बुधवार, 2 जुलाई 2008

कविता


इला प्रसाद की कविताएं

कलम

मैं बोलती थी
और कोई नहीं
सुनता था मुझे।
मैं कलम हो गई
और अब,
सब सुन रहे हैं मुझे।

स्त्रीत्व

कभी नहीं सोचा था
कि ऐसा भी कोई गीत होगा
जो मैं कभी नहीं गा पाऊँगी।

ऐसा भी कुछ लिखा होगा
जिसे मैं कभी भी
किसी को भी
नहीं दिखा पाऊँगी।

अब हैरान हूँ
कैसे मैं नहीं सोच सकी यह सब ?
क्यों नहीं समझ सकी -
स्त्री होने की अपनी नियति को !


आकाश

आखिर चलते-चलते ही
पाँवों में मजबूती आई
और मैं टिक कर
खड़ी हो गई।

अब पाँवों में दम है
पैर तले की ज़मीन की
पुख़्तगी का अहसास भी।

अब कल्पनाओं के पंख नहीं
इच्छाओं के पर हैं
जो मैं अपने हिस्से का आकाश तलाशने
निकल पड़ी हूँ।

बारिश के बाद

बाद बारिश के
मिट्टी से उठती हुई
सोंधी खुशबू
यहाँ नहीं मिलती।

सब्जियों में स्वाद, फ़ूलों में सुगन्ध
सम्बन्धों में आत्मीयता
नहीं मिलती।

सतह पर सब सुखद था
जब तक भीगे नहीं थे।

यह तो बारिश के बाद का सच है!

दूरियाँ

सबकुछ बड़ा है यहाँ
आकार में
इस देश की तरह
असुरक्षा, अकेलापन और डर भी
तब भी लौटना नहीं होता
अपने देश में।

वापसी पर
अपनों की ही
अस्वीकृति का डर
कचोटता है।
वहाँ भी
सम्बन्ध तभी तक हैं
जब तक दूरियाँ हैं!
00

झारखंड की राजधानी राँची में जन्म। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सी. एस. आई. आर. की रिसर्च फ़ेलॊशिप के अन्तर्गत भौतिकी(माइक्रोइलेक्ट्रानिक्स) में पी.एच. डी एवं आई आई टी मुम्बई में सी एस आई आर की ही शॊध वृत्ति पर कुछ वर्षों तक शोध कार्य । राष्ट्रीय एवं अन्तर-राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशित । भौतिकी विषय से जुड़ी राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय कार्यशालाओं/ सम्मेलनों में भागीदारी एवं शोध पत्र का प्रकाशन/प्रस्तुतीकरण।
कुछ समय अमेरिका के कालेजों में अध्यापन।

छात्र जीवन में काव्य लेखन की शुरुआत । प्रारम्भ में कालेज पत्रिका एवं आकाशवाणी तक सीमित।
"इस कहानी का अन्त नहीं " कहानी , जो जनसत्ता में २००२ में प्रकाशित हुई , से कहानी लेखन की शुरुआत। अबतक देश-विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं यथा, वागर्थ, हंस, कादम्बिनी, आधारशिला , हिन्दीजगत, हिन्दी- चेतना, निकट, पुरवाई , स्पाइल आदि तथा अनुभूति- अभिव्यक्ति , हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुंज सहित तमाम वेब पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ प्रकाशित। "वर्तमान -साहित्य" और "रचना- समय" के प्रवासी कथाकार विशेषांक में कहानियाँ/कविताएँ संकलित । डा. अन्जना सन्धीर द्वारा सम्पादित "प्रवासिनी के बोल "में कविताएँ एवं "प्रवासी आवाज" में कहानी संकलित। कुछ रचनाओं का हिन्दी से इतर भाषाओं में अनुवाद भी। विश्व हिन्दी सम्मेलन में भागीदारी एवं सम्मेलन की अमेरिका से प्रकाशित स्मारिका में लेख संकलित। कुछ संस्मरण एवं अन्य लेखकों की किताबों की समीक्षा आदि भी लिखी है । हिन्दी में विज्ञान सम्बन्धी लेखों का अनुवाद और स्वतंत्र लेखन। आरम्भिक दिनों में इला नरेन के नाम से भी लेखन।

