लेखक - लियो तोलस्तोय
अनुवाद : रूपसिंह चन्देल
चैप्टर - एक
1851 के नवम्बर की एक ठण्डी शाम। रूसी सीमा से लगभग पन्द्रह मील दूर चेचेन्या के एक लड़ाकू गांव मचकट में जलते हुए उपलों का तीखा धुआं उठ रहा था, जब हाजी मुराद ने वहॉं प्रवेश किया। अजान देनेवाले मुअज्जिनों का उच्च तीखा स्वर अभी-अभी रुका था और जलते उपलों की गंध से भरी शुद्ध पहाड़ी हवा में नीचे झरने के पास इकट्ठे, बहस करते पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों की कंठ ध्वनियॉं सुनाई दे रही थीं। ये ध्वनियॉं बाड़ों में बन्द किए जा रहे पशुओं और भेड़ों के रंभाने और मिमियाने से ऊपर उठी सुनी जा सकती थीं। पशु और भेड़ें बाड़ों में वैसे ही ठूंसी जा रही थीं जैसे मधुमक्खी के छत्ते में मधुमक्खियॉं।
हाजी मुराद शमील का एक लेफ्टीनेण्ट था जो रूसियों के विरुद्ध शौर्यपूर्ण कार्यों के लिए विख्यात था। वह उसे घेर कर चलते दर्जनों मुरीदों-अनुयाइयों या शिष्यों के साथ, अपने निजी ध्वज के नीचे ही युद्धों में भाग लिया करता था। वह सिर पर टोपी पहने हुए था और उसने लबादा ओढ़ रख था। उसकी राइफल की नाल बाहर निकली दीख रही थी। अपने एक मुरीद के साथ, सड़क पर मिले ग्रामीणों के चेहरों पर अपनी सतर्क काली, तेज आँखों से एक सरसरी दृष्टि डालता हुआ और अपनी ओर उनका ध्यान कम से कम आकर्षित करने का प्रयास करता हुआ वह आ रहा था। हाजी मुराद जब गॉंव के बीच में पहुंचा, तो चौराहे तक जाने वाली सड़क के बजाय वह बांयीं ओर संकरी गली में मुड़ गया। गली में वह दूसरे मकान के सामने पहुंचा, जो पहाड़ी के नीचे दबा-सा दीखता था। यहॉं वह रुका और उसने चारों ओर देखा। उस मकान के आगे सायबान के नीचे कोई नहीं था, लेकिन छत पर नया पलस्तर की गई मिट्टी की चिमनी के पीछे फर का कोट पहने एक आदमी खड़ा था। हाजी मुराद ने चाबुक फटकार कर और जीभ से ट्क-ट्क की आवाज कर उसका ध्यान आकर्षित किया। रात की टोपी और फर के कोट से झिलमिलाता हुआ दिखाई देता एक पुराना वस्त्र पहने वह एक वृद्ध व्यक्ति था। उसकी धुंधली आँखों पर बरौनियाँ नहीं थीं और पलकों को खोलने के लिए वह उन्हें मिचका रहा था। हाजी मुराद ने रिवाजी ढंग से उसे ‘सलाम आलेकुम' कहा और अपना चेहरा दिखाया।
‘आलेकुम सलाम' वृद्ध ने कहा, जिससे उसके दंतहीन मसूढ़े दीखाई पड़े। हाजी मुराद को पहचानते ही वह अपने दुर्बल पैरों को घसीटते हुए चिमनी के पास पड़ी लकड़ी के तलों वाली अपनी चप्पलों तक ले गया। फिर घीमे से और सावधानीपूर्वक उसने अपनी बाहें सकुड़नों भरी मिरजई की आस्तीनों में डालीं और छत से लगी सीढ़ी से चेहरा सामने करके नीचे उतरने लगा। वृद्ध ने धूप से झुलसी दुबली-पतली गर्दन पर टिका सिर हिलाया और दंतहीन जबड़ों से निरंतर बुदबुदाता रहा। जब वह नीचे पहुंचा तब उसने विनम्रतापूर्वक हाजी मुराद के घोड़े की लगाम