछे की स्लेज पर बैठा था। कस्बे में बूढ़े ने एक दरबान से अपने लिए पत्र पढ़ देने का अनुरोध किया, और बहुत प्रसन्नतापूर्वक निकट होकर पत्र सुनता रहा।
पीटर की माँ ने पत्र का प्रारंभ आशीर्वाद देते हुए किया था। फिर सभी की ओर से शुभ कामनाएं लिखवायी थीं। उसके पश्चात् यह समाचार था कि, ''अक्जीनिया (पीटर की पत्नी) ने उनके साथ रहने से इन्कार कर दिया था और नौकरी में चली गयी थी। हमने सुना है कि वह अच्छा कर रही है और एक ईमानदार जीवन जी रही है।'' रूबल रखने की बात का भी उल्लेख था और दुखी हृदया बूढ़ी औरत ने आँखों में आंसू भरकर चर्च के चौकीदार को पुनष्च उसकी ओर से शब्द-दर शब्द आगे लिखने का अनुरोध किया था।
''ओ, मेरे प्यारे बच्चे, मेरे प्रिय पेन्नयूषा तुम्हारे लिए दुखी मेरी आँखों से किस प्रकार आंसू बहते रहते हैं। मेरी आँखों के चमकते सूरज, किसने तुम्हे मुझसे विलग किया?'' यहाँ बूढ़ी औरत ने आह भरी थी, रोयी थी और कहा था, ''मेरे प्यारे, इतना ही पर्याप्त होगा।''
पीटर के भाग्य में यह समाचार प्राप्त करना नहीं था कि उसकी पत्नी घर छोड़ गयी थी, या रूबल या उसकी माँ के आखिरी शब्द। इस प्रकार यह सब पत्र में ही बना रहा। पत्र और पैसे इस समाचार के साथ लौटा दिये गये कि, ''जार, पितृभूमि, और धार्मिक निष्ठा की रक्षा करता हुआ पीटर युद्ध में मारा गया।'' इस प्रकार फौजी क्लर्क ने लिख भेजा था।
जब वृद्धा को यह समाचार प्राप्त हुआ वह क्षणभर के लिए रोयी थी, और फिर काम पर चली गयी थी। अगले रविवार वह चर्च गयी थी, अंतिम संस्कार किया था, पीटर का नाम मृतकों की स्मरणिका में दर्ज किया था और ईश्वर के सेवक पीटर की स्मृति में पूजा की रोटी के टुकड़े साधुजनों में बांटे थे।
अपने प्रिय पति की मृत्यु पर अक्जीनिया भी रोयी थी, जिसके साथ उसने केवल एक वर्ष का संक्षिप्त जीवन व्यतीत किया था। उसने अपने पति और अपनी उजड़ चुकी जिन्दगी, दोनों के लिए ही मातम मनाया था। उसके शोक ने उसे पीटर के सुनहरे घुंघराले बाल, अपने प्रति उसके प्यार और पितृहीन इवान के साथ अपने पिछले कठिन जीवन की याद दिला दी थी और इसके लिए उसने पीटर को ही दोषी ठहराया था जो अजनबियों के बीच गृहविहीन उस दुखी महिला की अपेक्षा अपने भाई की अधिक चिन्ता करता था।
लेकिन अपने हृदय की गहराई में वह पीटर की मृत्यु से प्रसन्न थी। वह कारिन्दा द्वारा पुन: गर्भवती थी जिसके साथ वह रहती थी, और अब कोई उसे दोष नहीं दे सकता था। अब कारिन्दा उससे विवाह कर सकता था, जैसा कि उसे प्यार करते समय उसने उससे वायदा किया था।
॥ नौ ॥
माइकल साइमन वोरोन्त्सोव की शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी। वह रूसी राजदूत का पुत्र था और उस समय के ऊँचे पद वाले रूसी सैनिकों और अधिकारियों में विशिष्ट यूरोपीय संस्कृति का पोशक था। वह महत्वाकांक्षी, मृदुभाषी, अपने कनिष्ठों के प्रति सहृदय और वरिष्ठों के साथ जटिल और कूटनीतिज्ञ था। प्रभुत्व और सम्मान के बिना जीवन उसकी समझ से बाहर था। उसने सभी उच्च पद और पदक प्राप्त किये थे और एक अच्छे सैनिक के रूप में उसकी प्रतिष्ठा थी। क्रैस्नोई में उसने नेपोलियन पर विजय प्राप्त की थी। 1851 में वह सत्तर वर्ष से ऊपर था, लेकिन वह पूरी तरह से चौकस था। उसकी चाल में फुर्तीलापन था और सबसे ऊपर, दक्षता की समस्त योग्यताओं और मुआफिक मनोदशा पर उसका पूर्ण अधिकार था, जिनका प्रयोग वह अपने प्रभुत्व, और दृढ़कथनों की रक्षा में और अपनी लोकप्रियता के प्रचार में करता था। वह अपनी और अपनी पत्नी काउण्टेस ब्रैनीत्स्काया, दोनों की विपुल सम्पत्ति का उपभोग कर रहा था और सर्वोच्च कमाण्डर के रूप में मोटा वेतन ले रहा था। अपनी आय का बड़ा हिस्सा उसने क्रीमिया के दक्षिणी तट पर अपने महल और बाग पर खर्च किया था।
चार दिसम्बर, 1851 की षाम एक द्रुत-संदेश वाहक तिफ्लिस में उसके महल तक आया। थका, धूल-धूसरित अधिकारी, जनरल कोजलोव्स्की से हाजी मुराद के रूसियों की ओर पहुंचने का समाचार लेकर लड़खड़ाता हुआ। सुप्रीम कमाण्डर के महल के विशाल प्रवेश द्वार से होकर संतरी के पास पहुंचा। उस समय छ: बजा था, और वोरोन्त्सोव रात्रि भोज के लिए जा रहा था जब संदेशवाहक के आने का समाचार उसे बताया गया। वोरोन्त्सोव ने संदेशवाहक को तुरंत बुला लिया और इसलिए रात्रिभोज के लिए कुछ मिनट का विलंम्ब हुआ। जब उसने डायनिंग रूम में प्रवे्श किया, लगभग तीस अतिथि, जो प्रिन्सेज एलिजाबेथ के इर्दगर्द बैठे हुए थे और कुछ खिड़की के पास खड़े हुए थे, उठ खड़े हुए और उसकी ओर मुड़े। वोरोन्त्सोव ने कंधों पर सादे पट्टे और गर्दन पर सफेद क्रास वाले साधारण विभागीय कपड़े पहन रखे थे। उसके पटु, सफाचट चेहरे पर मनोहर मुस्कान खेल रही थी। उसकी आँखें संकुचित थीं, मानो उसने उपस्थित लोगों का पर्यावलोकन कर लिया था।
