दोस्तोएव्स्की के प्रेम
रूपसिंह चन्देल
संवाद प्रकाशन
आई-४९९,शास्त्रीनगर
मेरठ -२५० ००४
फ्योदोर दोस्तोएव्स्की की ज़िदंगी में प्रेम बारंबार आया --- हर बार एक नई शक्ल लेकर. उनके मानस-क्षितिज पर इसके गहरे असर पड़े. प्रेम के ये अनुभव उनके जीवन में सामान्य तरीके से नहीं आए. इन संबंधों में हमेशा एक जटिल विन्यास वाले उपन्यास का पूरा एक भाव-जगत छिपा होता था. साइबेरिया में निर्वासन के बीच, मास्को के जन-संकुल जीवन या पीटर्सबर्ग के कुलीन परिवेश में घटे ये प्रसंग स्त्री-पुरुष संबंधों के विभिन्न स्तरों और जटिलताओं को उद्घाटित करते हैं------ साथ ही ये विश्व के इस महान कथाशिल्पी के अंतजर्गत का बिंब रचते हैं.
3 टिप्पणियां:
सुन्दर ! धीरे- धीरे इसी तरह प्रयास करते रहो, सब कुछ सीख जाओगे। "रचना समय" जो तुम्हें सार्थक, सामायिक और प्रासंगिक लगे, दर्ज करते रहो, अगर मैटर छोटा, महत्वपूर्ण, सारगर्भित होगा तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
बधाई भाई चंदेल जी, इस नये ब्लाग के लिये! भाई सुभाष नीरव जी की कथनी पर ध्यान दीजिएगा। यही कामना है कि ब्लाग अपनी पहचान बनाए।
Chandel ji
aapke bloghai par aane se sab se achi observation rahi naye prakshit sahitya ki jo aksar nazar ke saamne se nahin guzarta. aapki parshram safal hota hai jub pathakon tak aap ek setu bana sakte is sahitya ke dwara jo aap bakhoobi karne ki shuroowaat ki hai.
Bahut sari shubhkamnaon ke saath
Devi Nangrani
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