और दाहिनी रकाब पकड़ ली, लेकिन हाजी मुराद का मुरीद फुर्ती से घोड़े से उतरा और उसने वृद्ध का स्थान ले लिया। उसे एक ओर हटाकर उसने घोड़े से उतरने में हाजी मुराद की सहायता की। हाजी मुराद घोड़े से उतरकर हल्का-सा लंगड़ाता हुआ सायबान के नीचे आया। लगभग पन्द्रह वर्ष का एक लड़का दरवाजे से निकलकर उसकी ओर आया और अपनी छोटी चमकदार आँखों से आगन्तुक को विस्मयपूर्वक देखने लगा।
‘‘दौड़कर मस्जिद तक जा और अपने पिता को बुला ला।" वृद्ध ने उससे कहा। इसके पश्चात् उसने बत्ती जलाई और चरमराहट के साथ हाजी मुराद के लिए घर का दरवाजा खोला। जिस समय हाजी मुराद घर में प्रवेश कर रहा था पीले ब्लाउज और नीले पायजामे पर लाल गाउन पहने एक कृशकाय वृद्धा कुछ गद्दे लिए हुए अंदर के दरवाजे से आयी।
‘‘आपका आगमन सुख-शान्ति लाए," वह बोली और अतिथि के लेटने के लिए सामने की दीवार के साथ दुहरा करके गद्दे बिछाने लगी।
‘‘आपके बेटे जीवित रहें”, हाजी मुराद ने अपना लबादा, राइफल और तलवार उतारकर वृद्ध के हवाले करते हुए कहा।
वृद्ध ने सावधानीपूर्वक राइफल और तलवार गृहस्वामी के हथियारों के साथ दो बड़े प्लेटों के बीच खूंटी पर लटका दिये जो अच्छे ढंग से पलस्तर की हुई सफेदी पुती दीवार पर चमक रहे थे। हाजी मुराद ने पिस्तौल को संभालकर अपने पीछे रख लिया। वह गद्दे के पास आया। उसने अपनी ट्यूनिक उतारकर रख दी और गद्दे पर बैठ गया। वृद्ध अपनी नंगी एडि़यों पर टिककर उसके समने बैठ गया। उसने अपनी आँखे बंद कर लीं और हथेलियों को उभारते हुए हाथ ऊपर उठाये। हाजी मुराद ने भी वैसा ही किया। फिर दोनों चेहरे पर धीरे-धीरे हाथ फेरते हुए इस प्रकार सस्वर नमाज अदा करने लगे कि उनके हाथ दाढ़ी की नोक का बार-बार स्पर्श करते रहे।
‘‘ ने हबार ? (कोई समाचार)? " हाजी मुराद ने वृद्ध से पूछा।
‘‘हबार योक (कोई समाचार नहीं है)।" वृद्ध ने लाल और उदासीन आँखों से हाजी मुराद के चेहरे के बजाय उसकी छाती की ओर देखते हुए उत्तर दिया। ‘‘मैं मधुमक्खियों में गुजारा करता हूँ, और इस समय मैं अपने बेटे को देखने आया हूँ। समाचार वही जानता है।"
हाजी मुराद ने अनुमान लगाया कि वृद्ध बात नहीं करना चाहता। उसने अपना सिर हिलाया और अधिक कुछ नहीं कहा।
‘‘अच्छा समाचार नहीं है।" वृद्ध बोला, ‘‘समाचार केवल यह है कि खरगोश सदैव चिन्तित रहते हैं कि उकाबों को किस प्रकार दूर रखा जाये और उकाब उन्हे एक-एक कर झपट रहे हैं। पिछले सप्ताह रूसी कुत्तों ने मिशिको में भूसा जला डाला था। लानत है उनकी आँखों को," वृद्ध गुस्से से बुदबुदाया।
हाजी मुराद का मुरीद मजबूत लंबे डग भरता हुआ धीमे से प्रविष्ट हुआ। अपना लबादा, राइफल और तलवार उसने उतार दी जैसा कि हाजी मुराद ने किया था और उन्हे उसी खूंटी पर टांग दिया जिस पर उसके स्वामी के टांगे गये थे। केवल अपनी कटार और पिस्तौल उसने अपने पास रखी।