विलंब से पहुंचने के लिए महिलाओं से क्षमा मांगते, पुरुषों से अभिवादन का आदान-प्रदान करते कोमल और तेज कदमों से चलते हुए उसने प्रवेश किया। वह पैंतालीस वर्षीया, लंबी, पूर्वदर्शीय सुन्दरतावाली, एक जार्जियन प्रिन्सेज मनाना ऑर्बेलियानी का हाथ पकड़कर उसे मेज तक ले गया। प्रिन्सेज एलिजाबेथ ने अपना हाथ लालबालों और खुरदरी मूंछों वाले एक जनरल को सौंप दिया था। जार्जियन प्रिन्स ने अपना हाथ प्रिन्सेज की मित्र काउण्टेस च्वायसुएल के हाथ में दे दिया। डाक्टर एण्डे्रयेव्स्की, परिसहायक और दूसरे अन्य लोगों ने, कुछ महिलाओं सहित और कुछ अकेले दोनों युगलों के बैठने के पश्चात् अपने स्थान ग्रहण किये। कुर्तें, जुर्राबें और स्लीपर्स पहने बैरों ने कुर्सियाँ छोड़ दी थीं, क्योंकि अतिथियों ने अपनी सीटें ग्रहण कर ली थीं और प्रधान बैरा शाही ढंग से चाँदी की रकाबी से गर्म सूप परोसने लगा था।
वोरोन्त्सोव बड़ी मेज के मध्य में बैठा था। उसके सामने प्रिन्सेज, उसकी पत्नी, जनरल के साथ बैठी थी। उसके दाहिनी ओर उसकी महिला मित्र सुन्दरी ऑर्बेलियानी और उसके बायीं ओर खूबसूरत, गहरे और गुलाबी गालों वाली, शानदार पोशाक में एक युवा जार्जियन महिला थी, जो लगातार मुस्करा रही थी।
''उत्तम, मेरी प्रिये '' वोरोन्त्सोव ने प्रिन्सेज के यह पूछने पर कि दूत क्या समाचार लाया था, उत्तर दिया, ''साइमन का भाग्य अच्छा है।''
और उसने विस्मयकारी समाचार का अंश ऐसे स्वर में बताना प्रारंभ किया कि मेज में बैठे सभी लोगों द्वारा सुना जा सके … एक मात्र वही था जिसके लिए वह समाचार विस्मयकारी नहीं था, क्योंकि बातचीत बहुत पहले से चल रही थी… कि विख्यात और शमील का निर्भीक समर्थक हाजी मुराद ने रूसियों के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया था और एक दिन के अंदर उसे तिफ्लिस लाया जायेगा।
भोजन करने वाले सभी लोग, यहाँ तक कि नौजवान, सहायक और अधिकारी जो मेज के आखिरी छोर पर बैठे थे और उस समय तक किसी विषय पर लतीफे का आनंद ले रहे थे, चुप हो गये थे और सुनने लगे थे।
''जनरल, आप इस हाजी मुराद से मिल चुके हैं ?'' प्रिन्स ने जब बात समाप्त की, प्रिन्सेज ने लाल बालों और खुरदरी मूंछोंवाले अपने पड़ोसी जनरल से पूछा।
''हाँ, प्रिन्सेज, अनेकों बार।''
और जनरल वर्णन करने लगा कि किस प्रकार 1843 में कबीलाइयों द्वारा गेरगेबिल पर अधिकार कर लेने के बाद, हाजी मुराद ने जनरल पासेक की सेना पर आक्रमण किया था और ठीक उनकी आँखों के सामने कर्नल जोलोतुखिन को लगभग मार ही दिया था।
वोरोन्त्सोव ने जनरल को मधुर मुस्कान के साथ सुना। उसे इतना विस्तार से सुनकर वह प्रकटरूप से प्रसन्न हुआ। लेकिन अचानक उसकी मुद्रा विश्शण और उदासीन हो गयी ।
उल्लसित जनरल ने किसी अन्य समय हाजी मुराद के साथ हुई मुठभेड़ के विषय में बताना प्रारंभ कर दिया था।
''महामहिम, शायद आपको स्मरण हो?'' जनरल बोला, ''बचाव अभियान के दौरान उसने खाद्य सामग्री से भरी ट्रेन के लिए घात लगायी थी।''
''कहाँ ? '' आंखों को सिकोड़ते हुए वोरोन्त्सोव ने पूछा।
वास्तव में बहादुर जनरल ने जिसे 'बचाव अभियान' कहा था, वह निष्फल डार्गो युद्ध के दौरान घटित एक घटना थी, जिसमें प्रिन्स वोरोन्त्सोव सहित, जो उसका नियंत्रक था, पूरी सेना निश्चित ही नष्ट हो गयी थी, यदि उसके बचाव के लिए नयी सेना न आ जाती। यह जानकारी आम थी, कि वोरोन्त्सोव द्वारा निर्देशित सम्पूर्ण डार्गो युद्ध, जिसमें अनेक रूसी सैनिक हताहत हुए थे और अनेक तोपें नष्ट हुई थीं, एक असफल युद्ध था और वोरोन्त्सोव की उपस्थिति में यदि कोई उसका उल्लेख करता था तो वह उसे उसी प्रकार कहता था जैसा वोरोन्त्सोव ने जार को भेजी अपनी रपट में उसे 'रूसी सेना का शानदार पराक्रम' बताया था। 'बचाव' शब्द स्पष्टतया यह संकेत देता था कि वह एक 'शानदार पराक्रम' नहीं था, बल्कि एक भूल थी, जिसके कारण अनेकों जानें गयी थीं। सभी ने यह अनुभव किया, और कुछ ने ऐसा अभिनय किया कि वे जनरल के शब्दों का अर्थ नहीं समझे थे। कुछ सशंकितभाव से यह सुनने की प्रतीक्षा करने लगे कि इसके बाद वह क्या कहेगा और शेष ने केवल आपसी मुस्कान का आदान-प्रदान किया था। केवल लाल बालों और खुरदरी मूंछोंवाले जनरल ने कुछ भी ध्यान नहीं दिया था और अपनी कहानी जारी रखते हुए गहरा प्रभाव डालने का प्रयास करते उसने कहा :
''बचाव अभियान में, महामहिम !''