कृतियाँ : "धूप का टुकड़ा " (कविता संग्रह) एवं "इस कहानी का अंत नहीं" ( कहानी- संग्रह) ।
लेखन के अतिरिक्त योग, रेकी, बागवानी, पर्यटन एवं पुस्तकें पढ़ने में रुचि।
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन ।
सम्पर्क : 12934, MEADOW RUN
HOUSTON, TX-77066
USA
ई मेल ; ila_prasad1@yahoo.com

11 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

इला जी, बधाई ! क्या खूब कविताएं हैं। "कलम" कविता ने तो कील लिया -

"मैं बोलती थी
और कोई नहीं
सुनता था मुझे।
मैं कलम हो गई
और अब,
सब सुन रहे हैं मुझे।"

मेरे "गवाक्ष" ब्लाग के लिए भी ऐसा ही सुन्दर-सा कुछ भेंजे।

और भाई चन्देल, रचना समय में जो रचनाएं तुम दे रहे हो, वाकई लाजवाब है।

अनिल जनविजय ने कहा…

bhaai chandel jii,
ilaa jii ki kavitaayen behad achchhii hain. itni achchhi kavitaaon ke liye kavi aur prakaashak donon ko badhaai.

बेनामी ने कहा…

bhut acche.jari rhe.

श्रद्धा जैन ने कहा…

Roop ji
aapki rachna samay dekha aur ila ji ki rachnayen padhi
aapka bhaut aabhar ki itni sunder rachna aapne yaha prakashit ki
aur hum sabhi ko unhe padhne ka avsar diya
agar sambhav ho sake to unki kuch aur kratiya padhne ka awsar de

Unknown ने कहा…

Anubhutiyon aur zamini yatharth ka itna seedha aur sachcha santulan vastav main prashansniya hai. Seedhe dil tak dastak deti hein yeh kavitayen. Lekhika aur sampadak dono ko badhai. Ila ji ko maine Katha Shikhar ke liye Kahani likhne ko kaha hai. Ab lagta hai ki kavitayen bhi zaroori ho gayee hein. Ramesh Kapur, Katha Shikhar, Delhi

J.L. Gupta 'Chaitanya' ने कहा…

Its fairly good to say such poems definitely inspire the younger generations and particularly emerging women writers. They definitely such the core of our heart and reflect on the inner feelings. Dr Chandel Sahib's selections for the blog indeed marvelous.
J.L.GUPTA, Delhi

तेजेन्द्र शर्मा ने कहा…

इला जी

आपकी कहानियां तो पसन्द करता ही हूं, आपकी कविताओं की सहजता ने बहुत प्रभावित किया है। आपका लेखन ऐसे ही परवान चढ़ता रहे।

तेजेन्द्र शर्मा (लन्दन)

बेनामी ने कहा…

subhash chander ने आपको एक ब्लॉग का लिंक भेजा है:

ila ji,rachna samay me apki kavitaen dekhi.rachnaen achhi hain.visheshkar Dooriyan kavita to behatrin rachana hai.badhi.

Subhash Chander

बेनामी ने कहा…

ila ji aap ki kavitayen bahut sunder hain
saader
rachana

बेनामी ने कहा…

आदरणीय इला जी, नमस्कार!
आपका परिचय 'रचना समय' पर देखा।
कलम

मैं बोलती थी
और कोई नहीं
सुनता था मुझे।
मैं कलम हो गई
और अब,
सब सुन रहे हैं मुझे।
बहुत ही सुन्दर रचना बनी है, बधाई!
कथा-व्यथा के लिये भी कुछ नई रचनायें
अपने पूरे परिचय, फोटो के साथ भेंजें। संपर्क बनाये रखें।
आपका ही
शम्भु चौधरी, सम्पादक
कथा-व्यथा
http://kathavyatha.blogspot.com/

सुरेश यादव ने कहा…

इला जी ,आप की इन छोटी कविताओं ने गहरा प्रभाव छोड़ा है .बधाई.