‘‘ वह कौन है?” मुरीद की ओर देखते हुए वृद्ध ने पूछा।
‘‘वह एल्दार है, मेरा मुरीद," हाजी मुराद ने कहा।
‘‘बिल्कुल ठीक" वृद्ध बोला और हाजी मुराद के पास गद्दे पर आसन गृहण करने के लिए उसे इशारा किया। एल्दार पैर पर पैर रखकर बैठ गया और बातें कर रहे वृद्ध के चेहरे पर अपनी बड़ी खूबसूरत आँखें स्थिर कर दीं। वृद्ध ने उन्हें बताया कि उनके योद्धाओं ने सप्ताह भर पहले दो रूसी सैनिकों को पकड़ा था। एक को मार दिया था और दूसरे को शमील के पास भेज दिया था। हाजी मुराद ने दरवाजे की ओर सरसरी दृष्टि डाली और बाहर से आने वाली आवाज पर ध्यान केन्द्रित करते हुए अन्यमनस्क भाव से वृद्ध की बात सुनी। घर के सायबान के नीचे कदमों की आहट थी। तभी दरवाजा चरमराया और गृहस्वामी ने प्रवेश किया।
गृहस्वामी, सादो, लगभग चालीस वर्ष का व्यक्ति था। उसकी दाढ़ी छोटी, नाक लंबी और आँखें उसी प्रकार काली थीं, यद्यपि उतनी चमकदार नहीं थीं, जैसी उसके पन्द्रह वर्षीय पुत्र की थीं जो उसे बुलाने गया था। वह भी अंदर आया और दरवाजे के पास बैठ गया। सादो ने अपने लकड़ी के जूते उतार दिए। बिना हजामत किए हुए ठूंठी जैसे काले बालोंवाले बड़े सिर पर से जीर्ण-शीर्ण फर की टोपी को उसने पीछे हटाया और तुरंत हाजी मुराद के सामने पाल्थी मारकर बैठ गया।
उसने उसी प्रकार आँखें बंद कर लीं, जिस प्रकार वृद्ध ने की थीं और हथेलियों को उभारते हुए हाथों को ऊपर उठाया। उसने सस्वर नमाज अदा की और बोलने से पहले चेहरे पर धीरे-धीरे अपने हाथ फेरे। फिर उसने कहा कि शमील ने हाजी मुराद को जीवित या मृत पकड़ने का आदेश भेजा था। शमील का दूत कल ही वापस गया था, और इसलिए सावधान रहना उनके लिए आवश्यक था।
‘‘मेरे घर में, जब तक मैं जीवित हूँ” सादो ने कहा, ‘‘कोई भी मेरे मित्र को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। लेकिन बाहर के विषय में कौन जानता है ? हमें इस पर विचार करना चाहिए।"
हाजी मुराद ने एकाग्रतापूर्वक उसकी बात सुनी और सहमति में सिर हिलाया, और जैसे ही सादो ने बात समाप्त की, वह बोला -
‘‘हूँ … अब मुझे पत्र देकर एक आदमी रूसियों के पास भेजना है। मेरा मुरीद जाएगा, लेकिन उसे एक मार्ग-दर्शक की आवश्यकता है।"
‘‘मैं अपने भाई बाटा को भेजूंगा," सादो ने कहा। ‘‘बाटा को बुलाओ," उसने अपने बेटे से कहा।
लडका उत्सुकतापूर्वक अपनी टांगों को उछालता और बाहों को लहराता हुआ तेजी से घर से बाहर निकल गया। दस मिनट बाद वह गहरे ताम्बई रंग, छोटी टांगों वाले एक हृष्ट-पुष्ट चेचेन के साथ लौटा। उसने आस्तीनों पर रोंयेदार मुलायम चमड़े का पैबंद लगा चिथड़ा पीला ट्यूनिक, और लंबी काली पतलून पहन रखी थी। हाजी मुराद ने आगन्तुक को अभिवादन किया और एक भी शब्द व्यर्थ किए बिना तुरंत बोला :
‘‘क्या तुम मेरे मुरीद को रूसियों के पास ले जाओगे ?"