और, एक बार अपने प्रिय विषय पर ध्यान आकर्षित कर जनरल ने विस्तार से वर्णन किया कि किस चतुराई से हाजी मुराद ने सेना को दो भागों में बांट दिया था, कि यदि बचाव सेना हमारी सहायता के लिए न पहुंचे … 'मुक्ति वाहिनी सेना' शब्द का मुहावरे की -सी प्रतीति देते हुए एक विशेष ढंग से उसने उल्लेख किया, ''वहाँ हम सभी बचे रह गये क्योंकि…।''
वह कहानी समाप्त नहीं कर पाया, क्योंकि मनाना ऑर्बेलियानी ने, स्थिति समझकर, हस्तक्षेप करते हुए तिफ्लिस में उसके आवास के सुख - सुविधाओं के विषय में पूछा। जनरल चौंका, उसने अपने सहायक सहित, जो दूर मेज के अंतिम छोर पर बैठा अर्थपूर्ण भाव से उसे ही देख रहा था, घूमकर सभी की ओर देखा और सहसा वस्तुस्थिति समझ गया। प्रिन्सेज को कोई उत्तर न दे उसने त्योरियाँ चढ़ाईं और चुप हो गया, और प्लेट की ओर बिना देखे और बिना स्वाद जाने उसने भोजन निगलना शुरू कर दिया।
वातावरण में सामान्य अकुलाहट थी, लेकिन प्रिन्सेज वोरोन्त्सोव के दूसरी ओर बैठे जार्जियन प्रिन्स ने इसे संभाल लिया था जो एक बहुत मूर्ख किस्म का व्यक्ति था लेकिन उच्चकोटि का कुशल चापलूस और दरबारी था। उसने इस प्रकार वर्णन करना प्रारंभ किया, मानो कुछ हुआ ही न था, कि किस प्रकार हाजी मुराद ने मेख्तूलियन अहमद खाँ की विधवा को कैद कर लिया था।
''रात के समय वह समझौते की स्थिति में पहुंचा था। उसे जो कुछ चाहिए था वह लेकर अपने दल के साथ तेज गति से दौड़ गया था।''
'' लेकिन विशेषरूप से वह उसी स्त्री को क्यों चाहता था ?'' प्रिन्सेज ने पूछा ।
''वह उसके पति का शत्रु था और उसका पीछा करता रहा था, लेकिन उसके जीवन काल में उसे कभी नहीं पकड़ पाया था, इसलिए उसका प्रतिशोध उसने उसकी पत्नी से लिया था।''
प्रिन्सेज ने अपनी मित्र काउण्टेस च्वायसिएल, जो जार्जिया के प्रिन्स के बगल में बैठी थी, के लिए उसका फ्रेंच में अनुवाद किया ।
''कितना भयानक था!'' काउण्टेस ने आँखें बंदकर सिर हिलाते हुए कहा।
''ओह, नहीं,'' मुस्कराते हुए वोसेन्त्सोव ने कहा, ''मुझे बताया गया था कि उसने अपने कैदी से उदात्त और आदरपूर्वक व्यवहार किया था और फिर उसे छोड़ दिया था।''
''हाँ, फिरौती के लिए।''
''निश्चित ही,, लेकिन तब भी उसने मर्यादित व्यवहार किया था।''
प्रिन्स के इन शब्दों से हाजी मुराद के विषय में आगे सभी के किस्सों पर विराम लग गया था। उपस्थित लोगों ने अनुभव किया कि अधिक महत्व इस बात का था कि हाजी मुराद के प्रति जितनी अनुरक्तता प्रदर्शित की जाये, वोरोन्त्सोव उतना ही प्रसन्न होगा।
''उस व्यक्ति में कितना आश्चर्यजनक शौर्य है ! वह एक असाधारण व्यक्ति है।''
ß1849 में उसने दिन दहाड़े तमीर खाँ षूरा पर आक्रमण किया था और व्यवसाय उजाड़ दिया था।''
मेज के अंत में बैठे एक आर्मेनियन ने, जो उन दिनों तमीर खाँ षूरा की सेना में था, हाजी मुराद की इस उल्लेखनीय सफलता पर विस्तार से प्रकाश डाला। कमोबेश पूरा रात्रिभेज हाजी मुराद संबन्धी कहानियों में ही समाप्त हुआ। सभी को उसके शौर्य, बौध्दिकता और औदार्य की प्रशंसा करने की हड़बड़ाहट थी। किसी ने कहा कि किस प्रकार उसने छब्बीस कैदियों की हत्या का आदेश दिया था, लेकिन इस पर सामान्य प्रतिक्रिया ही हुई थी।
'' इससे क्या ? अंतत:, युद्ध युद्ध होता है।''
''वह एक महान व्यक्ति है।''
''यदि वह यूरोप में पैदा हुआ होता, तो वह दूसरा नेपोलियन हो सकता था,” मूर्ख जार्जियन प्रिन्स ने चापलूसी की अपनी योग्यता प्रदर्शित करते हुए कहा।
वह जानता था कि नेपोलियन का प्रत्येक उल्लेख वोरोन्त्सोव को आनन्दित करता था, जिसने उस पर विजय के प्रतीक स्वरूप कंधे पर सफेद क्रॉस धारण किया हुआ था।
''हूँ, शायद नेपोलियन तो नहीं, लेकिन घुड़सवार सेना का प्रतिभाशाली जनरल अवश्य होता। मैं तुमसे सहमत हूँ ।'' वोरोन्त्सोव ने कहा।
''यदि नेपोलियन नहीं, तब मुराद ।''
''वस्तुत: उसका नाम हाजी मुराद है ।''
''हाजी मुराद भाग आया है, और शमील का भी यही अंत है।'' किसी ने कहा ।
''वे अनुभव करने लगे हैं कि अब (इस ''अब'' का अर्थ था वोरोन्त्सोव के सामने ) वे डटे नहीं रह सकते, '' दूसरे ने कहा।
''बस इतना ही। आप सबको धन्यवाद,'' मनाना ऑर्बेलियानी बोली।
प्रिन्स वोरोन्त्सोव ने चापलूसी की लहर को संयत करने का प्रयत्न किया, जिसने उन्हें अभिभूत करना प्रारंभ कर दिया था। लेकिन उसने उसका आनंद लिया, और अपनी महिला मित्र को अच्छी मनोदशा में मेज से ड्राइंगरूम की ओर ले गया।
रात्रि भोज के बाद ड्राइंगरूम में जब कॉफी परोसी गई, प्रिन्स का व्यवहार सभी के प्रति सौजन्यपूर्ण था। वह लाल मूंछोंवाले जनरल के पास आया और उसने उसे यह अनुभूति देने की कोशिश की कि उसने उसकी त्रुटियों पर ध्यान नहीं दिया था।
