शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

धारावाहिक उपन्यास

हाज़ी मुराद
अनुवाद - रूपसिंह चन्देल
चैप्टर - २ और ३

यास्नाया पोल्याना में तोलस्तोय
(१९०४)








॥ दो ॥

उसी रात वोजविजेन्स्क में अग्रिम छावनी से तीन सैनिक और एक वारण्ट अफसर सगीर गेट की ओर रवाना हुए। वे उस गांव से लगभग बारह मील की दूरी पर थे, जहाँ हाजी मुराद रात बिता रहा था। सैनिकों ने फर के जैकेट और टोपियाँ, कंधों पर पट्टियाँ लगे ओवर कोट और घुटनों से भी ऊँचे बूट पहन रखे थे जो उन दिनों कोकेशस में यूनीफार्म का हिस्सा हुआ करते थे। अपने हिथयारों को कंधों पर लादे वे सड़क के साथ-साथ एक फर्लांग तक गए, फिर दाहिनी ओर पत्तों से होकर सरसराते हुए बीस कदम चले, और एक टूटे चिनार के पेड़ के पास खड़े हो गए, जिसका काला तना अंधेरे में अस्पष्ट दिखाई दे रहा था। उस पेड़ के पास प्राय: एक संतरी रात्रि-रक्षक के रूप में नियुक्त रहता था।
जब वे जंगल से होकर गुजर रहे थे, पेड़ों के ऊपर दौड़ने का आभास देते चमकीले तारे वृक्षों की नंगी शाखाओं के पार हीरे जैसा चमकते हुए ठहरे हुए थे।
‘‘ईश्वर को धन्यवाद कि यह सूखा है,” वारण्ट अफसर पानोव बोला। उसने संगीन लगी अपनी लंबी राइफल उतारी और आवाज के साथ पेड़ के सामने टिका दी। सैनिकों ने भी उसका अनुसरण किया।
‘‘हाँ, मैं समझ गया, मैं उसे खो चुका हूँ, ” पानोव बुदबुदाया। “या तो मैं उसे भूल आया अथवा वह रास्ते में गिर गया।”
‘‘आप क्या खोज रहे हैं? ” एक सैनिक ने हार्दिकतापूर्वक, प्रसन्न स्वर में पूछा।
‘‘मेरा पाइप… मुझे लानत है। काश ! मैं जान पाऊँ कि वह कहाँ है।! ”
‘‘आप नली लाए हैं? ” प्रसन्न स्वर ने पूछा ।
‘‘नली … यह रही वह।”
‘‘आप उसे जमीन में गाड़ देगें? ”
‘‘क्या इरादा है? ”
“मैं उसे तुरंत बैठा दूंगा।”
गश्त के दौरान धूम्रपान सख्त वर्जित था, लेकिन यह चौकी मुश्किल से ही छुपी हुई थी। यह एक सीमा-चौकी थी जो कबीलाइयों को चोरी-छुपे तोपखाना लाने से रोकती थी, जैसा कि वे पहले करते थे और छावनी पर बमबारी किया करते थे। अंतत: अपने को तम्बाकू पीने से वंचित करने का पानोव को कोई कारण नजर नहीं आया, और उसने प्रसन्न सैनिक के प्रस्ताव पर सहमति दे दी। सैनिक ने अपनी जेब से चाकू निकाला और जमीन पर एक गड्ढा खोदने लगा। जब गड्ढा खुद गया, उसने उसे बराबर किया, नली का पाइप उस स्थान पर बैठाया, छेद में कुछ तम्बाकू रखा, उसे नीचे की ओर दबाया और सब कुछ तैयार था। दियासलाई धधकी और सैनिक के पिचके मुंह के पास एक क्षण के लिए जल उठी, क्योंकि वह पेट के बल जमीन पर लेटा था। पाइप में सीटी की-सी आवाज हुई, और पानोव ने तंबाकू जलने की रुचिकर सुगंध अनुभव की।