‘‘मैं ले जा सकता हूँ।" बाटा ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर दिया। ‘‘मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कोई भी चेचेन ऐसा नहीं है जो मुझसे बढ़कर हो। कुछ लोग आते हैं और आपसे दुनिया भर के वायदे करते हैं, लेकिन करते कुछ नहीं, लेकिन मैं यह कर सकता हूँ।"
‘‘अच्छा" हाजी मुराद बोला। ‘‘इस काम के लिए तुम्हें तीन रूबल मिलेंगे।" तीन उंगलियॉं दिखाते हुए उसने कहा।
बाटा यह प्रदर्शित करता हुआ सिर हिलाता रहा कि वह समझ गया है, लेकिन उसने आगे कहा कि वह पैसा नहीं चाहता, वह केवल आदर भाव के कारण हाजी मुराद की सेवा के लिए तैयार हुआ था। पहाड़ों में सभी इस बात को जानते हैं कि हाजी मुराद ने किस प्रकार रूसी सुअरों की पिटाई की थी।"
‘‘इतना ही पर्याप्त है।" हाजी मुराद बोला, ‘‘एक रस्सी को लंबा होना चाहिए, लेकिन भाषण छोटा होना चाहिए।"
‘‘तो मैं चुप रहूंगा।" बाटा बोला।
‘‘झरने के सामने जहॉं आर्गुन मोड़ है, वहॉं जंगल में एक खुला स्थान है और वहॉं सूखी घास के दो ढेर हैं। तुम्हे उस स्थान के विषय में मालूम है ?"
‘‘ मुझे मालूम है।‘‘
‘‘मेरे तीन घुड़सवार वहॉं मेरा इंतजार कर रहे हैं।" हाजी मुराद ने कहा।
‘‘अहा।" सिर हिलाते हुए बाटा बोला।
‘‘खान महोमा को पूछना। खान-महोमा जानता है कि क्या करना है और क्या कहना है। क्या तुम उसे रूसी प्रधान, प्रिन्स, वोरोन्त्सोव के पास ले जा सकते हो ?"
‘‘मैं ले जा सकता हूँ।"
‘‘उसे ले जाओ और वापस ले आओ। ठीक ?"
‘‘बिल्कुल ठीक।"
‘‘उसे लेकर जंगल में वापस आओ। मैं वहीं हूंगा।"
‘‘मैं यह सब करूंगा," अपनी छाती पर अपने हाथों को दबाकर, उठकर खड़े होते हुए और बाहर जाते हुए बाटा ने कहा।
‘‘एक दूसरा आदमी मुझे घेखी के पास भेजना आवश्यक है," बाटा के चले जाने के बाद हाजी मुराद ने अपने मेजबान से कहा। ‘‘यह घेखी के लिए है," ट्यूनिक की एक थैली को पकड़ते हुए उसने कहना जारी रखा, लेकिन जब उसने दो महिलाओं को कमरे में प्रवेश करते हुए देखा, उसने तुरन्त हाथ बाहर निकाल लिया और रुक गया।
उनमें से एक सादो की पत्नी थी। वही दुबली-पतली अधेड़ महिला, जिसने लाकर गद्दे बिछाये थे। दूसरी लाल पायजामे पर हरे रंग का वस्त्र पहने एक युवती थी जिसके वस्त्र के वक्ष भाग में धागे से चॉंदी के सिक्के जड़े हुए थे। चॉंदी का एक रूबल उसके मांसल स्कंधस्थल के बीच लटकती मजबूत काली चोटी के अंत में लटका हुआ था। वह कठोर दिखने का प्रयास कर रही थी, लेकिन पिता और भाई की भॉंति मनकों जैसी उसकी आँखें उसके चेहरे पर झपक रही थीं। उसने आगन्तुकों की ओर नहीं देखा, लेकिन स्पष्ट रूप से वह उनकी उपस्थिति से अवगत थी।
सादो की पत्नी एक नीची गोल मेज में चाय, मक्खनवाले मालपुआ, चीज, पावरोटी और मधु लेकर आयी थी। लड़की एक कटोरा, एक सुराही और एक तौलिया लायी थी।
जब तक दोनों महिलाएं मुलायम तलों वाले जूतों से खामोश कदम रखती हुई मेहमानों के सामने सामान रखती रहीं; तब तक सादो और हाजी मुराद चुप रहे। जब तक महिलाएं कमरे में रहीं एल्दार अपनी बड़ी आँखें आड़े-तिरछे रखे पैरों पर गड़ाये पूरे समय मूर्तिवत बैठा रहा था। जब दोनों महिलाएं कमरे से बाहर चली गयीं और दरवाजे के पीछे उनके कदमों की आवाज आनी बंद हो गयी, तब एल्दार ने राहत की ठण्डी सांस ली और हाजी मुराद ने अपनी ट्यूनिक की एक थैली को पकड़ा, उसके अंदर ठुंसी एक गोली, और उसके नीचे लपेट कर रखा पत्र निकाला।