जब प्रिन्स सभी अतिथियों की ओर घूम आया, वह ताश खेलने के लिए बैठ गया। वह एक पुराने प्रचलन का 'ओम्बर' खेल खेलने लगा। प्रिन्स की पार्टी में जार्जिया का प्रिन्स, एक आर्मेनियन जनरल, जिसने 'ओम्बर' खेलना प्रिन्स के नौकर से सीखा था, और अंतिम था डाक्टर आन्द्रेयेवस्की , जो अपने प्रभाव के लिए भलीभंति प्रसिद्ध था।
वोरोन्त्सोव ने अलेक्जेण्डर प्रथम के चित्र वाला सुनहरा तंबाकू केस बन्द किया, लिनेन ताश के पत्ते खोले ओर उन्हें बांटने वाला ही था कि उसका इटैलियन नौकर ग्यूवानी चाँदी की तस्तरी में एक पत्र लिए हुए प्रविष्ट हुआ।
''महामहिम, एक और समाचार।''
वोरोन्त्सोव ने अपने ताश बंद किये, व्यवधान के लिए क्षमा मांगी और पत्र पढ़ना प्रारंभ किया।
यह उसके पुत्र की ओर से था। उसने हाजी मुराद के पहुँचने और मिलर जकोमेल्स्की के साथ अपनी भिड़ंत का वर्णन किया था।
प्रिन्सेज आ पहुंची और पूछा कि उनके पुत्र ने क्या लिखा था।
''अभी भी वही विषय। उसने स्थानीय कमाण्डर के साथ झगड़ा किया है। साइमन की गलती थी। लेकिन '' अंत भला तो सब भला '' पत्र पत्नी की ओर बढ़ाते हुए उसने कहा, और अपने सहयोगियों की ओर मुड़ते हुए, जो सम्मानपूर्वक उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, उनको उनके पत्ते समेटने के लिए कहा।
जब वे पहला हाथ खेल चुके, वोरोन्त्सोव ने अपना तंबाकू केस खोला और वही किया जो वह प्राय: किया करता था जब वह अच्छे मिजाज में होता था। उसने अपनी गोरी झुर्रियोंदार उंगलियों में एक चुटकी फ्रेंच तंबाकू ली, उसे नाक पर रखा और झटके से ऊपर की ओर खींच लिया।
जिस दिन पीटर आवदेयेव की वोज्दविजेन्स्क अस्पताल में मृत्यु हुई, उसी दिन उसका वृद्ध पिता, भाभी और उसकी जवान बेटी बर्फ़ जमे खलिहान में जई गाह रहे थे। शाम को बहुत अधिक बर्फ़ गिरी थी, और कुछ ही देर में जमकर वह सख्त हो गयी थी। वृद्ध व्यक्ति मुर्गे की तीसरी बांग पर ही जाग गया था, और, तुषाराच्छन्न खिड़की से चाँद की चटख रोशनी देख, उसने अंगीठी बुझाई, जूते, फरकोट और हैट पहने और खलिहान की ओर चल पड़ा था। उसने वहाँ दो घण्टे तक काम किया, फिर झोपड़ी में लौटा और बेटा और महिलाओं को जगाया था। जब औरतें और लड़की बाहर आयीं; फर्श साफ थी, लकड़ी का एक बेलचा मुलायम सफेद बर्फ़ में सीधा खड़ा हुआ था, जिसके बगल में एक झाड़ू रखी हुई थी, जिसकी मूठ ऊपर की ओर थी और साफ फर्श पर जई के पूले एक के बाद एक दो कतारों में रखे हुए थे। उन्होंने मूसल उठाए और तीन समान्तर प्रहारों के लय से गाहना प्रारंभ कर दिया था। बूढ़ा भारी मूसल का प्रयोग कर पुआल को कुचल रहा था। उसकी पोती पूले के ऊपरी हिस्से को संतुलित ढंग से कूट रही थी और उसकी पुत्रवधू उन्हें उलट रही थी।
चाँद अस्त हो चुका था और प्रकाश फैलने लगा था। उनका काम समाप्त होने वाला ही था जब बड़ा बेटा आकिम हाथ बटाने के लिए आया।
''इधर उधर समय व्यर्थ क्यों कर रहा है?'' उसका पिता काम रोक कर और मूसल के सहारे खड़ा होकर उस पर चिल्लाया।
, ''मुझे घोड़ों को खरहरा करना था।''
''घोड़ों को खरहरा करना था,'' बूढ़े ने तिरस्कृत भाव से दोहराया। ''तुम्हारी माँ उन्हें खरहारा कर देगी। एक मूसल ले ले। तुम नशेबाज वीभत्स रूप से मोटा गये हो।''
''मैं आपसे अधिक नहीं पीता,'' बेटा बुदबुदाया।
बूढ़ा क्रोधित हो उठा और कूटना चूक गया। ''वह क्या है?'' उसने धमकी भरे स्वर में पूछा।
बेटे ने चुपचाप मूसल उठा लिया और काम नयी लय के साथ प्रारंभ हो गया, ''ट्रैप…टा…पा…ट्रैप…ट्रैप…।'' बूढ़ा सबके अंत में अपने भारी मूसल से चोट करता था।
''उसकी ओर देखो, उसकी गर्दन एक भेंड़ की भाँति मोटी हो गयी है। मुझे देखो, मेरी पतलूनें नहीं ठहर पातीं।'' बूढ़ा बुदबुदाया, कूटना चूक गया और उसका मूसल हवा में लहराया जिससे कूटने की लय बनी रही।
उन्होंने पूले की पंक्ति समाप्त कर दी और महिलाओं ने पांचे से मुआल समेटना शुरू कर दिया।
''पीटर मूर्ख था जिसने तेरा स्थान ग्रहण किया। उन्होंने फौज में तेरे स्थान पर उस मूर्ख को पीटा होगा, और घर के काम में वह तुझसे पाँच गुना योग्य था।''
''इतना पर्याप्त है, दादा,'' उसकी पुत्रवधू टूटे गुच्छों को उठाती हुई बोली।
''खाने वाले तुम्हारे छ: मुँह हैं और तुममें से कोई एक दिन भी काम नहीं करता। जबकि पीटर दो लोगों के बराबर अकेला काम करता था, किसी लोकोक्ति की भाँति नहीं …।''
बूढ़े की पत्नी बाड़े की ओर के रास्ते से आयी। उसने फीते से सख्त बंधी हुई ऊनी पतलून पहन रखी थी और उसके नये जूतों के नीचे बर्फ़ चरमरा रही थी। आदमी लोग पांचे से बिना ओसाए आनाज को एक ढेर में समेट रहे थे और औरतें उसे उठा रही थीं।
''कारिन्दे ने बुलाया है। वह चाहता है कि सभी जमींदार के लिए ईंटें ढोयें।'' वृद्धा ने कहा, ''मैंनें तुम्हारा लंच बांध दिया है। क्या तुम अब जाओगे?''