‘‘तुमने उसे बैठा दिया ? ” खड़े होते हुए पानोव ने पूछा।
‘‘काम ठीक ठाक हो गया।”
‘‘बहुत अच्छा किया, आवदेयेव ! एक विशिष्ट दक्ष, लौंडे, एह ? ”
आवदेयेव अपने मुंह से धुआँ बाहर छोड़ता हुआ ऊपर की ओर घूम गया, और उसने पानोव के लिए रास्ता बनाया।
पानोव पेट के बल लेट गया, अपनी आस्तीन से नली को पोछा और तम्बाकू पीने लगा। जब उसने पीना बंद किया सैनिकों ने बाते प्रारंभ कर दी।
‘‘ वे कहते हैं कि कमाण्डिंग अफसर पुन: आर्थिक संकट में फंस गया है। निश्चित ही उसने जुआ खेला होगा, ” एक सैनिक धीरे-धीरे बोला।
‘‘वह उसे वापस लौटा देगा।” पानोव बोला।
‘‘सभी जानते हैं कि वह एक अच्छा अफसर है, ” उसकी बात का समर्थन करते हुए आवदेयेव ने कहा।
‘‘मैं परवाह नहीं करता, यदि वह अच्छा अफसर है, ” पहला वक्ता भुनभुनाया, ‘‘मेरे विचार से कम्पनी का कर्तव्य है कि उससे पूछताछ करे। यदि उसने कुछ लिया है, तो उसे बताना चाहिए कि कितना, और वह उसे कब लौटाएगा।”
‘‘यह निर्णय करना कम्पनी का काम है, ” तम्बाकू पीना रोक कर पानोव ने कहा।
‘‘वह उससे भाग नहीं सकेगा, आप भी यह निश्चित तौर पर समझ सकते हैं,” आवदेयेव ने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा।
‘‘वह सब बहुत अच्छा है, लेकिन हमें रखने के लिए तो मिली जई और हमने सामान रखने की पेटी मरम्मत करवायी वसंत के लिए… पैसा चाहिए, और यदि उसने वह लिया है…।” असंतुष्ट सैनिक ने कहना जारी रखा। ‘‘यह सब कम्पनी के ऊपर है, मैंने कहा न, ” पानोव ने दोहराया। ‘‘ऐसा पहले भी घटित हुआ था। उसने जो भी लिया है वह उसे वापस लौटा देगा।”
उन दिनों काकेशस में प्रत्येक कम्पनी अपने लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा नियंत्रित करती थी। भत्ते के रूप में उसे प्रति व्यक्ति छ: रूबल पचास कोपेक प्राप्त होते थे, और वह अपने आप आपूर्ति करती थी। वह सब्जियाँ उगाती, चारागाह तैयार करती, परिवहन व्यवस्था कायम करती और अच्छी तरह पोषित घोड़ों पर विशेष गर्व करती थी। फण्ड तिजोरी में रखा जाता था, और चाबी कम्पनी कमाण्डर के पास होती थी। अपनी सहायता के लिए ऋण लेना कम्पनी कमाण्डर के लिए बार-बार की घटना हो गयी थी। इस समय भी यही घटित हुआ था, और वही सैनिकों के चर्चा का विषय था। निकितिन असंतुष्ट था और चाहता था कि हिसाब के लिए कमाण्डर को कहा जाये, लेकिन पानोव और आवदेयेव इस बात की आवश्यकता अनुभव नहीं करते थे।
पानोव ने जब पीना समाप्त किया, तब निकितिन पाइप की ओर मुड़ा। वह अपने ओवर कोट पर बैठ गया और पेड़ के सामने झुक गया। दल के लोग चुप हो गये थे और आवाज केवल उनके सिरों के ऊपर पेड़ों की फुनगियों की ऊंचाई पर हवा के सरसराने की थी। अचानक उन्हें हवा की सरसराहट से ऊपर श्रृंगालों का चीखना और विलखना सुनाई पड़ा।
