पांच कविताएं
(सभी कविताओं के अनुवाद : पीयूष दईया)
नॉर्वेजियन कविता
मेरा, गो कि कड़वा__
पाल ब्रेक्के
तुमने इंतजार किया, पीछे तुम्हारे खिड़की का।
आधी मुड़ी तुम्हारी पीठ
और तुम्हारे चारों ओर रोशनी
ऐसे थी मानो तुम कर रही हो आराम एक हाथ में।
यह ऐसे था मानो तुम वहां खड़ी थी
औरमुझे छोड़ दिया ओह तिनके--तिनके
ज्यों तुमने सुना गरदन झुकाए
किसी को जो गुजरा था
तुम्हें जीत ले गया जो
मुद्दत पहले के आवास में;
दूर और बेगाना मैं वहां खड़ा था
एक्बार, हम जिसे कहत हैं 'अभी'।
रोशनी के हाथ में तुम डोलती हो
सुदूर बाहर समय के ---
नहीं, वे मेरे नहीं थे, कभी भी,
डग जिनका तुमने इंतजार किया!
लेकिन मैं यहां खड़ा होउंगा छयाओं में--
अंधेरा मुझ से पी सकता है
महान रोशनी के तट पर
जो झुकती है तुम्हारे बालों के गिर्द।
पहर है मेरा, गो कि कड़वा।
ओ इसे तोड़ तो, इसे मत तोड़ो
सब संग मैं खड़ा हूं और याद करता हूं
पहुंच नहीं सकता मैं उस जगह से।
जापानी कविता
एक पत्ती, हवा और रोशनी
अत्सूओ ओहकी
मैं लिपटूंगा
घास की एक पत्ती से
हवा की तरह।
मैं झूलूंगा
एक मकड़ी के जाले से
एक पत्ती भांति।
मैं छनूंगा
एक चिउरे की पांखों से
जैसे रोशनी।
मैं बनूंगा हवा, रोशनी
और एक पत्ती।
इतना खाली है मेरा ह्रदय।
इतालवी कविता
बड़ा दिन
उंगारेती (1888-1970)
सड़कों के
एक जाल में
गोता लगाने की
मेरी कोई चाहना नहीं
ऐसी थकान
मैं महसूस करता हूं
अपने कंधों पर
जो छोड़ दे मुझे इस तरह
जैसे
एक चीज
अर्पित
एक कोने में
और भूली हुई
यहां
होता है महसूस
नहीं कुछ
सिर्फ भली गर्माहट
मैं ठहरा हूं
धुएं की
चार
कुलांचों संग
अंगीठी से आती
रोमानियाई कविता
रास्ता
त्रिस्तान जारा (1896-1963)
यह कौन सा मार्ग है जो हमें अलगता है
जिसके आर-पार मैं फैलाये हूं हाथ अपने विचारों का
हरेक उंगली की पोर पर लिखा है एक फूल
और मार्गान्त एक फूल है जो चलता है तुम संग
ऑस्टियन कविता
ग्रीष्म
जॉर्ज त्राकल (1887-1914)
शाम होने पर, कोयल की कुहू
थमती है वन में।
नीचे की ओर झुकती है सतह दानेदार,
लाल खसखस।
काले बादल गरजते हैं बौराते
पहाड़ी ऊपर।
झींगुर का चिरन्तन गान
लुप्त हो जाता मैदानों में।
पात पांगर
पेड़ के और नहीं खड़कते।
पेचदार जीने पर
तुम्हारा वेश सरसराता है।
नीरव बत्ती एक चमकती है
सियाह कमरे में;
रुपहला हाथ एक
इसे बुझाता है;
न हवा, न तारे! रात।
2 टिप्पणियां:
अच्छा लगा विभिन्न पृष्टभूमियों से भांति भांति की रचनाऐं पढ़ना. बहुत आभार आपका.
Achha laga vibhinn tarah ki kavita padhna aur kavi ke bare main jaanna
shukriya
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