''बहुत अच्छा । चितकबरे घोड़े को जोतो और जाओ,'' बूढ़े ने आकिम से कहा। ''और ठीक ढंग से व्यवहार करना, अन्यथा पिछली बार की भाँति तुम मुझ पर दोष मढ़ दोगे। पीटर के विषय में सोचो, वह तुम्हारे लिए एक उदाहरण है।''
''जब वह घर पर था वह उसे कोसता था,'' आकिम भुनभुनाया, ''और अब वह चला गया है तो वह मेरी ओर मुड़ गया है।''
''क्योंकि तुम इसी योग्य हो,'' उसकी माँ ने उसी प्रकार क्रोधित होते हुए कहा। '' पीटर से तुम्हारी कोई तुलना नहीं है।''
''बहुत अच्छा, बहुत अच्छा,'' आकिम बोला।
''नि:संदेह, बहुत अच्छा। तुमने फसल का पैसा शराब पीने में उड़ा दिया, और अब तुम 'बहुत अच्छा' कहते हो।''
''पुरानी खरोचों को याद करना क्या अच्छा है? '' बहू बोली।
पिता और पुत्र के बीच झगड़ा होना पुरानी बात थी। पीटर को सेना में बुलाए जाने के तुरन्त बाद से ही ऐसा हो रहा था। बूढ़े ने तभी अनुभव किया था कि उसने खराब समझौता किया था। यह सही था कि नियमानुसार, जैसा कि बूढ़े ने उसे समझा था, बिना बच्चों वाले आदमी को परिवार वाले के लिए सेना में भर्ती हो जाना उसका कर्तव्य है। आकिम के चार बच्चे हैं, जबकि पीटर के एक भी नहीं, लेकिन पीटर पिता की भाँति एक कुशल कारीगर था : दक्ष, बुद्धिमान, मजबूत और कठोर परिश्रमी। वह पूरे समय काम करता था। काम कर रहे लोगों के पास से गुजरने पर, उनकी सहायता के लिए वह तुरंत हाथ बढ़ायेगा, जैसा कि बूढ़ा किया करता था। वह राई की कई जोड़ी कतारों को काटकर बोझ बांध देगा, एक पेड़ गिरा देगा या ईंधन की लकड़ियाँ काटकर गट्ठर बना देगा। उसे खोने का बूढ़े को गम था, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था। सेना की अनिवार्य भर्ती मृत्यु की भाँति थी। एक सैनिक शरीर के एक कटे अंग की भाँति था, और उसे याद करना या उसकी चिन्ता करना व्यर्थ था। केवल कभी-कभी, बड़े भाई पर अकुंश के लिए बूढ़ा उसका जिक्र कर दिया करता था, जैसाकि उसने अभी किया था। उसकी माँ प्राय: अपने छोटे बेटे के विषय में सोचती थी और एक वर्ष से अधिक समय से अपने पति से पीटर को पैसे भेजने के लिए प्रार्थना करती आ रही थी। लेकिन बूढ़ा अनसुना करता रहा था।
आवदेयेव का घर समृद्ध था, और बूढ़े ने काफी धन संग्रह कर रखा था, लेकिन अपनी बचत को वह किसी काम के लिए भी नहीं छूता था। इस समय ,जब वृद्धा ने छोटे बेटे के विषय में बात करते हुए उसे सुना, उसने निश्चय किया कि जब वे जई बेच लेगें, वह उससे पुन:, यदि अधिक नहीं, तो एक रूबल ही भेजने के लिए कहेगी। युवतियों के जमींदार के यहाँ काम करने के लिए चली जाने के बाद जब वह बूढ़े के साथ अकेली रह गयी उसने जई की बेच में से पीटर को एक रूबल भेजने के लिए पति को राजी कर लिया। इस प्रकार ओसाई हुई जई के ढेर से जब बारह चौथाई जई तीन स्लेजों में चादरों में भर दी गयी और चादरों को सावधानीपूर्वक लकड़ी की खूंटियों से कसकर बांध दिया गया, उसने बूढ़े को एक पत्र दिया जिसे उसके लिए चर्च के चौकीदार ने लिखा था और बूढ़े ने वायदा किया कि कस्बे में पहुंचकर वह उसे एक रूबल के साथ डाक में डाल देगा।
नया फरकोट, कुरता और साफ-सफेद ऊनी पतलून पहनकर, बूढ़े ने पत्र लिया, और उसे अपने पर्स में रख लिया। आगेवाली स्लेज पर बैठकर उसने प्रार्थना की और कस्बे के लिए चल पड़ा। उसका पोता पीछे की स्लेज पर बैठा था। कस्बे में बूढ़े ने एक दरबान से अपने लिए पत्र पढ़ देने का अनुरोध किया, और बहुत प्रसन्नतापूर्वक निकट होकर पत्र सुनता रहा।
पीटर की माँ ने पत्र का प्रारंभ आशीर्वाद देते हुए किया था। फिर सभी की ओर से शुभ कामनाएं लिखवायी थीं। उसके पश्चात् यह समाचार था कि, ''अक्जीनिया (पीटर की पत्नी) ने उनके साथ रहने से इन्कार कर दिया था और नौकरी में चली गयी थी। हमने सुना है कि वह अच्छा कर रही है और एक ईमानदार जीवन जी रही है।'' रूबल रखने की बात का भी उल्लेख था और दुखी हृदया बूढ़ी औरत ने आँखों में आंसू भरकर चर्च के चौकीदार को पुनष्च उसकी ओर से शब्द-दर शब्द आगे लिखने का अनुरोध किया था।
''ओ, मेरे प्यारे बच्चे, मेरे प्रिय पेन्नयूषा तुम्हारे लिए दुखी मेरी आँखों से किस प्रकार आंसू बहते रहते हैं। मेरी आँखों के चमकते सूरज, किसने तुम्हे मुझसे विलग किया?'' यहाँ बूढ़ी औरत ने आह भरी थी, रोयी थी और कहा था, ''मेरे प्यारे, इतना ही पर्याप्त होगा।''
पीटर के भाग्य में यह समाचार प्राप्त करना नहीं था कि उसकी पत्नी घर छोड़ गयी थी, या रूबल या उसकी माँ के आखिरी शब्द। इस प्रकार यह सब पत्र में ही बना रहा। पत्र और पैसे इस समाचार के साथ लौटा दिये गये कि, ''जार, पितृभूमि, और धार्मिक निष्ठा की रक्षा करता हुआ पीटर युद्ध में मारा गया।'' इस प्रकार फौजी क्लर्क ने लिख भेजा था।