‘‘ उन्हें लानत, ये कैसा शोरगुल कर रहे हैं।” आवदेयेव बोला।
‘‘वे तुम पर हंस रहे हैं; क्योंकि तुम्हारा चेहरा भैंगा है, ” नरम उक्र्रैनियन लहजे में तीसरे सैनिक ने कहा।
पुन: चुप्पी पसर गयी। हवा केवल पेड़ों की टहनियों को हिला रही थी, जिससे तारे कभी प्रकट होते तो कभी छुप जाते थे।
‘‘अन्तोनिच, मैं कहता हूँ,” मुस्कराते हुए आवदेयेव ने अचानक पानोव से पूछा, ‘‘आप कभी परेशान हुए ? ”
‘‘परेशान ! तुम्हारा अभिप्राय क्या है? ” पानोव ने अनिच्छापूर्वक उत्तर दिया।
‘‘मैं इस समय इतना परेशान हूँ… मात्र परेशान, कि आश्चर्य नहीं कि मैं कहीं आत्महत्या न कर लूं।”
‘‘इसे समाप्त करो।” पानोव ने कहा।
‘‘मैनें पीने में पैसे इसलिए उड़ाये, क्योंकि मैं परेशान था। मैं पीने के लिए परेशान रहता था। और मैनें सोचा, मुझे अंधाधुंध पीना है।”
‘‘नियम से मदिरा-पान करना मनुष्य को बदतर बनाता है।”
‘‘हाँ, लेकिन मैं क्या कर सकता हूँ।”
‘‘गोया, तुम किस बात से परेशान हो ? ”
‘‘मैं ? मैं गृहासक्त हूँ।”
‘‘क्यों ? क्या तुम घर में बेहतर थे ? ”
‘‘हम अमीर नहीं थे, लेकिन वह एक अच्छी ज़िन्दगी थी, सुन्दर जीवन।”
और आवदेयेव पानोव को उस विषय में बताने लगा, जैसा कि वह पहले भी कई बार कर चुका था ।
‘‘भाई के बजाय मैं स्वेच्छा से सेना में भर्ती हुआ था, ” आवदेयेव ने कहा, ‘‘उसके चार बच्चे थे, जबकि मेरी अभी शादी ही हुई थी। मेरी माँ चाहती थी कि मैं सेना में जाऊं। मैनें कभी उज्र नहीं किया। मैनें सोचा, शायद अच्छे कार्यों के लिए वे मुझे याद करेंगे। इसलिए मैं जमींदार से मिलने गया। वह एक अच्छा आदमी था, हमारा जमींदार, और उसने कहा, ‘‘अच्छा मित्र, तुम जाओ। इस प्रकार भाई के बजाय मैं सेना में भर्ती हो गया।”
‘‘बहुत अच्छा।” पानोव ने कहा।
‘‘लेकिन अंतोनिच, अब आप इस पर अवश्य विश्वास करेंगें, कि मैं परेशान हूँ। यह सब इसलिए बदतर है, क्योंकि मैनें अपने भाई का स्थान लिया था। मैं अपने से कहता हूँ कि इस समय वह एक छोटा जमींदार है, जबकि मैं तंगहाली में हूँ। और मैं जितना ही इस विषय में सोचता हूँ, यह उतना ही बदतर लगता है। इसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता।”
आवदेयेव रुका। ‘‘क्या हम दोबारा तम्बाकू पियेंगे? ” उसने पूछा।
‘‘हाँ, उसे ठीक करो।”
लेकिन सैनिकों को तम्बाकू पीने का आनन्द नहीं मिला। आवदेयेव अभी उठा ही था और वह पाइप ठीक करने ही वाला था, कि उन्हें हवा की आवाज के ऊपर सड़क पर चलते कदमों की आवाज सुनाई दी। पानोव ने अपनी राइफल उठा ली और निकितिन को झिटका। निकितिन उठा और उसने अपना ओवर कोट उठाया। तीसरा बोन्दोरेन्को भी उठ खड़ा हुआ।
‘‘ क्या मैं स्वप्न देख रहा था … क्या स्वप्न …!”