‘‘इसे मेरे बेटे तक पहुँचाना है।" पत्र दिखाते हुए वह बोला।
‘‘ और उत्तर ?" सादो ने पूछा।
‘‘तुम उसे ले लेना और उसे मुझे भेज देना।"
‘‘यह हो जाएगा,” सादो ने कहा और पत्र को अपनी ट्यूनिक की जेब में रख लिया। फिर उसने सुराही अपने हाथ में पकडा और कटोरा हाजी मुराद की ओर सरकाया। हाजी मुराद ने बाहें उघाड़ी, जिससे उनका गोरापन और मांसपेशी दिखाई दीं। उसने अपने हाथों को स्वच्छ ठण्डे पानी की धार के नीचे किया जिसे सादो सुराही से ढाल रहा था। जब हाजी मुराद ने मोटे साफ तौलिये से हाथ सुखा लिये, वह भोजन के लिए मुड़ा। एल्दार ने भी वैसा ही किया। जब वे भोजन कर रहे थे, सादो उनके सामने बैठा रहा था और उनके आगमन के लिए उसने उन्हें अनेक बार धन्यवाद कहा था। लड़का दरवाजे के पास बैठा, अपनी चमकती काली आँखों से उन पर मुस्करा रहा था मानो वह अपने पिता के शब्दों की पुष्टि कर रहा था।
यद्यपि हाजी मुराद ने चौबीस घण्टों से अधिक समय से भोजन नहीं किया था, फिर भी उसने बहुत थोड़ी ब्रेड और चीज खायी और ब्रेड पर चाकू से थोड़ा-सा मधु लगाया।
‘‘हमारा शहद अच्छा है। यह वर्ष शहद के लिए प्रसिद्ध रहा है। यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, और अच्छी गुणवत्ता वाला है," वृद्ध ने कहा और यह देखकर प्रसन्न हुआ कि हाजी मुराद उसका शहद खा रहा था।
‘‘शुक्रिया," हाजी मुराद ने कहा और भोजन लेना छोड़ दिया। एल्दार अभी भी भूखा था, लेकिन अपने स्वामी की भॉंति ही वह भी मेज से हट गया और उसने हाजी मुराद की ओर कटोरा और सुराही बढ़ाया।
सादो जानता था कि हाजी मुराद को रखकर वह अपने जीवन को खतरे में डाल रहा था। जब से हाजी मुराद का शमील के साथ झगड़ा हुआ था, मृत्यु का भय दिखाकर सभी चेचेन- वासियों के लिए उसका स्वागत ममनूअ (निषिद्ध) कर दिया गया था। वह जानता था कि ग्रामीणों को किसी भी क्षण उसके घर में हाजी मुराद के मौजूद होने की जानकारी हो सकती है और वे उसके आत्मसमर्पण की मांग कर सकते हैं। लेकिन घबड़ाने के बजाय वह प्रसन्न था। वह मानता था कि यह उसका कर्तव्य है कि वह अपने मेहमान की रक्षा करे, भले ही इसके लिए उसे अपने प्राण गंवाने पड़ें। उसने इस बात से अपने को प्रसन्न और गौरवान्वित अनुभव किया कि वह एक ‘ड्यूटी कमाण्डेण्ट' की भॉंति व्यवहार कर रहा था।
‘‘जब तक आप मेरे घर में हैं और मेरा सिर मेरे कंधों पर है, कोई भी आपको नुकसान नहीं पहुँचा पायेगा," उसने पुन: हाजी मुराद से दोहराया।
हाजी मुराद ने उसकी चमकदार आँखों की ओर देखा और समझ गया कि वह सच कह रहा था।
‘‘ तुम्हे खुशी और लंबी उम्र मिले।" उसने औपचारिकतापूर्वक कहा।
सादो ने नेक शब्दों के लिए इशारे से इल्तज़ा करते हुए अपनी छाती को अपने हाथों से दबाया।
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जब हाजी मुराद ने किवाड़ बन्द किये और जलाने के लिए तैयार लकडि़यॉं अंगीठी में डालने लगा, सादो विशेषरूप से प्रसन्नचित और सजीव मन:स्थिति में कमरे से विदा हुआ और घर के पीछे की ओर परिवार के लिए बने कमरों में चला गया। महिलाएं उस खतरनाक मेहमान के विषय में बातें करतीं हुई, जो आगे के कमरे में रात बिता रहा था, अभी तक जाग रही थीं।
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