जब वृद्धा को यह समाचार प्राप्त हुआ वह क्षणभर के लिए रोयी थी, और फिर काम पर चली गयी थी। अगले रविवार वह चर्च गयी थी, अंतिम संस्कार किया था, पीटर का नाम मृतकों की स्मरणिका में दर्ज किया था और ईश्वर के सेवक पीटर की स्मृति में पूजा की रोटी के टुकड़े साधुजनों में बांटे थे।
अपने प्रिय पति की मृत्यु पर अक्जीनिया भी रोयी थी, जिसके साथ उसने केवल एक वर्ष का संक्षिप्त जीवन व्यतीत किया था। उसने अपने पति और अपनी उजड़ चुकी जिन्दगी, दोनों के लिए ही मातम मनाया था। उसके शोक ने उसे पीटर के सुनहरे घुंघराले बाल, अपने प्रति उसके प्यार और पितृहीन इवान के साथ अपने पिछले कठिन जीवन की याद दिला दी थी और इसके लिए उसने पीटर को ही दोषी ठहराया था जो अजनबियों के बीच गृहविहीन उस दुखी महिला की अपेक्षा अपने भाई की अधिक चिन्ता करता था।
लेकिन अपने हृदय की गहराई में वह पीटर की मृत्यु से प्रसन्न थी। वह कारिन्दा द्वारा पुन: गर्भवती थी जिसके साथ वह रहती थी, और अब कोई उसे दोष नहीं दे सकता था। अब कारिन्दा उससे विवाह कर सकता था, जैसा कि उसे प्यार करते समय उसने उससे वायदा किया था।
॥ नौ ॥
माइकल साइमन वोरोन्त्सोव की शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी। वह रूसी राजदूत का पुत्र था और उस समय के ऊँचे पद वाले रूसी सैनिकों और अधिकारियों में विशिष्ट यूरोपीय संस्कृति का पोशक था। वह महत्वाकांक्षी, मृदुभाषी, अपने कनिष्ठों के प्रति सहृदय और वरिष्ठों के साथ जटिल और कूटनीतिज्ञ था। प्रभुत्व और सम्मान के बिना जीवन उसकी समझ से बाहर था। उसने सभी उच्च पद और पदक प्राप्त किये थे और एक अच्छे सैनिक के रूप में उसकी प्रतिष्ठा थी। क्रैस्नोई में उसने नेपोलियन पर विजय प्राप्त की थी। 1851 में वह सत्तर वर्ष से ऊपर था, लेकिन वह पूरी तरह से चौकस था। उसकी चाल में फुर्तीलापन था और सबसे ऊपर, दक्षता की समस्त योग्यताओं और मुआफिक मनोदशा पर उसका पूर्ण अधिकार था, जिनका प्रयोग वह अपने प्रभुत्व, और दृढ़कथनों की रक्षा में और अपनी लोकप्रियता के प्रचार में करता था। वह अपनी और अपनी पत्नी काउण्टेस ब्रैनीत्स्काया, दोनों की विपुल सम्पत्ति का उपभोग कर रहा था और सर्वोच्च कमाण्डर के रूप में मोटा वेतन ले रहा था। अपनी आय का बड़ा हिस्सा उसने क्रीमिया के दक्षिणी तट पर अपने महल और बाग पर खर्च किया था।
चार दिसम्बर, 1851 की षाम एक द्रुत-संदेश वाहक तिफ्लिस में उसके महल तक आया। थका, धूल-धूसरित अधिकारी, जनरल कोजलोव्स्की से हाजी मुराद के रूसियों की ओर पहुंचने का समाचार लेकर लड़खड़ाता हुआ। सुप्रीम कमाण्डर के महल के विशाल प्रवेश द्वार से होकर संतरी के पास पहुंचा। उस समय छ: बजा था, और वोरोन्त्सोव रात्रि भोज के लिए जा रहा था जब संदेशवाहक के आने का समाचार उसे बताया गया। वोरोन्त्सोव ने संदेशवाहक को तुरंत बुला लिया और इसलिए रात्रिभोज के लिए कुछ मिनट का विलंम्ब हुआ। जब उसने डायनिंग रूम में प्रवे्श किया, लगभग तीस अतिथि, जो प्रिन्सेज एलिजाबेथ के इर्दगर्द बैठे हुए थे और कुछ खिड़की के पास खड़े हुए थे, उठ खड़े हुए और उसकी ओर मुड़े। वोरोन्त्सोव ने कंधों पर सादे पट्टे और गर्दन पर सफेद क्रास वाले साधारण विभागीय कपड़े पहन रखे थे। उसके पटु, सफाचट चेहरे पर मनोहर मुस्कान खेल रही थी। उसकी आँखें संकुचित थीं, मानो उसने उपस्थित लोगों का पर्यावलोकन कर लिया था।
विलंब से पहुंचने के लिए महिलाओं से क्षमा मांगते, पुरुषों से अभिवादन का आदान-प्रदान करते कोमल और तेज कदमों से चलते हुए उसने प्रवेश किया। वह पैंतालीस वर्षीया, लंबी, पूर्वदर्शीय सुन्दरतावाली, एक जार्जियन प्रिन्सेज मनाना ऑर्बेलियानी का हाथ पकड़कर उसे मेज तक ले गया। प्रिन्सेज एलिजाबेथ ने अपना हाथ लालबालों और खुरदरी मूंछों वाले एक जनरल को सौंप दिया था। जार्जियन प्रिन्स ने अपना हाथ प्रिन्सेज की मित्र काउण्टेस च्वायसुएल के हाथ में दे दिया। डाक्टर एण्डे्रयेव्स्की, परिसहायक और दूसरे अन्य लोगों ने, कुछ महिलाओं सहित और कुछ अकेले दोनों युगलों के बैठने के पश्चात् अपने स्थान ग्रहण किये। कुर्तें, जुर्राबें और स्लीपर्स पहने बैरों ने कुर्सियाँ छोड़ दी थीं, क्योंकि अतिथियों ने अपनी सीटें ग्रहण कर ली थीं और प्रधान बैरा शाही ढंग से चाँदी की रकाबी से गर्म सूप परोसने लगा था।
वोरोन्त्सोव बड़ी मेज के मध्य में बैठा था। उसके सामने प्रिन्सेज, उसकी पत्नी, जनरल के साथ बैठी थी। उसके दाहिनी ओर उसकी महिला मित्र सुन्दरी ऑर्बेलियानी और उसके बायीं ओर खूबसूरत, गहरे और गुलाबी गालों वाली, शानदार पोशाक में एक युवा जार्जियन महिला थी, जो लगातार मुस्करा रही थी।