आवदेयेव बोन्दारेन्को पर फुफकारा, और सैनिक जड़ होकर चुपचाप सुनने का प्रयास करने लगे। जूतों पर चलते शिथिल कदम निकट आते जा रहे थे। अंधेरे में पत्तियों और सूखी टहनियों की चरमराहट साफ सुनाई दे रही थी। तभी उन्हें चेचेन की गुट्टारा भाषा में बातचीत करने की अनूठी आवाज सुनाई दी, और उन्होंने पेड़ों के बीच हल्की रोशनी में दो छायाओं को चलते देखा। एक छाया छोटी और दूसरी लंबी थी। जब वे सैनिकों के बराबर पहुंचे पानोव और उसके साथी हाथ में राइफल थामें सड़क पर आ गये।
‘‘ कौन जा रहा है ? ” पानोव चीखा।
‘‘शांतिप्रिय चेचेन, ” दोनों में से छोटे कद वाला बोला। वह बाटा था। ‘‘न बन्दूक है, न तलवार, ” अपनी ओर इशारा करते हुए उसने कहा, ‘‘प्रिन्स, आप देख सकते हैं।”
लंबा व्यक्ति अपने साथी के बगल में शांत खड़ा था। उसके पास भी हथियार नहीं थे।
‘‘कर्नल से मिलने जानेवाले गुप्तचर हो सकते हैं।” पानोव ने अपने साथियों को स्पष्ट किया।
‘‘प्रिन्स वोरोन्त्सोव से मिलना आवश्यक है, महत्वपूर्ण कार्य है।” बाटा ने कहा।
‘‘बहुत अच्छा। हम तुम्हें उनके पास ले जायेंगे, ” पानोव बोला, ‘‘तुम और बोन्दोरेन्को इन्हे साथ लेकर जाओ,” उसने आवदेयेव से कहा, ‘‘उन्हें ड्यूटी अफसर को सौंपना और वापस लौट आना। और पूरी तरह सावधान रहना। इन्हें अपने आगे चलने देना।”
‘‘यह किसलिए है ? ” अपनी संगीन से धकियाते हुए आवदेयेव बोला। एक को धकियाया और वह मृत व्यक्ति-सा बना रहा।
‘‘तुम उसे कोंचते हो, उससे कोई लाभ ? ” बान्दोरेन्को बोला, ‘‘ठीक है, तेजी से चलो।”
जब गुप्तचरों और उनके अनुरक्षकों के कदमों की ध्वनि सुनाई देनी बंद हो गयी, पानोव और निकितिन वापस चौकी में लौट गये थे।
‘‘रात में शैतान उन्हें यहाँ किसलिए लाया था ? ” निकितिन बोला।
‘‘उनके पास कोई कारण अवश्य है, ” पानोव ने कहा। ‘‘देखो रोशनी फैल रही है,” उसने आगे कहा। उसने अपने ओवरकोट को फैलाया और पेड़ के सामने बैठ गया।
दो घण्टे पश्चात् आवदेयेव और बोन्दोरेन्को लौट आए।
‘‘हाँ, तुम उन्हें सौंप आए ? ” पानोव ने पूछा।
‘‘हाँ। कर्नल अभी तक जागे हुए थे, और वे उन्हें सीधे उन्हीं के पास ले गये थे। सफाचट सिर वाले वे लड़के कितने अच्छे थे!” आवदेयेव ने कहा, ‘‘ मैंनें उनसे अद्भुत बातचीत की।”
‘‘हम जानते हैं कि तुम अद्भुत बातूनी हो, ” निकितिन कटु स्वर में बोला।
‘‘सच, वे बलिकुल रूसियों जैसे हैं। एक विवाहित है।”
‘‘तुम्हारे पत्नी है? ” मैनें पूछा।
‘‘हाँ।” उसने कहा।
‘‘कोई बच्चा ? ” मैनें पुन: पूछा।
‘‘हाँ, बच्चा है”
‘‘एक जोड़ी ?”
‘‘एक जोड़ी” उसने कहा। “हमने अच्छी गपशप की।…शानदार लड़के हैं।”
‘‘मैं शर्त लगाता हूँ, ” निकितिन ने कहा, ‘‘ तुम एक से अकेले मिलो, और वह जल्दी ही तुम्हारी आंते निकाल देगा।”
‘‘भोर जल्दी ही होगी।” पानोव बोला।
‘‘हाँ, अब तारे फीके पड़ने लगे हैं, ” आवदेयेव ने बैठते हुए कहा।
सैनिक पुन: चुप हो गये थे।

॥ तीन ॥

बैरकों की खिड़कियों और सैनिकों के कुटीरों में रोशनी बहुत पहले बुझ चुकी थी, लेकिन छावनी के भव्य-भवन की सभी खिड़कियाँ रौशन थीं। यह कुरियन रेजीमेण्ट के कर्नल प्रिन्स माइकल साइमन वोरेन्त्सोव का घर था, जो राज दरबार के एक उच्च अधिकारी और कमाण्डर-इन-चीफ का पुत्र था। वोरोन्त्सोव इस घर में अपनी पत्नी मेरी वसीलीव्ना के साथ रहता था, जो पीटर्सबर्ग की एक सुन्दरी थी। उसके रहन-सहन में एक प्रकार की ऐसी विशिष्टता थी जो काकेशस के इस छोटी छावनी वाले कस्बे में पहले कभी नहीं देखा गया था। वारोन्त्सोव और उसकी पत्नी सोचते कि वे अभावों से भरपूर बहुत साधारण जीवन जी रहे थे, फिर भी स्थानीय निवासी उनके असाधारण विलासितापूर्ण रहन-सहन से विस्मित थे।
आधी रात का समय था। वोरोन्त्सोव अपने विशाल ड्राइंग रूम में, जिसमें कालीन बिछा हुआ था और लंबे भारी परदे पड़े हुए थे, अतिथियों के साथ मेज पर ताश खेल रहा था, जिस पर चार मोमबत्तियाँ जल रही थीं। खिलाडि़यों में एक स्वयं कर्नल वारोन्त्सोव था। उसका चेहरा लंबा, बाल सुन्दर थे और उसने राज्याधिकारी होने के चिन्ह धारण कर रखे थे। उसका साथी पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय का एक स्नातक था, जिसे प्रिन्सेज ने अपने पहले पति से उत्पन्न पुत्र के ट्यूटर के रूप में नियुक्त किया हुआ था। वह उदास भावाकृतिवाला एक सांवला नौजवान था। दो अधिकारी उनके विरुद्ध खेल रहे थे। उनमें से एक चौड़े गाल, गुलाबी चेहरे वाला कम्पनी कमाण्डर पोल्तोरत्स्की था, जो गारद सेना से स्थानांतरित होकर आया था और दूसरा रेजीमंण्टल एडजूटेण्ट था, जो अपने सुन्दर चेहरे पर ठण्डी भावाकृति लिए सीधा तना हुआ बैठा था। बड़ी आंखों और काली भौंहोवाली सुन्दर महिला प्रिन्सेज मेरी वसीलीव्ना, पोल्तोरत्स्की के बगल में बैठी थी और उसके पैरों को अपने पेटीकोट से छू रही थी और उसके हाथों की ओर देख रही थी। उसके बोलने, उसके देखने और मुस्कराने, उसक शरीर के संचलन और उसके द्वारा प्रयोग किये गये परफ्यूम, से सम्मोहित पोल्तोरत्स्की उसका सान्निध्य पाने के अतिरिक्त सब ओर से बेखबर था। उसने एक के बाद दूसरी गलती की थी और इससे उसका साथी भड़क उठा था।