''उत्तम, मेरी प्रिये '' वोरोन्त्सोव ने प्रिन्सेज के यह पूछने पर कि दूत क्या समाचार लाया था, उत्तर दिया, ''साइमन का भाग्य अच्छा है।''
और उसने विस्मयकारी समाचार का अंश ऐसे स्वर में बताना प्रारंभ किया कि मेज में बैठे सभी लोगों द्वारा सुना जा सके … एक मात्र वही था जिसके लिए वह समाचार विस्मयकारी नहीं था, क्योंकि बातचीत बहुत पहले से चल रही थी… कि विख्यात और शमील का निर्भीक समर्थक हाजी मुराद ने रूसियों के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया था और एक दिन के अंदर उसे तिफ्लिस लाया जायेगा।
भोजन करने वाले सभी लोग, यहाँ तक कि नौजवान, सहायक और अधिकारी जो मेज के आखिरी छोर पर बैठे थे और उस समय तक किसी विषय पर लतीफे का आनंद ले रहे थे, चुप हो गये थे और सुनने लगे थे।
''जनरल, आप इस हाजी मुराद से मिल चुके हैं ?'' प्रिन्स ने जब बात समाप्त की, प्रिन्सेज ने लाल बालों और खुरदरी मूंछोंवाले अपने पड़ोसी जनरल से पूछा।
''हाँ, प्रिन्सेज, अनेकों बार।''
और जनरल वर्णन करने लगा कि किस प्रकार 1843 में कबीलाइयों द्वारा गेरगेबिल पर अधिकार कर लेने के बाद, हाजी मुराद ने जनरल पासेक की सेना पर आक्रमण किया था और ठीक उनकी आँखों के सामने कर्नल जोलोतुखिन को लगभग मार ही दिया था।
वोरोन्त्सोव ने जनरल को मधुर मुस्कान के साथ सुना। उसे इतना विस्तार से सुनकर वह प्रकटरूप से प्रसन्न हुआ। लेकिन अचानक उसकी मुद्रा विश्शण और उदासीन हो गयी ।
उल्लसित जनरल ने किसी अन्य समय हाजी मुराद के साथ हुई मुठभेड़ के विषय में बताना प्रारंभ कर दिया था।
''महामहिम, शायद आपको स्मरण हो?'' जनरल बोला, ''बचाव अभियान के दौरान उसने खाद्य सामग्री से भरी ट्रेन के लिए घात लगायी थी।''
''कहाँ ? '' आंखों को सिकोड़ते हुए वोरोन्त्सोव ने पूछा।
वास्तव में बहादुर जनरल ने जिसे 'बचाव अभियान' कहा था, वह निष्फल डार्गो युद्ध के दौरान घटित एक घटना थी, जिसमें प्रिन्स वोरोन्त्सोव सहित, जो उसका नियंत्रक था, पूरी सेना निश्चित ही नष्ट हो गयी थी, यदि उसके बचाव के लिए नयी सेना न आ जाती। यह जानकारी आम थी, कि वोरोन्त्सोव द्वारा निर्देशित सम्पूर्ण डार्गो युद्ध, जिसमें अनेक रूसी सैनिक हताहत हुए थे और अनेक तोपें नष्ट हुई थीं, एक असफल युद्ध था और वोरोन्त्सोव की उपस्थिति में यदि कोई उसका उल्लेख करता था तो वह उसे उसी प्रकार कहता था जैसा वोरोन्त्सोव ने जार को भेजी अपनी रपट में उसे 'रूसी सेना का शानदार पराक्रम' बताया था। 'बचाव' शब्द स्पष्टतया यह संकेत देता था कि वह एक 'शानदार पराक्रम' नहीं था, बल्कि एक भूल थी, जिसके कारण अनेकों जानें गयी थीं। सभी ने यह अनुभव किया, और कुछ ने ऐसा अभिनय किया कि वे जनरल के शब्दों का अर्थ नहीं समझे थे। कुछ सशंकितभाव से यह सुनने की प्रतीक्षा करने लगे कि इसके बाद वह क्या कहेगा और शेष ने केवल आपसी मुस्कान का आदान-प्रदान किया था। केवल लाल बालों और खुरदरी मूंछोंवाले जनरल ने कुछ भी ध्यान नहीं दिया था और अपनी कहानी जारी रखते हुए गहरा प्रभाव डालने का प्रयास करते उसने कहा :
''बचाव अभियान में, महामहिम !''
और, एक बार अपने प्रिय विषय पर ध्यान आकर्षित कर जनरल ने विस्तार से वर्णन किया कि किस चतुराई से हाजी मुराद ने सेना को दो भागों में बांट दिया था, कि यदि बचाव सेना हमारी सहायता के लिए न पहुंचे … 'मुक्ति वाहिनी सेना' शब्द का मुहावरे की -सी प्रतीति देते हुए एक विशेष ढंग से उसने उल्लेख किया, ''वहाँ हम सभी बचे रह गये क्योंकि…।''
वह कहानी समाप्त नहीं कर पाया, क्योंकि मनाना ऑर्बेलियानी ने, स्थिति समझकर, हस्तक्षेप करते हुए तिफ्लिस में उसके आवास के सुख - सुविधाओं के विषय में पूछा। जनरल चौंका, उसने अपने सहायक सहित, जो दूर मेज के अंतिम छोर पर बैठा अर्थपूर्ण भाव से उसे ही देख रहा था, घूमकर सभी की ओर देखा और सहसा वस्तुस्थिति समझ गया। प्रिन्सेज को कोई उत्तर न दे उसने त्योरियाँ चढ़ाईं और चुप हो गया, और प्लेट की ओर बिना देखे और बिना स्वाद जाने उसने भोजन निगलना शुरू कर दिया।
वातावरण में सामान्य अकुलाहट थी, लेकिन प्रिन्सेज वोरोन्त्सोव के दूसरी ओर बैठे जार्जियन प्रिन्स ने इसे संभाल लिया था जो एक बहुत मूर्ख किस्म का व्यक्ति था लेकिन उच्चकोटि का कुशल चापलूस और दरबारी था। उसने इस प्रकार वर्णन करना प्रारंभ किया, मानो कुछ हुआ ही न था, कि किस प्रकार हाजी मुराद ने मेख्तूलियन अहमद खाँ की विधवा को कैद कर लिया था।
''रात के समय वह समझौते की स्थिति में पहुंचा था। उसे जो कुछ चाहिए था वह लेकर अपने दल के साथ तेज गति से दौड़ गया था।''
'' लेकिन विशेषरूप से वह उसी स्त्री को क्यों चाहता था ?'' प्रिन्सेज ने पूछा ।
''वह उसके पति का शत्रु था और उसका पीछा करता रहा था, लेकिन उसके जीवन काल में उसे कभी नहीं पकड़ पाया था, इसलिए उसका प्रतिशोध उसने उसकी पत्नी से लिया था।''
प्रिन्सेज ने अपनी मित्र काउण्टेस च्वायसिएल, जो जार्जिया के प्रिन्स के बगल में बैठी थी, के लिए उसका फ्रेंच में अनुवाद किया ।
''कितना भयानक था!'' काउण्टेस ने आँखें बंदकर सिर हिलाते हुए कहा।
''ओह, नहीं,'' मुस्कराते हुए वोसेन्त्सोव ने कहा, ''मुझे बताया गया था कि उसने अपने कैदी से उदात्त और आदरपूर्वक व्यवहार किया था और फिर उसे छोड़ दिया था।''
''हाँ, फिरौती के लिए।''
''निश्चित ही,, लेकिन तब भी उसने मर्यादित व्यवहार किया था।''
प्रिन्स के इन शब्दों से हाजी मुराद के विषय में आगे सभी के किस्सों पर विराम लग गया था। उपस्थित लोगों ने अनुभव किया कि अधिक महत्व इस बात का था कि हाजी मुराद के प्रति जितनी अनुरक्तता प्रदर्शित की जाये, वोरोन्त्सोव उतना ही प्रसन्न होगा।
''उस व्यक्ति में कितना आश्चर्यजनक शौर्य है ! वह एक असाधारण व्यक्ति है।''
ß1849 में उसने दिन दहाड़े तमीर खाँ षूरा पर आक्रमण किया था और व्यवसाय उजाड़ दिया था।''
मेज के अंत में बैठे एक आर्मेनियन ने, जो उन दिनों तमीर खाँ षूरा की सेना में था, हाजी मुराद की इस उल्लेखनीय सफलता पर विस्तार से प्रकाश डाला। कमोबेश पूरा रात्रिभेज हाजी मुराद संबन्धी कहानियों में ही समाप्त हुआ। सभी को उसके शौर्य, बौध्दिकता और औदार्य की प्रशंसा करने की हड़बड़ाहट थी। किसी ने कहा कि किस प्रकार उसने छब्बीस कैदियों की हत्या का आदेश दिया था, लेकिन इस पर सामान्य प्रतिक्रिया ही हुई थी।
'' इससे क्या ? अंतत:, युद्ध युद्ध होता है।''
''वह एक महान व्यक्ति है।''
''यदि वह यूरोप में पैदा हुआ होता, तो वह दूसरा नेपोलियन हो सकता था,” मूर्ख जार्जियन प्रिन्स ने चापलूसी की अपनी योग्यता प्रदर्शित करते हुए कहा।
वह जानता था कि नेपोलियन का प्रत्येक उल्लेख वोरोन्त्सोव को आनन्दित करता था, जिसने उस पर विजय के प्रतीक स्वरूप कंधे पर सफेद क्रॉस धारण किया हुआ था।
''हूँ, शायद नेपोलियन तो नहीं, लेकिन घुड़सवार सेना का प्रतिभाशाली जनरल अवश्य होता। मैं तुमसे सहमत हूँ ।'' वोरोन्त्सोव ने कहा।
''यदि नेपोलियन नहीं, तब मुराद ।''
''वस्तुत: उसका नाम हाजी मुराद है ।''
''हाजी मुराद भाग आया है, और शमील का भी यही अंत है।'' किसी ने कहा ।
''वे अनुभव करने लगे हैं कि अब (इस ''अब'' का अर्थ था वोरोन्त्सोव के सामने ) वे डटे नहीं रह सकते, '' दूसरे ने कहा।
''बस इतना ही। आप सबको धन्यवाद,'' मनाना ऑर्बेलियानी बोली।
प्रिन्स वोरोन्त्सोव ने चापलूसी की लहर को संयत करने का प्रयत्न किया, जिसने उन्हें अभिभूत करना प्रारंभ कर दिया था। लेकिन उसने उसका आनंद लिया, और अपनी महिला मित्र को अच्छी मनोदशा में मेज से ड्राइंगरूम की ओर ले गया।
रात्रि भोज के बाद ड्राइंगरूम में जब कॉफी परोसी गई, प्रिन्स का व्यवहार सभी के प्रति सौजन्यपूर्ण था। वह लाल मूंछोंवाले जनरल के पास आया और उसने उसे यह अनुभूति देने की कोशिश की कि उसने उसकी त्रुटियों पर ध्यान नहीं दिया था।
जब प्रिन्स सभी अतिथियों की ओर घूम आया, वह ताश खेलने के लिए बैठ गया। वह एक पुराने प्रचलन का 'ओम्बर' खेल खेलने लगा। प्रिन्स की पार्टी में जार्जिया का प्रिन्स, एक आर्मेनियन जनरल, जिसने 'ओम्बर' खेलना प्रिन्स के नौकर से सीखा था, और अंतिम था डाक्टर आन्द्रेयेवस्की , जो अपने प्रभाव के लिए भलीभंति प्रसिद्ध था।
वोरोन्त्सोव ने अलेक्जेण्डर प्रथम के चित्र वाला सुनहरा तंबाकू केस बन्द किया, लिनेन ताश के पत्ते खोले ओर उन्हें बांटने वाला ही था कि उसका इटैलियन नौकर ग्यूवानी चाँदी की तस्तरी में एक पत्र लिए हुए प्रविष्ट हुआ।
''महामहिम, एक और समाचार।''
वोरोन्त्सोव ने अपने ताश बंद किये, व्यवधान के लिए क्षमा मांगी और पत्र पढ़ना प्रारंभ किया।
यह उसके पुत्र की ओर से था। उसने हाजी मुराद के पहुँचने और मिलर जकोमेल्स्की के साथ अपनी भिड़ंत का वर्णन किया था।
प्रिन्सेज आ पहुंची और पूछा कि उनके पुत्र ने क्या लिखा था।
''अभी भी वही विषय। उसने स्थानीय कमाण्डर के साथ झगड़ा किया है। साइमन की गलती थी। लेकिन '' अंत भला तो सब भला '' पत्र पत्नी की ओर बढ़ाते हुए उसने कहा, और अपने सहयोगियों की ओर मुड़ते हुए, जो सम्मानपूर्वक उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, उनको उनके पत्ते समेटने के लिए कहा।
जब वे पहला हाथ खेल चुके, वोरोन्त्सोव ने अपना तंबाकू केस खोला और वही किया जो वह प्राय: किया करता था जब वह अच्छे मिजाज में होता था। उसने अपनी गोरी झुर्रियोंदार उंगलियों में एक चुटकी फ्रेंच तंबाकू ली, उसे नाक पर रखा और झटके से ऊपर की ओर खींच लिया।
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