‘‘नहीं यह तो हद है ! तुमने दूसरा इक्का बरबाद कर दिया।” लाल-पीला होता हुआ एड्जूटेण्ट बोला, क्योंकि पोल्तोरत्स्की एक इक्का फेक चुका था।
पोल्तोरत्स्की ने अपनी सौम्य बड़ी काली आंखों से क्रुद्ध एड्जूटेण्ट की ओर न समझने वाले भाव से ऐसे देखा मानो वह अभी-अभी सोकर उठा था।
‘‘अच्छा, उसे क्षमा कर दें।” मुस्कराती हुर्ह मेरी वसीलीव्ना ने कहा। “मैनें तुमको इतना बताया था,” उसने पोल्तोरत्स्की से कहा। ‘‘लेकिन तुमने मुझे सब गलत बताया था।” पोल्तोरत्स्की ने मुस्कराते हुए कहा ।
‘‘सच ?” वह बोली, और मुस्कराई भी। पोल्तोरत्स्की इस मुस्कराहट से इतना उत्तेजित और प्रसन्न हुआ कि वह शर्म से लाल हो उठा और उत्तेजित-सा पत्ते फेटने लगा ।
‘‘तुम्हारे पत्ते नहीं।” एड्जूटेण्ट कठोरतापूर्वक बोला और अपने गोरे हाथों को घुमाते हुए पत्ते फेटने लगा मानो वह उनसे यथाशीघ्र मुक्ति पा लेना चाहता था।
एक नौकर ड्राइंगरूम में प्रविष्ट हुआ और बोला कि ड्यूटी अफसर ने प्रिन्स से भेंट करने का अनुरोध किया है।
‘‘सज्जनों, क्षमा करें,” अंग्रेजी लहजे में प्रिन्स ने रशियन में कहा, ‘‘मेरी तुम मेरा स्थान ग्रहण कर लो।”
‘‘मैं ?” फुर्ती से पूरी तरह खड़ी होती हुई प्रिन्सेज ने पूछा। उसके सिल्क के कपड़ों में सरसराहट हुई और एक प्रसन्न महिला की भाँति उल्लसित होती हुई वह मुस्काराई।
‘‘मैं सदैव हर बात के लिए तैयार रहता हूँ,” एड्जूटेण्ट बोला। अपने विरुद्ध प्रिन्सेज के खेलने से वह बहुत प्रसन्न था, क्योंकि प्रिन्सेज को खेलने का बिल्कुल ज्ञान नहीं था। पोल्तोरत्स्की ने सहजता से बाहें फैलायीं और मुस्कराया।
प्रिन्स जब ड्राइंग रूम में वापस लौटा खेल समाप्त हो रहा था। वह बहुत उत्तेजित और प्रसन्न था।
‘‘सोचो, मैं क्या सूचित करने वाला हूँ।”
‘‘क्या ?”
‘‘आओ हम शैम्पेन पियें।”
‘‘मैं सदैव तैयार रहता हूँ ,” पोल्तोरत्स्की ने कहा।
‘‘हां, कितना सुखद ,” एड्जूटेण्ट बोला।
‘‘वसीली ! हम लोगों को शैम्पेन सर्व करो !” प्रिन्स ने कहा।
‘‘ तुम्हें क्यों बुलाया था?” मेरी वसीलीव्ना ने पूछा।
‘‘ड्यूटी अफसर एक दूसरे आदमी के साथ आया था?”
‘‘कौन? क्यों?” मेरे वीसीलीव्ना ने उत्सुकतापूर्वक पूछा।
‘‘मैं नहीं बता सकता,” वारोन्त्सोव बोला।
‘‘तुम नहीं बता सकते,” मेरी वसीलीव्ना ने दोहराया, ‘‘हम उस पर विचार कर लेगें।”
शैम्पेन सर्व की गई। अतिथियों ने एक-एक गिलास पिया, खेल समाप्त किया, व्यवस्थित हुए और जाने लगे।
‘‘आपकी कम्पनी को कल जंगल के लिए तैनात किया गया है, क्या नहीं? ” प्रिन्स ने पोल्तोरत्स्की से पूछा।
‘‘हाँ, मेरी ... वहाँ कुछ खास है ?”
‘‘तब मैं आपसे कल मिलूंगा।” प्रिन्स ने फीकी मुस्कान के साथ कहा।
‘‘मैं गौरवान्वित हूँ,” मेरी वसीलीव्ना से हाथ मिलाने के विचार के संभ्रम में पोल्तोरत्स्की प्रिन्स के शब्दों को पूरी तरह ग्रहण नहीं कर पाया था।
मेरी वसीलीव्ना ने, प्राय: की भाँति, उसके हाथ को न केवल दृढ़ता से दबाया बल्कि जोरदार ढंग से हिलाया भी। उसने उसे एक बार पुन: उस समय की त्रुटि की याद दिलाई जब वह क्लबों का संचालन किया करता था। वह उस पर मुस्कराई।
‘‘एक मोहक, उत्तेजक और अर्थपूर्ण मुस्कान,” पोल्तोरत्स्की ने सोचा। वह ऐसी उल्लासपूर्ण मनस्थिति में घर गया, जिसे समाज में उसकी तरह पढ़े-लिखे, उसी की भाँति जन्मे और पले-बढ़े लोग ही समझ सकते थे जो उसी की तरह महीनों के एकाकी सैनिक जीवन के बाद अचानक अपनी किसी पूर्व परिचित महिला से मिलते हैं। और प्रिन्सेज वोरोन्त्सोव एक विशिष्ट महिला थीं।
जब वह अपने निवास पर पहुँचा उसने दरवाजे को धक्का दिया, लेकिन चिटखनी अंदर से बंद थी। उसने खटखटाया, लेकिन वह बंद ही रहा। उसका धैर्य चुक गया और उसने बूट और तलवार दरवाजे पर मारना शुरू कर दिया। अंदर पदचाप सुनाई पड़ी और पोल्तोरत्स्की के नौकर ववीला ने चिटकनी खोली।
‘‘ मूर्ख, तुमने बंद क्यों किया था ?”
‘‘लेकिन सच, अलेक्सिस व्लादीमीर …।”
‘‘दोबारा पी ? मैं तुझे सबक सिखा दूँगा …।”
पोल्तोरत्स्की ववीला को लगभग मारने ही वाला था, लेकिन फिर उसने उसे सुधारने की सोचा।
‘‘तुझे लानत है, सुधरने की कभी मत सोचना। चल, मोमबत्ती जला।”
‘‘इसी क्षण।”
ववीला बुरी तरह पिये हुए था। वह क्वार्टर मास्टर के जन्म दिन के आयोजन में शामिल हुआ था। जब वह घर लौटकर आया, वह अपने जीवन की तुलना क्वार्टर मास्टर इवान मैथ्यू के जीवन से करने लगा। इवान मैथ्यू की निश्चित आय थी, वह विवाहित था और आशा करता था कि एक वर्ष में पैसे देकर वह अपने को सेना से मुक्त कर लेगा। ववीला छोटी आयु में ही नौकरी में आ गया था, और इस समय वह चालीस से ऊपर था, अविवाहित था और अपने अनियंत्रित स्वामी के साथ यौद्धिक जीवन जीता आ रहा था। वह एक अच्छा मालिक था और कभी-कभी ही उसे पीटता था, लेकिन यह भी कोई ज़िन्दगी थी ! ‘‘जब वह काकेशस से लौटा था तब उसने मुझे स्वतंत्र करने का वायदा किया था, लेकिन मैं अपनी स्वतंत्रता का करूंगा क्या ? यह एक कुत्ते जैसी ज़िन्दगी है,” ववीला ने सोचा था। वह इतना उनींदा था कि उसने इस भय से दरवाजा बंद कर लिया था और सो गया था कि कोई घर में घुस आ सकता था और कुछ भी चोरी कर सकता था।
पोल्तोरत्स्की उस कमरे में प्रविष्ट हुआ जहाँ वह अपने साथी तिखोनोव के साथ सोता था।
‘‘अच्छा, तुम हार गये ?” उनींदे स्वर में तिखोनोव बोला।
‘‘भगवन, नहीं ! मैनें सत्तरह रूबल जीते और हमने एक बोतल क्लिकोट पी।”
‘‘और मेरी वसीलीव्ना को देखते रहे ?”
‘‘और मेरी वसीलीव्ना को देखता रहा ।” पोल्तोरत्स्की ने दोहराया।
‘‘जल्दी ही हमारे जागने का समय हो जाएगा।” तिखोनोव ने कहा, ‘‘हमें छ: बजे चल देने के लिए उठना है।”
‘‘ववीला,” पोल्तोरत्स्की चीखा, ‘‘ध्यान रहे, मुझे ठीक पाँच बजे जगा देना।”
‘‘मैं कैसे जगा सकता हूँ जब आप मुझसे झगड़ते हैं ?”
‘‘मैं कहता हूँ, मुझे जगा देना। सुना तुमने?”
‘‘बहुत अच्छा।”
ववीला अपने मालिक के जूते और कपड़े लेकर बाहर निकल गया।
पोल्तोरत्स्की बिस्तर पर गया और एक सिगरेट जलायी। उसने बत्ती बुझायी और मुस्कराया। अंधेरे में उसने मेरी वसीलीव्ना का मुस्कराता चेहरा अपने सामने देखा।
वोरोन्त्सोव दम्पति तुरंत बिस्तर पर नहीं गया था। जब अतिथि चले गये थे तब मेरी वसीलीव्ना अपने पति के पास आयी थी और चेहरे पर कठोरता ओढे़ उसके सामने खड़ी हो गयी थी।
‘‘हाँ, तुम्हे मुझे बाताना ही है ?”
‘‘लेकिन मेरी प्यारी … ।”
‘‘तुम मुझे ‘मेरी प्यारी’ मत कहो। वह एक दूत है, क्या नहीं है ?”
‘‘सच, मैं तुम्हें नहीं बता सकता।”
‘‘तुम नहीं बता सकते ? तब वह मैं तुम्हें बताऊंगी।”
‘‘तुम ?”
‘‘वह हाजी मुराद है ? क्या वह नहीं है ?” प्रिन्सेज ने कहा, जिसने कुछ दिन पहले हाजी मुराद के साथ हुए समझौते के विषय में सुना था। उसने अनुमान लगाया था कि हाजी मुराद स्वयं उसके पति से मिलने आया था।
वोरोन्त्सोव इससे इंकार नहीं कर सका, लेकिन हाजी मुराद की उपस्थिति के विषय में पत्नी का भ्रम निवारण करते हुए उसने कहा, कि वह केवल एक दूत था जिसने उसे बताया था कि अगले दिन हाजी मुराद उससे वहाँ मिलेगा जहाँ जंगल काटा जा रहा था।
छावनी के उकताहटपूर्ण जीवन-चर्या में युवा वोरोन्त्सोव दम्पति इस उत्तेजनापूर्ण समाचार से प्रसन्न थे। वे इस विषय में बातें करते रहे कि इस समाचार से उसके पिता कितना प्रसन्न होंगे। और जब वे सोने के लिए बिस्तर पर गये रात के दो बज चुके थे।

1 टिप्पणी:

ashok andrey ने कहा…

priya chandel tumhaare dwaara anuvadit haaji muraad ka yeh upanyaas ansh padaa,bhai kaphi mehnat kiya hai is par,jiske liye badhai ke patr ho.